________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् यावदेताश्छायामिमामाश्रित्य प्रतिपालयामि / (--इति विलोकयन् स्थितः ) / ( ततः प्रविशति यथोक्तव्यापारा सह सखीभ्यां शकुन्तला ) / शकुन्तला--इदो इदो पिअसहीओ। [२इत इतः प्रियसख्यौ]। शेषः / तर्हि = तदा, खलु = निश्चयेन, वनलताभिः = अरण्यवल्लीभिः, गुणैः = सौन्दर्य-कोमलत्वादिभिः, उद्याने भवा लता-उद्यानलताः = आरामवीरुधः, दूरीकृताः = निराकृताः / धिक्कृता इत्यर्थः / [अत्र निदर्शनाऽलङ्कारः, अप्रस्तुतप्रशंसा च, तयोश्च संसृष्टिः / प्रतिवस्तूपमां केचन मन्यते, छेक-वृत्त्यनुप्रासौ च ] / ___ यावत् = किञ्चित्कालं, छायामिमां = संनिहिततरुच्छायामिमाम् / आश्रित्य = आस्थाय, एताः = इमा मुनिकन्यकाः, प्रतिपालयामि = प्रतीक्षे। 'यावत्तावच्च साकल्येऽवधौ मानेऽवधारणे' इत्यमरः / उक्तमनतिक्रम्य यथोक्तं-व्यापारो यस्याः सा-यथोक्तव्यापारा = वृक्षानभिषिञ्चन्ती। कि-वनकी लताओं ने सौकुमार्य आदि अपने गुणों से उद्यान ( बगीचे ) की परिष्कृत लताओं को भी मात कर दिया है। ___ अर्थात् -अन्तःपुर की सर्वविध उपभोग साधन सम्पन्न राजललनाओं के रूप लावण्य को तिरस्कृत करनेवाला रूप (सौन्द) यदि वनवासिनी, आभूषणादि से शून्य इन तापस कन्याओं का हो सकता है, तो यही कहना होगा कि-जङ्गली लताओं ने उद्यान ( बगीचे ) की लताओं को मात कर दिया / (तापसकन्याजङ्गलो लता / राजाङ्गना-उद्यानलता ) // 17 // अच्छा, इस वृक्ष की छाया में खड़े होकर इनकी प्रतीक्षा करूँ / ( छाया में खड़ा होकर उनका देखता है ) / [दो सखियों के साथ घड़ों से पौधों की जड़ में जल सींचती हुई शकुन्तला का प्रवेश]। शकुन्तला--अरी प्रिय सखियो ! इधर आओ, इधर / . 1 'यावदिमां छायामाश्रित्य प्रतिपालयामि' / 2 अयं पाठः कचिन्न /