Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध .0000000000000000. ............................. बंभयारी, उवरया मेहुणाओ धम्माओ णो खलु एएसिं कप्पइ आहाकम्मिए असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा भुत्तए वा पायए वा से जं पुण इमं अम्हं अप्पणो अट्ठाए णिट्ठियं, तंजहा- असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा सव्वमेयं समणाणं णिसिरामो अवियाइं वयं पच्छावि अप्पणो अट्टाए असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा चेइस्सामो एयप्पगारं णिग्योसं सुच्चा णिसम्म तहप्पगारं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा अफासुर्य अणेसणिज्जं जाव लाभे संते णो पडिगाहिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - पाईणं - पूर्व दिशा में, पडीणं - पश्चिम दिशा में, दाहिणं - दक्षिण दिशा में, उदीणं - उत्तर दिशा में, सड्ढा - श्रद्धावान्, वुत्तपुव्वं - पहले कहा हुआ, समणा - श्रमण, भगवंता - भगवान्, भाग्यवान, सीलमंता - शीलवंत, वयमंता - व्रती, गुणमंता - गुणी, संजया - संयमवंत, संवुड्डा- संवरवंत, बंभयारी - ब्रह्मचारी, मेहुणाओ धम्माओ - मैथुन रूपी पाप कर्म से, उवरया - उपरत-निवृत्त, आहाकम्मिए - आधाकर्मिक, अम्हं अप्पणो अट्ठाए - हमने अपने लिए, णिट्ठियं - बनाया है, णिसिरामो - दे दें, अवियाई - और फिर, चेइस्सामो - बना लेंगे, णिग्धोसं - निर्घोष-शब्द को।
भावार्थ - इस जगत में पूर्व में, पश्चिम में, दक्षिण में या उत्तर दिशा में कई सद्गृहस्थ उनकी गृहपत्नियाँ यावत् उनके दास दासी नौकर नौकरानियाँ श्रद्धावान् अथवा भद्र स्वभाव वाले होते हैं वे इस प्रकार कहते हैं - "जो मुनि ज्ञानवंत, शीलवंत, व्रती, गुणी, संयमवंत, संवरवंत, ब्रह्मचारी और मैथुन रूपी पाप कर्म के त्यागी होते हैं उनको आधाकर्मादि दोषों से युक्त आहार लेना कल्पता नहीं है अतः यह आहार जो हमने अपने लिए बनाया है ये सब इन्हें दे दें और अपने लिए फिर से आहार-पानी बना लेंगे।" उनके इस प्रकार के शब्द सुन कर साधु या साध्वी उस आहार-पानी को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण नहीं करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि साधु साध्वी को अपने घर आया हुआ देख कर कोई श्रद्धालु गृहस्थ यह सोचे कि ये आधाकर्म आदि दोषों से युक्त आहार नहीं लेते हैं अतः अपने लिये जो आहार बनाया है वह सब आहार इन्हें दे दें और अपने लिए फिर से आहार बना लेंगे इस तरह के शब्द सुन कर साधु या साध्वी उक्त आहार पानी को ग्रहण न करे क्योंकि इससे साधु साध्वी को पश्चात् कर्म दोष लगता है।
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