Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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- आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध •••••••••••••••••••.000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - चौथी पिण्डैषणा इस प्रकार है- साधु या साध्वी पौवा, मुरमुरा, तुष रहित शाल्यादि यावत् भुग्न शाल्यादि के चावल को-जिसमें पश्चात् कर्म न हो और पर्यवजात भी न हो स्वयं मांग ले अथवा अन्य कोई गृहस्थ बिना मांगे ही दे तो प्रासुक एवं एषणीय जान कर ग्रहण कर ले। यह चौथी पिंडैषणा है।
अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उग्गहियमेव भोयणजायं जाणिज्जा तंजहा-सरावंसि वा, डिंडिमंसि वा, कोसगंसि वा, अह पुण एवं जाणिजा बहुपरियावण्णे पाणीसु दगलेवे, तहप्पगारं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, सयं वा जाइजा जाव पडिगाहिज्जा, पंचमा पिंडेसणा॥ ___कठिन शब्दार्थ - उग्गहियमेव - खाने के लिये पात्र में निकाला हुआ, भोयणजायंआहार, सरावंसि - सराव अर्थात् मिट्टी के सकोरे में, डिंडिमंसि - कांसी के बर्तन में, कोसगंसि - कोशक में, पाणीसु दगलेवे - हाथ-पात्र आदि में पानी का लेप सूख गया हो।
भावार्थ - साधु या साध्वी ऐसी प्रतिज्ञा करे कि जो भोजन गृहस्थ ने स्वयं के खाने के लिए सकोरे में, कांसी की थाली में अथवा मिट्टी के किसी पात्र विशेष में निकाला हुआ रखा हो और उस गृहस्थ के हाथ अचित्त हो चुके हो वही आहार ग्रहण करूंगा। तथाप्रकार के आहार को प्रासुक जानकर साधु स्वयं मांग ले अथवा गृहस्थ स्वयं देने लगे तो ग्रहण कर ले। यह पांचवी पिंडैषणा है। __ अहावरा छट्ठा पिंडेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पग्गहियमेव भोयणजायं जाणिज्जा-जं च सयट्ठाए पग्गहियं जं च परट्ठाए पग्गहियं तं पायपरियावण्णं तं पाणिपरियावण्णं फासुयं जाव पडिगाहिज्जा-छट्ठा पिंडेसणा॥
कठिन शब्दार्थ - सयट्ठाए - अपने लिए, पग्गहियं - निकाला हुआ, परट्ठाए - दूसरों के लिए।
भावार्थ - साधु या साध्वी प्रतिज्ञा करे कि जो भोजन गृहस्थ ने अपने लिये अथवा दूसरों के लिये पात्र में से निकाला है परन्तु किसी ने उसका उपभोग नहीं किया है तो वह भोजन गृहस्थ के पात्र में हो या हाथ में हो उसे प्रासुक और एषणीय जान कर ग्रहण करना-यह छट्ठी पिंडैषणा है।
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