Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
विगं - भेड़िये को, दीवियं - द्वीपी-चीते को या गैंडे को, अच्छं - रीछ को, तरच्छं - तेंदुआ को, परिसरं - अष्टापद को, सियालं -श्रृगाल को, विरालं - बिलाव को, सुणयं - कुत्ते को, कोलसुणयं - सूअर को, कोकंतियं - लोमड़ी को, चित्ताचिल्लडयं - चित्ताचिल्लड़य-जंगली जानवर विशेष को, वियालं - सर्प को।
भावार्थ - साधु या साध्वी भिक्षार्थ जाते हुए मार्ग में मदोन्मत्त बैल, भैंसा, मनुष्य, अश्व, हाथी, सिंह, बाघ, भेड़िया, चीता, रीछ, दीपड़ा, अष्टापद, श्रृगाल, बिलाव, कुत्ता, शूकर, लोमडी या किसी प्रकार का हिंसक जानवर खड़ा देखे और अन्य मार्ग हो तो साधु ऐसे भय युक्त सीधे मार्ग से न जावे।
विवेचन - मदोन्मत्त बैल आदि एवं हिंसक जंतुओं से आत्म विराधना संभव है अतः ऐसे मार्ग से जाने का निषेध किया है।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे अंतरा से ओवाए वा, खाणुए वा, कंटए वा, घसी वा, भिलुगा वा, विसमे वा, विजले वा परियावजिज्जा सइपरक्कमे संजयामेव णो उज्जुयं गच्छिज्जा॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - ओवाए - अवपात-खड्डा गड्ढा, खाणुए - स्थाणु-टूंठ, कंटए - कांटे, घसी- ढलाव, भिलुगा - दरार, विसमे - विषम भूमि, विजले - कीचड़, परियावजिज्जा - छोड़ दे।
भावार्थ - साधु या साध्वी भिक्षार्थ जाते हुए मार्ग में गड्ढा, ढूंठ, कांटे, जमीन का ढलाव ऊंची-नीची भूमि और कीचड़ आदि हो तो अन्य मार्ग के होने पर साधु उस अन्य मार्ग से यत्नापूर्वक जावे किन्तु जो गड्ढे आदि वाला विषम, किन्तु सीधा मार्ग है, उससे न जावे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधु को यतना एवं विवेक पूर्वक चलने का आदेश दिया है। गड्ढे आदि से युक्त मार्ग से जाने पर संयम की विराधना हो सकती है अतः मुनि को उस रास्ते से न जाकर अन्य रास्ते से जाना चाहिये, भले ही वह मार्ग लम्बा क्यों न हो? ..
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलस्स दुवारबाहं कंटगबुंदियाए, परिपिहियं पेहाए तेसिं पुवामेव उग्गहं अणणुण्णविय अपडिलेहिय अप्पमजिय णो अवंगुणिज वा पविसिज वा णिक्खमिज वा तेसिं पुवामेव उग्गह
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