Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १ उद्देशक ४ .0000000000000000000000000000000000000000000000000000000. णिक्खमणपवेसाए पण्णस्स वायण पुच्छण परियट्टणाणुपेहाए धम्माणुओगचिंताए सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्चासंखडि वा संखडिपडियाए अभिसंधारिजा गमणाए॥२२॥
भावार्थ - साधु साध्वी अगर ऐसा जाने कि मांस प्रधान, मत्स्य प्रधान संखडी में यावत् उस प्रकार की संखडी में से आहार ले जाते हुए किसी को देखकर तथा उस साधु को मार्ग में जीव विराधना की शंका न हो, वहाँ पर बहुत से शाक्यादि भिक्षु भी नहीं आयेंगे, वहाँ आने जाने में सुलभता हो तथा वाचना पृच्छना परिवर्तना अनुप्रेक्षा और धर्मानुयोग चिंतन में बाधा न हो ऐसा जान लेने पर साधु अपवाद के रूप में पूर्व संखडी या पश्चात् संखडी में जाने का विचार करे।।
विवेचन - उत्सर्ग मार्ग में तो किसी भी तरह की संखडी में जाने का विधान नहीं है परन्तु प्रस्तुत सूत्र में अपवाद मार्ग में कथन किया गया है कि यदि संखडी में जाने का मार्ग जीव जन्तुओं एवं हरितकाय या बीजों से रहित है अन्यमत के भिक्षु भी वहाँ नहीं है और आहार भी निर्दोष एवं एषणीय है तो साधु उसे ग्रहण कर सकता है। टीकाकार का कथन है कि प्रस्तुत सूत्र अवस्था विशेष के लिये है। . जब कि संखड़ी (जीमणवार) में जाने का ही निषेध किया गया है तो फिर भला जहां मांस आदि प्रधान संखड़ी में जावे ही कैसे? अर्थात् ऐसी संखड़ी में जाने का सवर्था निषेध ही है क्योंकि जैन के साधु साध्वी मांस और मदिरा के सर्वथा त्यागी होते हैं। ऐसी स्थिति में यह अपवाद रूप. सूत्र समझना चाहिए। ऐसी कोई शाकाहारी चीज जो अन्यत्र नहीं मिल सकती हो और बीमार साधु के लिये पथ्य रूप कोई वस्तु वहीं पर मिल सकती हो तो गीतार्थ साधु विवेक पूर्वक उस वस्तु की वहाँ पर गवेषणा कर सकता है। अगीतार्थ साधु के लिए तो सर्वथा निषेध ही है।
. आगमकालीन युग से लेकर आज पर्यन्त क्षत्रिय आदि उच्च कुलों में - भले वे मांसाहारी भी हों-गोचरी जाने के प्रसंग आते हैं। इसे आगम निषिद्ध भी नहीं समझते हैं। क्योंकि इन कुलों में वैसा आहार अलग ही बनता है, उनके बर्तन भी अलग ही रहते हैं। ऐसी ही स्थिति का आचारांग सूत्र (२-१-४) में उल्लेख है। जहाँ पर भोज में मांस एवं मच्छ की प्रमुखता रही हो, अतः उनके ढेर के ढेर पड़े हों साधारणतया उत्सर्ग विधि से
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