Book Title: Jinandji Bhav Jal Par Utar
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिणंदजी ਮਕ ਹਜ ਯਾਦ ਕਰਦ संपादक मुनि पारत्नसागर For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिव्य आशिष परम वंदनीय योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्विसागरसूरीश्वरजी महाराज श्री महावीरस्वामी भगवान कोबातीर्थ, गांधीनगर दिव्यकृपा गीतार्थ गच्छाधिपति राष्ट्रसंत आचार्य प्रवर श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिणंदजी भव जल पार उतार ( प्रभुदर्शनविधि, अष्टप्रकारी पूजा, चैत्यवंदनो, स्तवनो, स्तुति, तथा संध्याभक्ति गीतो) प्रकाशक संपादक श्रुतसमुद्धारक राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के शिष्यरत्न मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी प्राप्तिस्थान Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसरिता (बुकस्टोल) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा - गांधीनगर फोन नं. २३२७६२०४, २३२७६२०५, २३२७६२५२ - ३८२००७ For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 482 Indas जिणंदजी भव जल पार उतार प्रेरक : मुनि श्री प्रशांतसागरजी, पूज्य मुनि श्री पुनितपद्मसागरजी, .. आवृति : प्रथम प्रति : १००० वीर सं. : २५३३ वि. सं. : २०६४ इ. सन् : २००७ मूल्य : ३०.०० सौजन्य: सा. ओबानी जेठाजी रेवतडा परिवार हस्ते - मदनलाल, सुपुत्र दिनेशकुमार, मुकेशकुमार, सुरेशकुमार, प्रफुल, तान्या, खुशी, आदि समस्त वेदमुथा परिवार (बेंगलोर) प्राप्ति स्थान • श्री कल्पेशभाई जे. शाह ऋषभ बंगलो, आबुस्ट्रीट, रामनगर साबरमती, अमदावाद - ३८० ००५ फोन नं. २७५०६१८० For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय... - भक्ति अर्थात् भक्त हृदय की संवेदना - वह संवेदना जब प्रबलतम बनती है तब इलिका-भ्रमर-न्याय से भक्त स्वयं भगवान के रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिन-कथित मोक्षमार्ग के असंख्य योगों में से भक्तियोग भक्त आत्मा को अनन्त अनन्त पाप बन्धनों से मुक्त करने के लिए सक्षम है, लेकिन शर्त यह है कि भक्ति विवेक प्रधान होनी चाहिए. विवेक बिना भक्ति स्व-कार्य करने में सक्षम नहीं है. सर्वथा दोष रहित जिनेश्वर भगवान की विवेकयुक्त भक्ति आत्मा की शुद्धि जब प्रचुर मात्रा में हो तब ही संभवित है. अप्राप्त सम्यग्दर्शन की प्राप्ति और प्राप्त सम्यग्दर्शन की शुद्धि-पुष्टि ही भक्ति का प्रमुख कार्य है. इस बात की साक्षी उपमिति ग्रंथ, सिरि सिरिवाल कहा और त्रिषष्टी चरित्र आदि अनेक ग्रंथो से मिलती है. - इस पुस्तक की गुजराती लिपी की आवृत्ति 'चरणोनी सेवा नित-नित चाहुं..: हेतु संस्था के पंडितवर्य श्री नवीनभाई जैन ने क्रम आयोजन में सराहनीय सहयोग प्रदान किया है अतः वे साधुवाद के पात्र हुए है. उसी की देवनागरी लिपी की आवृत्ति प्रस्तुत पुस्तक का भी कंपोझींग कार्य श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा स्थित श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के कम्प्यूटर विभाग में हुआ है, उस विभाग में कार्यरत श्री केतनभाई और संजयभाई ने खूब परिश्रम लेकर प्रस्तुत ग्रंथ को सुंदर बनाने में योगदान दिया है. उनका भी यहां पर स्मरण किया जाता है. पूज्यपाद श्रुतसमुद्धारक परम वागीश गुरुदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के अन्तेवासी पू. मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी म. सा. द्वारा संपादित यह पुस्तक अनेक आत्माओं के सम्यग्दर्शन की विशुद्धि का कारण बने यही मंगलकामना. For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका जिनमंदिर प्रवेश विधि अने पूजाक्रम ..................... प्रभु दर्शन समये बोलवाना दुहा तथा स्तुतीओ ............. अष्टप्रकारी पूजा विधि. ............. चैत्यवंदन विधि विभाग .................... ............. चैत्यवंदन विभाग स्तवन विभाग ................ ............. श्री महावीरस्वामी हालरडु . ............ सामान्य जिन स्तवन ........ ............ १६० दीपावली पर्व स्तवन. ............१९५ स्तुति विभाग .............. ....... १९७ आराधना विभाग............... ........... पाना हालरडु........... श्री ऋ जिन चैत्यवंदन (३) ..... श्री अजितनाथ स्तवन (२)... श्री संभवनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२)..................... श्री अभिनंदन भगवाननु चैत्यवंदन (२)...... For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ................ श्री सुमतिनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२)...... श्री पद्मप्रभस्वामी- चैत्यवंदन (२).......... ........... श्री सुपार्श्वनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) .................. श्री चंद्रप्रभस्वामी- चैत्यवंदन (२).............. श्री सुविधिनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) ................... ३२ श्री शीतलनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) ................... ३३ श्री श्रेयांसनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) .... श्री वासुपूज्यस्वामी, चैत्यवंदन (२) ............ .......... श्री विमलनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) .................... ३५ श्री अनंतनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) .................... श्री धर्मनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) ........... ....... श्री शांतिनाथ भगवान, चैत्यवंदन (५) .... श्री कुंथुनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) .......... श्री अरनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) ........ श्री मल्लिनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (२) ............. श्री मुनिसुव्रतस्वामीनु चैत्यवंदन (२) .......... श्री नमिनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (१).. श्री नेमिनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (३)...... श्री पार्श्वनाथ भगवाननु चैत्यवंदन (५) ............. ....... For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री महावीरस्वामीनुं चैत्यवंदन (५) श्री पंच परमेष्ठि चैत्यवंदन ( १ ) श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन (४) तिथीना चैत्यवंदन (८) पर्युषण पर्वनुं चैत्यवंदन (३) दीपावली पर्वनुं चैत्यवंदन ( १ ) श्री ऋषभदेव स्तवन (९) श्री अजितनाथ स्तवन (३) श्री संभवनाथ स्तवन (३) श्री अभिनंदनस्वामी हमारा (२) श्री सुमतिनाथ स्तवन (३) श्री पद्मप्रभ स्तवन (३) श्री सुपार्श्वनाथ स्तवन (३) श्री चन्द्रप्रभस्वामी स्तवन ( २ ) श्री सुविधिनाथ स्तवन (३) श्री शीतलनाथ स्तवन (२) श्री श्रेयांसनाथ स्तवन (२) श्री वासुपूज्यस्वामी स्तवन (२) श्री विमलनाथ स्तवन (३) For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ ५१ ५४ ६१ ६६ ६८ ६९ ७७ ८१ ८३ ८४ ८७ ८९ ९३ ९५ ९८ १०० १०२ १०३ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .......१०८ .१०६ १०८ ११० ११७ 05.. १२० १२१ १२२ . . . . श्री अनंतनाथ स्तवनं (२) ...................... श्री धर्मनाथ स्तवन (२) ........................ श्री शांतिनाथ स्तवन (७) ........... श्री कुंथुनाथ स्तवन (२) ........... श्री अरनाथ स्तवन (२) .... श्री मल्लिनाथ स्तवन (२).......... श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन (४) ........... श्री नमिनाथ स्तवन (२) ............ श्री नेमिनाथ स्तवन (७) .. श्री पार्श्वनाथ स्तवन (१३) . श्री महावीर स्वामी स्तवन (१०) ......... तिथि स्तवन (९)................... श्री ऋषभदेव स्तुति (६)........... श्री अजितनाथ स्तुति (२)............ श्री संभवनाथ स्तुति (२) ... श्री अभिनंदनस्वामी स्तुति (२) ....... श्री सुमतिनाथ स्तुति (२) ............ श्री पद्मप्रभ स्तुति (२) ........... श्री सुपार्श्वनाथ स्तुति (१)........ ...... ...... १२७ १३० १३६ १४७ १८१ १९७ ...... ...... ...... २०१ २०२ २०२ २०३ २०४ २०४ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री चन्द्रप्रभस्वामी स्तुति (२) श्री सुविधिनाथ स्तुति (२) श्री शीतलनाथ स्तुति (२) श्री श्रेयांसनाथ स्तुति (२) श्री वासुपूज्यस्वामी स्तुति (२) श्री विमलनाथ स्तुति (२) श्री अनंतनाथ स्तुति (२) श्री धर्मनाथ स्तुति (२) श्री शांतिनाथ स्तुति (२) श्री कुंथुनाथ स्तुति (२) श्री अरनाथ स्तुति (२) श्री मल्लिनाथ स्तुति (२) श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तुति (२) श्री नमिनाथ स्तुति (१) श्री नेमिनाथ स्तुति (५) श्री पार्श्वनाथ स्तुति (५) श्री महावीर स्वामी स्तुति (६) तिथि स्तुति (९) रत्नाकर पच्चीसी.... For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... २०४ २०५ २०६ २०६ २०६ २०७ २०८ २०८ २०९ २१४ २१४ २१५ २१५ २१६ २१६ २१९ २२१ २३८ २७५ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनमंदिर प्रवेश विधि अने पूजाक्रम १. निसीहि बोलीने प्रवेश करवो. २. परमात्मानुं मुख देखतां 'नमो जिणाणं' बोलवू. ३. अर्धावनत प्रणाम करीने त्रण प्रदक्षिणा करवी. ४. मधुर कंठे स्तुति बोलवी. ५. बीजी निसीहि बोलीने गर्भगृहमां प्रवेश करवो. ६. प्रतिमाजी उपरथी निर्माल्य उतार. ७. प्रतिमाजी पर मोरपींछी करवी. ८. पाणीनो कळश करवो. ९. मुलायम वस्त्रथी केसरपोथो करवो. (वाळाकूचीनो उपयोग न करवो हितावह गणाशे.) १०. पंचामृतथी अभिषेक करवो, शुद्ध जळथी स्वच्छ करवा. ११. अभिषेक वखते घंटनाद, शंखनाद आदि कर. १२. पबासण पर पाटलूछणां करवां. (पाटलूछणां बे राखवां) १३. परमात्माने त्रण अंगलूछणां करवां. १४. जरूर पडे तो तांबाकूचीनो उपयोग करवो. १५. बरासथी विलेपन पूजा करवी. १६. चंदनपूजा, पुष्पपूजा, धूपपूजा, दीपकपूजा क्रमशः करवी. For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७. चामरनृत्य करवू, पंखो ढाळवो. १८. भगवानने अरीसो धरवो. १९. अक्षतपूजा, नैवेद्यपूजा अने फळपूजा करवी. २०. नादपूजा रूपे घंटनाद करवो. २१. यथास्थाने अवस्थात्रिक भाववी. २२. त्रीजी निसीहि बोली, त्रण वार भूमिप्रमार्जन करी चैत्यवंदन कर. २३. दिशात्याग, आलंबन मुद्रा, अने प्रणिधान त्रिकनुं पालन करवं. २४. विदाय थतां स्तुतिओ बोलवी. २५. पूजानां उपकरणो यथास्थाने मूकी देवां. २६. पूंठ न पडे ते रीते बहार नीकळवू. २७. ओटले बेसी ३ नवकार- स्मरण करी भक्तिभावोने स्थिर करवा. २८. परमात्माना वियोगथी दुःखाता हृदये गृह तरफ विदाय थq. For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रभु दर्शन समये बोलवाना दुहा तथा स्तुतीओ प्रभु दरिशन सुख संपदा, प्रभु दरिशन नव - निध. प्रभु दरिशनथी पामीए, सकल पदारथ सिद्ध .. भावे जिनवर पूजीए, भावे दीजे दान. भावे भावना भावीए, भावे केवल - ज्ञान. जीवडा! जिनवर पूजीए, पूजानां फल होय. राजा न प्रजा नमे, आण न लोपे कोय. फूलडां केरा बागमां, बेठा श्री जिनराय. जेम तारामां चन्द्रमा, तेम शोभे महाराय. त्रि-भुवन नायक तुं धणी, मही मोटो महाराज. मोटे पुण्ये पामीयो, तुम दरिशन हुं आज. आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगट्या पुण्य कल्लोल. पाप करम दूरे टल्यां, नाठां दुःख दंदोल.. पंचम काले पामवो, दुलहो प्रभु देदार. तो पण तेना नामनो, छे मोटो आधार. प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय . रोग शोक आवे नहीं, सवि संकट मिट जाय. ३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ २ ४ ५ ६ ७ .८ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांच कोडीने फूलडे, पाम्या देश अढार. राजा कुमारपालनो, वो जय-जय-कार......... छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी श्री वीर जिणंदनी; भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चांदनी. आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छे; पामी सघलां सुख ते जगतनां, मुक्ति भणी जाय छे. ...... १० आव्यो शरणे तमारा जिनवर! करजो आश पूरी अमारी; नाव्यो भवपार मारो तुम विण जगमां सार ले कोण मारी?. गायो जिनराज! आजे हरख अधिकथी परम आनंदकारी; पायो तुम दर्श नासे भव-भय-भ्रमणा नाथ! सर्वे अमारी....११ श्री आदीश्वर शांति नेमि जिनने, श्रीपार्श्व वीर प्रभुः ए पांचे जिनराज आज प्रणमुं, हेजे धरी ए विभु. कल्याणे कमला सदैव विमला, वृद्धि पमाडो अति; एहवा गौतम स्वामी लब्धि भरीआ, आपो सदा सन्मति.... १२ सुण्या हशे पूज्या हशे निरख्या हशे पण को क्षणे; हे जगत-बंधु! चित्तमां धार्या नहि भक्तिपणे................... जन्म्यो प्रभु ते कारणे दुःखपात्र आ संसारमां; हा! भक्ति ते फलती नथी जे भाव शून्याचारमा............. For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे, ते दृष्टिने पण धन्य छे; जे जीभ जिनवरने स्तवे, ते जीभने पण धन्य छे. पीए मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण-युगने धन्य छे; तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदयने नित धन्य छे. ....... १५ सरस-शांति-सुधारस-सागरं, शुचितरं गुण-रत्न-महागरम्. भविक-पंकज-बोध दिवाकरं, प्रति-दिनं प्रणमामि जिनेश्वरम्. .... १६ अद्य मे कर्म-संघातं, विनष्टं चिर-संचितम्. दुर्गत्यापि निवृत्तोहं, जिनेन्द्र! तव दर्शनात्. ................. दर्शनं देव-देवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम्. दर्शनं स्वर्ग-सोपानं, दर्शनं मोक्ष-साधनम्. ............. अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम. तस्मात् कारुण्य-भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर!. ............. मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमः प्रभुः; मंगलं स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोस्तु मंगलम्. नमो दुर्वार-रागादि, वैरि-वार-निवारिणे; अर्हते योगि-नाथाय, महावीराय तायिने. ........... २१ पन्नगे च सुरेन्द्रे च, कौशिके पाद-संस्पृशि; निर्विशेष-मनस्काय, श्रीवीर-स्वामिने नमः. ...................२२ .................२० For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैवल्य-चिद्दृङ्मयम्; पूर्णानन्द-मयं महोदय-मयं, रूपातीत-मयं स्वरूप- रमणं, स्वाभाविकी - श्रीमयम्. ज्ञानोद्द्योत-मयं कृपा-रस-मयं, स्याद्वाद - विद्यालयम्; श्री सिद्धाचल-तीर्थराज - मनिशं वन्देह - मादीश्वरम्. नेत्रानन्द-करी भवोदधि - तरी, श्रेयस्तरोर्मंजरी; श्रीमद्धर्म-महा-नरेन्द्र-नगरी, व्यापल्लता-धूमरी. र्ष- शुभ प्रभाव - लहरी, राग-द्विषां जित्वरी; मूर्तिः श्रीजिन-पुंगवस्य भवतु, श्रेयस्करी देहिनाम्.. हर्षोत्कर्ष-: 1 अद्या-भवत् सफलता नयन-द्वयस्य; देव! त्वदीय-चरणांबुज-वीक्षणेन. अद्य त्रिलोक- तिलक ! प्रति भासते मे; संसार-वारिधि-रयं चुलुक - प्रमाणः .. तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनार्ति-हराय नाथ; तुभ्यं नमः क्षितितला-मल-भूषणाय. तुभ्यं नमस्त्रि-जगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधि-शोषणाय. प्रशम-रस-निमग्नं, दृष्टि-युग्मं प्रसन्नम्; वदन-कमल-मंकः, कामिनी - संग - शून्यः. ६ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ २४ २५ २६ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर-युगमपि यत्ते, शस्त्र-संबंध-वंध्यम्; तदसि जगति देवो, वीतराग-स्त्वमेव. अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया; अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेंद्र! तव दर्शनात्................. कल्याण-पाद-पाराम, श्रुत-गंगा-हिमाचलम्; विश्वांभोज-रविं देवं, वंदे श्री-ज्ञात-नन्दनम्. . .............. दर्शनाद् दुरित-ध्वंसी, वंदनाद् वांछित-प्रदः; पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः. देखी मूर्ति श्री पार्श्वजिननी नेत्र मारा ठरे छे, ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु, ध्यान तारुं धरे छे, आत्मा मारो प्रभु तुज कने, आववा उल्लसे छे, आपो एवं बळ हृदयमां, माहरी आश ए छे. .................३१ भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मांगु छु देवाधिदेवा, सामुं जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. .......३२ अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिता, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलं. ...........३ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐकारं बिन्दु संयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः, कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमोनमः. ................ पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले, स्वर्गेपि यानि बिंबानिं, तानिं वंदे निरंतरम्. ................ नमस्कार समो मंत्र, शत्रुजय समो गिरि, वीतराग समो देवो, न भूतो न भविष्यति........ ......३६ दया सिंधु दया सिंधु, दया करजे दया करजे, हवे आ जंजीरोमांथी, मने जल्दी छूटो करजे; नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाळा, वरसावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे.. ............३७ हे देव तारा दिलमां, वात्सल्यनां झरणां भर्या, हे नाथ तारा नयनमां, करुणातणां अमृत भर्या; वीतराग तारी मीठी मीठी, वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज तारा शरणमां, बाळक बनी आवी चडया..........३८ दादा तारी मुखमुद्राने, अमिय नजरे निहाळी रह्यो, तारा नयनोमांथी झरतु, दिव्य तेज हुं झीली रह्यो; क्षणभर आ संसारनी माया, तारी भक्तिमां भूली गयो, तुज मूर्तिमां मस्त बनीने, आत्मिक आनंद माणी रह्यो.....४० For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुकाळ आ संसार गारमां, प्रभु! हुं संचर्यो; थई पुण्यराशि एकठी, त्यारे जिनेश्वर तुं मळ्यो; पण पापकर्म भरेल में, सेवा सरस नव आदरी, शुभ योगने पाम्या छतां, में मूर्खता बहु ये करी.. ....४१ शत कोटी कोटी वार वंदन, नाथ मारा हे तने, हे तरण तारण नाथ तुं, स्वीकार मारा नमनने; हे नाथ शुं जादु भर्या, अरिहंत अक्षर चारमां, आफत बधी आशिष बने, तुज नाम लेता वारमां. ..........४२ प्रभु जेवो गणो तेवो, तथापि बाळ तारो छु, तने मारा जेवा लाखो, परंतु एक मारे तुं; नथी शक्ति नीरखवानी, नथी शक्ति परखवानी, नथी तुज ध्याननी लगनी, तथापि बाळ तारो छु............४३ सागर दयाना छो तमे, करुणा तणा भंडार छो, ने पतितोने तारनारा, विश्वना आधार छो; तारे भरोसे जीवननैया, आज में तरती मूकी, कोटी कोटी वंदन करूं, जिनराज तुज चरणे झूकी.......४४ आबु अष्टापद गिरनार, समेतशिखर शत्रुजय सार, ए पांचे तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि गया तेने करुं प्रणाम. .४५ For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोईने ठरूं, अरर ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा, माटे प्रभुजी तुमने विनवू, तारजो हवे जिनजीने स्तवं, दीनानाथजी दुःख कापजो, भविक जीवने सुख आपजो. पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउ हुं नित्य ताहरा. ...४६ अंतरना एक कोडियामा, दीप बळे छे झांखो, जीवनना ज्योतिर्धर एने, निशदिन जलतो राखो, ऊंचे ऊंचे उडवा काजे, प्राण चाहे छे पांखो, तमने ओळखं नाथनिरंजन, एवी आपो आंखो. असत्यो मांहेथी, प्रभु परम सत्ये तुं लई जा, ऊंडा अंधारेथी, प्रभु परम तेजे तुं लई जा, महा मृत्युमांथी, अमृत समीपे नाथ लई जा, तुं, हीणो हुँ छु तो, तुज दरशनना दान दई जा. अंतरमा छे एक झंखना, तारा जेवा थवानी, रागी मटीने तारा जेवा वीतरागी बनवानी, विश्वपिता छो बालक हुं छु आप कने शुं मांगुं? मारा आतमने अजवाळी देजो एटलुं मां'............ .......४९ ......४७ ४८ १० For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टप्रकारी पूजा विधि जल पूजाना दोहा ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपूर. श्री जिनने नवरावतां, कर्म होये चकचूर. ... जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश. जल पूजा फल मुज होजो, मागो एम प्रभु पास...............१ दुधना पक्षालना दोहा मेरु शिखर नवरावे हो सुरपति, मेरु शिखर नवरावे; जन्म काल जिनवरजी को जाणी, पंच-रूप करी आवे..हो.१ रत्न प्रमुख अड जातिना कलशा, औषधि चूरण मिलावे; । खीर समुद्र तीर्थोदक आणी, स्नात्र करी गुण गावे. ..... हो.२ एणी पेरे जिन-प्रतिमा को न्हवण करी, बोधि-बीज मानुं वावे; अनुक्रमे गुण रत्नाकर फरसी, जिन उत्तम पद पावे.....हो.३ चंदन पूजाना दोहा शीतल गुण जेहमां रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग. आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग. ११ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभुजीने नव अंगे पूजा करवाना दुहा अंगूठे : जलभरी संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत, ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत. ढींचणे : जानुबळे काउसग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश, खडा खडा केवळ लघु, पूजो जानु नरेश. कांडे : लोकांतिक वचने करी, वरस्यां वरसीदान, । