Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन २ उद्देशक २
११९ worterrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr.
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा-तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा अप्पंडे जाव चेइज्जा॥७६॥ ___ कठिन शब्दार्थ-तणपुंजेसु-घास (तृण) के ढेर में, पलालपुंजेसु - पलाल (पराल) के ढेर में।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी जिस उपाश्रय में घास के ढेर या पलाल के ढेर में अंडे यावत् जीव जंतु आदि जानें तो ऐसे उपाश्रय में वह निवास, शय्या, स्वाध्याय आदि न करे। जो उपाश्रय-घास या पलाल के ढेर, अंडो यावत् जीव जंतुओं से युक्त नहीं है, ऐसे उपाश्रय में वह यतना पूर्वक शय्या, निवास, स्वाध्याय आदि कर सकता है।
विवेचन - जिस स्थान में साधु साध्वी को ठहरना हो, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग आदि क्रियाएँ करनी हो वह स्थान अंडा, जीवजन्तु आदि से युक्त नहीं होना चाहिये। ____ 'पलालपुंजेसु' - चावलों की घास को पराल (पलाल) कहते हैं उसके ढेर को पलाल पुंज कहते हैं।
से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा, अभिक्खणं अभिक्खणं साहम्मिएहिं उवयमाणेहिं णो उवइज्जा॥७७॥
कठिन शब्दार्थ - उवयमाणेहिं - आ रहे हों, णो - नहीं, उवइज्जा - मास कल्पादि निवास करे।
भावार्थ - धर्मशालाओं में, मुसाफिरखानों में, उद्यानगृहों में, गृहस्थ के घरों में अथवा मठों में जहाँ अन्य मतावलम्बी परिव्राजक आदि साधुओं का बार-बार आना जाना होता रहता हो वहाँ साधु साध्वी मासकल्पादि निवास नहीं करे। .
विवेचन - जहाँ अन्य मतावलम्बी परिव्राजक, जोगी संन्यासियों का बार-बार अत्यधिक आवागमन हो वहाँ जैन साधु साध्वी को ऐसे स्थानों में मासकल्प या चातुर्मासकल्प निवास नहीं करना चाहिये। क्योंकि ऐसे स्थानों पर अत्यधिक आवागमन से वातावरण शान्त नहीं रह पाएगा। अशांत वातावरण में साधु एकाग्रचित से अपनी साधना-स्वाध्याय, चिंतन मनन नहीं कर पायेगा। अतः ऐसे स्थानों पर ठहरने का निषेध किया गया है।
१. से आगंतारेसुवा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसुवा
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