Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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.. अध्ययन २ उद्देशक ३
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु साध्वी को अपनी नेश्राय में रही हुई प्रत्येक वस्तु की कालोकाल प्रतिलेखना करते रहना चाहिये। चाहे वह वस्तु गृहस्थ को वापिस लौटाने की भी क्यों न हो फिर भी जब तक साधु साध्वी के पास है तब तक प्रतिदिन नियत समय पर उसका प्रतिलेखन करना चाहिये जिससे उसमें जीव जन्तु की उत्पत्ति न हो और उसे वापिस लौटाते समय भी प्रतिलेखन करके लौटानी चाहिये। यदि संस्तारक अंडे या जाले आदि से युक्त हो तो उसे उसी अवस्था में गृहस्थ को नहीं लौटना चाहिये क्योंकि गृहस्थ उसे शुद्ध बनाने का प्रयत्न करेगा परिणाम स्वरूप जीवों की घात होगी और साधु साध्वी के प्रथम महाव्रत में दोष लगेगा अतः जीवों की रक्षा के लिए साधु साध्वी को गृहस्थ के घर से लाए हुए संस्तारक को वापिस लौटाते समय उसकी शुद्धता का . पूरा ख्याल रखना चाहिये।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहिज्जा, केवली बूया आयाणमेयं। अपडिलेहियाए उच्चार पासवणभूमीए भिक्खू वा भिक्खुणी वा राओ वा वियाले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलिज वा पवङिज वा, से तत्थ पयलेमाणे वा पवडेमाणे वा हत्थं वा पायं वा जाव लूसिज्जा वा पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा ववरोविज्जा। अह भिक्खू णं पुव्वोवइट्ठा जाव जं पुवामेव पण्णस्स उच्चारपासवणभूमि पडिलेहिजा॥१०६॥
भावार्थ - साधु या साध्वी को किसी स्थान पर रहते हुए, मास कल्पादि बीताते हुए अथवा ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए मल-मूत्र त्यागने का स्थान पहले ही अच्छी तरह देख लेना चाहिये। ऐसा नहीं करने पर केवलज्ञानियों ने इसे कर्म बंध का कारण बताया है। क्योंकि बिना देखी हुई भूमि में साधु अथवा साध्वी रात्रि में या विकाल में मल-मूत्रादि परठते समय कदाचित् फिसल जाय या गिर जाय तो उसके गिरने अथवा फिसलने से हाथ पैर या शरीर का अन्य कोई अंगोपांग टूट जाय या प्राण, भूत, जीव, सत्त्वादि की विराधना हो जाय। अतः साधु साध्वी का यह पूर्वोपदिष्ट आचार है कि वह पहले से ही मल-मूत्र त्यागने की भूमि को अच्छी तरह देख ले।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मल मूत्र त्याग करने की भूमि का प्रतिलेखन करना आवश्यक
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