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान.... ......३ खभे : मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत, भुजा बले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत..... मस्तके : सिद्धशिला गुण ऊजळी, लोकांते भगवंत, वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत. .........५ कपाळे : तीर्थंकर पद पुन्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत, त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत. कंठे : सोळ पहोर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल, मधुर ध्वनि सुरनर सुणे, तिण गळे तिलक अमूल. हृदये : हृदय कमल उपशम बळे, बाळ्या राग ने रोष, हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष. ..... ........ १२ For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...... ............१० .... नाभि : रत्नत्रयी गुण उजळी, सकल सुगुण विश्राम, नाभि कमळनी पूजना, करतां अविचल धाम. ... ........९ उपसंहार : उपदेशक नव तत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद, पूजो बहुविध रागथी, कहे शुभवीर मुणींद. . पुष्प पूजाना दोहा सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप. सुमजंतु भव्य ज परे, करीये समकित छाप. धूप पूजाना दोहा ध्यान घटा प्रगटावीये, वाम नयन जिन धूप. मिच्छत दुर्गन्ध दूर टले, प्रगटे आत्म स्वरूप. .........१ अमे धूपनी पूजा करीए रे, ओ मन-मान्या मोहनजी; अमे धूप-घटा अनुसरीए रे, ओ मन... नहीं कोइ तमारी तोले रे, ओ मन... प्रभु अंते छे शरण तमारुं रे, ओ मन. दीपक पूजाना दोहा द्रव्य दीप सु-विवेकथी, करतां दुःख होय फोक. भाव प्रदीप प्रगट हुए, भासित लोका-लोक....... १३ For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चामर वीझवाना दोहा बाजु चामर ढाले, एक आगल वज्र उलाले; जइ मेरु धरी उत्संगे, इंद्र चोसठ मलीआ रंगे. प्रभुजीनुं मुखडुं जोवा, भवो भवनां पातिक खोवा. दर्पण पूजाना दोहा प्रभु दर्शन करवा भणी, दर्पण पूजा विशाल. आत्म दर्पणथी जुए, दर्शन होय ततकाल.. अक्षत पूजाना दोहा शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नन्दावर्त विशाल. पूरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल. स्वस्तिक करती वखते बोलवाना दोहा दर्शन ज्ञान चारित्रना, आराधनथी सार. सिद्धशिलानी उपरे, हो मुज वास श्री कार. अक्षत पूजा करतां थकां सफल करूं अवतार. फल मांगु प्रभु आगले, तार तार मुज तार. सांसारिक फल मागीने, रडवड्यो बहु संसार. अष्ट कर्म निवारवा, मागुं मोक्ष फल सार.. १४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ १ १ १ २ ३ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिहुं गति भ्रमण संसारमा, जन्म मरण जंजाल. पंचम-गति विण जीव ने, सुख नहीं त्रिहुं काल... ........४ नैवेद्य पूजाना दोहा अणाहारी पद में कर्यां, विग्गह गइय अनन्त. दूर करी ते दीजिये, अणाहारी शिव सन्त. फल पूजाना दोहा इन्द्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग. पुरुषोत्तम पूजी करी, मागे शिव-फल त्याग.. चैत्यवंदन विधि विभाग (नीचे मुजब प्रथम इरियावहि करवी) इच्छामि खमासमण सूत्र इच्छामि खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि. (भावार्थ : आ सूत्र द्वारा देवाधिदेव परमात्माने तथा पंचमहाव्रत-धारी साधु भगवंतोने वंदन थाय छे.) १५ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इरियावहियं सूत्र इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं १. इरियावहियाए, विराहणाए २. गमणागमणे ३. पाणक्कमणे बीअक्कमणे हरियक्कमणे, ओसा उत्तिंग पणगदग, मट्टीमक्कडा संताणा संकमणे ४. जे मे जीवा विराहिया, ५. एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ६. अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाईया, संघट्टिया, परियाविया किलामिया, उदृविया, ठाणाओ ठाणं, संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ७. (भावार्थ : आ सूत्रथी हालता-चालता जीवोनी अजाणता विराधना थई होय के पाप लाग्या होय ते दूर थाय छे.) तस्स उत्तरी सूत्र तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहिकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं. (भावार्थ : आ सूत्र द्वारा इरियावहियं सूत्रथी बाकी रहेला पापोनी विशेष शुद्धि थाय छे.) For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नत्थ सूत्र अन्नत्थ ऊससिएणं, निससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाईएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए १. सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाईएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ५ जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ताव कार्य ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि (भावार्थ : आ सूत्रमां काउसग्गना सोळ आगारनुं वर्णन तथा केम ऊभा रहेवुं ते बतावेल छे.) (पछी एक लोगस्सनो ‘चंदेसु निम्मलयरा' सुधीनो अने न आवडे तो चार नवकारनो काउस्सग्ग करवो, पछी प्रगट लोगस्स कहेवो) लोगस्स सूत्र लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे, अरिहंते कित्तईस्सं, चउविसंपि केवली.. उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे. १७ For Private And Personal Use Only .२ ३ ४ १ २ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........५ ...... सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपूज्जं च; विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि. ........३ कुंथु अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च; वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह वद्धमाणं च. एवं मए अभिथुआ, विहुयरयमला पहीण जरमरणा; चउविसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु. कित्तिय-वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा; आरूग्गबोहिलाभं, समाहिवर मुत्त मंदिन्तु. .........६ चंदेसु निम्मलयरा, आईच्चेसु अहियं पयासयरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु. .................७ (भावार्थ : आ सूत्रमा चोवीस तीर्थंकरोनी नामपूर्वक स्तुति करवामां आवी छे.) चैत्यवंदन विधि इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए मत्थएणं वंदामि. (आ प्रमाणे त्रण खमासण दई) इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! चैत्यवंदन करुं? इच्छं. (कही डाबो ढींचण ऊभो करवो.) सकल कुशलवल्ली, पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानु, कल्पवृक्षोपमान. १८ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भवजलनिधि पोतः सर्व संपत्ति हेतु; स भवतु सततं व, श्रेयसे शांतिनाथ, श्रेयसे पार्श्वनाथ. सामान्य जिन चैत्यवंदन तु मूरति निरखवा, मुज नयणां तरसे, तुज गुणगणने बोलवा, रसना मुज हरखे. काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे, तो सेवक तार्या विना कहो किम हवे सरशे. एम जाणीने साहिबा, नेक नजर मोही जोय, ज्ञान विमल प्रभु नजरथी, तेहशुं जे नवि होय. जंकिंचि जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए, जाइं जिण बिंबाई, ताइं सव्वाइं वंदामि. १९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ नमुत्थुणं नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं आईगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससिहाणं, पुरिसवर पुंडरियाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, ३ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं, धम्मवर चाउरंत चक्कवट्टीणं. अप्पडिहय वरनाण दंसण धराणं, वियट्टछउमाणं, जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं, सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं सिव मयल मरूअ मणंत मक्खय मव्वाबाह मपुणरावित्ति. सिद्धिगई नाम धेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिय भयाणं. जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपई अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि. जावंति चेइआई. जावंति चेइआइं, उड्ढे अ अहे अ तिरिअलोए अ, सव्वाइं ताइं वंदे इह संतो तत्थ संताइं. इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएणं वंदामि. जावंत के वि साहू जावंत के वि साहू, भरहेरवय महाविदेहेअ सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं... नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सामान्यजिन स्तवन आज मारा प्रभुजी, सामुं जुवोने सेवक कहीने बोलावो रे; एटले हुं मन गमतुं पाम्यो, रूठडां बाल मनावो मारा सांई रे. आज १ आज ४ पतित पावन शरणागत वत्सल, ए जस जगमां चावो रे; मन रे मनाव्या विण नहीं मूकुं, एहीज मारो दावो रे. आज २ कबजे आव्या ते नहि मूकुं, जिहां लगे तुम सम थावो रे; जो तुम ध्यान विना शिव लहीये, तो ते दाव बतावो रे. आज ३ महा गोप ने महा निर्यामक, एवां बिरुद धरावो रे. तो शुं आश्रितने उद्धरतां, बहु बहु शुं कहावो ? ज्ञान विमल गुरुनो निधि महिमा, मंगल एही वधावो रे, अचल अभेदपणे अवलंबी, अहोनिश एही दिल ध्यावो रे. श्री उवसग्गहरं स्तवनम् उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म घण मुक्कं; विसहर-विस निन्नासं, मंगल-कल्लाण - आवासं. विसहर-फुलिंग-मंतं, कंठे धारेई जो सया मणुओ; तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं. २१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only .... ५ १ २ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई; नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं. .. तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्पपायवब्महिए; पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं. ...... इअ संथुओ महायस, भत्तिब्भर-निब्मरेण-हियएण; ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद. ........५ (बे हाथ मस्तके धरवा/ बहेनोए हाथ ऊंचा करवा नहीं.) जय वीयराय जयवीयराय जगगुरु, होउ ममं तुह पभावओ भयवं भवनिव्वेओ मग्गा-णुसारिया इठ्ठफल सिद्धि. ........१ लोग विरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परत्थ करणं च सुहगुरु जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा............... (पछी बे हाथ नीचा ललाटे धरी) वारिज्जई जईवि नियाण, बंधणं वीयराय तुह समये तहवि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं. ........३ दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहि मरणं च बोहिलाभो अ संपज्जउ मह एअं, तुह नाह पणाम करणेणं. For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सर्व मंगल मांगल्यं सर्व कल्याण कारणं प्रधानं सर्व धर्माणाम्, जैनं जयति शासनम्. (पछी ऊभा थईने) अन्नत्थ अरिहंत चेइयाणं अरिहंत चेईयाणं, करेमि काउस्सग्गं, वंदण वत्तिया, पूअणवत्तिआए, सक्कारवत्तियाए, सम्माण वत्तियाए, बोहिलाभवत्तियाए निरुवसग्गवत्तियाए सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए. वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ ५ अन्नत्थ ऊससिएणं, निससिएणं, खासिएणं, छीएणं. जंभाईएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिये पित्तमुच्छाए सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाईएहिं, आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि . पछी एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारीने नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः कही थोय कहेवी. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री महावीर जिन स्तुति जय! जय! भवि हितकर, वीर जिनेश्वर देव; सुर - नरना नायक, जेहनी सारे सेव; करुणा रस कंदो, वंदो आनंद आणी, त्रिशला सुत सुंदर, गुण-मणि केरो खाणी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ भावपूजानी पूर्णाहुति करतां... करतां... नीचेनी भाववाही सुंदर भावना भाववी... आव्यो शरणे तमारा जिनवर ! करजो, आश पूरी अमारी, नाव्यो भवपार म्हारो तुम विण जगमां, सार ले कोण मारी; गायो जिनराज! आजे हरख अधिकथी, परम आनंदकारी, पायो तुम दर्शनासे भवभय भ्रमणा नाथ! सर्वे अमारी. भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मांगुं छं देवाधिदेवा; सामुं जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. जिनेर्भक्ति जिनेर्भक्ति, जिनेर्भक्ति दिने दिने; सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु भवे भवे. उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे.. सर्व मंगल मांगल्यम्, सर्व कल्याण कारणम्; प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम्. २४ १ २ ३ ४ ५ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्यवंदन विभाग श्री ऋषभ जिन चैत्यवंदन आदिदेव अलवसरु, विनीतानो राय; नाभिराया कुल मंडणो, मरुदेवा माय....... पांचसें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल; चोरासी लख पूर्वमुं, जस आयु विशाल.... वृषभ लंछन जिन वृषभ-धरुए, उत्तम गुणमणी खाण; तस पद पद्म सेवन थकी, लहीए अविचल ठाण. ........३ श्री ऋषभ जिन चैत्यवंदन आदिनाथ अरिहंत जिन, ऋषभ देव जयकारी; संघ चतुर्विध तीर्थने, स्थाप्युं जग सुखकारी. परमेश्वर परमातमा, तनुयोगे साकार; अष्ट कर्म दूरे कर्या, निराकार निर्धार..... साकारी अरिहंतजी ए, निराकारथी सिद्ध; बुद्धि सागर ध्यावतां, प्रगटे आतम ऋद्धि. २५ For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......२ श्री ऋषभ जिन चैत्यवंदन सद्भक्त्या-नत-मौलि-निर्जर-वर-भ्राजिष्णु मौलि-प्रभासंमिश्रा-रुणदीप्ति-शोभ-चरणाम्भोज-द्वयः सर्वदा; सर्वज्ञः पुरुषोत्तमः सुचरितो धर्मार्थिनां प्राणिनां, भूयाद् भूरि-विभूतये मुनिपतिः श्रीनाभि-सूनुर्जिनः. .. ........१ सद्बोधोप-चिताः सदैव दधता प्रौढ-प्रतापश्रियो, येना-ज्ञान-तमो-वितान-मखिलं विक्षिप्त-मन्तः-क्षणम् श्री-श@जय-पूर्वशैल-शिखरं भास्वानिवोद्-भासयन्, भव्याम्भोज-हितः स एष जयतु श्री मारुदेव-प्रभुः. यो विज्ञानमयो जगत्त्रय-गुरुर्यं-सर्वलोकाः श्रिताः, सिद्धिर्येन वृता समस्त-जनता यस्मै नतिं तन्वते; यस्मान्-मोह-मतिर्गता मतिभृतां यस्यैव सेव्यं वचो, यस्मिन् विश्व-गुणास्तमेव सुतरां वन्दे युगादीश्वरम्. .........३ श्री अजितनाथ भगवाननु चैत्यवंदन अजितअजित पद आपता, भव्यजीवने जेह; पुरुषार्थने भाखता हेतु मुख्य छे तेह. जडपरिणामी यत्नथी, जडसाथे छे बन्ध; शुद्धात्मिकपरिणामना, पुरुषार्थे नहि बन्ध. २६ For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पुरुषार्थ शिरोमणि ए, सहजयोग शिरदार; शुद्धातम उपयोग छे, अजित थवा निर्धार. श्री अजितनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन अजितनाथ प्रभु अवतर्या, विनीताना स्वामी, जितशत्रु विजया तणा, नंदन शिवगामी. बहोंतेर लाख पूरव तणुं, पाळ्युं जिणे आय, गजलंछन लंछन नहीं, प्रणमे सुरराय.. साडा चारशें धनुषनी ए, जिनवर उत्तम देह, पाद पद्म तस प्रणमीये, जिम लहीए शिव गेह. श्री संभवनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन सावत्थी नयरी धणी, श्री संभवनाथ, जितारि नृप नंदनो, चलवे शिव साथ. सेनानंदन चंदने, पूजो नव अंगे; चारशें धनुषनुं देह मान, प्रणमो मनरंगे. साठ लाख पूरवतणुं ए, जिनवर उत्तम आय, तुरंग लंछन पद पद्मने, नमतां शिव सुख थाय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ For Private And Personal Use Only ३ १ २ ३ १ २ ३ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........२ श्री संभवनाथ भगवान, चैत्यवंदन संभवजिनने सेवतां, संभवती निज ऋद्धि; क्षायिक नव लब्धि मळे, थती आत्मनी शुद्धि.. घातीकर्मना नाशथी, अर्हन पदवी पाम्या; आधि व्याधि उपाधिने, तुज ध्यानारा वाम्या.... आतमा ते परमातमा ए, व्यक्तिभावे करवा; संभवजिन उपयोगथी, क्षण क्षण दिलमां स्मरवा .........३ श्री अभिनंदन भगवान, चैत्यवंदन बाह्यांतर अतिशय घणी, अभिनंदन जिनराज; प्रभु गुणगणने पामवा, अंतरमां बहु दाझ. . ........ प्रभु गुण वरवा भक्ति छे, साध्य एज मन धरवू; घटाटोप शो गुणविना, गुण प्राप्तिमां परg. प्रभुगुण पोतामां छतां ए, आविर्भावने काजे; अभिनंदनने वंदतां, प्रकट गुणो थै छाजे. श्री अभिनंदन भगवान चैत्यवंदन नंदन संवर रायना, चोथा अभिनंदन, कपि लंछन वंदन करो, भवदुःख निकंदन.... २८ For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... सिद्धारथा जस मावडी, सिद्धारथ जिन ताय, साडा त्रणशें धनुषमान, सुंदर जस काय. विनीतावासी वंदीए ए, आयु लख पचास, पूरव तस पद पद्मने, नमतां शिवपुर वास......... श्री सुमतिनाथ भगवान, चैत्यवंदन सुमतिनाथ सुहंकरुं, कोसल्ला जस नयरी, मेघराय मंगला तणो, नंदन जितवयरी. क्रौंच लंछन जिनराजियो, त्रणशें धनुषनी देह, चाळीश लाख पूरवतणुं, आयु अति गुणगेह. सुमति गुणे करी जे भर्या ए, तर्या संसार अगाध, तस पदपद्म सेवा थकी, लहो सुख अव्याबाध. ........३ श्री सुमतिनाथ भगवान, चैत्यवंदन सुमतिनाथ पंचम प्रभु, सुमतिना दातार; सर्व विश्वनायक विभु, अरिहंत अवतार. सात्त्विकगुणनी शक्तिथी, बाह्यप्रभुता धारी; चिदानंद प्रभुता भली, आंतर नित्य छे प्यारी. तुजमां मनने धारीने ए, निःसंगी थानार; । कर्म करे पण नहीं करे, तुज भक्तो नरनार. . ........१ २९ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री पद्मप्रभस्वामी- चैत्यवंदन नवधा भक्तिथी खरी, पद्मप्रभुनी सेवा; सेवामां मेवा रह्या, आप बने जिनदेवा. .. नवधा भक्तिमां प्रभु, प्रगटपणे परखाता, आठ कर्म पडदा हठे, स्वयं प्रभु समजाता.. पद्मप्रभुने ध्यावतां ए, पूर्ण समाधि थाय; हृदय पद्ममां प्रकटता, आत्मप्रभुजी जणाय. __ श्री पद्मप्रभस्वामी, चैत्यवंदन कोसंबीपुर राजियो, धर नरपति ताय, पद्मप्रभ प्रभुतामयी, सुसीमा जस माय. त्रीश लाख पूरवतणूं, जिन आयु पाळी, धनुष अढीसें देहडी, सवि कर्मने टाळी. पद्मलंछन परमेश्वरु ए, जिनपद पद्मनी सेव, पद्मविजय कहे कीजिये, भविजन सहु नितमेव. श्री सुपार्श्वनाथ भगवाननु चैत्यवंदन श्री सुपार्श्व जिणंद पास, टाळ्यो भव फेरो, पृथ्वी मात उरे जयो, ते नाथ हमेरो. .......१ .........३ ३० For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रतिष्ठित सुत सुंदरु, वाणारसी राय, वीश लाख पूरव तणुं प्रभुजीनुं आय. धनुष बसें जिन देहडी ए, स्वस्तिक लंछन सार, पद पद्मे जस राजतो, तार तार भव तार. श्री सुपार्श्वनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन सुपार्श्वनाथ छे सातमा, तीर्थंकर जिनराजा; पासे प्रभु सुपार्श्व तो, आतम जगनो राजा. आतममां प्रभु पास छे, बाहिर मूर्खा शोधे; अंतरमां प्रभु ध्यानथी, ज्ञानी भक्तो बोधे .. द्रव्यभावथी वंदीए ए, ध्याईजे प्रभु पास; एकवार पाम्या पछी, टळे नहीं विश्वास. श्री चंद्रप्रभस्वामीनुं चैत्यवंदन अनंत चंद्रनी ज्योतिथी, अनंत ज्ञानथी ज्योत; चंद्रप्रभु प्रणमं स्तवं, करता जग उद्योत. असंख्य चंद्रो भानुओ, इन्द्रो जेने ध्याय; परब्रह्म चंद्रप्रभु, जगमां सत्य सुहाय.. शुद्धप्रेमथी वंदतां ए, असंख्यचंद्रनो नाथ; बुद्धिसागर आतमा, टाळे पुद्गल साथ. ३१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only २ ३ १ २ ३ १ ३ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..... ........ श्री चंद्रप्रभस्वामीनु चैत्यवंदन लक्ष्मणा माता जनमीयो, महसेन जस ताय, उडुपति लंछन दीपतो, चंद्रपुरीनो राय. दश लाख पूरव आऊ, दोढसो धनुषनी देह, सुरनरपति सेवा करे, धरता अति ससनेह. चंद्रप्रभ जिन आठमा ए, उत्तम पद दातार, पद्मविजय कहे प्रणमीए, प्रभु मुज पार उतार. ........३ श्री सुविधिनाथ भगवान, चैत्यवंदन सुविधिनाथ नवमा नमुं, सुग्रीव जस तात; मगर लंछन चरणे नमुं, रामा रूडी मात. आयु बे लाख पूरवतणुं, शत धनुष्यनी काय; काकंदी नयरी धणी, प्रणमुं प्रभु पाय....... .........२ उत्तम विधि जेहथी लह्यो ए, तेणे सुविधि जिननाम; नमतां तस पद पद्मने, लहिये शाश्वत धाम. ........३ श्री सुविधिनाथ भगवान चैत्यवंदन सुविधिनाथ सुविधि दिये, आत्मशुद्धि हेत; श्रावक साधु धर्म बे, तेना सहु संकेत.. ........