Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ................................................... इमाइं चउहि पडिमाहिं संथारगं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय उद्दिसिय संथारगं जाइज्जा, तंजहा-इक्कडं वा, कढिणं वा, जंतुयं वा, परगं वा, मोरगं वा, तणगं वा, सोरगं वा, कुसं वा, कुच्चगं वा, पिप्पलगं वा, पलालगं वा, से पुव्वामेव आलोइज्जा-आउसो त्ति वा, भगिणी त्ति वा दाहिसि मे इत्तो अण्णयरं संथारगं? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाइज्जा, परो वा से दिज्जा, फासुयं एसणिज्जं जाव.पडिगाहिज्जा। पढमा. पडिमा॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - उद्दिसिय उद्दिसिय - नाम ले ले कर, इक्कडं - इक्कड नामक घास विशेष, कढिणं - बांस की छाल, जंतुयं - जंतुक नामक तृण को, परगं - परक नामक घास को, मोरगं - मयूर के पंखों से निर्मित, सोरगं - सोर नामक कोमल तृण विशेष से निर्मित, कुसं - डाभ को, कुच्चगं- शर नामक घास का, पिप्पलगं - पीपल के पत्तों का, पलालगं - पराल (पयाल-पलाल) का। ___ भावार्थ - साधु साध्वी पूर्वोक्त दोषों को त्याग कर इन चार प्रतिज्ञाओं से संस्तारक की गवेषणा करे, उनमें से पहली प्रतिज्ञा यह है कि - साधु अथवा, साध्वी इक्कड़ नामक घास का संस्तारक, बांस की छाल से बना संस्तारक (सालडी) जंतुक नामक घास का संस्तारक, पुष्पादि के गुंथन करने वाली घास विशेष का संस्तारक, मोर के पंखों का संस्तारक, दूब, कुशादि तृण विशेष से निर्मित संस्तारक, शर नामक घास (जिसके कूर्चक आदि बनते हैं) का संस्तारक, पीपल के पत्तों का संस्तारक अथवा पराल का संस्तारक इत्यादि संस्तारकों में से नाम का उल्लेख करके संस्तारक की याचना करे। साधु या साध्वी पूर्व में ही विचार कर कहे कि हे आयुष्मन्! अथवा बहन! क्या तुम मुझे इन संस्तारकों में से अमुक संस्तारक दोगे/दोगी? इस प्रकार के प्रासुक और निर्दोष संस्तारक की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ ही बिना याचना किए दे तो ग्रहण करे। यह पहली प्रतिमा-प्रतिज्ञा है।
अहावरा दुच्चा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए संथारगं जाइज्जा, तंजहा-गाहावई वा कम्मकरि वा से पुव्वामेवे आलोइज्जा आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाइज्जा परो वा से दिज्जा फासुयं एसणिजं जाव पडिगाहिज्जा। दुच्चा पडिमा॥
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