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अध्ययन २ उद्देशक ३ •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• दरवाजा या किवाड छोटे बड़े किये हों, कदाचित् साधु ने वहाँ रहते हुए शय्यातर दोष टालने के लिए मकान मालिक के घर का आहार पानी ग्रहण न किया हो, जिससे शय्यातर गृहस्थ रुष्ट हो जाय, इत्यादि अनेक दोष संभव है। यदि कदाचित् उपरोक्त दोषों से रहित उपाश्रय मिल भी जाय तो भी साधु की आवश्यकता के अनुकूल मकान मिलना कठिन है। क्योंकि कुछ साधु विहार चर्या में रत होते हैं, कोई कायोत्सर्ग .मैं अनुरक्त रहते हैं तो कुछ स्वाध्यायादि में व्यस्त रहते हैं तथा कोई शय्या संस्तारक आहारादि की शुद्ध गवेषणा करने वाले होते हैं। अतः उपरोक्त क्रियाओं के लिए योग्य एवं अनुकूल उपाश्रय मिलना कठिन ही है। इस प्रकार कितने ही सरल, मोक्षगामी मुमुक्षु निष्कपटता से उपाश्रय के दोष बतला देते हैं। . ... कई बार कितने ही गृहस्थ साधु से छल युक्त वार्तालाप करते हैं और कहते हैं कि - "यह मकान हमने अपने लिए ही बनवाया है इसे खाली रख छोड़ा है आपस में बांट लिया है अथवा हम पहले ही इसे काम में ले चुके हैं, हमने इसे त्यांग दिया है।" विचक्षण साधु इस प्रकार के छल में न फंसे, उनके धोखे में नहीं आये। जो मुनि इस प्रकार के उपाश्रय के दोषों
को सम्यक् प्रकार से बतला देता है तो सूत्रकार कहते हैं कि वह सम्यक् वक्ता मुनि है। ... विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'चरिया रए' पद से विहार चर्या का, 'ठाण रएं'
पद से ध्यानस्थ होने का "णिसिहिया रए' से स्वाध्याय का 'उज्जुया' से छल कपट रहित सरल स्वभाव वाला होने का एवं 'णियागपडिवण्णा' पद से संयम में मोक्ष के ध्येय को सिद्ध करने वाला बताया है और 'संतेगड्या पाहुडिया उक्खित्तपुव्या भवई' पद से यह स्पष्ट किया गया है कि साधु के.उद्देश्य से बनाए गए उपाश्रय को निर्दोष बताना तथा 'एवं परिभुत्तपुव्वा भवइ, परिद्ववियपुव्वा भवइ' आदि पदों से इस बात को बताया गया है कि कुछ श्रद्धालु भक्त रागवश सदोष मकान को भी छल-कपट से निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं तो साधु को उनकी बातों में नहीं आना चाहिये।
शुद्ध निर्दोष उपाश्रय के लिए सर्वप्रथम तीन बातें आवश्यक हैं - १. प्रासुक - आधाकर्म आदि दोषों से रहित २. उंछ - छादनादि उत्तर गुण दोषों से रहित और ३. एषपीय - मूल गुण और उत्तर गुण दोषों रहित। इन तीनों के अतिरिक्त वह स्थान साधु साध्वी की आवश्यक क्रियाओं स्वाध्याय, ध्यान आदि के लिए भी उपयुक्त होना चाहिये। इसीलिए निर्दोष एवं उपयुक्त उपाश्रय (शय्या) का मिलना दुर्लभ बताया है।
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