१ ३२ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्य-भाव व्यवहारने, निश्चय सुविधि बेश; जैनधर्मनी जाणतां, करतां रहे न क्लेश. शुद्धातम परिणाममां ए, सर्व सुविधि समाय; आतम सुविधिनाथ थै, चिदानंदमय थाय...... श्री शीतलनाथ भगवाननु चैत्यवंदन आत्मिक धर्मनी शुद्धता, करीने शीतलनाथ; सर्व लोक शीतल करो, साचा शिवपुर साथ. ..... धर्म सुविधि आदरी, शीतल थया जिनेन्द्र, समताथी शीतल प्रभु, आतम स्वयं महेन्द्र. समता शीतलता थकी ए, शीतल प्रभु थवाय; बुद्धिसागर आत्मा पूर्णानंद सुहाय.. श्री शीतलनाथ भगवान, चैत्यवंदन नंदा दृढरथ नंदनो, शीतल शीतलनाथ; राजा भद्दिलपुर तणो, चलवे शिवपुर साथ. लाख पूरवर्नु आउखुं, नेवू धनुष प्रमाण; काया माया टालीने, लह्या पंचम नाण. श्रीवत्स लंछन सुंदरुं ए, पद पर्दो रहे जास; ते जिननी सेवा थकी, लहिये लील विलास.. ३३ For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .... श्री श्रेयांसनाथ भगवान, चैत्यवंदन श्री श्रेयांस अग्यारमा, विष्णु नृप ताय, विष्णु माता जेहनी, एंसी धनुषनी काय. वरस चोरासी लाखनु, पाल्युं जेणे आय, खड्गी लंछन पदकजे, सिंहपुरीनो राय..... राज्य तजी दीक्षा वरी ए, जिनवर उत्तम ज्ञान, पाम्या तस पद पद्मने, नमतां अविचल थान. .........३ श्री श्रेयांसनाथ भगवान, चैत्यवंदन सर्व भाव श्रेयो वर्या, श्री श्रेयांस जिनंद; आत्मशीतलता धारीने, टाळ्या मोहना फंद. उपशम क्षयोपशम अने, क्षायीक भावे जेह; सत्य श्रेयने पामतो, स्वयं श्रेयांस ज तेह. श्री श्रेयांस प्रभु समो ए निज आतमने करवा; वंदो ध्यावो भविजना, धरो न जडनी परवा. श्री वासुपूज्यस्वामी- चैत्यवंदन क्षायिक लब्धि श्रेयथी, वासुपूज्य जिनदेव; थया हृदयमां जाणीने, करो प्रभुनी सेव. ........१ ........२ ३४ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चिदानंद वसुता वर्या, विश्वपूज्य जिनराज; वासुपूज्य निज आतमा, करशो साधी काज. प्रभुमय थै प्रभु सेवतां ए, स्वयं प्रभु जिन थाय; अनंत केवलज्ञाननी, ज्योति ज्योत सुहाय. श्री वासुपूज्यस्वामीनुं चैत्यवंदन वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम; वसुपूज्य कुल चंद्रमा, माता जया नाम. महिष लंछन जिम बारमा, सित्तेर धनुष प्रमाण; काया आयु वरस वली, बहोंतेर लाख वखाण. संघ चतुर्विध थापीने ए, जिन उत्तम महाराय; तस मुख पद्म वचन सुणी परमानंदी थाय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री विमलनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन कंपिलपुर विमलप्रभु, श्यामा मात मल्हार; कृतवर्मा नृप कुल नभे, उगमियो दिनकार. लंछन राजे वराहनुं, साठ धनुषनी काय; साठ लाख वरसां तणुं, आयु सुख समुदाय. विमल विमल पोते थया ए, सेवक विमल करेह; तुज पद पद्म विमल प्रति, सेवुं धरी ससनेह. ३५ For Private And Personal Use Only २ ३ १ २ ३ १ ३ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री विमलनाथ भगवान, चैत्यवंदन आत्मिक सिद्धि आठ जे, आठ वसुना भोगी; आत्मवसु प्रगटावीने, निर्मल थया अयोगी...... ........ करी विमल निज आतमा, थया विमल जिनराज; प्रभु पेठे निज विमलता, करवी ए छे काज. आत्मविमलता जे करे ए, स्वयं विमल ते थाय; विमल प्रभु आलंबने, विमलपणुं प्रगटाय... श्री अनंतनाथ भगवान, चैत्यवंदन विमलात्मा करीने प्रभु, थया अनंत जिनेश; अनंत ज्योतिर्मय विभु, नहीं राग ने द्वेष. अनंत जीवन ज्ञानमय, आनंद सहज स्वभावे; द्रव्य क्षेत्र ने कालथी, भावथी सत्य सुहावे. अनंत रत्नत्रयी वर्या ए, अनंत जिनवर देव; बुद्धिसागर भावथी, करवी भक्ति सेव. श्री अनंतनाथ भगवाननु चैत्यवंदन अनंत अनंत गुण आगरु, अयोध्या वासी; सिंहसेन नृप नंदनो, थयो पाप निकासी. ३६ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......... सुजसा माता जनमीयो, त्रीश लाख उदार; वरस आउखुं पालीयुं, जिनवर जयकार...... लंछन सिंचाणा तणुं ए, काया धनुष पचास; जिनपद पद्म नम्या थकी, लहीये सहज विलास.............३ श्री धर्मनाथ भगवान, चैत्यवंदन भानुनंदन धर्मनाथ, सुव्रता भली मात; वज्र लंछन वज्री नमे, त्रण भुवन विख्यात. .......... .........१ दश लाख वरसनु आउखुं, वपु धनुष पिस्तालीस; रत्नपुरीनो राजीयो, जगमां जास जगीस. धर्म मारग जिनवर कहे ए, उत्तम जन आधार; तिणे तुज पाद पद्मतणी, सेवा करुं निरधार. ... श्री धर्मनाथ भगवान, चैत्यवंदन पंदरमा श्री धर्मनाथ वंदुं हर्षोल्लासे; अनंत आतम भाखियो, केवलज्ञान प्रकाशे. आत्मधर्म छे आत्ममां, जडमां जडना धर्मो; वस्तुस्वभावे धर्म छे, समजी टाळो कर्मो.... चिदानंद धर्मज खरो ए, धर्म न ते जडमांह्ये; आत्मावण जड विषयमां, मळे न आनंद क्यांये. ........ ३७ ........३ For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन शान्ति जिनेसर सोलमा, अचिरा-सुत वन्दो. विश्वसेन-कुल-नभमणि, भविजन-सुख-कन्दो. मृग लंछन जिन आउखु, लाख वरस प्रमाण. हत्थिणाउर-नयरी-धणी, प्रभुजी गुण मणि-खाण.. चालीश धनुषनी देहडी, सम-चउरस संठाण. वदन पद्म ज्युं चंदलो, दीठे परम कल्याण. श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन समरूं शांति जिणंद, पुष्प तुज शीष चडावुं. श्री जिन पूजन काज, नित्य तुज मंदिर आवुं. रंगे गाउं रस ऋद्धि, सुख संपत्ति पाउं. मन वचन काया करी देव, हुं तुजने ध्यावं. पूजतां पदवी लहुं, जपतां जग सुखी बहु. कवि ऋषभ इम उच्चरे, शांतिनाथ समरो सहु. श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन जय जय शांति जिणंद देव, हत्थिणाउर स्वामी; विश्वसेन कुलचंद सम, प्रभु अंतरजामी.. ३८ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ २ ३ १ ३ १ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अचिरा उर सर हंस जिम, जिनवर जयकारी; मारी रोग निवारके, कीर्ति विस्तारी.. सोलमा जिनवर प्रणमीये ए, नित ऊठी नमी शीष; सुरनर भूप प्रसन्न मन, नमतां वाधे जगीश. श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन दर्शन ज्ञान चारित्रथी, साची शांति थावे; शांतिनाथ शांति वर्या, रत्नत्रयी स्वभावे. तिरोभाव निज शांतिनो, अविर्भाव जे थाय; शुद्धात शांति प्रभु, स्वयं मुक्तिपद पाय. बाह्य शांतिनो अंत छे ए, आतम शांति अनंत; अनुभवे जे आत्ममां, प्रभुपद पामे संत. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only २ ३ १ २ ३ श्री शांतिनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन विपुल-निर्मल-कीर्ति-भरान्वितो, जयति - निर्जर-नाथ-नमस्कृतः; लघु-विनिर्जित-मोह-धराधिपो जगति यः प्रभु- शान्ति-जिनाधिपः१ विहित शान्त-सुधारस-मज्जनं, निखिल - दुर्जय-दोष-विवर्जितम्; परम-पुण्यवतां भजनीयतां, गतमनन्त - गुणैः सहितं सताम्...२ तम-चिरात्मज-मीश-मधीश्वरं भविक - पद्म - विबोध-दिनेश्वरम्; महिमधाम भजामि जगत्त्रये, वरमनुत्तर- सिद्धि - समृद्धये......३ ३९ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ श्री कुंथुनाथ भगवान, चैत्यवंदन कुंथुनाथ कामित दीए, गजपुरनो राय; सिरि माता उरे अवतर्यो, शूर नरपति ताय. काया पांत्रीस धनुषनी, लंछन जस छाग; केवलज्ञानादिक गुणो, प्रणमो धरी राग.... सहस पंचाणुं वरस, ए, पाली उत्तम आय; पद्मविजय कहे प्रणमीए, भावे श्री जिनराय. श्री कुंथुनाथ भगवान, चैत्यवंदन शुद्ध स्वभावे शांतिने, पाम्या कुंथु जिनंद; कुंथुनाथ निज आतमा, समजे नहि मतिमन्द.. मननी गति कुंठित थतां, वैकुंठ मुक्ति पासे; क्रोधादिक दूरे करी, वर्ते हर्षोल्लासे. ......... बाहिर दृष्टि त्यागथी, आतमदृष्टियोगे; कुंथुनाथ ध्यावो सदा, निजना निज उपयोगे. .............३ श्री अरनाथ भगवान, चैत्यवंदन रागद्वेषारि हणी, थया अरिहंत जेह. अर जिनेश्वर वंदतां, कर्म रहे नहीं रेह. ४० For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतमना उपयोगथी, रागद्वेष न होय; सर्वकार्य करतां थकां, कर्म बंध नहीं जोय. . आत्मज्ञान प्रकाशथी ए, मिथ्यातम पलटाय; बुद्धिसागर आत्ममां, सहु शक्ति प्रगटाय..... श्री अरनाथ भगवान, चैत्यवंदन नागपुरे अर जिनवरु, सुदर्शन नृप नंद, देवी माता जनमीयो, भविजन सुखकंद.... लंछन नंदावर्तनुं, काया धनुष त्रीस, सहस चोरासी वसरनु, आयु जास जगीश. अरुज अजर अर जिनवरु ए, पाम्या उत्तम ठाण, तस पद पद्म आलंबता, लहीये पद निरवाण. ....... .........३ श्री मल्लिनाथ भगवान, चैत्यवंदन मल्लिनाथ ओगणीशमा, जस मिथिला नयरी; प्रभावती जस मावडी, टाले कर्म वयरी. ........१ तात श्री कुंभ नरेसरु, धनुष पचवीशनी काय; लंछन कळश मंगल करु, निर्मम निरमाय वरस पंचावन सहसनुं ए, जिनवर उत्तम आय; पद्मविजय कहे तेहने, नमतां शिवसुख थाय. ........ ४१ For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir W० श्री मल्लिनाथ भगवान चैत्यवंदन मल्ल बनी भवरणविषे, जीत्या राग ने द्वेष; मल्लि प्रभु तेथी थया, टाळ्या सर्वे क्लेश. रागद्वेष न जेहने, परमातम ते जाण; देह छतां वैदेही ते, केवली छे भगवान्..... मल्लिनाथ प्रभु ध्याईने ए, भावमल्लता पामी; कर्म करो प्रारब्धथी, बनी अंतर निष्कामी. श्री मुनिसुव्रतस्वामीनुं चैत्यवंदन मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छप, लंछन, पद्मा माता जेहनी सुमित्र नृप नंदन. राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर, कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर... त्रीस हजार वरसतणुं ए, पाली आयु उदार, पद्मविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार. .........३ श्री मुनिसुव्रतस्वामी, चैत्यवंदन भाव मुनिसुव्रतपणुं, प्रगटावीने जेह; मुनिसुव्रत प्रभु जिन थया, वंदुं ते गुणगेह... .........२ ४२ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षायिकभावे आत्ममां, क्षायिक लब्धि धारी; मुनिसुव्रतने वंदतां, रहे न जडनी यारी. मुनिसुव्रतपणुं आत्ममां ए, जाणी पामो भव्य; मुनिसुव्रत जिन उपदिशे, ए, निज कर्तव्य. श्री नमिनाथ भगवान, चैत्यवंदन आतममां प्रणमी प्रभु, थया नमि जिनराज; नमवू उपशम क्षायिके, क्षयोपशमे सुखकाज.......... नम्या न जे ते भव भम्या, नमी लह्या गुणवृंद; नमि प्रभु भाखियुं, सेवा छे सुख कंद........ आतममां प्रणमी रही ए, स्वयं नमी घट जोवे; ध्यानसमाधि योगथी, आत्मशक्ति नहीं खोवे. श्री नेमिनाथ भगवाननु चैत्यवंदन बावीसमा श्री नेमिनाथ, घोर ब्रह्मव्रत धारी; शक्ति अनंती जेहनी, त्रण भुवन सुखकारी. इन्द्र चन्द्र नागेन्द्रने, वासुदेवो सर्वे; चक्रवर्तीयोने नमीने, सेवे रही अगवे. कृष्णादिक भक्तो घणा ए, जेनी सेवा सारे; एवा परमेश्वर विभु, सेवंतां सुख भारे..... ४३ For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ها ......... به श्री नेमिनाथ भगवान, चैत्यवंदन नेमिनाथ बावीसमा, शिवादेवी माय; समुद्र विजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय............... दश धनुषनी देहडी, आयु वर्ष हजार; शंख लंछन धर स्वामीजी, तजी राजुल नार.... सौरीपुरी नयरी भली ए, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठान. ........३ ___ श्री नेमिनाथ भगवान, चैत्यवंदन विशुद्ध-विज्ञान-भृतां वरेण, शिवात्मजेन प्रशमाकरेण. येन प्रयासेन विनैव कामं, विजित्य-विक्रान्त-वरं प्रकामम्....१ विहाय राज्यं चपल-स्वभावं, राजीमती राज-कुमारिकां च. गत्वा सलीलं गिरिनार शैलं, भेजे व्रतं केवल-मुक्ति-युक्तम्..२ निःशेष योगीश्वर मौलिरत्नं, जितेन्द्रियत्वे विहित-प्रयत्नम्. तमुत्त-मानंद-निधान-मेकं, नमामि नेमिं विलसद्-विवेकम्....३ श्री पार्श्वनाथ भगवाननु चैत्यवंदन पार्श्वनाथ पासे प्रभु, आत्म ज्ञानथी देखे; जडवण आतम भानथी, प्रगट प्रभु निज पेखे...... ........१ ४४ For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ا ة ة ة م जलधिमां तारो यथा, खेले स्वेच्छा भावे; तथा ज्ञानी जड वस्तुमां, खेले ज्ञान स्वभावे.. पंच वर्णनी माटीने, खाइ बने छे श्वेत; शंखनी पेठे ज्ञानी बहु, निःसंगी संकेत. देखे अज्ञानी बहिर, अंतर देखे ज्ञानी; ज्ञानीना परिणामनी, साक्षी केवलज्ञानी. ज्ञानीने सहु आस्रवो, संवर रूपे थाय; संवर पण अज्ञानीने, आस्रव हेतु सुहाय. पार्श्व प्रभुए उपदिश्यो ए, ज्ञान अज्ञाननो भेद; बुद्धि सागर आत्ममां, ज्ञानीने नहीं खेद. श्री पार्श्वनाथ भगवान, चैत्यवंदन आश पूरे प्रभु पासजी, तोडे भव पास. वामा माता जनमीया, अहि-लंछन जास. अश्व सेन सुत सुख-करु, नव हाथनी काया. काशी देश वाणारसी, पुण्ये प्रभु आया....... एक सो वरस, आउखुं ए, पाली पार्श्व-कुमार. पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार. .........६ ........१ ४५ For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री पार्श्वनाथ भगवान- चैत्यवंदन जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन-स्वामी; अष्ट-कर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामी. प्रभु नामे आनंद-कंद, सुख संपत्ति लहीये; प्रभु नामे भव भव तणां, पातक सब दहीये.. ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी ए, जपीए पारस नाम; विष अमृत थइ परिणमे, लहीए अविचल ठाम. .........३ __ श्री पार्श्वनाथ भगवान, चैत्यवंदन ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्व-चिंतामणीयते; ह्रीं धरणेन्द्र वैरोट्या, पद्मादेवी-युताय ते... शांति-तुष्टि-महापुष्टि-, धृति-कीर्ति-विधायिने; ॐ ह्रीं द्विव्याल वेताल, सर्वाधि-व्याधि-नाशिने... जया-जिताख्या-विजयाख्या-, पराजितयान्वितः; दिशां-पालैर्ग्रहैर्य:-, विद्यादेवीभि-रन्वितः. .... ॐ असिआउसा, नमस्तत्र त्रैलोक्य-नाथताम्; चतुष्षष्टिः सुरेंद्रास्ते, भासते छत्र-चामरैः. .........४ श्री-शंखेश्वर मंडन-पार्श्वजिन, प्रणत कल्प-तरु-कल्प; चूरय दुष्ट-वातं, पूरय मे वांछितं नाथ... ४६ ........५ For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री पार्श्वनाथ भगवाननुं चैत्यवंदन श्रयामि तं जिनं सदा मुदा प्रमाद-वर्जितं, स्वकीय-वाग्विलासतो जितोरु-मेघ-गर्जितम्; जगत्प्रकाम-कामित-प्रदान-दक्षमक्षतं, पदं दधान-मुच्चकैर-कैतवोप-लक्षितम् .. सताम-वद्य-भेदकं प्रभूत-संपदां पदं, वलक्ष-पक्ष-संगतं जने-क्षणक्षण-प्रदम्; सदैव यस्य दर्शनं विशां-विमर्दितैनसां, निहन्त्य-शातजात-मात्मभक्ति-रक्त-चेतसाम्. अवाप्य यत्प्रसाद-मादितः पुरुश्रियो नरा, भवन्ति मुक्तिगामिन-स्ततः प्रभाप्रभा-स्वराः; भजेय-माश्वसेनि-देवदेव-मेव सत्पदं, तमुच्च-मानसेन शुद्धबोध-वृद्धि-लाभदम्. श्री महावीरस्वामीनुं चैत्यवंदन सिद्धारथ- सुत वंदीए, त्रिशलानो जायो. क्षत्रिय-कुंडमां अवतर्यो, सुर नर पति गायो. मृग-पति लंछन पाउले, सात हाथनी काया. बहोंतेर वर्षनुं आउखुं, वीर जिनेश्वर राया. ४७ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ २ ३ १ २ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खीमा-विजय जिन-राजना ए, उत्तम गुण अवदात. सात बोलथी वर्णव्यो, पद्म विजय विख्यात. .........३ ___ श्री महावीरस्वामी- चैत्यवंदन नव चोमासी तप कर्या, त्रणमासी दोय. दोय दोय अढीमासी कर्या, तेम दोढमासी होय.. .........१ बहोतेर पास खमण कर्या, मास खमण कर्या बार. षड बेमासी तप आदर्या, बार अट्ठम तप सार. ... .........२ षडमासी एक तप कर्यो, पंच दिण उण षड मास. बसो ओगणत्रीस छट्ठ भला, दीक्षा दिन एक खास. .......३ भद्र प्रतिमा दोय भली, महाभद्र दिन चार. दश सर्वतो भद्रता, लागट निरधार......... ....... विण पाणी तप आदर्या, पारणादिक जास. द्रव्याहारे पारणा कर्या, त्रणसो ओगणपचास. ........५ छद्मस्थ एणी परे रह्या ए, सह्यां परिषह घोर. शुक्ल ध्यान अनले करी, बाल्यां कर्म कठोर.... शुक्ल ध्यान अंते रह्याए, पाम्या केवल नाण. पद्म विजय कहे प्रणमतां, लहिए नित्य कल्याण............७ m ४८ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . श्री महावीरस्वामी चैत्यवंदन प्रभु महावीर जगधणी, परमेश्वर जिनराज; श्रद्धा भक्ति ज्ञानथी, सार्या सेवक काज. काल स्वभाव ते नियति, कर्म ने उद्यम जाण; पंच कारणे कार्यनी, सिद्धि कथी प्रमाण.. पुरुषार्थ तेमां कह्यो, कार्य सिद्धि करनार; शुद्धात्मा महावीर जिन, वंदु वार हजार. महावीरने ध्यावतां ए, महावीर आपोआप; बुद्धि सागर वीरनी, साची अंतर छाप. श्री महावीरस्वामी, चैत्यवंदन वर्द्धमान जिनवर धणी, प्रणमुं नित्यमेव; सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव.. त्रिशला उदर सर हंस सम, प्रगट्यो सुख कंद; केशरी लंछन विमल तनु, कंचन मय वृंद. महावीर जगमां वडो ए, पावापुरी निर्वाण; सुर नर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण.... c ........१ For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री महावीरस्वामीनुं चैत्यवंदन ॐ अर्हं श्री महावीर !, वर्धमान ! जिनेश्वर !; शांति तुष्टिं महा- पुष्टिं कुरू स्वेष्टं द्रुतं प्रभो !. सर्व देवाधि-देवाय, नमो वीराय तायिने; ग्रह-भूत-महामारीद्रुतं नाशय ! नाशय !. सर्वत्र कुरु मे रक्षां, सर्वोपद्रव - नाशतः; जयं च विजयं सिद्धिं कुरु शीघ्रं कृपानिधे!. त्वन्नाम-स्मरणाद्देव!, फलेन्मे वांछितं सदा; दूरी - भवन्तु पापानि, मोहं नाशय वेगतः. ॐ ह्रीं अर्हं महावीर, मंत्र - जापेन सर्वदा; बुद्धि सागर-शक्तीनां, प्रादुर्भावो भवेद् ध्रुवम्. शाश्वता अशाश्वता जिन चैत्यवंदन शाश्वत प्रतिमाओ घणी प्रथमादि स्वर्गे जे रही, जिन भावस्मृतिथी वंदतां उपयोगनी शुद्धि वही; ज्योतिषीनां सर्वे विमानो त्यां प्रतिमा निर्मळी, व्यंतर भुवनमां जे रही वंदुं हुं प्रेमे लळी लळी. जे जे ज मानव लोकमां ते ते ज वंदुं भावथी, सिद्धांत आगममां कही, भावे स्मरुं गुणदावथी; ५० For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ २ ४ ५ १ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभादि चारे नामथी शाश्वत प्रतिमा ध्याईए, शत्रुज्यादि तीर्थस्थित अशाश्वती मन लाईए. ...... पाताल मृत्यु लोकमां ने स्वर्गमांही वंदीए; नामादितीर्थो सर्वने वंदीने कर्म निकंदीए; परमात्मप्रतिनिधि तीर्थ जे आत्मार्थ उपशम आदिये, बुद्धयब्धि भक्तिभावथी उपयोगथी मन लावीए. .. ........३ श्री पंच परमेष्ठि चैत्यवंदन बार गुण अरिहन्त देव, प्रणमीजे भावे. सिद्ध आठ गुण समरतां, दुःख-दोहग जावे. .... आचारज गुण छत्रीश, पचवीश उवज्झाय. सत्तावीश गुण साधुना, जपतां शिवसुख थाय. अष्टोत्तर-शत गुण मली, एम समरो नवकार. धीर विमल पण्डित तणो, नय प्रणमे नित सार. ........ परमात्माना चैत्यवंदन परमेसर! परमातमा!, पावन! परमिट्ठ! जय जग गुरु! देवाधि-देव!, नयणे में दिट्ठ! .. अचल-अकल अविकार सार, करुणा-रस-सिंधु. जगती जन आधार एक, निष्कारण बंधु. ५१ For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुण अनंत प्रभु ताहरा, किमहि कह्या न जाय. राम प्रभु जिन-ध्यानथी, चिदानंद सुख थाय. पंच तीर्थ चैत्यवंदन आज देव अरिहंत नमुं, समरुं तारुं नाम; ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी, त्यां त्यां करूं प्रणाम. शत्रुंजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार; तारंगे श्री अजितनाथ, आबु रिखव जुहार. अष्टापद गिरि उपरे, जिन चोवीसे जोय; मणिमय मूरति मानशुं, भरते भरावी सोय.. समेत-शिखर तीरथ वडुं, जिहां वीशे जिन पाय; वैभार गिरि उपरे, श्री वीर जिनेश्वर राय .. मांडवगढनो राजियो, नामे देव सुपास; ऋषभ कहे जिन समरतां, पहोंचे मननी आश चौवीस जिन वर्ण चैत्यवंदन पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहीए. चन्द्रप्रभु ने सुविधिनाथ, दोय उज्ज्वल लहीए. मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला निरख्या. मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दो अंजन सरिखा. ५२ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ १ .२ ३ ४ ५ १ २ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोले जिन कंचन समा ए, एहवा जिन चोवीश. धीर विमल पण्डित तणो, ज्ञान विमल कहे शिष्य. ........३ तीर्थंकर भव चैत्यवंदन प्रथम तीर्थंकर तणा हुवा, भव तेर कहीजे; शांति तणा भव बार सार, नव भव नेम लहीजे. ........... दश भव पास जिणंदना, सत्तावीश श्री वीर; शेष तीर्थंकर त्रिहुं भवे, पाम्या भव जल तीर. ...... ........२ जिहांथी समकित फरसियुं ए, तिहांथी गणीए तेह; धीर विमल पंडित तणो, ज्ञान विमल गुणगेह. एकसौ सित्तेर जिनवर्ण चैत्यवंदन सोले जिनवर शामला, राता त्रीश वखाणुं; लीला मरकत मणि समा, आडत्रीशे गुण खाणुं............ पीला कंचन वर्ण समा, छत्रीशे जिनचंद; शंख वरण सोहामणुं, पचाशे सुखकंद. ....... सीत्तेर सो जिन वंदीये ए, उत्कृष्टा समकाल; अजितनाथ वारे हुवा, वंदुं थइ उजमाल. नाम जपंतां जिन तणुं, दुर्गति दूरे जाय; ध्यान ध्यातां परमात्मानु, परम महोदय थाय. ५३ For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनवर नामे जश भलो, सफल मनोरथ सार; शुद्ध प्रतीति जिन तणी, शिव सुख अनुभव धार.... .........५ सिद्ध परमात्माना चैत्यवंदन सिद्ध सकल समरूं सदा, अविचल अविनाशी; थाशे ने वली थाय छे, थया अड कर्म विनाशी. ......... लोकालोक प्रकाश भास, कहेवा कोण शूरो; सिद्ध बुद्ध पारंगत, गुणथी नहिं अधूरो. अनंत सिद्ध एणी परे नमुं ए, वली अनंत अरिहंत, ज्ञान विमल गुण संपदा, पाम्या ते भगवंत...... ........३ श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन श्री सीमंधर जगधणी, आ भरते आवो; करुणावंत करुणा करी, अमने वंदावो. सकल भक्त तुमे धणी, जो होवे अम नाथ; भवोभव हुं छु ताहरो, नहीं मेलुं हवे साथ. सयल संग छंडी करी, चारित्र लेईशुं, पाय तुमारा सेवीने, शिवरमणी वरीशुं..... ए अलजो मुजने घणो ए, पूरो सीमंधर देव; इहां थकी हुं विनवू, अवधारो मुज सेव.. ५४ ا ة ة ة For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर जोडीने विनवू ए, सामो रही ईशान; भाव जिनेश्वर भाणने, देजो समकित दान.... .........