Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
हुए किसी साधु या साध्वी के पूर्व परिचित माता पिता आदि तथा पश्चात् परिचित सासुससुर आदि पारावारिक या सम्बन्धीजन निवास करते हैं तो ऐसे कुलों में साधुभिक्षा से पहले ही आहार- पानी के लिए नहीं जावे और न ही निकले। केवली भगवान् ने इसे कर्म बंध का कारण कहा है। क्योंकि भिक्षा काल से पूर्व साधु को अपने यहाँ आया देख कर गृहस्थ उसके लिए भोजन बनाएगा या बने हुए भोजन को संस्कारित करेगा । अतः साधु या साध्वी के लिए यह तीर्थंकरों द्वारा पूर्वोपदिष्ट आचार है कि वह ऐसे परिचित कुलों में आहार- पानी के लिए भिक्षा काल से पूर्व न जाय और न निकले। कदाचित् पहले चला जाय और आहार आदि का समय न हुआ जाने तो तुरन्त लौटकर किसी की दृष्टि, न पडे, ऐसे एकान्त स्थान में खड़ा रहे और जब भिक्षा का समय हो तब भिन्न-भिन्न कुलों से सामुदानिक भिक्षा से निर्दोष आहार ग्रहण कर उसका उपभोग करे। .
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साधु या साध्वी भिक्षा के समय पर ही ऐसे घरों में पहुँचे और गृहस्थ को आधाकर्मिक आहार की तैयारी करते हुए या पकाते हुए देखकर उस समय उपेक्षा करके विचार करे कि - 'जब ये मुझे देंगे तब मना कर दूंगा' तो वह मुनि मातृ स्थान का स्पर्श करता है अर्थात् साधु आचार का उल्लंघन करता है अतः साधु ऐसा न करे और पूर्व में ही देख कर कह दे कि - 'हे आयुष्मन् अथवा बहिन! मुझे इस प्रकार का आधाकर्मिक आहार- पानी खाना या पीना नहीं कल्पता है। अतः मेरे लिए भोजन मत पकाओ, पकाये हुए को संस्कारित मत करो। साधु के ऐसा कह देने पर भी गृहस्थ आधाकर्मिक आहार- पानी तैयार करके लाकर देवे तो ऐसे अशनादिक को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मुनि ग्रहण न करे।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु आहार का समय होने से पहले अपने पारिवारिक व्यक्तियों के घरों में आहार के लिए नहीं जाए क्योंकि उन्हें अपने यहाँ आया जान कर वे स्नेह व भक्ति के वश सदोष आहार तैयार कर देंगे। इससे साधु को पूर्व कर्म दोष लगेगा। यदि कोई गृहस्थ साधु के लिये आधाकर्मी आहार बना रहा हो तो उसे देख कर साधु को पहले ही स्पष्ट कह देना चाहिए कि ऐसा आहार पानी मेरे लिए ग्राह्य नहीं है। यदि इस बात को जानते हुए भी साधु उस गृहस्थ को आधाकर्म आदि दोष युक्त आहार बनाने से नहीं रोकता है तो वह माया कपट का सेवन करता है अर्थात् साधु आचार का उल्लंघन करता है। साधु के मना करने पर भी कोई आधाकर्मी आहार बनाता रहे और वह सदोष आहार साधु को लाकर देवे तो साधु उसे ग्रहण न करे ।
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