Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध •rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr और उसमें भी कितनेक घर संनिरुद्ध-बंद पडे हैं, प्रसूति आदि कारणों से रुके हुए हैं। अतः आप गांव से बाहर किसी अन्य गांव में भिक्षा के लिए पधारो।" ऐसा सुनकर साधु ग्रामान्तर चला जाय।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त "समाणा वा वसमाणा" शब्द का टीकाकार इस प्रकार अर्थ करते हैं - समाणा - "समानाः इति जंघाबल परिक्षीणतयैकस्मिन्नेव क्षेत्रे तिष्ठन्तः" अर्थात् जंघाबल के क्षीण हो जाने से जो एक ही स्थान पर रुके हुए हैं यानी स्थिरवास विराजित हैं, वसमाणा - "वसमाना:-मासकल्प विहारिणः"-मास कल्प विहार करने वाले। अर्थात् अधिक से अधिक एक महीना रहने वाले।
संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरेसंधुया वा पच्छासंथुया वा परिवसंति तंजहागाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइपुत्ता वा, गाहावइधूयाओ वा, गाहावइसुण्हाओ वा, धाइओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा, तहप्पगाराइं कुलाई पुरेसंथुयाणि वा पच्छासंथुयाणि वा पुव्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि, अवि य इत्थ लभिस्सामि पिंडं वा, लोयं वा, खीरं वा, दहिं वा, णवणीयं वा, घयं वा, गुलं वा, तेल्लं वा, महुं वा, मजं वा, मंसं वा, संकलिं वा, फाणियं वा, पूयं वा, सिहरिणिं वा तं पुव्वामेव भुच्चा पेच्चा पडिग्गहं संलिहिय संमजिय तओ पच्छा भिक्खूहिं सद्धिं गाहावइकुलं पिंडवाय पडियाए पविसिस्सामि णिक्खमिस्सामि वा, माइट्ठाणं संफासे, तं णो एवं करिज्जा।
से तत्थ भिक्खूहिं सद्धिं कालेण अणुपविसित्ता तत्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसिय पिंडवायं पडिगाहित्ता आहारं आहारिजा॥
कठिन शब्दार्थ - पुरेसंथया - पूर्व परिचय वाले माता-पिता भाई भतीजे आदि, पच्छा संथुया - पश्चात् परिचय वाले सास श्वसुर आदि, परिवसंति - निवास करते हो, पुव्वामेवपहले, अणुपविसिस्सामि - प्रवेश करूंगा, अवि य इत्थ - अथवा इन कुलों में, लभिस्सामिप्राप्त करूँगा, पिंडं- अन्न शाल्यादि पिंड, लोयं - रस युक्त आहार, खीरं - दूध, दहिं - दही, णवणीय - नवनीत मक्खन, घयं - घृत, गुलं - गुड, तेल्लं - तेल, महुं - मधु,
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