५ श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन श्री सीमन्धर वीतराग!, त्रिभुवन तुमे उपकारी; श्री श्रेयांस पिता कुले, बहु शोभा तुमारी. धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी; वृषभ लंछने विराजमान, वंदे नर नारी. ........२ धनुष पांचसे देहडी ए, सोहीए सोवन वान; कीर्ति विजय उवज्झायनो, विनय धरे तुम ध्यान. .........३ ___ श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन वं, जिनवर विहरमान, सीमंधर स्वामी. केवल कमला कांत दांत, करुणा रस धामी. ...... ........१ कंचन गिरि सम देह कांत, वृषभ लंछन पाय. चोराशी लख पूर्व आयु, सेवित सुर राय. छट्ठ भत्त संयम लियो ए, पुंडरीकिणी भाण. प्रभु द्यो दरिशन संपदा, कारण परम कल्याण.. .......... For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......३ श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन जयतु जिन जगदेक-भानु, काम कश्मल-तम-हरं; दुरित-ओघ विभाव-वर्जितं, नौमि श्री जिन-मंधरं. प्रभु-पाद पद्मे चित्त-लयने, विषय-दोलित निर्भरं; संसार-राग असार-घातिकं, नौमि... .. अति-रोष-वह्नि-मान महीधर, तृष्णा-जलधि-हितकरं; वचनोर्जित-जंतु-बोधकं, नौमि... अज्ञान-तर्जित-रहित-चरणं, परगुणो मे मत्सरं; अरति-अर्दित-चरण-शरणं, नौमि... ........४ गंभीर-वदनं भवतु दिन दिन, देहि मे प्रभु-दर्शनं; भावविजय श्री ददतु मंगलं, नौमि.. .....५ सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन श्री शत्रुजय सिद्ध-क्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे. भाव धरीने जे चढे, तेने भव-पार उतारे. अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय. पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय. .. सूरज-कुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम. नाभिराया-कुल-मंडणो, जिनवर करूं प्रणाम. ५६ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........... सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन विमल-केवल-ज्ञान-कमला-कलित, त्रिभुवन हितकरं. सुरराज-संस्तुत-चरण-पंकज, नमो आदि जिनेश्वरं. .........! विमल-गिरिवर-शृंग-मण्डन, प्रवर-गुणगण-भूधरं. सुर-असुर-किन्नर-कोडि-सेवित, नमो आदि जिनेश्वरं. .......२ करती नाटक किन्नरी-गण, गाय जिन-गुण मनहरं. निर्जरावली नमे अहो निश, नमो आदि जिनेश्वरं. पुण्डरीक गणपति सिद्धि साधी, कोडी पण मुनि मनहरं. श्री विमल गिरिवर-शृंग सिद्धा, नमो आदि जिनेश्वरं.........४ निज साध्य-साधक सुर-मुनिवर, कोडि अनन्त ए गिरिवरं. मुक्ति-रमणी वर्या रंगे, नमो आदि जिनेश्वरं. ........५ पाताल-नर-सुर-लोकमांही, विमल गिरिवर तो परं. नहि अधिक तीर्थ तीर्थपति कहे, नमो आदि जिनेश्वरं.......६ इम विमल गिरिवर-शिखर-मण्डण, दुःख-विहण्डन ध्याईये. निज शुद्ध-सत्ता-साधनार्थं, परम ज्योति निपाईये.............७ जित-मोह-कोह-विछोह निद्रा, परम-पद-स्थिति जयकरं. गिरिराज-सेवा-करण तत्पर, पद्म विजय सुहितकरं........८ ५७ For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . W सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन सिद्धाचल गिरि वंदीए, द्रव्य भावथी बेश; द्रव्य भाव गिरि जाणतां, रहे न मनमां क्लेश. सात नयोथी जाणीने, विमलाचल ध्यानार; अवश्य मुक्तिपद लहे, शुद्धातम पद सार.... निर्विकल्प स्वभावथी ए, तीर्थज आपोआप; बुद्धिसागर संपजे, रहे न दुविधा ताप. सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन जय! जय! नाभि नरिंद नंद, सिद्धाचल मंडण; जय! जय! प्रथम जिणंद चंद, भव-दुःख विहंडण. ........१ जय! जय! साधु सूरिंद वृंद, वंदिअ परमेसर; जय! जय! जगदानंद कंद, श्री ऋषभ जिनेसर. ... अमृत सम जिन धर्मनो ए, दायक जगमां जाण; तुज पद पंकज प्रीतधर, निश-दिन नमत कल्याण... .........३ श्री रायण पगलांनुं चैत्यवंदन एह गिरि उपर आदि देव, प्रभुप्रतिमा वंदो; रायण हेठे पादुका, पूजीने आणंदो.. .........२ ५८ For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......... ........२ एह गिरिनो महिमा अनंत, कुण करे वखाण; चैत्री पूनमने दिने, तेह अधिको जाण. एह तीरथ सेवो सदा, आणी भक्ति उदार; श्री शत्रुजय सुखदायको, दान विजय जयकार................३ श्री पुंडरीकस्वामी, चैत्यवंदन आदीश्वर जिनरायनो गणधर गुणवंत; प्रगट नाम पुंडरीक जास, महीमाहे महंत... पंच कोडी साथे मुणींद, अणसण तिहां कीध; शुक्लध्यान ध्याता अमूल, केवल वर लीध. चैत्री पूनमने दिने ए, पाम्या पद महानंद; ते दिनथी पुंडरीकगिरि, नाम दान सुखकंद. नवपद चैत्यवंदन श्री सिद्धचक्र आराधीये, आसो चैतर मास. नव दिन नव आंबिल करी, कीजे ओली खास. . ........१ केशर चंदन घसी घणा, कस्तुरी बरास. जुगते जिनवर पूजिये, जिम मयणा श्रीपाल. पूजा अष्ट प्रकारनी, देव-वंदन त्रण काल. मंत्र जपो त्रण कालने, गुणणुं दोय हजार... ५९ For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कष्ट टल्युं उंबर तणुं, जपतां नवपद ध्यान. श्री श्रीपाल नरिंद थया, वाध्यो बमणो वान. सातसो कोढी सुख लह्या, पाम्या निज आवास. पुण्ये मुक्ति-वधू वर्या, पाम्या लील विलास. नवपद चैत्यवंदन जो धुरि सिरि अरिहंत-मूल-दृढ-पीठ-पइट्ठिओ, सिद्ध-सूरि-उवज्झाय-साहु चिहुं पास गरिट्ठिओ. दंसण-नाण-चरित्त-तवहि पडिसाहा-सुन्दरो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ४ ५ १ तत्तक्खर-सरवग्ग-लद्धि-गुरु-पय-दल-दुम्बरो. दिसिवाल-जक्ख-जक्खिणी - पमुह - सुर- कुसुमेहिं अलंकिओ, सो सिद्ध-चक्क - गुरु कप्पतरू अम्ह मण-वंछिय-फल-दिओ. ३ नवपद चैत्यवंदन श्री सिद्धचक्र महा मंत्रराज, पूजा परसिद्ध; जास नमनथी संपजे, संपूर्ण सिद्ध.. अरिहंतादिक नवपद, नित्य नवनिधि दाता; ए संसार असार, सार होए पार विख्याता.. अमलाचल पद संपजे, पूरे मनना कोड; मोहन कहे विधियुत करो, जिम होय भवनो छोड. ६० २ १ ३ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीज तिथि चैत्यवंदन दुविध बंधने टालीए, जे वली राग ने द्वेष; आर्त रौद्र दोय अशुभ ध्यान, नवि करो लवलेश. ......... बीज दिने वली बोधि बीज, चित ठाणे वावो; जेम दुःख दुर्गति नवि लहो, जगमां जश चावो.. ........ भावो रूडी भावना ए, वाधो शुभ गुणठाण; ज्ञान विमल तप तेज थी, होय कोडी कल्याण. बीज तिथि, चैत्यवंदन दुविध धर्म जेणे उपदिश्यो, चोथा अभिनंदन; बीजे जन्म्या ते प्रभु, भवदुःख निकंदन. दुविध ध्यान तमे परिहरो, आदरो दोय ध्यान; एम प्रकाश्युं सुमति जिने, ते चवीया बीज दिन. ........२ दोय बंधन राग द्वेष, तेहने भवि तजीए; मुज परे शीतल जिन कहे, बीज दिन शिव भजीए. .........३ जीवाजीव पदार्थहैं, करो नाण सुजाण; बीज दिने वासुपूज्य परे, लहो केवल नाण..................... निश्चय ने व्यवहार दोय, एकांते न ग्रहीए; अरजिन बीज दिने चवी, एम जन आगल कहीए. ........५ سه هم ६१ For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ........ वर्तमान चोवीशीए, एम जिन कल्याण; बीज दिन केइ पामीया, प्रभु नाण निरवाण... इम अनंत चोवीशीए, हुवा बहु कल्याण; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुखठाण.. पंचमी तिथि- चैत्यवंदन श्यामल वान सोहामणु, श्री नेमि जिनेश्वर; समवसरण बेठा कहे, उपदेश सोहंकर.. पंचमी तप आराधतां, लहे पंचम नाण; पांच वरस पंच मासनो, ए छे तप परिमाण..... जिम वरदत्त गुणमंजरी ए, आराध्यो तप एह; ज्ञान विमल गुरु एम कहे, धन धन जगमां तेह. ___ पंचमी तिथि- चैत्यवंदन त्रिगडे बेठा वीर जिन, भाखे भविजन आगे; त्रिकरण| त्रिहुं लोक जन, निसुणो मन रागे. आराधो भली भातसें, पंचमी अजुवाली; ज्ञान आराधन कारणे, एही ज तिथि निहाली. ज्ञान विना पशु सारिखा, जाणो एणे संसार; ज्ञान आराधनथी लहे, शिवपद सुख श्रीकार. ........३ .........१ ६२ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........४ ........७ ज्ञान रहित किरिया कही, काश कुसुम उपमान; लोकालोक प्रकाशकर, ज्ञान एक प्रधान. ज्ञानी श्वासो-श्वासमां, करे कर्मनो छेह; पूर्व कोडी वरसां लगे, अज्ञानी करे तेह.. देश आराधक क्रिया कही, सर्व आराधक ज्ञान; ज्ञान तणो महिमा घणो, अंग पांचमे भगवान. पंच मास लघु पंचमी, जावज्जीव उत्कृष्टि; पंच वरस पंच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि. एकावन ही पंचनो ए, काउस्सग्ग लोगस्स केरो; उजमणुं करो भावशू, टालो भव फेरो. एणी पेरे पंचमी आराधीए, आणी भाव अपार; वरदत्त गुणमंजरी परे, रंग विजय लहो सार. अष्टमी तिथि- चैत्यवंदन महा शुदि आठम दिने, विजया सुत जायो; तेम फागण सुदि आठमे, संभव चवी आयो. चैतर वदनी आठमे, जन्म्या ऋषभ जिणंद; दीक्षा पण ए दिन लही, हुआ प्रथम मुनिचन्द. .. .. .......... ६३ For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........३ ........६ माधव शुदि आठम दिने, आठ कर्म कर्यां दूर; अभिनंदन चोथा प्रभु, पाम्या सुख भरपूर. एही ज आठम ऊजली, जन्म्या सुमति जिणंद; आठ जाति कलशे करी, नवरावे सुर इंद. .... जन्म्या जेठ वदि आठमे, मुनिसुव्रत स्वामी; नेम अषाड शुदि आठमे, अष्टमी गति पामी. श्रावण वदनी आठमे, नमि जन्म्या जग भाण; तेम श्रावण शुदि आठमे, पासजीनुं निर्वाण. भादरवा वदी आठम दिने, चवीया स्वामी सुपास; जिन उत्तम पद पद्मने, सेव्याथी शिववास. एकादशी तिथि, चैत्यवंदन अंग अग्यार आराधिये, एकादशी दिवसे. एकादश प्रतिमा वहो, समकित गुण विकसे. एकादशी दिवसे थया, दीक्षाने नाण. जन्म लहीया केइ जिनवरा, आगम परमाण..... ज्ञान विमल गुण वाधताए, सकल कला भंडार.. अगियारस आराधतां, लहिये भवजल पार. .........१ ....... ६४ For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ एकादशी तिथिy चैत्यवंदन शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो; संघ चतुर्विध स्थापवा, महासेन वन आयो. माधव सित एकादशी, सोमिल द्विज यज्ञ; इंद्रभूति आदे मल्या, एकादश विज्ञ. एकादशसें चउगुणो, तेहनो परिवार; वेद अरथ अवलो करे, मन अभिमान अपार.. जीवादिक संशय हरी, एकादश गणधार; वीरे स्थाप्या वंदीए, जिन शासन जयकार...... मल्ली जन्म अर मल्ली, पास वर चरण विलासी; ऋषभ अजित सुमति नमि, मल्ली घनघाती विनाशी.........५ पद्मप्रभ शिववास पास, भव भवना तोडी; एकादशी दिन आपणी, ऋद्धि सघली जोडी. ............६ दश क्षेत्रे त्रिहुं कालनां, त्रणसें कल्याण; वरस अग्यार एकादशी, आराधो वर नाण. ..... अगीयार अंग लखावीये, एकादश पाठां; पुंजणी ठवणी वीटणी, मसी कागल ने काठां. अगीयार अव्रत छांडवा ए, वहो पडिमा अगियार; खिमा विजय जिन शासने, सफल करो अवतार. ६५ ........ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एकादशी तिथिनुं चैत्यवंदन. आज ओच्छव थयो मुज घरे, एकादशी मंडाण; श्री जिननां त्रणसे भलां, कल्याणक वर जाण. सुरतरु सुरमणि सुरघट, कल्पवेली फली म्हारे; एकादशी आराधतां, बोधि बीज चित्त ठारे. नेमि जिनेश्वर पूजतां ए, पहोंचे मनना कोड; ज्ञान विमल गुणथी लहो, प्रणमो बे करजोड. पर्युषणनुं चैत्यवंदन पर्व पर्युषण गुण नीलो, नव कल्प विहार; चार मासान्तर थिर रहे, एहीज अर्थ उदार. अषाढ शुदी चउदस थकी, संवत्सरी पचास; मुनिवर दिन सित्तेरमें, पडिक्कमतां चौमास. श्रावक पण समता धरे, करे गुरुना बहुमान; कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभले थई एक तान. जिनवर चैत्य जुहारीये, गुरु भक्ति विशाल; प्राये अष्ट भवांतरे, वरीये शिव वरमाल. दर्पणथी निज रूपनो, जुए सुदृष्टि रूप; दर्पण अनुभव अर्पणो, ज्ञान रमण मुनि भूप.. ६६ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ २ ३ १ ३ ४ .५ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम स्वरूप विलोकतां ए, प्रगट्यो मित्र स्वभाव; राय उदायी खामणां, पर्व पर्युषण दाव..... ........६ नव वखाण पूजी सुणो, शुक्ल चतुर्थी सीमा; पंचमी दिन वांचे सुणे, होय विराधक नियमा...................७ ए नहीं पर्व पंचमी, सर्व समाणी चोथे; भवभीरू मुनि मानशे, भाख्युं अरिहा नाथे. श्रुत केवली वयणा सुणी, लही मानव अवतार; श्री शुभ वीर ने शासने, पाम्या जय जय कार.. पर्युषण पर्व- चैत्यवंदन वडा कल्प पूरव दिने, घरे कल्पने लावो. रात्रि जागरण प्रमुख करी, शासन सोहावो. हय गय शणगारी कुमर, लावो गुरु पासे. वडा कल्प दिन सांभलो, वीर चरित उल्लासे. छठ द्वादश तप कीजिये, धरीए शुभ परिणाम. साधर्मी वत्सल प्रभावना, पूजा अभिराम. जिन उत्तम गौतम प्रत्ये ए, कहे जो एकवीस वार. गुरु मुख पद्मे भावशू, सुणतां पामे पार. ........४ ६७ For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... ....... पर्युषण पर्व, चैत्यवंदन कल्प-तरुवर कल्पसूत्र, पूरे मन वांछित; कल्पधरे धुरथी सुणो, श्री महावीर चरित... क्षत्रियकुंडे नरपति, सिद्धारथ राय; राणी त्रिशला तणी कूखे, कंचन सम काय...... पुष्पोत्तर वरथी चव्या ए, ऊपज्या पुण्य पवित्र; चतुरा चौद सुपन लहे, ऊपजे विनय विनीत.... दीपावली पर्व- चैत्यवंदन श्री सिद्धारथ नृप कुल तिलो, त्रिशला जस मात. हरि लंछन तनु सात हाथ, महिमा विख्यात. ........१ त्रीस वरस गृहवास छंडी, लीए संयम भार. बार वरस छद्मस्थ मान, लही केवल सार. ........ त्रीस वरस एम सवि मली ए, बहोंतेर आयु प्रमाण. दीवाली दिन शिव गया, कहे नय तेह गुण खाण.... .........३ .........२ ६८ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्तवन विभाग श्री ऋषभदेव स्तवन माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति. मारुं मन लोभाणुंजी, के मारुं चित्त चोराणुं जी. करुणा-नागर करुणा-सागर, काया- कंचन-वान. धोरी-लंछन पाउले कांई, धनुष पांचसें मान. त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदा बार. योजन गामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार. ऊर्वशी रूडी अपसराने, रामा छे मनरंग. पाये नेपूर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ. ६९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only माता. १ . माता. २ तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुं जग-तारणहार. तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अडवडिया आधार... माता. ४ तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव. सुर-नर- किन्नर - वासुदेवा, करता तुज पद सेव. श्री सिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद . कीर्ति करे माणेक मुनि ताहरी, टालो भव भय फंद.. माता.६ माता . ३ माता.५ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री ऋषभदेव स्तवन प्रथम जिनेसर प्रणमीए, जास सुगन्धी रे काय. कल्पवृक्ष परे, तास इन्द्राणी नयन जे, भृंग परे लपटाय प्रथम. १ रोग-उरग तुज नवि नडे, अमृत जेह आस्वाद, तेहथी प्रतिहत तेह, मानुं कोइ नवि करे, जगमां तुमशुं रे वाद.... प्रथम. २ वगर धोइ तुज निरमली, काया कंचन वान. नहीं प्रस्वेद लगार, तारे तुं तेहने, जेह धरे ताहरु ध्यान... प्रथम. ३ राग गयो तुज मन थकी, तेहमां चित्र न कोय. रुधिर आमिषथी, राग गयो तुज जन्मथी, दूध-सहोदर होय ..... श्वासोच्छ्वास कमल समो, तुज लोकोत्तर वात. देखे न आहार निहार, चरम चक्षु धणी, एहवा तुज अवदात. चार अतिशय मूलथी, ओगणीश देवना कीध. कर्म खप्याथी अगियार, चोत्रीश एम अतिशया, समवायांगे प्रसिद्ध. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० For Private And Personal Use Only प्रथम ४ प्रथम. ५ प्रथम ६ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग. पद्म विजय कहे, एह समय प्रभु पालजो जेम थाऊं अक्षय अभंग. प्रथम.७ श्री आदिनाथ जिन स्तवन आदिजिनं वन्दे गुणसदनं सदनन्तामलबोधं रे; बोधकतागुणविस्तृतकीर्ति कीर्तित-प्रथमविरोधं रे .... आदि० १ रोध-रहित विस्फुरदुपयोगं योगं दधतमभङ्गं रे; भङ्गं नय-व्रजपेशल-वाचं वाचंयमसुखसङ्गं रे..... आदि० २ संगत-पद-शुचि-वचन-तरङ्ग रगं जगति ददानं रे; दान-सुर-द्रुम-मंजुल-हृदयं हृदयंगमगुणभानं रे ...... आदि० ३ भाऽऽनन्दित-सुरवर-पुन्नागं नागर-मानस-हंसं रे; हंसगतिं पंचम-गति-वासं वासवविहिताशंसंरे......... आदि० ४ शंसंतं नय-वचनमनवमं नव-मङ्गल-दातारं रे; तार-स्वरमघ-घन-पवमानं मान-सुभट जेतारं रे ..... आदि० ५ (वसन्ततिलका छन्द) इत्थं स्तुतः प्रथमतीर्थपतिः प्रमोदाच्छ्रीमद्यशोविजयवाचकपुङ्गवेन; ७१ For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री पुण्डरीक-गिरिराज-विराजमानो, मानोन्मुखानि वितनोतु सतां सुखानि. श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभजिनेश्वर! वंदना, होशो वारंवार; पुरुषोत्तम भगवान निराकार संत छो, गुणपर्यायआधार. उत्पत्ति-व्यय ध्रुवता, एक समयमांही जोय; पर्यायार्थिकनयथी व्यय-उत्पत्ति छे, द्रव्यथकी ध्रुव होय.ऋ० १ सत् करतां सार्मथ्यना, होय पर्याय अनन्त; अगुरूलघुनी शक्ति ते तेहमां जाणीए, अनन्त शक्ति स्वतंत्र. २ परमभाव ग्राहक प्रभु, तेम सामान्य विशेष; ज्ञेय अनन्तनुं तोल करे प्रभु! ताहरो, क्षायिक एक प्रदेश. ३ स्थिरता क्षायिकभावथी, मुखथी कही नहि जाय; अनन्तगुण निज कार्य करे लही शक्तिने, उत्पत्ति-व्यय पाय.४ गुण अनन्तनी ध्रुवता, द्रव्यपणे छे अनादि; गुणनी शुद्धि अपेक्षी पर्याये करी,भंगनी स्थिति छ सादी.. ५ सादि अनंति मुक्तिमां, सुख विलसो छो अनंत; सुख ज्ञेयादिक ज्ञानमां ज्ञाता जगगुरु, ज्ञान अनंत वहंत. ६ रागद्वेष-युगल हणी, थईया जग महादेव; बुद्धिसागर अवसर पामी भक्तिथी, पामे अमृतमेव...... ऋ० ७ ७२ For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ऋषभदेव स्तवन जग जीवन जग वालहो, मरुदेवीनो नंद लाल रे; जग. २ मुख दीठे सुख ऊपजे, दरिशन अतिहि आनंद लाल रे. जग. १ आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशी सम भाल लाल रे; वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिहि रसाल लाल रे.. लक्षण अंगे विराजतां, अडहिय सहस उदार लाल रे; रेखा कर चरणादिके, अभ्यन्तर नहि पार लाल रे..... जग.३ इन्द्र चन्द्र रवि गिरितणा, गुण लई घडियुं अंग लाल रे; भाग्य किहां थकी आवियुं ?, अचरिज एह उतंग लाल रे. गुण सघला अंगीकर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे; वाचक यश विजये थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे. श्री ऋषभदेव स्तवन जग . ४ जग. ५ . तुम.१ तुम दरसण भले पायो, प्रथम जिन तुम.; नाभि नरेसर नंदन निरुपम, माता मरुदेवा जायो. आज अमीरस जलधर वूठ्यो, मानुं गंगाजले नाह्यो. सुरतरु सुरमणि प्रमुख अनोपम, ते सवि आज में पायो. तुम . २ युगला धर्म निवारण तारण, जग जस मंडप छायो. प्रभु तुज शासन वासन समकित अंतर वैरी हठायो ..... .. तुम . ३ ७३ For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुगुरु कुदेव कुधर्म निवासे, मिथ्या-मतमें फसायो. में प्रभु आजथी निश्चय कीनो, सभी मिथ्यात्व गमायो..तुम.४ बेर बेर करूं विनति इतनी, तुम सेवा रस पायो. ज्ञान विमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो. तुम.५ श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभ देव हितकारी, जगत गुरु ऋषभ देव हितकारी. प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति व्रतधारी.... जगत.१ वरसी-दान देई तुम जग में, ईलति ईति निवारी. तैसी काही करतु नहि करुणा, साहिब बेर हमारी... जगत.२ मागत नहीं हम हाथी घोडे, धन कन कंचन नारी. दीओ मोहे चरण-कमलकी सेवा,याहि लागत मोहे प्यारी...जगत.३ भवलीला वासित सुर डारे, तुं पर सबहि उवारी. में मेरो मन निश्चय कीनो, तुम आणा शिर धारी... जगत.४. ऐसो साहिब नहि कोई जगमें, यासुं होय दिलदारी. दिल ही दलाल प्रेम के बिचें, तिहां हठ खेंचे गमारी.जगत.५. तुम हो साहिब मैं हूं बंदा, या मत दीओ विसारी. श्री नय विजय विबुध सेवक के,तुम हो परम उपकारी.जगत.६. ७४ For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे, ओर न चाहुं रे कन्त. रीझीयो साहेब संग न परिहरे रे, भांगे सादि-अनन्त.ऋषभ.१ प्रीत-सगाई रे जगमा सहु करे रे, प्रीत-सगाई न कोय. प्रीत-सगाई रे निरुपाधिक कही रे,सोपाधिक धन खोय.ऋषभ.२ कोई कंत कारण काष्ठ भक्षण करे रे, मिल| कन्तने धाय. ए मेलो नवि कहीए संभवे रे, मेलो ठाम न ठाय.....ऋषभ.३ कोई पति-रंजन अति घणुं तप करे रे, पति-रंजन तनु ताप. ए पति-रंजन में नवि चित धर्यु रे, रंजन धातु मिलाप. .... ऋषभ.४ कोई कहे लीला रे अलख-अलख तणी रे, लख पूरे मन आश. दोष-रहितने लीला नवि घटे रे, लीला दोष विलास. ......ऋषभ.५. चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल कह्यु रे, पूजा अखण्डित एह. कपट रहित थई आतम अरपणा रे,आनन्दघन पद रेह.ऋषभ.६ श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभ जिनराज मुज आज दिन अति भलो, गुण नीलो जेणे तुज नयण दीठो; दुःख टल्यां सुख मल्यां स्वामी तुज निरखतां, सुकृत संचय हुओ पाप नीठो..... .......... ऋषभ.१. ७५ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......... ऋषभ.२. ऋषभ.३. कल्पशाखी फल्यो कामघट मुज मल्यो, आंगणे अमीयनो मेह वूठो मुज महीराण महीभाण तुज दर्शने, क्षय गयो कुमति अंधार जूठो.. कवण नर कनक मणि छोडी तृण संग्रहे, कवण कुंजर तजी करह लेवे; कवण बेसे तजी कल्पतरु बाउले, तुज तजी अवर सुर कोण सेवे?. एक मुज टेक सुविवेक साहिब सदा, तुज विना देव दूजो न ईहुं; तुज वचन राग सुख सागरे झीलतो, कर्मभर भ्रम थकी हुं न बीहुं........ कोडी छे दास विभु! ताहरे भलभला, माहरे देव तुं एक प्यारो; पतित पावन समो जगत उद्धारकर, महेर करी मोहे भवजलधि तारो... मुक्तिथी अधिक तुज भक्ति मुज मन वसी, जेहशुं सबल प्रतिबंध लागो; ऋषभ.४. ऋषभ.५. ७६ For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभ.७. चमक पाषाण जिम लोहने खेंचशे, मुक्तिने सहज तुज भक्ति रागो. ऋषभ.६. धन्य! ते काय जेणे पाय तुज प्रणमिया, तुज थुणे जेह धन्य! धन्य! जीहा; धन्य ते हृदय जेणे तुज सदा समरतां, धन्य ते रात ने धन्य! दीहा.... गुण अनंता सदा तुज खजाने भर्या, एक गुण देत मुज शुं विमासो रयण एक देत शी हाण रयणायरे, लोकनी आपदा जेणे नासो. ... गंग सम रंग तुज कीर्ति कल्लोलिनी, रवि थकी अधिक तपतेज ताजो; नय विजय विबुध सेवक हुं आपनो, जस कहे अब मोहे भव निवाजो. ........... ऋषभ.९. श्री अजितनाथ स्तवन प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदशुं, प्रभु पाखे क्षण एके मन न सुहाय जो; ध्याननी ताली रे लागी नेहशुं, जलद घटा जिम शिव सुत वाहन दाय जो............ प्रीत.१. ऋषभ.८. ७७ For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रीत.२. नेह घेखें मन मारूं रे प्रभु अलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुज जो; मारे तो आधार रे साहिब रावलो, अंतरगतनी प्रभु आगल कहुं गुंज जो. ............. साहेब ते साचो रे जगमां जाणीए, सेवकनां जे सहजे सुधारे काज जो; एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमारुं तारण तरण जहाज जो.. ............... प्रीत.३. तारकता तुज मांहे रे श्रवणे सांभली, ते भणी हुं आव्यो छु दीनदयाल जो; तुज करुणानी लहेरे रे मुज कारज सरे, शुं घणुं कहीए जाण आगल कृपाल जो. ............ ... प्रीत.४. करुणा दृष्टि कीधी रे सेवक उपरे, भव भव भावट भांगी भक्ति प्रसंग जो; मन वांछित फलीयां रे तुज आलंबने, कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो. ___श्री अजितनाथ स्तवन अजितजिनेश्वर सेवनारे, करतां पाप पलाय; जिनवर सेवो. सेवो सेवोरे भविकजन! सेवो, ७८ प्रीत.५. For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु शिवदुखदायक मेवो, प्रभु सेवे सिद्धि सुहाय. ....जिनवर. मिथ्या-मोह निवारीने रे, क्षायिक-रत्न ग्रहाय; चारित्र-मोह हठावतारे, स्थिरता क्षायिक थाय... जिनवर० १ क्षपक-श्रेणि आरोहीने रे, शुक्ल-ध्यानप्रयोग; ज्ञानावरणीयादिक हणीरे, क्षायिक नवगुण-भोग. जिनवर० २ अष्टकर्मना नाशथीरे, गुण-अष्टक प्रगटाय; एक समय समश्रेणीए रे, मुक्तिस्थान सुहाय...... जिनवर० ३ नात्यंताभाव मुक्तिनोरे, जडिममयी नहि खास; व्योमपरे नहि व्यापीनीरे, नहि व्यावृत्ति-विलास... जिनवर० ४ सादी अनंत स्थितिथीरे, सिद्ध बुद्ध भगवंत; झळहळ ज्योति ज्यां झगमगेरे,ज्ञेयतणो नहि अंत. जिनवर०५ परज्ञेय ध्रुवता त्रिकालमारे, उत्पत्ति-व्ययसाथ; निजज्ञेय ध्रुवता अनन्तनोरे, पर्यायसह शिवनाथ. जिनवर० ६ पर जाणे परमां न परिणमेरे, अशुद्धभाव व्यतीत; बुद्धिसागर ध्यानथीरे, थावे ध्यानी अजित......... जिनवर० ७ ७९ For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री अजितनाथ - तारंगातीर्थ स्तवन (धनाश्री) तारंगा तीर्थ मजानुंरे, आनंद के निर्धार. अजीतनाथ महाराजनुंरे, जिन मन्दिर जयकार; अजीतनाथ प्रभु भेटीयारे, सुख संपत्ति दातार. कुमारपाळे करावियुंरे, पाछळ जिर्णोद्धार; संवत् सोळनी सालमांरे, शोभे सुन्दराकार. सिद्धिशिलानी उपरेरे, बे जिन देरी सार; कोटि शिलापर देरी बेरे, श्वेतांबर मनोहर. धर्म पापनी बारीएरे, एक देरी सुखकार; जिनप्रतिमाओ जिन समीरे, भेटी भाव विशाल.. कुदरती गुफाओ भलीरे, तीर्थ पवित्र विचार; कोटि मनुष्यो सिद्धियारे, वन्दु वार हजार. तारंगा मन्दिरनीरे, ऊंचाई श्रीकार; देखी शीर्ष धुणावतांरे, यात्राळु नरनार. गुर्जरत्रा पावन करूंरे, तीर्थ वडुं गुणकार; बुद्धिसागर तीर्थनीरे, यात्रा जय जयकार. ८० For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .... तारंगा० . तारंगा ० १ . तारंगा० २ . तारंगा० ३ .... तारंगा० ४ . तारंगा० ५ . तारंगा० ६ . तारंगा० ७ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री संभवनाथ स्तवन संभवजिन! तारशोरे, तारशो त्रिभुवननाथ! संभवजिन! तारशोरे. निमित्तना पुष्टालंबनेरे, साध्यनी सिद्धि कराय; उपादाननी शुद्धतारे, निमित्तविना नहि थाय......... संभव० १ द्रव्य क्षेत्र काल भावथीरे, निमित्तना बहु भेद; ज्ञान दर्शन चारित्रनारे, निमित्त टाळे खेद........... संभव० २ शुद्धदेवगुरु हेतु छेरे, उपादान करे शुद्धि; उपादान अभिन्न छेरे, कार्यथी जाणो बुद्ध. ........... संभव० ३ कार्य द्रव्यथी भिन्न छेरे, निमित् हेतु व्यवहार; शुद्धादिक षट् भेद छेरे, व्यवहार नयना धार. ...... संभव० ४ भिन्न निमित्त पण कार्यमांरे, उपादान करे पुष्टि; निमित्तवण उपादानथीरे, थाय न साध्यनी सृष्टि... संभव० ५ पुष्टालंबन जिनविभुरे, आदर्यो मन धरी भाव; उपादाननी शुद्धिमारे, बनशे शुद्ध बनाव............... संभव० ६ त्रिकरणयोगथी आदर्योरे, मन धरी साध्यनी दृष्टि; बुद्धिसागर सुख लहेरे, पामी अनुभव-सृष्टि. ........ संभव० ७ ८१ For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री संभवनाथ स्तवन संभव जिनवर विनति, अवधारो गुणज्ञाता रे; खामी नहीं मुज खिजमते, कदीय होशो फळदाता रे. संभव०१ कर जोडी ऊभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे; ज मनमां आणो नहि, तो शुं कहीए छानो रे.. खोट खजाने को नहीं, दीजीए वांछित दानो रे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे..... संभव० ३ काळ लब्धि मुज मति गणो, भाव लब्धि तुम हाथे रे; लडथडतुं पण गजबच्चुं, गाजे गयवर साथे रे. संभव० ४ देशो तो तुम ही भलुं, बीजा तो नवि जाचुं रे; वाचक यश कहे सांईशुं, फळशे ए मुज साचुं रे.... संभव० ५ श्री अभिनंदन स्तवन For Private And Personal Use Only संभव० २ अभिनंदन जिन दरिसण तरसिए, दरिसण दुर्लभ देव. मत मत भेदे रे जो जई पूछिए, सहु थापे अहमेव ... अभि.१. सामान्ये करी दरिसण दोहिलुं, निर्णय सकल विशेष. मदमें घेर्यो रे अन्धो किम करे, रवि-शशि-रूप विलेख...... अभि. २. हेतु विवादे हो चित्त धरी जोइए, अति दुरगम नयवाद. आगम वादे हो गुरुगम को नहीं, ए सबलो विखवाद. अभि.३. ८२ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घाति-डुंगर आडा अति घणा, तुज दरिसण जगनाथ. धीठाई करी मारग संचरूं, सेंगुं कोई न साथ.......... अभि.४ दरिसण दरिसण रटतो जो फिरुं, तो रण-रोझ समान. जेहने पिपासा हो अमृत-पाननी, किम भांजे विषपान. अभि.५ तरस न आवे हो मरण-जीवन तणो,सीझे जो दरिसण काज. दरिसण दुर्लभ सुलभ कृपा थकी,आनन्दघन महाराज.अभि.६ श्री अभिनंदनस्वामी हमारा अभिनंदन स्वामि हमारा, प्रभु भव दुःख भंजनहारा; ये दुनिया दु:ख की धारा, प्रभु इनसे करो निस्तारा, .अभि.१ हुं कुमति कुटिल भरमायो, दुरनीति करी दुःख पायो; अब शरण लीयो है तारो, मुजे भवजल पार उतारो, अभि.२ प्रभु शीख हैये नवि धारी, दुर्गतिमां दुःख लीयो भारी; इन कर्मो की गति न्यारी, करे बेर बेर खुवारी... ..... अभि.३ तुमे करुणावंत कहावो, जगतारक बिरुद धरावो, मेरी अरजीनो एक दावो, इन दुःख से क्युं न छुडावो..अभि.४ मे विरथा जनम गुमायो, नही तन धन स्नेह निवार्यो; अब पारस प्रसंग पामी, नही वीरविजय कुं खामी..... अभि.५ ८३ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अभिनंदन स्तवन अभिनंदनजिनरूपने, ध्यानमां स्मरणथी लावू रे; ध्यानमां लीनतायोगथी, सुख अनन्त घट पावं रे.... अभि० १ मन-वचन-कायाना योगनी, स्थिरता जेह प्रमाण रे; तद्नुगत वीर्यता उल्लसे, भाव क्षयोपशम सुखखाणरे.अभि० २ असंख्यप्रदेशमयी व्यक्तिमां, ध्यानथी एकता थायरे; पंडित-वीर्य त्यां संपजे, उज्जवल अध्यवसायरे. ..... अभि० ३ क्षणक्षण उज्जवल ध्यानमां, प्रगटतो सहज आनन्दरे; बाह्य जड विषयना सुखनो, वेगथी नाशतो फन्दरे. . अभि० ४ अन्तरशुद्ध परिणतिथकी, भावथी होय निज मुक्ति रे; शुद्धनयस्थापना सहजथी, प्रगटतो ए तत्त्वनी युक्ति रे.अभि०५ क्षयोपशम ज्ञान-वीर्यथी, क्षायिक धर्म ग्रहायरे; निर्विकल्प उपयोगमां, श्रुतज्ञान एक स्थिर थायरे... अभि० ६ भावश्रुतज्ञान आलंबने, जीव ते जिनरूप थायरे; बुद्धिसागर शिवसंपदा, मंगलश्रेणि पमायरे............ अभि० ७ श्री सुमतिनाथ स्तवन सुमतिजिनेश्वर शुद्धता, बुद्धता परम स्वभावरे; अस्तिता नास्तिता एकता, ज्ञातृता नहि परभावरे. . सुमति० १ ८४ For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिन्न अभिन्नता नित्यता, तेम अनित्य पर्यायरे; एक समयमांही संपजे, पर्याय उपजे विलायरे. .... सुमति० २ अगुरूलघु पर्यायनो, शक्ति अनन्ती सदायरे; परिणमे असंख्यप्रदेशमां कारक षट् उपजायरे...... सुमति० ३ आदि अनादि षट्कारको, व्यक्तिपणे एकेक प्रदेश रे; अनादि अनन्त स्थिति शक्तिथी, कारक षट लहो बेशरे..... सुमति० ४ एक अनेकता वस्तुमां, नित्य अनित्यता धाररे; समय सापेक्ष विचारतां, होय अनेकान्त विस्ताररे. सुमति० ५ सदसत् कथ्य अकथ्य छे, जिनवर धर्म अनन्तरे; ज्ञानमां ज्ञेयनी भासना, जाणे एक समय भदन्तरे. सुमति०६ सम्यग्ज्ञानप्रभावथी, प्रभु! तुज रूप जणायरे; चार प्रमाण ने भंगथी, धर्म अनेक परखायरे........ सुमति० ७ मन-वच-कायअतीत तुं, आदर्यो योगथी साररे; तुज मुज एकता संपजे, बुद्धिसागर निर्धार रे...... सुमति० ८ श्री सुमतिनाथ स्तवन सुमतिचरणकज आतम अरपणा, दरपण जेम अविकार-सुज्ञानी! मतितरपण बहुसंमत जाणीए, परिसरपण सुविचार .... सु० १ ८५ For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिविध सकल तनुधरगत आतमा, बहिरातम धुरि भेद बीजो अंतरआतम, तीसरो - परमातम, अविच्छेद आतमबुद्धे कायादिक ग्रह्यो, बहिरातम अघरूप कायादिकनो हो साखीधर रह्यो, अंतर आतमरूप. For Private And Personal Use Only ...... सु० सु० २ सु० सु० ३ ज्ञानानंदे हो पूरण पावनो. वरजित सकल उपाधि अतींद्रिय गुणगणमणिआगरु, इम परमातम साध बहिरातम तजी अंतर आतम रूप थई थिरभाव परमातमनुं हो आतम भाववुं, आतम अरपण दाव ....... आतम अरपण वस्तु विचारतां, भरम टळे मतिदोष परम पदारथ संपत्ति संपजे, आनंदघन रस पोष श्री सुमतिनाथ स्तवन सुमतिनाथ गुणशुं मिलजी, वाधे मुज मन प्रीति, तेल बिंदु जिम विस्तरेजी, जलमांहे भली रीति, सोभागी जिन शुं लाग्यो अविहड रंग सज्जनशुं जे प्रीतडीजी, छानी ते न रखाय; परिमल कस्तुरी तणोजी, महीमांहे महकाय. ...... आंगळीए नवि मेरु ढंकाये, छाबडीए रवि तेज; अंजलीमां जिम गंग न माये, मुज मन तिम प्रभु हेज.. ८६ सु सु० ४ सु० सु० ५ सु सु० ६ १ . सोभागी० २ . सोभागी०३ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हुओ छीपे नहीं अधर अरुण जिम, खातां पान सुरंग; पीवत भर भर प्रभु गुण प्याला, तिम मुज प्रेम अभंग....... ढांकी ईक्षु पराळशुंजी, न रहे लही विस्तार; 'वाचक यश' कहे प्रभु तणोजी, तिम मुज प्रेम प्रकार. श्री पद्मप्रभ स्तवन .... For Private And Personal Use Only • सोभागी ०४ . सोभागी० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म. २. पद्म प्रभु प्राण से प्यारा, छुडावो कर्म की धारा. कर्म-फंद तोडवा धोरी, प्रभुजी से अरज है मोरी. लघु वय एक थे जीया, मुक्ति में वास तुम किया. न जानी पीड थे मोरी, प्रभु अब खेंच ले दोरी........ विषय सुख मानी मोरे मन में, गयो सब काल गफलत में. नरक दु:ख वेदना भारी, निकलवा ना रही बारी..... पद्म. ३. परवश दीनता कीनी, पाप की पोट सिर लीनी. भक्ति नहीं जाणी तुम केरी, रह्यो निश दिन दुःख घेरी. पद्म. ४. इणविध विनती मोरी, करूं में दोय कर जोरी. आतम आनंद मुज दीजो, वीर नुं काम सब कीजो... श्री पद्मप्रभ स्तवन . पद्म.५. पद्मप्रभु अलख निरंजन, सिद्धना आठ गुणधारीरे; साकार उपयोगे चेतना, निराकार जयकारीरे. ८७ .... ० ५ . पद्म.१. .पद्म० १ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org . पद्म० २ अजर अमर अगोचर विभु, नाम न रूप न जातिरे; जगगुरु जय श्रीचिंतामणि, त्रणभुवनमांही ख्यातिरे.. उपमातीत परमातमा, अनुभवविण न जणायरे; दिशि देखाडी आगम रहे, अनुभवे प्रभु परखायरे.... पद्म० ३ सद्गुरु-तीर्थउपासना, स्याद्वाद सूत्रनो बोधरे; परंपर गुरुगम जोडतां, करे भवी जिनवरशोधरे. ज्ञानना मानमां ध्यान छे, ध्यानथी होय समाधिरे; परम प्रभु एक तानमां, भेटतां जाय उपाधिरे. अनुभव-अमृत स्वादतां, चित्त अन्यत्र न जायरे; चकोर जेम चंद्र तेम राचतुं परम प्रभुरूपमांह्यरे. ... पद्म० ६ सुख अनंतनी राशिमां, जीवनमुक्ति पद पायरे; बाह्यनां सुख रुचे नहि, निश्चयसुख निजमांह्यरे..... पद्म० ७ परपरिणतिरंग परिहरी, शुद्ध परिणतिमांही रंगरे; बुद्धिसागर जिनदर्शन, देखवा प्रेम अभंगरे. ८८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . पद्म० ४ .... . पद्म० ५ श्री पद्मप्रभ स्तवन पद्मप्रभु जिन! तुज मुज आंतरुं रे, किम भाजे भगवंत ! ? कर्मविपाके कारण जोईने रे, कोई कहे मतिमंत . . पद्म० १ ..... पद्म० ८ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयइ ठिई अणुभाग प्रदेशथीरे, मूल उत्तर बहु भेद; घाती-अघाती हो बंधुदय उदीरणा रे, सत्ता कर्म विच्छेद .... पद्म० २ कनकोपलवत् पयडि-पुरुषतणीरे, जोडी अनादि स्वभाव; अन्य संयोगी हो जिहां लगे आतमारे,संसारी कहेवाय .....पद्म० ३ कारणजोगे हो बांधे बंधनेरे, कारण मुगति मुकाय; । आश्रव संवर नाम अनुक्रमेरे, हेय उपादेय सुणाय ...पद्म० ४ युंजनकरणे हो अंतर तुज पड्यो रे, गुणकरणे करी भंग; ग्रंथयुक्ते करी पंडित जन कह्यो रे, अंतरभंग सुअंग पद्म० ५ तुज मुज अंतर अंतर भांजशे रे, वाजशे मंगल तूर; जीवसरोवर अतिशय वाधशेरे, आनंदघन रसपूर ....पद्म० ६ श्री सुपार्श्वनाथ स्तवन सुपार्श्वप्रभु! जिनराज! कृपाळु तारशो, विनतडी मुज प्रेम धरीने स्वीकारशो; राग-द्वेष अन्याय नृपति जोर टाळशो, शद्धरमणता सन्मुख दृष्टि वाळशो. विषयवासनापासथी प्रभुजी! छोडावजो, परमदयालु! देव! दया दिल लावजो; अनुभव-अन्तरदृष्टिनी सृष्टि जगावजो, परमानन्दनुं पात्र चेतन मुज थावजो. For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केवलज्ञाननी ज्योतिमां ज्ञेय अभिन्न छ, परद्रव्यादिक ज्ञेयथकी वळी भिन्न छे; ज्ञेयाकारे ज्ञान परिणमे जाणजो, भिन्नाभिन्नस्वरूप अनेकांत आणजो.... ज्ञेयापेक्षे ज्ञान अनन्तुं जिन कहे, ज्ञेयनी पासे ज्ञान गयावण सहु लहे; दर्पण क्यांई न जाय दर्पणमां समाय छे, ज्ञेयाकारी भावो ए दृष्टांत न्याय छे. दूरवर्ती जे ज्ञेय ज्ञानमांही भासतो, ज्ञान अचिन्त्यस्वभाव हृदयमा आवतो; ज्ञेयविना सहु ज्ञाननी शून्यता जाणीए, षड् द्रव्यो पर्याय अनन्त मन आणीए. अस्तिविना न निषेध घटे कोई द्रव्यनो, द्वि वण नहि अद्वैत निषेध केम द्रव्यनो, द्वैतनुं ज्ञान थयावण अद्वैत शुं कहो, भासे ज्ञानमां द्वैत सत्यभाव सद्हो. द्रव्य अने पर्यायथी ज्ञेय अनन्तता, वस्तुधर्म स्याद्वाद त्यां एकानेकता; ९० For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्रुवता ज्ञेयना द्रव्यपणे नित्यता खरी, उत्पत्ति-व्यय ज्ञेयअनित्यता अनुसरी. जीवद्रव्य एकव्यक्ति अनादि-अनंत छे, गुण-पर्यवआधार चेतनजी सन्त छे; बुद्धिसागर जिनवरवाणी सद्हे, समकित-श्रद्धायोगे अपेक्षा सहु लहे.... श्री सुपार्श्वनाथ स्तवन श्री सुपास जिन वंदीए, सुख संपत्तिनो हेतु-ललना, शांत सुधारस जलनिधि, भवसागरमां हे सेतु-ललना. श्री० १ सात महाभय टाळतो, सप्तम जिनवर देव ललना, सावधान मनसा करी, धारो जिनपद सेव ललना...... श्री० २ शिवशंकर जगदीश्वरु, चिदानंद भगवान ललना, जिन अरिहा तीर्थंकरु, ज्योति स्वरूप असमान ललना.श्री० ३ अलख निरंजन वच्छलु, सकळ जंतु विसराम ललना, अभयदान दाता सदा, पूरण आतमराम ललना........ श्री० ४ वीतराग मद कल्पना, रति अरति भय सोग ललना, निद्रा-तंद्रा दुरूदशा, रहित अबाधित योग ललना..... श्री० ५ २१ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर परधान ललना, परम पदारथ परमेष्ठी, परमदेव परमान्न ललना....... श्री० ६ विधि विरंचि विश्वंभरु, ऋषीकेश जगनाथ ललना, अधहर अधमोचन धणी, मुक्ति परमपद साथ ललना. श्री० ७ एम अनेक अभिधा धरे, अनुभव गम्य विचार ललना, जेह जाणे तेहने करे, 'आनंदघन' अवतार ललना.... श्री० ८ श्री सुपार्श्वनाथ स्तवन अहा सुंदर शी छबी तारी रे, श्री सुपार्श्व जिणंद मनोहारी... १ तुज चोविस अतिशय छाजे रे, गुण पांत्रीशवाणी ए गाजे रे, तुज अद्भुत कांति सारी रे... .........२ प्रभु आंखडी कामणगारी, अति हर्षने उपजावनारी ___संसारने छेदनकारी रे... ...................३ प्रभु मायामां मनडु लाग्युं, मारुं भवनुं दुखडु भांग्युं रे, हुं भक्ति करुं नित्य ताहरी रे..............४ हुं विषय रसमांही राच्यो, आठे मदमांही माच्यो रे प्रभु आव्यो शरण ल्यो उगारी रे..........५ तुजपद कज सेवा पामी, विजय गुलाब सवि दुख वामी रे, मणीविजयने आनंद भारी रे... ... ..........६ ९२ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री चन्द्रप्रभस्वामी स्तवन देखण दे रे सखि मुने देखण दे, चन्द्रप्रभु मुखचंद ....सखि० उपशम रसनो कंद सखि० सेवे सुरनर इंद .............सखि० गत कलिमल दुःख दंद, सखि मुने देखण दे..............१ सुहुम निगोदे न देखियो सखि० बादर अतिहि विशेष सखि० पुढवी आउ न पेखियो सखि० तेउ वाउ न लेश ... सखि० २ वनस्पति अति घण दीहा सखि० दीठो नहींय दीदार .सखि० बि-ति-चउरिंदि जललिहा सखि० गतसन्नि पण धार सखि० ३ सुरतिरि निरय निवासमां सखि० मनुज अनारज साथ सखि० अपज्जत्ता प्रतिभासमां सखि० चतुर न चढीयो हाथ सखि० ४ एम अनेक थल जाणिये सखि० दरिसण विणु जिनदेवसखि० आगमथी मति आणीये सखि० कीजे निर्मल सेव ... सखि० ५ निर्मल साधु भगति लही सखि० योगअवंचक होय .....सखि० किरियाअवंचक तिम सही सखि० फळअवंचक जोयसखि० ६ प्रेरक अवसर जिनवरु सखि० मोहनीय क्षय थाय......सखि० कामितपूरक सुरतरु सखि० आनंदघन प्रभुपाय..... सखि० ७ ९3 For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री चंद्रप्रभस्वामी स्तवन चंद्रप्रभु! पद राचुं हो चिद्घन! चंद्रप्रभु! पद राचुं; मन मान्यु ए साचुं हो चिद्धन! चंद्रप्रभु! पद राचुं. शुद्ध अखंड अनन्त गुण-लक्ष्मी, तेना प्रभु! तमे दरिया; सत्ताए ज्ञानादिक लक्ष्मी, व्यक्तिपणे तमे वरिया..... हो चि० १ अनाद्यानन्त, ने आदि-अनन्त, सत्ता-व्यक्ति सुहाया; अस्तिनास्तिमय धर्म अनन्ता, समय समयमां पाया.हो चि० २ क्षपकश्रेणिये उज्जवलध्याने, घातक कर्म खपाव्यां; दग्धरज्जुवत् कर्म अघाती, तेरमे चौदमे नसाव्यां. . हो चि० ३ केवलज्ञाने ज्ञेय अनन्ता, समय समय प्रभु! जाणो; अव्याबाध अनन्तु वीर्य, समय प्रभु! माणो. .......... हो चि० ४ ऋद्धि तमारी ते वीज मारी, कदीय न मुजथी न्यारी; । चंद्रप्रभु-आदर्श निहाळी, आत्मिकऋद्धि संभारी..... हो चि० ५ निजस्वजातीय सिंह निहाळी, अजवृन्दगत हरिचेत्यो; निज स्वजातीय सिद्ध संभारी,जीव स्वपदमां वहेतो.हो चि०६ अन्तर-दृष्टि अनुभव-योगे, जागी निजपद रहियो; बुद्धिसागर परम महोदय, शाश्वतलक्ष्मी लहियो.... हो चि० ७ ९४ For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री सुविधिनाथ स्तवन सुविधिनिजिनेश्वर ! देव! दया दीनपर करो, करुणावंत महंत विनति ए दिल धरो; भवसागरनी पार उतारो कर ग्रही, शक्ति अनन्तना स्वामी कहावोछो मही. तमनो शो छे भार कहो रवि आगळे, कीडीनो शो भार के कुंजरने गळे; कर्मतणो शो भार प्रभुजी ! तुम छते, सिंहत शो भार अष्टापद त्यां जते. शुं खद्योतनुं तेज के उपयोग नीकळे; तेम शुं मोहनुं जोर के उपयोग नीकळे; ससलानुं शुं जोर सिंह आगळ अहो ! अनेकांत ज्यां ज्योति एकांतनुं शुं कहो. परमप्रभु वीतराग राग त्यां शुं करे, देखी इन्द्रनी शक्ति के सुर सहु करगरे; प्राणजीवन वितराग हृदयमां मुज वस्या, ते देखी मोहयोध के सहु दूरे खस्या. गुण-पर्यायाधार! स्मरण त्हारुं खरं, ध्यान-समाधियोगे अलख निजपद वरुं; ९५ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ २ ३ ४ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमब्रह्म! जगदीश्वर! जय जिनराजजी! शरणे आव्यो सेवक राखो लाजजी.. वार वार शी? विनति जाणो सहु कह्यु, वार लगाडो न लेश दुःख में बहु सर्वा; बुद्धिसागर सत्य भक्तिथी उद्धारजो, वन्दन वार हजार विनती ए स्वीकारजो.. श्री सुविधिनाथ स्तवन में कीनो नहीं, तुम बिन ओरशुं राग. दिन दिन वान चढत गुन तेरो, ज्युं कंचन परभाग. ओरन में हैं कषाय की कलिमा, सो क्युं सेवा लाग......मैं.१ राजहंस तुं मान सरोवर, और अशुचि रुचि काग. विषय भुजंगम गरुड तु कहिये, और विषय विषनाग..... मैं.२ और देव जल छिल्लर सरिखे, तुं तो समुद्र अथाग. तुं सुरतरु जग वंछित पूरण, और तो सूके साग.......... मैं.३ तुं पुरुषोत्तम तुं ही निरंजन, तुं शंकर वडभाग. तुं ब्रह्मा तुं बुद्ध महाबल, तुं ही ज देव वीतराग............ मैं.४ सुविधिनाथ तुम गुन फुलनको, मेरो दिल है बाग. जस कहे भ्रमर रसिक होइ तामें, लीजे भक्ति पराग.....मैं.