________________
अध्ययन २ उद्देशक १
१०५ •••••••••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा असंजए भिक्खुपडियाए कडिए वा उक्कंबिए वा छपणे वा लित्ते वा घटे वा मढे वा संम? वा संपधूमिए वा तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए णो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेइज्जा। अह पुण एवं जाणिज्जा-पुरिसंतरकडे जाव आसेविए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता तओ संजयामेव चेइज्जा॥६४॥
कठिन शब्दार्थ - कडिए - लकड़ी आदि से बनाया हो, उक्कंबिए - बांस की खपच्चियों से बांधा हो (बनाया हो), छण्णे - घास आदि से आच्छादित किया हो, लित्ते - गोबर आदि से लींपा (लिप्त) हो, घटे - संवारा हो, पोता हो, मटे - घिस कर स्वच्छ किया हो, संमढे - झाड बुहार कर साफ किया हो, संपधूमिए - धूप से सुगंधित किया हो।
भावार्थ - जो उपाश्रय असंयत (गृहस्थ) ने साधु साध्वी के निमित्त से बनाया हो, लकड़ी के पट्टियों या बांस की खपच्चियों से बनाया गया हो, घास आदि से आच्छादित किया हो, गोबर आदि से लींपा हो, संवारा हो, घिसा हो, झाड बुहार कर साफ किया हो, धूप आदि से सुगंधित किया हो, स्वामी के द्वारा उपयोग में न लिया गया हो, अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो वहां मुनि शय्या स्थान या स्वाध्याय न करे। यदि ऐसा ज्ञात हो कि वह उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित काम में लिया जा चुका है तो यतना पूर्वक प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके वहां ठहरे, शय्या संस्तारक और स्वाध्याय आदि करे। ___ विवेचन - जो मकान साधु साध्वी के लिए तो नहीं बनाया गया है परन्तु उसमें साधु के निमित्त फर्श आदि को लीपा पोता गया है या उसमें सफेदी आदि कराई गई है तो साधु को उस मकान में तब तक नहीं ठहरना चाहिये जब तक वह पुरुषान्तरकृत नहीं हो गया हो। इसी प्रकार जो मकान अन्य श्रमणों (शाक्य, तापस, गैरुक, आजीविक आदि) के लिए अथवा अन्य गृहस्थों के ठहरने के लिए बनाया गया है जैसे धर्मशाला आदि। ऐसे स्थानों में उनके ठहरने के पश्चात् पुरुषान्तरकृत होने पर साधु साध्वी उसमें ठहर सकते हैं। ____ गृहस्थ स्वयं के लिए मकानादि बनावे तब तो पुरुषान्तरकृत होने के पूर्व नहीं उतरना चाहिए। साधारणतया छादन, लेपन प्रमार्जनादि गृहस्थ ने अपने लिए किया हो तो उसके लिए पुरुषान्तरकृत का उल्लेख देखने में नहीं आया है। तथापि गृहस्थ के काम में आ जाने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org