Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अध्ययन ३ उद्देशक १
१५५ sterestricrosorrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr हो, किणिज - खरीदी हो, पामिच्चिज - उधार ली हो, णावाए वा णावं परिणाम कट्ट - एक नौका के बदले दूसरी नौका ली हो (अदला बदली की हो) थलाओ - स्थल से, जलंसि - जल में ओगाहिजा - ले जाय, जलाओ - जल से, थलंसि - स्थल पर, उक्कसिज्जा - लाए, पुण्णं वा णावं उस्सिंचिज्जा - पानी से भरी नाव को खाली करवायी हो, सण्णं - कीचड में फंसी हुई, उप्पीलाविजा - नौका को बाहर निकाल कर चलने के लिये तैयार की हो, उड्वगामिणी - ऊर्ध्वगामिनी-प्रतिस्रोतगामिनी-पानी के स्रोत के सामने विपरीत दिशा में चलने वाली, तिरियगामिणिं - तिर्यग् गामिनी-तिरछी चलने वाली, परं जोयणमेराए - उत्कृष्ट (एक) योजन की मर्यादा से चलने वाली, अद्धजोयणमेराए - अर्द्ध योजन चलने वाली, अप्पतरे - थोड़े समय के लिए, भुजतरे - बहुत समय के लिए।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विचरते हुए मार्ग में कदाचित् नौका से पार करने योग्य पानी हो, तो वह साधु नौका के विषय में यह जाने कि-जो नौका असंयमी गृहस्थ ने साधु के निमित्त खरीदी हो या उधार ली हो अथवा एक नौका के बदले दूसरी नौका ली हो अथवा थल से जल में उतारी हो या जल से स्थल पर लायी हो, पानी उलीच • कर नौका खाली करवायी हो अथवा कीचड़ में फंसी हुई नौका को बाहर निकलवायी हो, इस प्रकार की नौका जो ऊर्ध्वगामिनी-पानी के प्रवाह के सामने चलने वाली या अधोगामिनीजिधर जल बह रहा हो उधर जाने वाली अथवा तिर्यग्गामिनी- तिरछी चलने वाली हो, वह चाहे एक योजन प्रमाण क्षेत्र में चलती हो या अर्द्ध योजन की मर्यादा से चलने वाली हो। ऐसी.नौका पर थोड़े समय के लिए अथवा बहुत काल लिए साधु साध्वी सवार न हो।
से भिक्ख वा भिक्खणी वा पुव्वामेव तिरिच्छसंपाइमं णावं जाणिज्जा जाणित्ता से तमायाए एगंतमवक्कमिज्जा, एगंतमवक्कमित्ता भंडगं पडिलेहिज्जा, पडिलेहित्ता एगाभोयं भंडगं करिज्जा, करित्ता ससीसोवरियं कायं पाए पमज्जिज्जा पमज्जित्ता सागारं भत्तं पच्चक्खाइज्जा पच्चक्खाइत्ता एगं. पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा तओ संजयामेव णावं दुरुहिज्जा॥११८॥ . कठिन शब्दार्थ - भंडगं - भण्डोपकरण को, सागारं - आगार पूर्वक, भत्तं.- आहार का, पच्चक्खाइज्जा - प्रत्याख्यान करे, जले - जल में, किच्चा - करके।
भावार्थ - साधु या साध्वी पहले से ही तिरछी चलने वाली नौका को जानकर एकांत
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org