Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अध्ययन २ उद्देशक ३
तिर जाता हैं उसको शय्यातर कहते हैं। मकान देने का महान् लाभ हैं इसलिए केवल शय्या (मकान) देकर ही संसार समुद्र से तिर जाता हैं। ऐसा कहा है।
प्रस्तुत सूत्र में भगवान् ने शय्यातर के घर का आहार पानी लेने का निषेध किया है। इसीलिए शय्यातर के नाम, गोत्र आदि का परिचय करना जरूरी है। जिससे आहारादि के लिए उसके घर को छोड़ा जा सके।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा सागारियं सागणियं सउदयं णो पण्णस्स णिक्खमणपवेसाए जाव अणुचिंताए तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेइज्जा ॥ ९१ ॥
कठिन शब्दार्थ - सागांरियं
-
-
•
सउदयं - जल से युक्त, पण्णस्स भावार्थ - वह साधु अथवा साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो गृहस्थों से संसक्त हो, अग्नि से युक्त हो, सचित्त जल से युक्त हो तो उसमें प्रज्ञावान् साधु साध्वी को प्रवेश करना और निकलना उचित नहीं है और न ही ऐसा उपाश्रय धर्मानुयोग चिंतन के लिए उपयुक्त है। ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्ग, शयन-आसन तथा स्वाध्याय आदि नहीं करना चाहिए ।
-
Jain Education International
१३५ ***
गृहस्थों के संसर्ग वाला, सागणियं - अग्नि से युक्त, प्रज्ञावान साधु को ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है साधु साध्वी को ऐसे स्थान में नहीं ठहरना चाहिए जिसमे गृहस्थों का विशेष कर के साधुओं के स्थान में बहनों का एवं साध्वियों के स्थान में पुरुषों का आवागमन रहता हो तथा जो स्थान अग्नि एवं पानी से युक्त हो ।
भक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा - गाहावइकुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं पंथए पडिबद्धं वा णो पण्णस्स जाव चिंताए तहप्पगारे उवस्सए
ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेइज्जा ॥ ९२ ॥
कंठिन शब्दार्थ - मज्झमज्झेणं - मध्य मध्य में होकर, गंतुं - जाने का, पंथए मार्ग, पडिबद्धं- प्रतिबद्ध-बंधा हुआ, अपना बनाकर रखा हुआ ।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी को जिस उपाश्रय में गृहपति के कुल (घर) के मध्य मध्य में (बीचोंबीच ) होकर जाने का मार्ग है जिससे आने जाने में स्वाध्याय आदि में अड़चन आती हो तो उस उपाश्रय में नहीं रहना चाहिये ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org