Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध workstorrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror जाणिजा तंजहा-उस्सेइमं वा संसेइमं वा चाउलोदगं वा अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणगजायं अहुणाधोयं अणंबिलं अव्वुक्कंतं अपरिणयं अविद्धत्थं अफासुयं जाव णो पडिगाहिजा॥
अह पुण एवं जाणिजा-चिराधोयं अंबिलं वुक्कंतं परिणयं विद्धत्थं फासुयं जाव पडिगाहिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - उस्सेइमं - उत्स्वेदिम-जिस बर्तन में आटा मसला जाता है उसे कठौती कहते हैं उस कठौती आदि को धोया हुआ धोवन, संसेइमं - तिलों को धोया हुआ धोवन, चाउलोदगं - चावलों का धोया हुआ धोवन, पाणगजायं - पानक जात-पानी के भेदों (प्रकारों) को, अहुणाधोयं - तुरन्त का धोया हुआ (तत्काल का बनाया हुआ हो), अणंबिलं - जिसका स्वाद न बदला हो, अव्वुक्कंतं - रस अतिक्रांत न हुआ हो, अचित्त न हुआ हो, अपरिणयं - शस्त्र परिणत न हुआ हो, अविद्धत्थं - जो पूर्ण रूप से अचित्त न बना हो, योनि ध्वंश नहीं हुआ हो, चिराधोयं - चिरकाल का धोया हुआ हो, अंबिलं - स्वाद बदल गया हो, वुक्कंत-अचित्त हो गया हो, परिणयं-शस्त्र परिणत हो चुका हो, विद्धत्थं-योनि रहित हो गया हो। ___ भावार्थ - गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु या साध्वी पीने योग्य जल-धोवन आदि के बारे में ऐसा जाने कि-आटा मसलने की कठौती का धोवन तिलों का धोया हुआ धोवन, चावलों का धोया हुआ धोवन या ऐसा ही अन्य कोई धोवन जो तत्काल किया हुआ हो, जिसका स्वाद चलित नहीं हुआ हो, वर्ण, रसादि का परिणमन न हुआ हो, शस्त्र परिणत नहीं हुआ हो, जो पूर्ण रूप से अचित्त न बना हो तो ऐसे पानी को अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी साधु ग्रहण न करे। ... यदि पुनः ऐसा जाने कि धोवन लम्बे समय का धोया हुआ है, उसका स्वाद बदल गया है, वह अचित्त हो गया है, शस्त्र परिणत हो चुका है, योनि रहित हो गया है तो ऐसे धोवन को प्रासुंक और एषणीय जानकर साधु साध्वी उसे ग्रहण कर सकते हैं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा तंजहा - तिलोदगं वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सद्धवियर्ड वा अण्णयर वा तहप्पगार वा पाणगजायं पुवामेव आलोइज्जा-आउसो त्ति वा
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