Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १ उद्देशक ११
अहावरा सत्तमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे बहुउज्झियधम्मियं भोयणजायं जाणिजा जं च अण्णे बहवे दुपय चउप्पय समण-माहण- अतिहि - किवण वणीमगा णावकंखंति तहप्पगारं उज्झियधम्मियं भोयणजायं सयं वा णं जाइज्जा परो वा से दिज्जा जाव फासूयं पडिगाहिज्जा । सत्तमा पिंडेसणा। इच्चेयाओ सत्त पिंडेसणाओ ॥
भावार्थ - इसके अनन्तर सातवीं पिण्डैषणा इस प्रकार है साधु या साध्वी जो आहार फेंकने योग्य हो, जिसको बहुत से पशु, पक्षी, श्रमण, ब्राह्मण भिखारी आदि भी नहीं चाहते ऐसे उज्झित धर्म वाले आहार की स्वयं याचना करे अथवा अन्य कोई गृहस्थ दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर ग्रहण करे । इस प्रकार की प्रतिज्ञा सातवीं पिंडैषणा है।
सब सात
पिंडैषणाएं हैं।.
विवेचन - जो खुरचन ( बर्तन में नीचे रहा हुआ) तथा बढा हुआ आहार तथा सुख गया हो और ठण्डा हो गया हो जिसको अच्छा आहार मिलते हुए कोई भी उस निम्न आहार की इच्छा नहीं करे ऐसे आहार को 'उज्झित आहार' कहते हैं।
अहावराओ सत्त पाणेसणाओ - तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा, असंसट्टे हत्थे असंसट्टे मत्ते तं चेव भाणियव्वं । णवरं चउत्थाएं णाणत्तं से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव समाणे से जं पुण पाणगजायं जाणिज्जा तं जहा - तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियडं वा अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे तहेव पडिगाहिज्जा ॥ ६२ ॥
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कठिन शब्दार्थ - तं वह, च और, एव ही, भाणियव्वं - कहना चाहिए, णवरं - इतना विशेष, चउत्थाए - चौथी में, णाणत्तं नानात्व - फर्क (विशेषता) ।
भावार्थ - इसके पश्चात् सात पानैषणाएँ कही गयी हैं उनमें से पहली पानैषणा यह है - हाथ और पात्र अलिप्त हो - इत्यादि सब पिंडैषणा के समान समझना चाहिए परन्तुं चौथी पानैषणा में विशेषता यह है कि साधु या साध्वी तिल का धोवन, तुष का धोवन, जौ का धोवन, चावल का पानी (ओसामन) आदि धोवनों के विषय में जाने और वही प्रासुक और एषणीय धोवन ग्रहण करे जिसमें पश्चात् कर्म नहीं लगता हो अर्थात् पात्र में लेप आदि नहीं लगता हो ।
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