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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .00000000000000000000000000000000000000000000000000000000
उत्तर - प्रश्न उचित है, इसका समाधान यह है कि भाषा वर्गणा के पुद्गल ग्रहण होते समय एवं निस्सरण होते (निकलते-छोड़ते) समय चार स्पर्श (शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष) वाले होते हैं। बाद में वे पुद्गल शब्द वर्गणा में परिणत होकर आठ स्पर्श वाले को सुनाई देते हैं। उसके बाद वर्गणा के पुद्गलों के प्रयोग से अचित्त वायु उत्पन्न होती है इससे तथा शरीर से उत्पन्न होने वाली अचित्त वायु को आठ स्पर्श युक्त माना है और वह ठाणाङ्ग सूत्र के पांचवें ठाणे में पांच प्रकार की बतलाई गयी है यथा - अक्कंते, धंते, पीलिए, सरीराणुगए, संमुच्छिमे।
अतः मुंह से निकलने वाली वायु से बाहर के वायुकायिक जीवों की हिंसा होती है।
प्रश्न - यहां एक प्रश्न पैदा हो सकता है कि जब साधु साध्वी मुख पर मुख वस्त्रिका लगाते हैं तब श्वासोच्छ्वास से होने वाली वायुकायिक जीवों की हिंसा को रोकने के लिये मुंह पर हाथ रखने की क्या आवश्यता है?
उत्तर - सामान्य रूप से चलने वाले श्वासोच्छ्वास के समय मुंह पर हाथ रखने की आवश्यकता नहीं है। हाथ रखने का विधान विशेष परिस्थिति के लिये है जैसे कि उबासी डकार आदि के समय जोर से निकलने वाली वायु का वेग मुखवस्त्रिका से नहीं रुक सकता है ऐसे समय पर मुंह पर हाथ रखने का विधान किया है और मुख के साथ नाक का भी ग्रहण किया है जैसे कि छींक आना। जैसे मुख से निकलने वाली वायु के वेग को रोकने के लिए मुख पर हाथ रखने का विधान किया गया है उसी प्रकार अपानवायु के वेग को रोकने के लिए मलद्वार (गुदास्थान) पर हाथ रखने का भी आदेश दिया गया है क्योंकि शब्द पूर्वक निकलने वाली अपान वायु के वेग को चोलपट्टक नहीं रोक सकता है क्योंकि उस समय उसका वेग तेज होता है। अतः इन प्रसंगों पर उक्त स्थानों पर हाथ रखने का विधान किया गया है उस विधान का उद्देश्य केवल वायुकायिक जीवों की रक्षा करना ही है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समा वेगया सिज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सिज्जा भवेज्जा, पवाया वेगया सिज्जा भवेज्जा, णिवाया वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेजा भवेज्जा, अप्पससरक्खा वेगया सेज्जा भवेजा, सदंसमसगा वेगया सेजा भवेज्जा, अप्पदंसमसगा वेगया सेजा भवेजा, सपरिसाडा वेगया सेजा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा
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