५ ९६ For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री सुविधिनाथ स्तवन सु० ४ सुविधि जिणेसर पाय नमीने, शुभ करणी एम कीजे रे; अति घणो उलट अंग धरीने, प्रह उठीने पूजीजे रे सुविधि० १ द्रव्य-भावशुचिभाव धरीने, हरखे देहरे जईए रे; दह तिग, पण अहिगम साचवतां, एक - मना धुरि थई रे सु० २ कुसुम, अक्षत, वर वास सुगंधो, धूप, दीप मन साखी रे; अंगपूजा पण भेद सुणी एम, गुरुमुख आगम भाखी रे सु० ३ एहनुं फळ दोय भेद सुणीजे, अनंतर ने परंपर रे; आणापालण चित्तप्रसन्नी, मुगति सुगति सुरमंदिर रे...... फूल अक्षत वर धूप पईवो, गंध नैवेद्य जळ भरी रे; अंग अग्र पूजा मळी अडविध भावे भविक शुभ गति वरी रे. ५ सत्तर भेद एकवीरा प्रकारे, अष्टोत्तरशत भेदे रे; भावपूजा बहुविध निरधारी, दोहग दुर्गति छेदे रे तुरिय भेद पडिवत्तिपूजा, उपशम खीण सयोगी रे; चउहा पूजा ईम उत्तरज्झयणे, भाखी केवलभोगी रे ... एम पूजा बहु भेद सुणीने, सुखदायक शुभ करणी रे; भविक जीव करशे ते लहेशे, आनंदघन पद धरणी रे. सु० ८ सु० ७ ९७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only सु० ६ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री शीतलनाथ स्तवन शीतलजिन ! मोहे प्यारा साहिब ! शीतलजिन! मोहे प्यारा. भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिउ के जिउ हमारा............ ज्योति शुं ज्योत मिलत जब ध्यावे, होवत नहि तब न्यारा, बांध मुठी खुले भव माया, मीठे महाभ्रम भारा... तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा, तुमही नजीक नजीक है सबहि, ऋद्धि अनंत अपारा. विषय लगन की अगन बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा, भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा......४ शीतलता गुण होड करत तुम, चंदन कांही बिचारा? नामहि तुमचा ताप हरत है, वाकुं घसत घसारा.... करहु कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जस कहे जनम-मरण भय भांगो, तुम नामे भवपारा.... श्री शीतलनाथ स्तवन प्रीतलडी बंधाणीरे, शीतल जिणंद, प्रभुविना क्षणमात्र नहि सोहायजो; प्रेमीविना नहि बीजो ते जाणी शके, रूप प्रभुनुं देखी मन हरखायजो. ९८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ २ ३ ५ ६ प्रीतलडी० १ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरना उपयोगे प्रभुजी दिल वस्या, भक्ति आधीन प्रभुजी प्राण सनाथजो; अनुभवयोगे रंग मजीठनो लागियो, त्रणभुवनना स्वामी आव्या हाथजो. ............. प्रीतलडी० २ जेम प्रभुनां दर्शनमां स्थिरता थती, तेम प्रभुजी आनन्द आपे बेशजो; आनन्ददाता-भोक्तानी थई एकता, चढी खुमारी यादी आपे हमेशजो.. प्रीतलडी03 आत्मासंख्य प्रदेशे शीतलता खरी, अवधूत योगी प्रगटावे सुखकंदजो; औदयिकभाव निवारी उपशम आदिथी, टाळे सघळा मोहतणा महाफंदजो. ... प्रीतलडी०४ गुणस्थानक-निःसरणी चढतो आतमा, उज्ज्वलयोगे पामे शिवपुर म्हेलजो; क्षायिकभावे सुख अनंतुं भोगवे, निजपदध्रुवता धारी करतो सहेलजो.............. प्रीतलडी० ५ बाह्य-भावनी सर्व पाधि नासतां, प्रभुविरहनो नाश थशे निर्धारजो; For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुभवयोगे रंगायो जिनरूपमां, थाशुं प्रभुसमा अन्ते जयकारजो.. ................ प्रीतलडी०६ निजगुणस्थिरतामां रंगावू सहजथी, वस्तुधर्म-ज्ञानादिक तुं आधारजो; बुद्धिसागर अनुभव-वाजां वागियां, भेट्या शीतलजिनवर जग जयकारजो. .......... प्रीतलडी० ७ श्री श्रेयांसनाथ स्तवन श्रेयांसप्रभु! अन्यर्यामी क्षायिक-नवलब्धिधणी; त्राता, भ्राता, परोपकारी निर्भव योगी दिनमणि.....श्रेयांस० १ प्रभु शुद्धस्वरूप त्हारुं जेवू, प्रभु! शुद्धस्वरूप म्हारुं तेवू, उज्ज्वलध्याने खेंची लेवु. .............श्रेयांस० २ प्रभु! नाम-रूपथी भिन्न खरो, प्रभु! अनन्तसुखनो भव्य झरो, मे स्थिर उपयोगे दिल धर्यो...........श्रेयांस० ३ उत्पत्ति-व्यय-ध्रुवताभोगी, योगातीत पण निर्मलयोगी, कर्मातीतथी तुं नीरोगी.................श्रेयांस० ४ ध्याने प्रभुनी पासे जावू, साधनथी साध्यपणुं पावं, ज्ञानादर्श प्रभु घट लावू. ..............श्रेयांस० ५ १०० For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु! दर्शन देजो शिवरसिया, प्रभु प्रेमे म्हारा दिल वसिया, स्थिरउपयोगे जिन उल्लसिया, ......श्रेयांस० ६ प्रभु! परममहोदय पद आपो, प्रभु! जिनपदमां मुजने थापो, __कर्यां कर्म अनादि सहु कापो, ........श्रेयांस० ७ प्रभु! उपादान योगे आवो, भक्तिथी निज गुण विरचावो; बुद्धिसागर मळीयो ल्हावो............ श्रेयांस० ८ श्री श्रेयांसनाथ स्तवन श्री श्रेयांस जिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे; अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुगति गति गामी रे.श्री० १ सयल संसारी इन्द्रियरामी, मुनिगण आतमरामी रे; मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवळ निःकामी रे. ....... श्री० २ निज स्वरूप जे किरिया साधे, तेह अध्यातम लहिये रे; जे किरिया करी चउगति साधे,ते न अध्यातम कहिये रे. श्री०३ नाम अध्यातम ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे; भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेहशुं रढ मंडो रे. श्री० ४ शब्द अध्यातम अर्थ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे; शब्द अध्यातम भजना जाणी,हान ग्रहण मति धरजो रे.श्री०५ १०१ For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे; वस्तुगते जे वस्तु प्रकाशे, 'आनंदघन' मतवासी रे. ... श्री० ६ ___श्री वासुपूज्यस्वामी स्तवन स्वामी! तुमे कांई कामण कीर्छ, चित्तडं अमारुं चोरी लीधुं; साहिबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य जिणंदा. अमे पण तुम शुं कामण करशुं, भक्ति ग्रही मनघरमां धरशुं, . साहिबा० १ मनघरमां धरीया घर शोभा, देखत नित रहेशो थिर शोभा; मन वैकुंठ अकुंठित भगते, योगी भाखे अनुभव युक्ते. ..............साहिबा० २ क्लेश वासित मन संसार, क्लेश रहित मन ते भवपार; जो विशुद्ध मन घर तुमे आया, प्रभु तो अमे नवनिधि ऋद्धि पाया. ....................साहिबा० ३ सात राज अलगा जई बेठा, पण भगते अम मनमां पेठा; अलगाने वलग्या जे रहेवू, ते भाणा खडखड दुःख सहे. ... ....................साहिबा० ४ ध्याता ध्येय ध्यान गुण एके, भेद छेद करशुं हवे टेके; क्षीरनीर परे तुम शुं मळशें, ‘वाचक यश' कहे हेजे हलशुं. .. .............साहिबा० ५ १०२ ........ For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री वासुपूज्यस्वामी स्तवन वासुपूज्य ! त्रिभुवनधणी, परमानन्द विलासीरे; अकळकळा निर्भय प्रभु, ध्याने नासे उदासीरे. .. वासुपूज्य ० १ . वासुपूज्य० ३ जगजीवन जगनाथ छो, परमब्रह्म महादेवारे; व्यापक ज्ञानथी विष्णु छो, सुरपति करे पदसेवारे. वासुपूज्य० २ आदि-अनन्त तुं व्यक्तिथी, एवंभूतथी योगीरे. अनाद्यनन्त सत्तापणे, गुणपर्यवनो भोगीरे. व्याप्य व्यापकता अभेदता, ज्ञाता ज्ञेय अभेदीरे; भिन्नाभिन्न स्वभाव छे, वेदरहित पण वेदीरे. परममहोदय चिन्मणि, अजरामर अविनाशीरे; नित्य निरंजन सुखमयी, व्यक्ति शुद्ध प्रकाशीरे.. वासुपूज्य० ५ . वासुपूज्य० ४ निरक्षर अक्षर विभु, जगबंधव जगत्रातारे; क्षायिक नवलब्धि धणी, ज्ञेय अनन्तना ज्ञातारे. . वासुपूज्य० ६ पुरुषोत्तम पुराण तुं, तुज ध्याने सुख लहीशुंरे; बुद्धिसागर शुद्धता, पामी जिनपद रहीशुंरे. श्री विमलनाथ स्तवन विमलजिनचरणनी सेवना, शुद्ध भावे करशुं; अन्तर ज्योति झळहळे, शिवस्थानक ठरशुं. १०३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . वासुपूज्य० ७ विमल० १ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुद्गलभावना खेलथी, चित्तवृत्ति हठावू; परमानन्दनी मोजमां, निर्मल पद पावं. .............. विमल० २ अन्तर रमणता आदरी, ध्रुवता निज वरशुं; मनमोहन जगनाथना, उपयोगथी तरशुं. ............ विमल० ३ असंख्यप्रदेशी आतमा, नित्यानित्य विलासी; स्याद्वादसत्तामयी सदा, जोतां टळती उदासी...... विमल० ४ पुद्गल-ममता त्यागीने, अन्तरमा रहीशुं; अनुभवअमृतस्वादथी, अक्षयसुख लहीशुं............. विमल० ५ काया-वाणी-मनथकी, विमलेश्वर न्यारो; शुद्ध परिणतिभक्तिथई, भेटीशुं प्रभु प्यारो. .......... विमल० ६ स्थिरउपयोगप्रभावथी, एक घातथी मळशं; बुद्धिसागर भक्तिथी, ज्योति ज्योतिमां भळशुं. ...... विमल० ७ श्री विमलनाथ स्तवन मुज अवगुण मत देखो. ............. प्रभुजी. राग दशाथी तुं रहे न्यारो, हुं मन रागे वालुं. द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालुं. ........ प्रभु.१. मोह लेश फरस्यो नहि तुंही, मोह लगन मुज प्यारी. तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहेणी न्यारी...... प्रभु.२. १०४ For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तुं हि निरागी भाव-पद साधे, हुं आशा-संग विलुद्धो. तुं निश्चल हुं चल, तुं सूधो हुं आचरणे ऊंधो.... . प्रभु. ३. तुज स्वभावथी अवला मारा, चरित्र सकल जगे जाण्या. एहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्या. प्रभु . ४. प्रेम नवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे. कान्ति कहे भवरान उतरतां, तो वेला नवि लागे. श्री विमलनाथ स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५ दुःख दोहग दूरे टळ्यां रे, सुख संपदशुं भेट; धींग धणी माथे कियो रे, कुण गंजे नर खेट ? विमल जिन! दीठां लोयण आज, म्हारां सिद्ध्यां वांछित काज. चरण कमळ कमळा वसे रे, निर्मळ थिर पद देख; समल अथिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख ... विमल० २ मुज मन तुज पद पंकजे रे, लीनो गुण मकरंद; रंक गणे मंदर धरा रे, इंद्र चंद्र नागिंद्र साहेब समरथ तुं धणी रे, पाम्यो परम उदार; मन विशरामी वालहो रे, मारा आतमचो आधार For Private And Personal Use Only प्रभु . ५. विमल० १ विमल० ३ विमल० ४ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दरिशण दीठे जिन तणुं रे, संशय न रहे वेध; दिनकर करभर पसरतां रे, अंधकार प्रतिषेध ...... विमल० ५ अमियभरी मूरति रची रे, उपमा न घटे कोय; शांतसुधारस झीलती रे, निरखत तृप्ति न होय .... विमल० ६ एक अरज सेवक तणी रे, अवधारो जिनदेव! कृपा करी मुज दीजीए रे, आनंदघन पद सेव ..... विमल० ७ श्री अनंतनाथ स्तवन. धार तलवारनी सोहिली दोहिली, चउदमा जिन तणी चरण सेवा धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा. धार.१. एक कहे सेविये विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे. फल अनेकांत किरिया करी बापडा, रडवडे चार गतिमांहि लेखे. धार.२. गच्छना भेद बहु नयण निहालतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे. उदर भरणादि निज काज करतां थकां, मोह नडिया कलिकाल राजे.. .धार.३. १०६ For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वचन निरपेक्ष व्यवहार झूठो कह्यो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो. वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभली आदरी कांइ राचो. धार.४. देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो केम रहे, केम रहे शुद्ध श्रद्धान आणो. शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी, छार पर लींपणुं तेह जाणो. धार.५. पाप नहिं कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोइ जग सूत्र सरिखो. सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहy शुद्ध चारित्र परिखो. धार.६. एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे. ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनंदघन राज पावे. .........................धार.७. श्री अनंतनाथ स्तवन अनन्त जिनेश्वर नाथने, वन्दतां पाप पलायरे; रवि आगळ तम शुं? रहे, प्रभु भजे मोह विलायरे. अनन्त० १ १०७ For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनन्त गुणपर्यायपात्र तुं, व्यक्ति एवंभूत साररे; संग्रहनय परिपूर्णता, ध्याता ते व्यक्तिथी धाररे.....अनन्त० २ उपशमभाव क्षयोपशमथी, साध्यनी सिद्धि करायरे; धर्म निज वस्तुस्वभावमां, स्थिर उपयोग सुहायरे..अनन्त० ३ ज्ञानदर्शनचरण-गुणविना, व्यवहार कुलआचाररे; साध्यलक्ष्ये शुद्ध चेतना, जाणवो शुद्धव्यवहाररे..... अनन्त० ४ द्रव्यक्षेत्र काल भावथी, पर्याय द्रव्य अनन्तरे; शुद्ध आलंबन आदरी, व्यक्तिथी थाय भदंतरे.......अनन्त० ५ स्वकीय द्रव्यादिकभावथी, अनंतता अस्तिपणे साररे; परद्रव्यादिक अस्तिनी, नास्तिता अनन्त विचाररे. .अनन्त०६ वीर्य अनन्त सार्मथ्यथी, उत्पाद-व्यय प्रतिद्रव्यरे; छती पर्यायथी ध्रुवता, समय समयमांही भव्यरे..... अनन्त० ७ धर्म अनन्तनो स्वामी तुं, ध्यानमां ध्येयस्वरूपरे; बुद्धिसागर निज द्रव्यनी, शुद्धि ते जय! जिनभूपरे. अनन्त० ८ श्री धर्मनाथ स्तवन धर्मजिनेश्वर वंदुं भावथी, वस्तुधर्मदातार; वस्तुस्वभाव ते धर्म जणावता, षड्द्रव्योमांही सार. जगतमां०१ १०८ For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org .... जगतमां० २ ज्ञेय हेय आदेय जणावता, सकल द्रव्य छेरे ज्ञेय; उपादेय चेतननो धर्म छे, पुद्गलआदिरे हेय. भावकर्म ते रागद्वेष छे, काल अनादिथी जाण; द्रव्यकर्मनुं कारण तेह छे, नोकर्म निमित्त आण.. जगतमां० ३ अशुद्धपरिणतियोगे बंध छे, शुद्धपरिणतिथी छे मुक्ति; अन्तरचेतनसन्मुख योगथी, शुद्ध उपयोगनी युक्ति. जगतमां० ४ कर्ता-हर्ता चेतन कर्मनो, बाहिर - अन्तर योग; आत्मस्वभावे रमणता आदरे, प्रगटे शिवसुखभोग. जगतमां० ५ सुख अनन्तनी लीला ध्यानमां, चेतन अनुभव पाय; ध्रुवतायोगतणी स्थिरता होवे, वीर्य अनन्त प्रगटाय. जगतमां० ६ सविकल्पसमाधि शुभउपयोगमां, ध्याता ध्येयनो भेद; शुद्धउपयोगे शुद्धसमाधिमां, टळतो विकल्पनो खेद. जगतमां० ७ अन्तरमां उतरीने पारखो, निर्मल सुखनोरे नाथ; बुद्धिसागर समता एकता, लीनता योगे सनाथ. .जगतमां० ८ श्री धर्मनाथ स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म जिनेश्वर! गाउं रंगशुं, भंग म पडशो हो प्रीत जिनेश्वर ! बीजो मनमंदिर आणुं नहि, ए अम कुलवट रीत जिनेश्वर ! ...... धर्मο १०९ For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म धर्म करतो जग सहु फिरे, धर्म न जाणे हो मर्म जिने० धर्म जिनेश्वर चरण ग्रह्यां पछी, कोई न बांधे हो कर्म जिने० .....धर्म प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान जिने० हृदय नयण निहाळे जगधणी, महिमा मेरु समान जिने० धर्म० दोडत दोडत दोडत दोडियो, जेती मननी रे दोड जिने० प्रेम प्रतीत विचारो ढुंकडी, गुरुगम लेजो रे जोड जिने० धर्म एक पखी किम प्रीति परवडे, उभय मिल्या हुए संध जिने० हुं रागी, हुं मोहे फंदियो, तुं नीरागी निरबंध जिने० .....धर्म० परम निधान प्रगट मुख आगळे, जगत उल्लंघी हो जाय जिने० ज्योति विना जुओ जगदीशनी, अंधोअंध पलाय जिने० ..धर्म० निर्मळ गुण मणि रोहण भूधरा, मुनिजन मानस हंस जिने० धन्य ते नगरी, धन्य वेला घडी, मात पिता कुलवंश जिने०धर्म० मनमधुकर वर कर जोडी कहे, पदकज निकट निवास जिने० घननामी आनंदघन सांभळो, ए सेवक अरदास जिने० ..धर्म० श्री शांतिनाथ स्तवन शांति जिन एक मुज विनति, सुणो त्रिभुवन राय! रे, शांतिस्वरूप किम जाणीए,कहो मन किम परखाय रे शांति०१ ११० For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्य तुं आतम जेहने, एहवो प्रश्न अवकाश रे; धीरज मन धरी सांभळो, कहुं शांति प्रतिभास रे ... शांति० २ भाव अविशुद्ध सुविशुद्ध जे, कह्या जिनवर देव रे; ते तिम अवितथ सद्दहे, प्रथम ए शांति पद सेव रे शांति० ३ आगमधर गुरु समकिती, क्रिया संवर सार रे; संप्रदायी अवंचक सदा, शुचि अनुभवधार रे......... शांति० ४ शुद्ध अवलंबन आदरे, तजी अवर जंजाळ रे; तामसी वृत्ति सवि परिहरी; भजे सात्त्विकी साल रे शांति० ५ फळ विसंवाद जेहमां नहीं, शब्द ते अर्थ संबंधी रे; सकळ नयवाद व्यापी रह्यो, ते शिव साधन संधीरे शांति०६ विधि प्रतिषेध करी आतमा, पदारथ अविरोध रे; ग्रहणविधि महाजने परिग्रह्यो, इस्यो आगमे बोध रे शांति० ७ दुष्टजन संगति परिहरी, भजे सुगुरु संतान रे; जोग सार्मथ्य चित्त भाव जे, धरे मुगति निदान रे.. शांति० ८ मान अपमान चित्त सम गणे, सम गणे कनक पाषाण रे; वंदक निंदक सम गणे, इस्यो होय तुं जाण रे ..... शांति० ९ सर्व जगजंतुने सम गणे, सम गणे तृण मणि भाव रे; मुगति संसार बिहु सम गणे,मुणे भवजलनिधिनाव रे शांति० १० १११ For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपणो आतम भाव जे, एक चेतनाधार रे; अवर सवि साथ संयोगथी, एह निज परिकर सार रेशांति० ११ प्रभुमुखथी ईम सांभळी, कहे आतमराम रे; ताहरे दरिसणे निस्तों, मुज सिध्यां सवि काम रे शांति० १२ अहो अहो हुं मुजने कहुं, नमो मुज नमो मुज रे; अमितफळ दान दातारनी, जेहने भेट थई तुज रे शांति० १३ शांतिसरूप संक्षेपथी, कह्यो निज-पर रूप रे; आगममांहि विस्तर घणो, कह्यो शांतिजिन भूप रे .शांति० १४ शांतिसरूप ईम भावश्य, धरि शुद्ध प्रणिधान रे; आनंदघन पद पामश्ये, ते लहिश्ये बहु मान रे ....शांति० १५ __ श्री शांतिनाथ स्तवन हम मगन भये प्रभु ध्यान में, बिसर गई दुविधा तन-मन की, अचिरा सुत गुणगान में. हम १ हरिहर ब्रह्मा पुरन्दर की ऋद्धि, आवत नहीं कोउ मान में; चिदानन्द की मोज मची है, समता रस के पान में. ...हम.२ इतने दिन तुम नाही पिछान्यो, मेरो जन्म गमायो अजान में; अब तो अधिकारी होई बैठे, प्रभु गुण अखय खजान में. हम.३ ११२ ........ For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गयी दीनता अब सब ही हमारी, प्रभु तुझ समकित दान में; प्रभु गुण अनुभव रस के आगे, आवत नहीं कोई मान में. हम जिनहीं पाया तिनही छिपाया, न कहे कोउ के कान में; ताली लागी जब अनुभव की, तब समझे कोइ सान में. हम.५ प्रभु गुण अनुभव चन्द्रहास ज्यूं, सो तो न रहे म्यान में; वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लिओ हे मेदान में हम.६ श्री शांतिनाथ स्तवन शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांति करण इण कलिमें; हो जिनजी तुं मेरा मनमें तुं मेरा दिलमें, ध्यान धरूं पल पलमें साहेबजी. तुं. भवमां भमतां में दरिशन पायो,आशा पूरो एक पलमें हो. तुं.२ निरमल ज्योत वदन पर सोहे,नीकस्यो ज्युं चंद बादलमें हो.तुं३ मेरो मन तुम साथे लीनो, मीन वसे ज्युं जलमें हो. तुं......४ जिनरंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकलमें हो.तुं.५ श्री शांतिनाथ स्तवन म्हारो मुजरो ल्योने राज, साहिब शांति सलुणा. अचिराजीना नंदन तोरे, दर्शन हेते आव्यो; समकित रीझ करोने स्वामी, भगति भेटणुं लाव्यो.... म्हारो.१ ११३ For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुःख भंजन छे बिरुद तुमारं, अमने आशा तुमारी; तुमे निरागी थईने छूटो, शी गति होशे अमारी....... म्हारो.२ कहेशे लोक न ताणी कहेवू, एवडुं स्वामी आगे; पण बालक जो बोली न जाणे, तो केम व्हालो लागे. म्हारो.३ मारे तो तुं समरथ साहिब, तो केम ओछु मार्नु; चिंतामणि जेणे गांठे बांध्यु, तेहने काम किशानुं. ..... म्हारो.४ अध्यातम रवि ऊग्यो मुज घट, मोह तिमिर हर्यु जुगते; विमल विजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते. म्हारो.५ श्री शांतिनाथ स्तवन शांति जिनेश्वर परमेश्वर विभुजी, गातां ने ध्यातां हर्ष अपाररे; शांति स्मरंतां प्रगटे शांतताजी, सहज योगे निर्धाररे. ... शांति० १ मनमां छे मोहज तावत् दुःख छ जी, मोह टळ्याथी साची शांतिरे; तम ने रजथी नहीं शांति आत्मनीजी, सात्त्विक शांति छेवटे शांतिरे .. .. शांति०२ देह ने मनमां शांति नहीं खरीजी, शांति न बाहिर भोगे थाय रे ११४ For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...शांति० ५ यावत् मनमां संकल्पो जागताजी, तावत् न शांति सत्य सुहायरे .. शांति० ३ शांति अनुभव आवे समपणेजी, उपशम आदि क्षायिकभावरे; सहज स्वभावे विकल्पो टळेजी, शांति अनंती आतम दावरे .. शांति०४ द्रव्ये ने भावथी शांति पामवाजी, ज्ञाने लगावो आतमतानरे; शांति प्रभुमय आतम थै रहेजी, बुद्धिसागर भगवान् रे ... श्री शान्तिनाथ स्तवन शान्तिनाथजीरे! शान्ति साची आपो; उपाधि हरीरे, निज पदमां निज थापो............... शान्ति० १ शान्ति केम लहुंरे, तेनो मार्ग बतावो; विनति माहरीरे, स्वामी दिलमां लावो................ शान्ति० २ शान्ति प्रभु कहेरे, धन्य! तुं जगमां धन्य प्राणी; । शान्ति पामवारे, मनमा उलट आणी. ................ शान्ति० ३ जड ते जडपणेरे, चेतन ज्ञानस्वभावे; भेदज्ञानना योगथीरे, समकित-श्रद्धा थावे........... शान्ति० ४ ११५ For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ................शान्ति सद्गुरु परंपरारे, आगमना आधारे; उपशमभावथीरे, शान्ति घटमां धारे. ...... शान्ति० ५ साधुसंगतेरे, पामी ज्ञाननी शक्ति; समतायोगथीरे, प्रगटे शान्ति-व्यक्ति. शान्ति०६ चेतन द्रव्यनुरे, करवू ध्यान ज भावे; चंचलता हरेरे, साची शान्ति आवे.... शान्ति०७ सत्य-समाधिमारे, शान्ति सिद्धि बतावे; रसिया योगीओरे, शान्ति साची पावे. ............... शान्ति० ८ सिद्धसमा थईरे, शान्तिरूप सुहावे; स्थिरउपयोगथीरे, बुद्धिसागर पावे. .... शान्ति० ९ श्री शान्तिनाथ स्तवन जय जय शान्ति जिनन्द, जगतमां जय जय शान्ति जिनन्द; आप तर्या ने परने तारो, सेवे चोसठ इन्द्र........ जगतमां० १ पूरण शान्ति प्रेमे लीधी, दोष करी सहु दूर; जगतमां० जन्मजरामरणादिक वारी, सुख पाम्या भरपूर.... जगतमां० २ समवसरणमां देशना देई, तार्यां प्राणी अनेक; जगतमां० सेवक तारो कृपा करीने, आपो सत्य विवेक.....जगतमां० ३ पाप कर्यां में भवमां भारे, गणतां नावे पार; जगतमां० ११६ For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ..... शरण कर्तुं में तारुं स्वामी, हाथ ग्रहीने तार. . जगतमां० ४ नाम स्थापना द्रव्य भावथी, ध्यातां शिवसुख थाय; जगतमां० बुद्धिसागर बे कर जोडी, वन्दे त्रिभुवन राय ..... जगतमां० ५ श्री कुंथुनाथ स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंथुजिनेश्वर जग जयकारी, चोत्रीस अतिशय धारीरे; पांत्रीस वाणी गुणथी शोभे, समवसरण सुखकारीरे . . कुंथु० १ वस्तुधर्म स्याद्वाद प्ररूपे, केवलज्ञानथी जाणीरे, धर्म ग्रही पाळी शिव लेवे, जगमांही बहु प्राणीरे. सप्तभंगीने सातनयोथी, षडद्रव्योने जणावेरे; उपादेय चेतनना धर्मो, बोधी शिव परखावे रे. शुद्ध आत्मस्वरूप बतावी, मिथ्या भ्रमणा हठावेरे; अस्तिनास्तिमयधर्म अनन्ता, द्रव्यमां भावेरे. चार निक्षेपे चार प्रमाणे, वस्तुस्वरूपने दाखेरे; द्रव्य क्षेत्र ने काल भावथी, वस्तुस्वरूपने भाखेरे....... आनन्दकारी जगहितकारी, गुणपर्यायाधारीरे; उत्पत्ति-व्यय-ध्रुवतामयी प्रभु, शाश्वतपद सुखकारीरे. कुंथु० ६ जिनस्वरूप थई जिनवर सेवी, लहिए अनुभवमेवारे; बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, सहजयोग पद सेवारे. . कुंथु० ५ ११७ For Private And Personal Use Only . कुंथु० २ . कुंथु० ३ . कुंथु० ४ . कुंथु० ७ ..... Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कुंथुनाथ स्तवन मनडुं किम ही न बाजे हो कुंथुजिन, मनडुं किम ही न बाजे; जिम जिम जतन करीए राखुं, तिम तिम अळगुं भाजे. ...... ....हो.कुंथु० १ रजनी वासर वसती उज्जड, गयण पायाले जाय; साप खाय ने मुखडं थोथु, एह उखाणो न्याय हो. . .. हो .कुंथु० २ मुक्तितणा अभिलाषी तपीया, ज्ञान ने ध्यान अभ्यासे; वयरीडु कांई एहवू चिंते, नांखे अवळे पासे हो.. ..............हो.कुंथु० ३ आगम आगमधरने हाथे, नावे किण विध आंकुं; किहां कणे जो हठ करी हटकुं तो व्याल तणी परे वांकुं हो; .हो.कुंथु० ४ जो ठग कहुं तो ठगतो न देखु, शाहुकार पण नाहि; ११८ For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .हो.कुंथु०५ हो.कुंथु०६ सर्व माहे ने सहुथी अलगुं, ए अचरिज मनमांहि हो. जे जे कहुं ते कान न धारे, आप मते रहे कालो; सुरनर पंडित जन समजावे, समजे न मारो सालो हो. में जाण्यु ए लिंग नपुंसक, सकल मरदने ठेले; बीजी वाते समरथ छे नर, एहने कोई न झेले हो.... मन साध्युं तेणे सघळु साध्यु, एह वात नहीं खोटी; एम कहे साध्यं ते नवि मार्नु, एहि ज वात छे मोटी. मनडुं दुराराध्य तें वश आण्यु, ते आगमथी मति आणुं, आनंदघन प्रभु! माहरु आणो, तो साचुं करी जाणुं. ...... .हो.कुंथु० ७ ....हो.कुंथु०८ ......हो.कुंथु० ९ ११९ For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अरनाथ स्तवन अरनाथकुं सदा मोरी वंदना मेरे नाथकुं सदा मोरी वंदना. जग उपकारी घन ज्यों वरसे, वाणी शीतल चंदना.. अर० १ रूपे रंभा राणी श्री देवी; भूप सुदर्शन नंदना........... अर० २ भाव भगति शुं अहनिश सेवे, दुरित हरे भव फंदना. अर० ३ छ खंड साधी भीति द्वेधा कीधी, दुर्जय शत्रु निकंदना.अर० ४ 'न्यायसागर' प्रभु सेवा-मेवा, मागे परमानंदना........ अर० ५ श्री अरनाथ स्तवन अरजिनवर! प्रभु! वन्दना, होजो वारंवार; क्षायिक-रत्नत्रयी वर्यो, शुद्ध बुद्धावतार. ... अर० १ अष्टकर्मना नाशथी, अष्ट गुणोने धरंत; गुण एकत्रीसने तें धर्या, साध्यसिद्धि वरंत............. अर० २ क्षपकश्रेणी-रणक्षेत्रमां, हण्यो मोह प्रचंड; त्रिभुवनमा साम्राज्यनी, चलवी आण अखंड. .......... अर० ३ घातिकर्म-प्रकृति हरि, पाम्या केवलज्ञान; पुरुषोत्तम अरिहा प्रभु, दीधुं देशना दान. . अर० ४ योगविकार शमावीने, शेष कर्म जे चार; हणीने शिवपुर पामिया, धन्य! धन्य! अवतार.......... अर० ५ १२० For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुज पगले अमे चालशुं, पामीने परमार्थ; अनुभव रंगे भेटीने, प्रभु थई| सनाथ. ................ अर० ६ प्रेम भक्ति उत्साहमां, श्रुतज्ञाने दिल लाय; बुद्धिसागर ध्यानमां, प्रभुता घटमांही पाय.............. अर० ७ श्री मल्लिनाथ स्तवन मल्लिजिन सहज स्वरूपर्नु, वर्णन कहो केम थायरे; वैखरी वर्णन | करे, कंइ परामांही परखायरे. .....मल्लि० १ परमब्रह्म पुरुषोत्तम, अनंगी अनाशी सदायरे; विमल परम वितरागता, अक्षय अचल महारायरे. ..मल्लि० २ निर्भयदेशना वासी जे, अजर अमर गुणखाणरे; सहज स्वतंत्र आनन्दमां, भोगवो शिव निर्वाणरे.....मल्लि० ३ चेतन असंख्यप्रदेशमां, वीर्य अनंत प्रदेशरे; छती | सार्मथ्य भावथी, वापरो समये निःक्लेशरे. .मल्लि० ४ त्रिभुवनमुकुटशिरोमणि, परम महोदय धर्मरे; जगगुरु परमबंधु विभु, सादि-अनन्त सुशर्मरे.........मल्लि० ५ अलख अगोचर दिनमणि, अविचल पुरुष पुराणरे; सत्य एक देव! तुं जगधणी,धारुं हुं शिर तुज आणरे. .... मल्लि०६ मल्लिजिन शुद्ध आलंबने, सेवक जिनपणुं पायरे; बुद्धिसागर रस रंगमां, भेटिया चिद्घनरायरे........मल्लि० ७ १२१ For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मल्लिनाथ स्तवन सेवक किम अवगणीए? हो मल्लिजिन! ए अब शोभा सारी; अवर जेहने आदर अति दीए, तेहने मूल निवारी हो...म० १ ज्ञानस्वरूप अनादि तमारं, ते लीधुं तमे ताणी; जुओ अज्ञानदशा रीसावी, जातां काण न आणी.... हो म० २ निद्रा-सुपन-जागर-उजागरता, तुरिय अवस्था आवी; निद्रा सुपन दशा रीसाणी, जाणी न नाथ! मनावी.. हो म० ३ समकित साथे सगाई कीधी, स्वपिरवारशुं गाढी; मिथ्यामति अपराधण जाणी, घरथी बहार काढी. .. हो म० ४ हास्य अरति रति शोक दुगंछा, भय पामर करसाली; नोकषाय श्रेणी गज च्हडतां, श्वानतणी गति झाली. हो म० ५ रागद्वेष अविरतिनी परिणति, (ए) चरणमोहना योद्धा; वीतरागपरिणति परिणमतां, उठी नाठा बोद्धा....... हो म० ६ वेदोदय कामा परिणामा, काम्य करम सहु त्यागी; निष्कामी करुणारस सागर, अनंत चतुष्क पदपागी. हो म० ७ दानविघन वारी सहु जनने, अभयदानपद दाता; लाभविघन जगविघन निवारक, परम लाभ समाता. हो म० ८ वीर्यविघन पंडितवीर्ये हण्यो, पूरण पदवी योगी; भोगोपभोग दोय विघन निवारी, पूरणभोग सुभोगी. हो म० ९ १२२ For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए अढार दूषण वरजित तनु, मुनिजनवृंदे गाया; अविरतिरूपक दोषनिरूपण निरदूषण मन भाया.. हो म० १० ईणविध परखी मनविशरामी, जिनवरगुण जे गावे; दीनबंधुनी महेर नजरथी, आनंदघन पद पावे..... हो म० ११ श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति उल्लसित तन मन थाय रे; वदन अनोपम निरखतां, मारां भव भवनां दुःख जाय रे; मारां भव भवनां दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद रे; सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु दीपतो सुखकंद रे.......... १ निशदिन सुतां जागतां, हैडाथी न रहे दूर रे; जब उपकार संभारीए, तव उपजे आनंदपूर रे. ..............२ प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे; गुण गुणअनुबंधी हुआ, ते तो अक्षयभाव कहाय रे. ........३ अक्षय पद दीए प्रेम जे, प्रभुनुं ते अनुभवरूप रे; अक्षर-स्वर-गोचर नहि, ए तो अकल अमाय अरूप रे. .....४ अक्षर थोडा गुण घणा, सज्जनना ते न लिखाय रे; वाचकयश कहे प्रेमथी, पण मनमांहे परखाय रे..............५ १२३ For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन मुनिसुव्रत जिनराय! एक मुज विनंति निसुणो, आतमतत्त्व क्युं जाण्युं जगतगुरु! एह विचार मुज कहियो; आतमतत्त्व जाण्या विण निरमल, चित्तसमाधि नवि लहिये. १ कोई अबंध आतमतत्त्व माने, किरिया करंतो दीसे; क्रिया तणुं फल कहो कुण भोगवे? इम पूछ्युं चित्त रीसे.मु० २ जड चेतन ए आतम एकज, थावर जंगम सरिखो; दुःख सुख संकर दूषण आवे, चित्त विचारी जो परिखो.मु० ३ एक कहे 'नित्यज आतमतत्त', आतम दरशन लीनो; कृत-विनाश अकृतागम दूषण, नवि देखे मति हीनो.....मु० ४ सुगत मतिरागी कहे वादी, क्षणिक ए आतम जाणो; बंध-मोक्ष सुखदुःख न घटे, एह विचार मन आणो......मु० ५ भूत चतुष्क वरजित आतमतत्त, सत्ता अलगी न घटे; अंध शकट जो नजरे न देखे, तो शुं कीजे शकटे? ....मु० ६ एम अनेकवादी मतविभ्रम, संकट पडिया न लहे; चित्तसमाधि ते माटे पूछु, तुम विण तत्त कोई न कहे. .मु० ७ वलतुं जगगुरु! इणि परे भाखे, पक्षपात सब छंडी; राग-द्वेष-मोहपख वर्जित, आतमशुं रढ मंडी............. मु० ८ १२४ For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आतमध्यान करे जो कोउ, सो फिर इणमें नावे; वाग्जाल बीजुं सहु जाणे, एह तत्त्व चित्त चावे.. जेणे विवेक धरी ए पख वहियो, ते तत्त्वज्ञानी कहिये; श्री मुनिसुव्रत कृपा करो तो, आनंदघन पद लहिये... श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन तार हो तार प्रभु! शुद्ध दिनकर विभु ! शरण तुं एक छे मुज स्वामी; ज्ञान-दर्शन धणी, सुख ऋद्धि घणी, नामी पण वस्तुतः तुं अनामी.... भोगी पण भोगना फंदथी वेगळो, योगी पण योगथी तुं निराळो; जाणतो अपर ने अपरथी भिन्न तुं, विगतमोही प्रभु ! शिव महालो. द्रव्य क्षेत्र अने काल ने भावथी, आत्मद्रव्ये प्रभु! तुं सुहायो; स्वगुणनी अस्तिता, नास्तिता परतणी, शुद्धाकारकमयी व्यक्ति पायो. शुद्ध परब्रह्मनी पूर्णता पामीने, विष्णु जगमां प्रभु! तुं गवायो; १२५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only मु०९ . मु० १० तार० १ तार० २ तार० ३ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .तार०४ तार०५ कर्मदोषो हरी हर प्रभु! तु थयो, सत्य महादेव तुं छे सवायो.. शुद्धरूपे रमी राम तुं जग थयो, शुद्ध आनन्दतानो विलासी; हेम करतां थयो शुद्ध रहेमान तुं, शुद्ध चैतन्यता धर्मकाशी. नाम ने रूपथी भिन्न तुं छे प्रभु! जाणतो तत्त्व स्याद्वादज्ञानी; शरण तारुं ग्रह्यु, चरण तारुं लद्यु, रही नहीं वात हे नाथ! छानी. .. भक्तिना तोरना जोरमां प्रभु मळ्या, सहज आनंदना ओघ प्रगट्या; जाणुं पण कही शकुं केम निर्वाच्यने, सकल विषयोतणा फंद विघट्या. एकता लीनता भक्तिना तानमां, धेन आनंदनी दिल छवाइ; बुद्धिसागर प्रभु भेटीया भावथी, मुक्तिनी घेर आवी वधाई. ........ तार०६ तार०७ तार०८ १२६ For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन जीणंदजी एह संसारथी तार श्री मुनिसुव्रत भवजलपार उतार पद्मावतीजी को नंदन नीरखी हरखीत तन मन थाय, कच्छप लंछन प्रभु पद धारे श्यामल वर्ण सोहाय...... लोकांतिक सुर अवसर देखी, प्रतिबोध न आय राजकाज सब छोड देई प्रभु, संयमशुं चीत्त लाय ... .........२ तप जप सयंम ध्यानानलथी, कर्म इंधन जल जाय लोकालोक प्रकाश अद्भुत, केवलज्ञानी तुं थाय ............... ज्ञानमे भारी करुणाधारी, जीवदया चित्तलाय मित्रअश्व उपकार करन कुं, भरुअच्छ नगरमें आय ........४ अश्व उगारी बहुजन तारी, अजर अमर पद पाय ज्ञानविमल कहे महेर करो तो, हमने ते सुख थाय .........५ श्री नमिनाथ स्तवन नमिजिनवर! प्रभु! चरणमा लागुं, शुद्ध रमणता मांगुरे; बाह्यपरिणति टेव निवारी, शुद्धापयोगे जागुंरे...........नमि० १ १२७ For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तरदृष्टि अमृतवृष्टि, सहजानन्द स्वरूपरे; तन्मयता प्रभु साथे करती, शुद्ध समाधि अनुपरे......नमि० २ असंख्यप्रदेशी चेतन क्षेत्र, गुण अनंत आधाररे; उत्पत्ति व्यय ध्रुवता समये, द्रव्यपणुं जयकाररे........नमि० ३ ज्ञान-चरणपर्यायनी शुद्धि, मुक्ति प्रभु मुख भाखेरे; अस्ति नास्तिनी सप्तिभंगीथी, षड्द्रव्योने दाखेरे.......नमि० ४ शब्दादिक नय शुद्ध परिणति, उत्तर उत्तर साररे; कारणे कार्यपणुं नीपजावे, द्रव्यभावे निर्धाररे. .........नमि० ५ निमित्त पुष्टालंबन सेवी, उपादान गुण शुद्धिरे; शुद्ध रमणता योग करतो, पामे क्षायिक ऋद्धिरे......नमि० ६ सुखसागर कल्लोले चढियो, लही सामर्थ्य पर्यायरे; शुद्ध परिणति-चंद्र प्रकाशे, आनन्द क्यांये न मायरे. .नमि० ७ शुद्ध परिणति-चरण शरणमां, शुद्धोपयोगे रहीशुंरे; बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, स्वपर प्रकाशी थईशुरे. ... नमि० ८ श्री नमिनाथ स्तवन षट दरिषण जिन अंग भणीजे, न्यास षडंग जो साधे रे; नमि जिनवरनां चरण उपासक, षट दरिशन आराधे रे.ष० १ १२८ For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन सुर पादप पाय वखार्पु, सांख्य-योग दोय भेदे रे; आतमसत्ता विवरण करता, लहो दुग अंग अखेदेरे.....ष० २ भेद-अभेद सुगत-मिमांसक, जिनवर दोय कर भारीरे; लोकालोक अवलंबन भजियें, गुरुगमथी अवधारीरे......ष०३ लोकायतिक कूख जिनवरनी, अंश विचार जो कीजेरे; तत्त्वविचार सुधा रस-धारा, गुरुगम विण किम पीजेरे? ष० ४ जैन जिनेश्वर वर उत्तम अंग, अंतरंग बहिरंगेरे; अक्षर-न्यास धरा आराधक, आराधे धरी संगेरे............ष० ५ जिनवरमां सघळा दरिशण छे, दर्शने जिनवर भजनारे; सागरमां सघळी तटिनी सही, तटिनी सागर भजनारे..ष० ६ जिनसरूप थई जिन आराधे, ते सही जिनवर होवे रे; शृंगी इलिकाने चटकावे, ते भुंगी जग जोवेरे..............ष० ७ चूर्णि, भाष्य, सूत्र, नियुक्ति, वृत्ति परंपर अनुभवेरे, समय पुरुषना अंग कह्यां ए, जे छेदे ते दुरभव्य रे.....ष० ८ मुद्रा, बीज, धारणा, अक्षर, न्यास, अरथ विनियोगे रे; जे ध्यावे, ते नवि वंचीजे, क्रियाअवंचक भोगे रे. ........ष० ९ श्रुत अनुसार विचारी बोलुं, सुगुरु तथाविध न मिलेरे; क्रिया करी नवि साधी शकियें, ए विखवाद चित्त सघळे रे. .ष०१० १२९ For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते माटे उभा कर जोडी, जिनवर आगळ कहिये रे; समय चरणसेवाशुचि दीजे, जिम आनंदघन लहियेरे. ष० ११ श्री नेमिनाथ स्तवन नेमिजिनेश्वर! वन्दना, होशो वार हजार; त्रिकरणयोगेरे सेवना, प्रीति भक्ति उदार नेमि० १ सालंबन ध्याने प्रभु! दिलमां आवो सनाथ; उपयोगे तुज धारणा, आवागमन ते नाथ! .............. नेमि० २ नामादिक निक्षेपथी, आलंबन जयकार; निरालंबन कारणे, तुज व्यक्ति सुखकार, ............... नेमि० ३ सविकल्प समाधिमां, भासो हृदयमझार; अन्तरअनुभव-ज्योतिमां, निर्विक्लप विचार. ............नेमि० ४ भेदाभेद स्वभावमां, अनन्त गुण-पर्याय; छति सार्मथ्य पर्यायनी, शक्ति-व्यक्ति सुहाय...........नेमि० ५ झळहळज्योति ज्यां जागती, भासे सर्वपदार्थ; बुद्धिसागर ज्ञानमां, सिद्ध बुद्ध परमार्थ. ................नेमि०६ श्री नेमिनाथ स्तवन नेमि जिनेश्वर वंदीए, ध्याईजे सुखकार; द्रव्यकर्म ने भावकर्म जेणे हण्यां, धर्मचक्री निर्धार.... नेमि० १ १३० For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोत्रीस अतिशये शोभता, बारगुणे गुणवंत; वाणी गुण पांत्रीसना धारक जिनपति, रूपारूपी भदंत..............नेमि० २ वीस स्थानकमांही एकजु, आराधन करी बेश; पूर्वे भवे तीर्थंकर नामने बांधियु, टाळ्या सर्वे क्लेश........... नेमि० ३ चउनिक्षेपे ध्यावतां, सातनयेकरी ज्ञान; निजआतम अरिहंतपण जल्दी वरे, ___टाळी मोहवू तान............. नेमि० ४ तुज अनुभव जेणे कर्यो, ते नहीं बांधे कर्म; शाता अशाता भोगवे ते समभावथी, वेदे आतम शर्म........नेमि० ५ तिरोभाव निजशक्तिनो, आविर्भाव जे अंश; ते अंशे मुक्ति ने मुक्तता आत्ममां, वर्ते छे सापेक्ष.............. नेमि० ६ ध्याता ध्येय ने ध्यानना, परिणामे छे अभेद; बुद्धिसागर एकता प्रभुनी साथमां, पाम्यो अनुभवे. ............. नेमि० ७ १३१ For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री नेमिनाथ स्तवन परमातम पूरण कला, पूरण गुण हो पूरण जन आश. पूरण दृष्टि निहालिये, चित्त धरिये हो अमची अरदास.परमा१ सर्व देश घाती सहुं, अघाती हो करी घात दयाल. वास कियो शिव-मंदिरे, मोहे विसरी हो भमतो जगजाल...२ जग-तारक पदवी लही, तार्या सही हो अपराधी अपार. तात कहो मोहे तारतां, किम कीनी हो इण अवसर वार ...३ मोह महामद छाकथी, हुं छकियो हो नहीं शुद्धि लगार. उचित सही इण अवसरे, सेवकनी हो करवी संभाल. परमा.४ मोह गये जो तारशो, तिण वेला हो किहां तुम उपगार. सुख वेला सज्जन घणा, दुःख वेला हो विरला संसार. ... .५ पण तुम दरिसण जोगथी, थयो हृदये हो अनुभव परकाश. अनुभव अभ्यासी करे, दुखदायी हो सहु कर्म-विनाश.परमा.६ कर्म कलंक निवारी ने, निजरूपे हो रमे रमता राम. लहत अपूरव भावथी, इण रीते हो तुम पद विशराम.परमा.७ त्रिकरण जोगे विनवू, सुखदायी हो शिवादेवीना नंद. चिदानंद मन में सदा, तुमे आवो हो प्रभु नाण दिणंद.परमा.८ १३२ For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री नेमिनाथ स्तवन निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजीमती कर्यो त्याग भगवंताजी, ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरि, अनुक्रमे थया वीतराग भग.... १ चामर चक्र सिंहासन अरि, पादपीठ संयुक्त भग.; छत्र चाले आकाशमां अरि, देव दुंदुभि वर उत्त भग. .२ सहस जोयण ध्वज सोहतो अरि, प्रभु आगल चालंत भग.; कनक कमल नव उपरे अरि, विचरे पाय ठवंत भग......... ३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार मुखे दीये देशना अरि, त्रण गढ झाक - झमाल भग.; केश रोम श्मश्रु नखा अरि., वाधे नहीं कोइ काल भग. .... ४ कांटा पण ऊंधा होय अरि, पंच विषय अनुकूल भग.; षट् ऋतु समकाले फले अरि., वायु नहिं प्रतिकूल भग. पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरि., वृष्टि होय सुरसाल भग.; पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरि., वृक्ष नमे असराल भग...........६ जिन उत्तम पद पद्मनी अरि., सेव करे सुर कोडी भग.; चार निकायना जघन्यथी अरि., चैत्य वृक्ष तेम जोडी भग. ७ ....५ १३३ For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री नेमिनाथ स्तवन रहो रहो रे यादव! दो घडीयां, दो चार घडीयां. शिवामात मल्हार नगीने, क्युं चलीए हम विछडीयां? रहो. यादव वंश विभूषण स्वामी!, तुमे आधार छो अडवडीयारहो.१ तो बिन ओरसे नेह न कीनो, और करनकी आखडीयां. रहो. इतने बीच हम छोड न जइए, होत बुराइ लाजडीयां. रहो.२ प्रीतम प्यारे! नेह कर जानां, जे होत हम शिर बांकडियां. रहो. हाथसे हाथ मिलादे सांइ!, फूल बिछाउं सेजडीयां. ... रहो.३ प्रेमके प्याले बहुत मसाले, पीवत मधुरे सेलडीयां. रहो. समुद्र विजय कुल तिलक नेमिकुं,राजुल झरती आंखडीयां.रहो४ राजुल छोर चले गिरनारे, नेम युगल केवल वरीयां. रहो. राजीमती पण दीक्षा लीनी, भावना रंग रसे चडीयां... रहो.५ केवल लई करी मुगति सिधारे, दंपती मोहन वेलडीयां. रहो. श्री शुभ वीर अचल भई जोडी, मोहराय शिर लाकडीयां. ... रहो.६ श्री नेमिनाथ स्तवन अरज सुणो हो नेम नगीना, राजुलनां भरथार, भजलो-भजलो हो जगनां प्राणी, भजो सदा किरतार.......१ १३४ For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जान लईने आव्या त्यारे, हर्ष तणो नही पार, पशुतणो पोकार सुणीने, पाछा वळ्या तत्काल... .........२ राजुल गोखे राह नीरखती, रडती आंसुधार; पियुजी मारा केम रिसायां, मुज हैयानां हार........ अरज...३ मन तलसतु तन तलसतु, तल से राजुलनार, राजवैभवने ठोकर मारी, लीधो संयमभार............ अरज...४ नेम बन्या तीर्थंकर स्वामि बावीशमां जिनराज; माया छोडी मनडुं साध्यु, नमो नमो शिरताज....... अरज...५ नेमि निरंजन नाथ हमारो, अम नयनोनां तारा; बाळक तुम भक्तिने माटे, रडतो आंसुधार............ अरज...६ परदुःखभंजन नाथ निरंजन, जगपालक कीरतार; ज्ञानविमल कहे भवसिन्धुथी, मुजने पार उतार..... अरज...७ श्री नेमिनाथ स्तवन प्यारा नेम प्रभु मुज मन मन्दिरिये पधारजोरे; कर्माष्टक क्रोधादिक शत्रु, ध्यानथी दूर निवारजोरे. प्यारा० १ जन्म मरणना फेरा, टाळी, पाम्या मुक्ति स्त्री लटकाळी; व्हाला दीनदयाळु सेवकने संभाळजोरे................ प्यारा० २ १३५ For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कर्म न लागे प्रभुजी तमने, समय समय लागे प्रभु अमने; वेगे दुःखनां वादळ मुजथी दूरे टाळजोरे .... प्यारा० ३ शी गति थाशे ओ !!! प्रभु मारी, चारगति भटक्यो दुःखभारी; प्रभु तुज पदपंकज शरण ग्रह्याने उगारजोरे.......... . प्यारा० ४ शरणागतवत्सल भयभंजन, अकलगति तुं देवनिरंजन; प्रेमे बुद्धिसागर भवजल पार उतारजोरे. श्री पार्श्वनाथ स्तवन ॐ ह्रीं श्री प्रभु पार्श्वजी, मुलना मंत्रनुं बीज रे पार्श्वथी सर्व दुरित टले, आय मिले सवि चीज रे .. ॐ ह्रीं असिआउसा नमो नमः तु त्रैलोक्य नो नाथरे चोसठ इंद्रो टोले मली, सेवे प्रभु जोडी हाथ रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ नमो पार्श्वप्रभु पंकजे, विश्वचिंतामणी रत्न रे, ॐ ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती वैरुट्या करो मुज यत्न रे अब मोहे शांति तुष्टि महापुष्टि, धृति किर्ति विधायी रे ॐ ह्रीं अक्षर शब्दथी आधि व्याधि सब जायरे १३६ प्यारा० ५ For Private And Personal Use Only १ २ ३ ॐ अजिता दुरिआ तथा अपराविजया जया देवी दश दिशीपाल गृह यक्ष ए, विद्यादेवी प्रसन्न होय सेवी रे... ५ ४ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गोडी प्रभु पार्श्वचिंतामणी, थंभणो अहि छतो देव रे जगवल्लभ तु जग जागतो, अंतरिक्ष वरकाणा करु सेव श्री शंखेश्वर पुरी मंडणो, पार्श्व जिन प्रणत तरु कल्प रे वारजो दुष्टना वृंदने सुजस सौभाग्य सुख कंद रे श्री पार्श्वनाथ स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्णानन्दमांरे, पार्श्वप्रभु! जयकारी; ध्रुवता शुद्धतारे, शाश्वत सुख भंडारी. १३७ For Private And Personal Use Only ६ आईबसो भगवान मेरे मन आई, में निर्गुणी इतना मांगत हुं हो वे मेरो कल्याण मेरे मन की तुम सब जाणो, क्या करूं आपसे ध्यान विश्वहितैषीदिन दयालु रखीये मुजपर ध्यान. भोगाधीन होवत मन मेलु बिसरी तुम गुणगान वहांसे छुडाओ, हृदये आयी अरिभंजनक भगवान. आप कृपासे तर गये केई रह गया मे दर्दवान निगाह रखके निर्मल कीजीए धनवंतरी भगवान .......