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अध्ययन ३ उद्देशक १
१५१ •rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrre
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दढणं तसे पाणे उद्घट्ट पायं रीइजा, साहट्ट पायं रीइजा, वितिरिच्छं वा कट्ट पायं रीइज्जा, सइ परक्कमे संजयामेव परिक्कमिज्जा णो उज्जुयं गच्छिज्जा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥
कठिन शब्दार्थ - जुगमायाए - युगमात्र-चार हाथ प्रमाण भूमि को, पुरओ - सम्मुख, रीइजा - चले, साहट्ट - संकुचित करके, उद्धट्ट - उठा कर, ऊँचा करके, वितिरिच्छं - टेढा करके।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ अपने सम्मुख चार हाथ प्रमाण भूमि को देखता हुआ चले और मार्ग में त्रस प्राणियों को देखकर पांव को ऊँचा करके (अग्रभाग को उठा करके) चले, यदि दोनों ओर जीव जंतु हों तो पांव को आगे पीछे हटा करके पैरों की संकुचित करके अथवा टेढा पैर रखकर यतना पूर्वक चले। यदि अन्य साफ मार्ग हो तो उस जीव जंतु वाले मार्ग को छोड़कर यतना पूर्वक अन्य मार्ग से ही चले, परन्तु जीव जंतुओं से युक्त सरल (सीधे) मार्ग पर न चले। अन्य मार्ग के अभाव में उस मार्ग से यतना पूर्वक गमन करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि विहार के समय साधु साध्वियों को मार्ग की यतना कैसे करनी चाहिये?
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्थे सइ परक्कमे णो उज्जुयं गच्छिज्जा तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजा॥११४॥
कठिन शब्दार्थ - अविद्धत्थे - जिसकी योनि विध्वस्त नहीं हुई है, सचित्त (सजीव)।
भावार्थ - साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ-जिस मार्ग में बहुत से त्रस प्राणी हैं, . बीज बिखरे हैं, हरियाली है सचित्त पानी या सचित्त मिट्टी है जिसकी योनि विध्वस्त नहीं हुई है तो अन्य मार्ग के होने पर उस सीधे मार्ग से नहीं जावे। यदि अन्य मार्ग न हो तो उस मार्ग पर यतना पूर्वक चले।
- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिगाणि, दस्सुगायतणाणि, मिलक्खूणि (अणायरियाणि) दुस्सण्णप्पाणि,
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