Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ उद्देशक २
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे णो मट्टियागएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय-छिंदिय विकुज्जिय-विकुज्जिय विफालिय-विफालिय उम्मग्गेण हरियवहार गच्छिज्जा जमेयं पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु माइट्ठाणं संफासे णो एवं करिज्जा | से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहिज्जा । तओ . संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥
कठिन शब्दार्थ - छिंदिय - छेदन करके, मट्टियागएहिं विकुज्जिय - उखाड़ कर, विफालिय- फाड़ कर, छीलकर, अवहरंतु
कीचड़ से भरे हुए, अपहरण करे ।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए कीचड़ से भरे हुए अपने पैरों को साफ करने के लिए उन्मार्ग में जाकर सचित्त वनस्पति (हरितकाय) का छेदन भेदन कर, उखाड कर हरितकाय का वध करता हुआ गमन न करे। पैरों को हरितकाय के स्पर्श से मिट्टी रहित करने
साधु साध्वी को मातृ स्थान का स्पर्श होता है अर्थात् साध्वाचार का उल्लंघन होता है अतः साधु साध्वी को ऐसा नहीं करना चाहिये। पहले से ही हरितकाय से रहित मार्ग को देखकर यतना पूर्वक ग्रामानुग्राम विचरे ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गलपासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, सइ परक्कमे संजयामेव परक्कम्मिज्जा णो उज्जुयं गच्छिज्जा । केवली बूया आयाणमेयं से तत्थ परक्कममाणे पयलिज्ज वा पवडेज्ज वा, से तत्थ पयलेमाणे वा, पवडेमाणे वा, रुक्खाणि वा गुच्छाणि वा, गुम्माणि वा, लाओ वा, वल्लीओ वा, तणाणि वा, गहणाणि वा, हरियाणि वा, अवलंबिय- अवलंबिय उत्तरिज्जा । जे तत्थ पाडिपहिया उवागच्छंति ते पाणी जाएज्जा, जाइत्ता तओ संजयामेव अवलंबिय अवलंबिय उत्तरिज्जा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा ॥
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कठिन शब्दार्थ - गड्डाओ - गड्ढा खड्डों को, दरीओ गुफाओं को, रुक्खाणि वृक्षों को, गुच्छाणि - गुच्छों को, गुम्माणि - गुल्मों को, लयाओ - लताओं को, वल्लीओवल्लियों (बेलों) को, गहणाणि - सचित्त आकीर्ण वनस्पति को, अवलंबिय- पकड़ कर, पाडिपहिया - प्राति पथिक - सामने से आते हुए मुसाफिर ।
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