Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
अध्ययन १ उद्देशक ६
कठिन शब्दार्थ - अवलंबिय - सहारा लेकर, दगच्छड्डुणमत्तए - बर्तन धोने का पानी डालने के स्थान पर, चंदणिउयए - कुल्ला करने के स्थान पर, सिणाणस्स - स्नानगृह के, वच्चस्स - पाखाना के, आलोयं - खिडकी गवाक्ष छिद्र आदि को, थिग्गलं - गिरे हुए और फिर मरम्मत किये हुए भाग को, संधिं - सेंध को, दगभवणं - जलगृह को, बाहाउ - भुजाओं को, पगिज्झिय - पसार कर (फैला कर), अंगुलियाए - अंगुली से, उद्दिसिय - उद्देश कर, ईशारा करके उण्णमिय - शरीर को ऊंचा कर अवणमिय - नीचा करके, णो णिज्झाइज्जा - न तो देखे और न दिखाए, णो जाइज्जा - याचना न करे, चालिय - बता कर, तज्जिय - तर्जना करके, उक्खुलंपिय - स्पर्श करके-खुजाकर, फरुसंकठोर, वयणं - वचन। . .
- भावार्थ - भिक्षार्थ गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु साध्वी घर के द्वार को पकड कर, सहारा लेकर खड़ा नहीं रहे, जहां बर्तनों को धोकर पानी गिराया जाता हो ऐसे स्थान पर खड़ा न हो, कुल्ला करने के स्थान पर खड़ा न रहे, जहां स्नानघर, पाखाना (शौचालय) हो वहां एवं उसके सामने खड़ा नहीं रहे और गृहस्थ के घर की खिड़कियों को, झरोखों को, गिरे हुए और फिर मरम्मत कराये हुए भाग को, सेंध को तथा जलगृह को हाथ फैलाकर या उंगली आदि से इशारा करके अथवा शरीर को ऊंचा-नीचा करके न तो स्वयं देखे और न ही किसी को दिखावे। गृहस्थ को बार-बार अंगुली से निर्देश करके, अंगुली चलाकर . (बताकर), तर्जना करके (भय दिखाकर) शरीर का स्पर्श करके अंगों को खुजलाकर या गृहस्थ की प्रशंसा आदि करके आहारादि की याचना न करे। यदि कदाचित् गृहस्थ आहार न देवे तो भी उसे कठोर वचन नहीं कहे। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि भिक्षा के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट मुनि को चंचलता एवं चपलता का त्याग करके स्थिर दृष्टि से खडे रहना चाहिये और भिक्षा ग्रहण करते समय रस लोलुपता के कारण किसी भी तरह की शारीरिक चेष्टाएं एवं संकेत नहीं करने चाहिए। यदि कोई गृहस्थ आहार नहीं दे तो साधु को उस पर क्रोध नहीं करना चाहिये और न ही उसे कटु एवं कठोर वचन कहना चाहिये। - अह तत्थ कंचि भुंजमाणं पेहाए गाहावई वा जाव कम्मकरि वा से पुव्वामेव आलोइज्जा आउसो त्ति वा, भइणि त्ति वा, दाहिसि मे इत्तो अण्णयरं भोयण जायं? से सेवं वयंतस्स परो हत्थं वा, मत्तं वा, दव्विं वा, भायणं वा,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org