Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन २ उद्देशक ३
१३९ .0000000000000000000000000000000000000000000000000000000
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण संथारगं जाणिज्जा अप्पंडं जाव अप्पसंताणगं लहुयं पाडिहारियं, अहाबद्धं तहप्पगारं संथारगं जाव लाभे संते पडिगाहिज्जा॥९९॥ . भावार्थ - साधु या साध्वी जिस संस्तारक को अंडों यावत् मकडी के जालों से रहित, लघु (हल्का), पडिहारी (प्रातिहारिक) और अच्छी तरह बंधा हुआ (जिसके बंधन सुदृढ़ हो) जाने, तो ऐसे संस्तारक को मिलने पर ग्रहण कर सकता हैं। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में संस्तारक-पीठ, फलक आदि के ग्रहण करने की विधि बताई गई है जो संस्तारक अण्डे, जाले आदि जीव जंतुओं से रहित हो, वजन में हल्का हो, साधु की आवश्यकता पूरी होने पर गृहस्थ उसे वापिस लेने के लिए कह चुका हो और जिसके बंधन मजबूत हो वही संस्तारक साधु साध्वी को ग्रहण करना चाहिये। अण्डे आदि से युक्त पाट आदि ग्रहण करने से जीवों की हिंसा होगी अतः संयम की विराधना होगी। साधु साध्वी को गृहस्थ के घर से पाट-बाजोट आदि लाने की आवश्यकता हो तो एक साधु या साध्वी एक हाथ से उठा सके ऐसा हल्का पाट-बाजोट आदि ही लाना चाहिए। अधिक भारी उठाकर लाने से शरीर को विशेष कष्ट होगा तथा अधिक बोझ के कारण रास्ते में पैर आदि के इधर-उधर पड़ने से पैर आदि में चोट भी आ सकती हैं इस तरह आत्म- विराधना होगी। अतः हल्का पाट आदि लाना चाहिए। यदि गृहस्थ उस पाट-बाजोट आदि को वापस नहीं लेता है तो फिर साधु साध्वी के सामने यह प्रश्न प्रस्तुत होगा कि वह उसे कहाँ रखे क्योंकि उसको उठाकर तो वह विहार नहीं कर सकता और एक व्यक्ति के यहाँ से ली हुई वस्तु दूसरे के यहाँ छोड़ भी नहीं सकता तथा यों ही उपाश्रय में छोड़कर विहार भी नहीं कर सकता। शिथिल बंधन वाला होगा तो उठाते, रखते ही वह टूट जाएगा (बिखर जाएगा) उसको संभालना या प्रतिलेखन करना भी संभव नहीं होगा। अतः साधु साध्वी को अण्डे जाले आदि से रहित, वजन में हल्का, साधु साध्वी की आवश्यकता पूरी होने पर गृहस्थ उसे वापस लेने को स्वीकार करने का कह चुका हो और जिसके बंधन मजबूत हो वही पाट-बाजोट आदि को साधु साध्वी को ग्रहण करना चाहिए। संस्तारक ग्रहण करने के लिए किए जाने वाले अभिग्रहों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार फरमाते हैं -
इच्चेयाई आयतणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाणिज्जा
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