४ श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर दीजीए तुम गुणगान इनही सहारे चिद्धन सेवा बनुंगां आपसमान. श्री पार्श्वनाथ स्तवन 19 १ २ ५ पूर्णा० १ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केवलज्ञानथीरे, लोकालोक प्रकाशो; ध्याता ध्यानमारे, साहिब! निज घर वासो. ........... पूर्णा० २ सहजानन्दनारे समये समये भोगी; रत्नत्रयी प्रभुरे! क्षायिक गुणगणयोगी. ................ पूर्णा० ३ व्यक्ति तुज समीरे, भक्ति तुज मुज करशे; तुज आलंबनेरे, चेतन शिवपुर ठरशे.................... पूर्णा० ४ साचा भावथीरे, जिनवरसेवा करशुं; शुद्ध स्वभावमारे, क्षायिक सद्गुण वरशुं. ............ पूर्णा० ५ झटपट त्यागीनेरे, खटपट मननी काची; मळ| भावथीरे, अनुभव युक्ति ए साची. ......... पूर्णा० ६ हळीयो देवशुंरे, ते जन शिवसुख पावे; साची भक्तिथीरे, आविर्भाव सुहावे. ................ पूर्णा० ७ पास जिनेश्वरारे, आपोआप स्वभावे; आतम भावथीरे, बुद्धिसागर गावे. ...................... पूर्णा० ८ श्री पार्श्वनाथ स्तवन रातां जेवां फूलडां ने, शामल जेवो रंग. आज तारी आंगीनो काइ, रूडो बन्यो रंग. प्यारा पासजी हो लाल, दीन दयाल मुजने नयने निहाल..१. १३८ For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोगीवाडे जागतो ने, मातो धिंगड मल्ल. शामलो सोहामणो कांइ, जीत्या आठे मल्ल........... प्यारा.२. तुं छे मारो साहिबो ने, हुं छु तारो दास. आशा पूरो दासनी कांइ, सांभली अरदास............ प्यारा.३. देव सघला दीठा तेमां, एक तुं अवल्ल. लाखेणुं छे लटकुं तारुं, देखी रीझे दिल्ल............. प्यारा.४. कोइ नमे पीरने, ने कोइ नमे राम. उदय-रत्न कहे प्रभु, मारे तुमशुं काम................. प्यारा.५. श्री पार्श्वनाथ स्तवन अब मोहे ऐसी आय बनी; श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, मेरो तुं एक धनी..........अब.१. तुम बिन कोउ चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुणी; मेरो मन तुझ ऊपर रसियो, अलि जिम कमल भणी. अब.२. तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज धरनी; नाम जपुं निशि वासर तेरो, ए मुझ शुभ करनी. .......अब.३. कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी; नाम जपुं जलधार तिहां तुझ, धारुं दुःख हरनी........अब.४. १३९ For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिथ्यामति बहुजन हे जगमें, पद न धरत धरणी; उनसें अब तुझ भक्ति प्रभावे, भय नहीं एक कणी......अब.५. सज्जन नयन सुधारस अंजन, दुरजन रवि भरणी; तुझ मूरति निरखे सो पावे, सुख जश लील घनी.......अब.६. श्री पार्श्वनाथ स्तवन समय समय सो वार संभारं, तुजशुं लगनी जोर रे. मोहन मुजरो मानी लेजे, ज्युं जलधर प्रीति मोर रे. समय.१. माहरे तन धन जीवन तुंही, एहमां जूठ न मानो रे. अंतरजामी जगजन नेता, तुं किहां नथी छानो रे.... समय.२. जेणे तुजने हियडे नवि धार्यो, तास जनम कुण लेखे रे. काचे राचे ते नर मूरख, रतनने दूर उवेखे रे. ...... समय.३. सुरतरु छाया मूकी गहरी, बाऊल तले कुण बेसे रे. ताहरी ओलग लागे मीठी, किम छोडाय विशेषे रे.. समय.४. वामा नंदन पास प्रभुजी, अरजी चित्तमां धारो रे. रूप विबुधनो मोहन पभणे, निज सेवक करी जाणो रे..... समय.५. __ श्री पार्श्वनाथ स्तवन कोयल टहुकी रही मधुवन में, पार्श्व शामलीया वसो मेरे दिलमें. १४० For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काशी देश वाणारसी नगरी, जन्म लीयो प्रभु क्षत्रिय कुलमें. .कोयल.१. बालपणामां प्रभु अद्भुत ज्ञानी, कमठको मान हो एक पलमें. ............... ..कोयल.२. नाग निकाला प्रभु काष्ठ चिराकर, नागकुं सुरपति कीयो एक छीन में. ............. .कोयल.३. संयम लई प्रभु विचरवा लाग्या, संयममें भींज गयो एक रंग में. ............... कोयल.४. समेत-शिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्या, पार्श्वजी को महिमा तीन जगत में. .............. .कोयल.५. उदय रतन की एही अरज है, दिल अटको तोरा चरण कमल में....................कोयल.६. श्री पार्श्वनाथ स्तवन अंतरजामी सुण अलवेसर, महिमा त्रिजग तुमारो; सांभलीने आव्यो हुं तीरे, जन्म मरण दुःख वारो. सेवक अर्ज करेछे राज, अमने शिवसुख आपो. ........१ सहुकोनां मनवंछित पूरो, चिंता सहुनी चूरो; एहq बिरुद छे राज तमारुं, केम राखो छो दूरे...... सेवक.२ १४१ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सेवकने वलवलतो देखी, मनमां महेर न धरशो; करुणा सागर केम कहेवाशो, जो उपगार न करशो. सेवक. ३ लटपटनुं हवे काम नहीं छे, प्रत्यक्ष दरिशन दीजे; धुंआडे धनुं नहि साहिब, पेट पड्यां पतीजे. श्री शंखेश्वर मंडण साहिब, विनतडी अवधारो; कहे जिनहर्ष मया करी मुजने, भव सागरथी तारो.. सेवक. ५ श्री पार्श्वनाथ स्तवन ......... सेवक.४ तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो क्षण एक मुजने नाहि विसारो, महेर करी मुज विनती स्वीकारो, स्वामी सेवक जाणी निहाळो.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . तुं प्रभु० १ लाखचोराशी भटकी प्रभुजी, आव्यो हुं तारे शरणे जिनजी, दुरगति कापो शिवसुख आपो, स्वामी सेवकने निजपद स्थापो. अक्षय खजानो प्रभु तारो भर्यो छे, आपो कृपाळु में वामानंदन जगनंदन प्यारो, देव अनेरा मांहि तुं १४२ . तुं प्रभु० ३ पलपल समरुं नाथ शंखेश्वर, समरथ तारण तुं ही जिनेश्वर, प्राणथकी तुं अधिको व्हालो, दया करी मुजने नेहे निहाळो. .तुं प्रभु० ४ For Private And Personal Use Only तुं प्रभु० २ हाथ धर्यो छे ही न्यारो. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भक्त वत्सल तारुं बिरुद जाणी, केड न छोडुं एम लेजो जाणी, चरणोनी सेवा नितनित चाहुं, घडी घडी मनमांही उमाहूं. तुं प्रभु० ५ ज्ञान विमल तुज भक्ति प्रभावे, भवोभवनां संताप समावे, अमीय भरेली तारी मूरति निहाळी, पाप अंतरना लेजो पखाळी. . तुं प्रभु० ६ श्री पार्श्वनाथ स्तवन पार्श्व श्री शंखेश्वरा ओ...! तारे द्वारे आव्यो छं भाव भरेला हृदये स्वामी, भक्ति भेटणुं लाव्यो छं मारु मारु करता रहीने, जनम-जनम खोवाना छे तारा शरणे आवीने प्रभु, पापमेल धोवाना छे. . पार्श्व श्री शंखेश्वरा...१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणथी भरेलो नाथ तुं छे, हुं अवगुणथी भरेलो छं, जेवो समजे तेवो स्वामी! तारी आण वरेलो छं. १४३ . पार्श्व श्री शंखेश्वरा... २ कोण मूकी कल्पवेली, आंक धतूराने लहे, कोण तजे चिंतामणीने, काच कटका संग्रहे. . पार्श्व श्री शंखेश्वरा... ३ . पार्श्व श्री शंखेश्वरा... ४ For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री 'शंखेश्वर' पार्श्व मुजने, पूर्व पुन्योदये मल्या, 'नय' भवोभव दास ताहरो, मनमनोरथ सवी फल्या. .......पार्श्व श्री शंखेश्वरा... ५ श्री पार्श्वनाथ स्तवन तमे बोलो बोलो ने पारसनाथ, बाळक तमने बोलावे, तमे आंखलडी खोलोने एकवार, बाळक तमने बोलावे. .....१ मारा कीधेला कर्मो आजे नड्या, मारा अवळा ते लेखो कोणे लख्या, मारा पूर्वना प्रगट्या छे पाप... ............... बाळक तमने... २ कंठ सुकाय मुखेथी बोलातुं नथी, श्वास रुंधाय आंखेथी देखातुं नथी, हुं तो रडुं छु हैया भार... .. बाळक तमने... ३ मारी आशानो दिपक बुझाई गयो, चारे कोर अंधकार छवाई गयो, मारा जीवनमां पडी छे हडताळ... ........... बाळक तमने...४ तमे शांतिनी गोदमां पोढी गया, छोडी जता न आवी केम दया, हवे क्यां सुधी करशो विश्राम? बाळक तमने...५ ........... १४४ For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .................. तारा विना आ आंसु कोण लु छे...? तारा भक्तोना भाव कोण पूछे...? 'वीरविजय' ना प्राण आधार................... बाळक तमने...६ श्री पार्श्वनाथ स्तवन तारा नयनां रे, प्याला प्रेमनां भर्यां छे, दयारसनां भर्यां छे; अमी छांटनां भर्यां छे. तारा नयनां रे.................. तारा० १ जे कोई तारी नजरे चढी आवे, कारज तेना ते सफल कर्यां छे. तारा० २ प्रगट थई पाताळथी प्रभु तें, जादवनां दुःख दूर कर्यां छे. .......... तारा०३ पन्नग-पति पावकथी उगार्यो, जनम-मरण भयतेहनां हाँ छे. .तारा० ४ पतितपावन शरणागत तुहिं दरिशन दीठे मारां चित्तडां ठर्यां छे................... .. तारा० ५ श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, तुज पद पंकज आजथी धर्या छे. .................. तारा० ६ जे कोई तुजने ध्याने ध्यावे, अमृत सुखनां रंगथी भर्यां छे. ... तारा० ७ १४५ .................... For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री पंचासर पार्श्वनाथ स्तवन पार्श्व पंचासरा जगत् मां जयकरा, पूर्ण आनंद दरियो सुहायो; शुद्ध आत्मप्रभु वीतरागी विभु, पूर्ण ज्योतिस्वरूपे में ध्यायो. रोग नहि, शोक नहि, सर्व चिंता रहित, सर्व भीति रहित आत्म वरवा; शुद्ध क्षायिक तुज रूप संभारतां, तत्क्षण मोह नहीं शोक परवा. जेवुं छे ताहरुं रूप आविः भलुं, माहरुं तेहवुं रूप नक्की; माहरी ताहरी एकता अनुभवी, जीवतां मुक्तिनी झांखी वकी. भार शो? दुःखनो, ज्ञान आगळ टके, भानु त्यां 'तम' रहे केम क्यारे; तुज देखे थतो आत्मउपयोग मुज, पूर्ण आनंद वहेतो जत्यारे . माहरो ताहरो भेद ज्यां छे नहीं, एक आनंदरूपे प्रकाश्यो; १४६ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्व० १ पार्श्व० २ पार्श्व० ३ . पार्श्व० ४ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिसागर परिपूर्ण शक्तिमयी, आतमा आत्मरूपेज भास्यो. .......... पार्श्व० ५ श्री महावीर स्वामी स्तवन करुणा सागर जीवजीवन प्रभु वीरजी, अनंत गुणना धारक प्राण आधार जो, मुजने मूकी भव अटवीमा एकलो, आप सिधाव्या मुक्तिपुरीमां नाथ जो............करुणा सागर १ सिद्ध-बुद्ध अविनाशी पदना भोगी छो, हुँ छु पामर मोहजाळमां मग्न जो, नाथ निहाळी शरणे आव्यो आपना, तार तार हे तारक देव दयाळ जो............करुणा सागर २ समवसरणे बेसी अमीरस वाणीथी, ज्यारे करता प्रभुजी भवि उपकार जो, ते वेळा हुं भाग्य विहुणो कई गति? जेथी न पाम्यो भव सागरनो अतं जो..........करुणा सागर ३ ज्ञान अनंतु सुख अनंतु ताहरे, क्षायिक भावे वर्ते छे तुज गुण जो, पण हुं पापी रमण करु पर भावमां, तो किम पामुं स्वरूप रमण- सुख जो.......करुणा सागर ४ १४७ For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धारथ कुल चरण प्रभु महावीरजी, त्रिशलानंदन त्रिजग वंदन नाथ जो, मनमंदिरमा आवो प्यारा वीरजी, तुम विना सूनो छे आ दरबार जो. करुणा सागर ५ अनेक जीवोने तार्या तें करुणानिधि, तो शुं मुजने मूकी जशो भगवान जो? मनोहर मुद्रा जोवा तलशे ताहरी, 'उदयरत्न' कहे द्यो दरीशन आज जो........करुणा सागर ६ श्री महावीर स्वामी स्तवन सिद्धारथना रे नन्दन विनवू, विनतडी अवधार. भव मण्डपमां रे नाटक नाचियो, हवे मुज पार उतार.सिद्धा.१ त्रण रतन मुज आपो तातजी, जेम नावेरे सन्ताप दान दियंता रे प्रभु कोसर कीसी, आपो पदवी रे आप. सिद्धा.२ चरण-अंगूठे रे मेरु कंपावियो, मोड्यां सुरनां रे मान. अष्ट करमना रे झगडा जीतवा, दीधां वरसी रे दान.सिद्धा.३ शासन नायक शिवसुख दायक, त्रिशला कूखे रतन. सिद्धारथनो रे वंश दीपावियो, प्रभुजी तुमे धन्य धन्य.सिद्धा.४ वाचक शेखर कीर्ति विजय गुरु, पामी तास पसाय. धरम तणा जिन चोवीसमा, विनय विजय गुण गाय. सिद्धा.५ १४८ For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर स्वामी स्तवन जिणंदा प्यारा मुणिंदा प्यारा, देखो रे जिणंदा भगवान, ..................... देखो रे जिणंदा प्यारा. १ शुद्ध रूप स्वरूप विराजे, जग नायक भगवान......... देखो.२ दरश सरस निरख्यो जिनजीको, दायक चतुर सुजाण. देखो.३ शोक संताप मिट्यो अब मेरो, पायो अविचल भाण... देखो.४ सफल भई मेरी आज की घडीयां, सफल भये नैन प्राण.देखो.५ दरिसण देख मीट्यो दुःख मेरो, आनंदघन अवतार.. देखो.६ म्हने हो श्री वीरनुं शरणुं (कव्वालि) जगतना सर्व योद्धामां, प्रभु महावीर तुं मोटो; हठाव्यो मोहने जल्दी, म्हने हो वीरनुं शरj. .... जगतना० १ अति गंभीरता त्हारी, गमन शाळाविषे कीg; जणाव्युं नहि स्वयं ज्ञानी, म्हने हो वीरनुं शरj. जगतना० २ जणावी मातृभक्ति बहु, अरे जननी उदरमाही; प्रतिज्ञा प्रेम जाळववा, म्हने हो वीरनुं शरणुं ...... जगतना० ३ अरे ओ ज्येष्ठ बन्धुनी, खरी दाक्षिण्यता राखी; गुणो गणता लघु नहि पार,म्हने हो वीरनुं शरj.जगतना० ४ १४९ For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यशोदा साथ परणीने, रह्यो निर्लेप अन्तरथी; थशे क्यारे दशा एवी, म्हने हो वीरनुं शरणुं. जगत उद्धार करवाने, यतिनो धर्म लीधो त्हें; सह्या उपसर्ग समभावे, म्हने हो वीरनुं शरणुं.... जगतना० ६ अलौकिक ध्यान त्हें कीधुं, गया दोषो थया निर्मल; थया सर्वज्ञ उपकारी, म्हने हो वीरनुं शरणुं. घणा उपदेश दीधा त्हें, चतुर्विध संघने स्थाप्यो; त्हने में ओळखी लीधो, म्हने हो वीरनुं शरणुं.... जगतना० ८ अनन्तानन्द लीधो त्हें, जीवन त्हारूं विचारूं हुं; बुद्धयब्धि बाळ हुं त्हारो, शरण त्हारूं शरण त्हारूं. जगतना० ९ श्री महावीर स्वामी स्तवन (राग-सोरठ) व्हाला त्रिशलानंदन वीरजिनेश्वर तारजो रे; जाणी बाल तमारो विनतडी अवधारजो रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only जगतना० ५ जगतना० ७ रमतगमतमां जीवन गाळु, कामक्रोधथी मनडुं बाळं; प्यारा! करूणामृत सिंचनथी, ताप निवारजो रे व्हाला० २ ज्ञान विना हृदये अंधारूं, करशे तुम विण कोण आजवाळं ? ; सुखकर! कामक्रोध विषयादिक, अरि संहारजो रे व्हाला० ३ १५० .... व्हाला० १ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्हाला० ४ भक्ति करूं भावे शिर साटे, वळवा मोक्ष नगरनी वाटे; बाळक कहीने मुजने, तुज अंके बेसाडजो रे........ प्रेम विना लुखी छे भक्ति, गुण पर्याय विना जेम व्यक्ति; प्रभुजी दीनदयाळु, अशुभ वृत्ति संहारजो रे..........व्हाला० ५ शरण एक तारूं छे साचुं, निशदिन तुज भक्तिथी राचुं; प्रेमे बुद्धिसागर, बाळकने उगारजो रे व्हाला० ६ श्री महावीर स्वामी स्तवन (ए गुण वीर तणो न विसारु, संभारु दिन रात रे-ए चाल ) ॐ अर्हं महावीर जिनेश्वर, जाप जपुं दिन रात रे; प्रभु विण बीजु कांई न इच्छं, मात पिता तुं भ्रात रे. ॐ अर्हं० १ परा पश्यंति मध्यमा वैखरी, जापे टळे सहु पाप रे, राग द्वेष न पासे आवे, जाप जपंतां अमाप रे. ..... ॐ अर्हं० २ ज्यां त्यां अंतर बाहिर धारणा, त्राटक तुज उपयोगे रे; जीभ न हाले मानस जापे, प्रगटे आनंद भोग रे.. ॐ अर्हं० ३ जड चेतन सहुं विश्वमां प्रभुनी, सत्ता धारणा योग रे; आत्म महावीर सत्ता प्रगटे, थातो कर्म वियोग रे. ॐ अर्ह० ४ प्रभु तुज जापना धूपथी नासे, दुर्बुद्धि दुर्गंध रे; क्षण क्षण आतम शुद्धि वृद्धि, आतम थाय अबंध रे. ॐ अर्ह०५ १५१ For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु जापे प्रभु घटमां प्रकाश्या, प्रगटी सुखनी खुमारी रे; बुद्धिसागर महावीर लगनी, प्रगटी न उतरे उतारी रे. . ॐ अहँ ६ श्री महावीर स्वामी स्तवन दीन दुःखीयानो तुं छे बेली... तुं छे तारणहार... तारा महिमानो नही पार...(२) राजपाटने वैभव छोडी, छोडी दीधो संसार... तारा महिमानो नही पार...(१).......... 'चंडकोशीयो' डसीयो ज्यारे, दूधनी धारा पगथी निकळे विषने बदले दूध जोईने, चंडकोशीयो आव्यो शरणे 'चंडकोशीया' ने तें तारी, कीधो घणो उपकार... तारा महिमानो नही पार... .........२ कानमां खीला ठोक्या ज्यारे, थई वेदना प्रभुने भारे, तोये प्रभुजी शान्त विचारे, गोवाळनो नही वांक लगारे, क्षमा आपीने ते जीवोनो तारी दीधो संसार... तारा महिमानो नही पार........... महावीर, महावीर! गौतम पुकारे, आंखेथी अश्रुनी धारा वहावे क्यां गया मुजने एकला छोडीने? १५२ For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हवे नथी कोई जगमां मारे! पश्चाताप करता करता... उपन्यु के केवळज्ञान... तारा महिमानो नही पार... .........४ 'ज्ञानविमल' गुरु वयणे आवे, गुण तुमारा भावे गावे, थई सुकानी तुं प्रभु आवे, भव जल नैया पार उतारे, अरजी अमारी, दिलमां धारी... वंदु वारंवार तारा महिमानो नही पार, तारा गुणोनो नही पार, तारा वैभवनो नही पार, तारी करुणानो नही पार. ..........५ श्री महावीर स्वामी स्तवन तारहो तार महावीर जगदिनमणि, भक्तने एक शरणुं तमाळं; अकल निर्भय प्रभु शुद्ध स्वामी विभु, शरणथी शुद्धव्यक्ति । समारू................ तारहो० १ नित्य निरंजन धर्म स्याद्वादमय, शुद्धव्यक्ति असंख्यप्रदेशी; ज्ञानथी जाणता दर्शने देखता, शुद्ध पर्यायमयने अलेशी. तारहो० २ छतिपणे केवलज्ञानना पर्यवा, समयमां जाणता ते अनंता; तेथी पण जाणता अनंत सार्मथ्यना; ज्ञानने ज्ञेयरूपे सुहंता... ........... तारहो० ३ १५३ For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम इश्वर सदा ऋद्धि क्षायिकधणी, पौद्गलिक भावथी देव न्यारो; शर्म अनंतनो भोग तुं भोगवे, पूज्य तुं प्राणथी मुज प्यारो..... .......... तारहो० ४ द्रव्यथी भावथी शरण छे ताहरूं, शुद्ध उपयोगमा तुं प्रभासे; बुद्धिसागर प्रभो तारशो बापजी, ध्यानना योगमां देव पासे. .. ................. तारहो० ५ बोरीज मंडण श्री वर्धमान जिन स्तवन प्रभुनी शक्तिनो नहि पार, त्रिशलानन्दन छो बळवान, चरणे मेरुने ध्रुजाव्यो, एवा बळशाळी भगवान, .......... टेक. योद्धा निरख्या सहु जगना, जे अतिशय शक्ति धरावे, योद्धा श्रेष्ठ जगतमां आप, योद्धा सर्वे मूके मान.......प्रभु० १ आत्मशक्तिना पाठो, प्रभुए जगने उपदेश्या, जे शक्ति आपे मोक्ष, एवा शीखव्यां उत्तम गान. .......प्रभु० २ तप धार्यु उग्रवनमां, प्रभु केवलज्ञानने माटे, सहता घोर अति उपसर्ग, तार्या जनने आपी ज्ञान....प्रभु० ३ प्रगट्या प्रभु बोरीज गामे, महावीर प्रभुने नामे, मनहर मूर्ति कला अपार, करता गुणीजन जेनुं ध्यान.प्रभु० ४ १५४ For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अमृतथी मीठी वाणी, अति हर्ष हृदय उभरावे, हेमेन्द्र हृदय प्रगटावे, जनकल्याणक आत्मज्ञान. . प्रभु० ५ (आ. श्री अजितसागरसूरि के शिष्य हेमेन्द्रसागरजी कृत ) बोरीज मंडण श्री वर्धमान जिन स्तवन तमारी शक्ति तणो नहीं पार, त्रिशलानंदन प्राणाधार, अंगुठे मेरु हलाव्यो, हुं शरण तमारे आव्यो. स्वामी सेवकना सुखकार. बिराज्या बोरीज गामे, जग तरे प्रभुने नामे, भविजनना हैयाहार. सिंह लंछन चरणे राजे, देखीने रतिपति लाजे, छो सत्य वस्तुमां सार सिद्धार्थ पिताने भाव्या, जगतारण माटे आव्या, निर्मळ पाळो पंचाचार योजन लगी गंभीरवाणी, तमो ज्ञानीतणां पण ज्ञानी, उत्तम आपो आत्म विचार अजितपदे प्रभु स्थापो, अंतरना क्लेशो कापो, वसावो ज्ञान- नगर मोझार १५५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . त्रिशला ... १ . त्रिशला ...२ . त्रिशला ...३ . त्रिशला ...४ . त्रिशला ...५ . त्रिशला ...६ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुचि मातृभक्तिने साधी, निवारी व्याधि उपाधि, 'हेमेन्द्र' करो भवपार ................... त्रिशला...७ (आ. श्री अजितसागरसूरि के शिष्य हेमेन्द्रसागरजी कृत) श्री महावीरस्वामी हालरर्दू माता त्रिशला झुलावे पुत्र पारणे, गावे हालो हालो हालरवानां गीत; सोना रूपा ने वली रत्ने जडियुं पारj, रेशम दोरी घुघरी वागे छुम छुम रीत; हालो हालो हालो हालो मारा नन्दने रे.. जिनजी पास प्रभुथी वरस अढीसें अंतरे रे, __ होशे चोवीसमो तीर्थंकर जिन परिमाण; केशी स्वामी मुखथी एहवी वाणी सांभली रे, ____ साची साची हुई ते मारे अमृत वाण. हालो.२ चौदे सपने होवे चक्री के जिनराज, वीत्या बारे चक्री नहीं हवे चक्रीराज; जिनजी पास प्रभुना श्री केशी गणधार, तेहने वचने जाण्या चोवीसमा जिनराज. मारी कूखे आव्या त्रण भुवन शिरताज, १५६ For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मारी कूखे आव्या तरण-तारण जहाज; हुं तो पुण्य पनोती इंद्राणी थई आज... हालो. ३ मुझने दोहलो ऊपन्यो बेसुं गज अंबाडिये रे, सिंहासन पर बेसुं चामर छत्र धराय; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए सहु लक्षण मुजने नन्दन तारा तेजनां रे, ते दिन संभारुं ने आनंद अंग न माय. हालो . ४ करतल पगतल लक्षण एक हजार ने आठ छे रे, तेहथी निश्चित जाण्या जिनवर श्री जगदीश; नंदन जमणी जंघे लंछन सिंह विराजतो रे, में तो पहेले सपने दीठो विसवा वीश. हालो. ५ नंदन नवला बंधव नंदिवर्धनना तमे, नंदन भोजाईओना देवर छो सुकुमाल; हसशे भोजाइओ कही दीयर माहरा लाडका रे, हसशे रमशे ने वली चुंटी खणशे गाल. हसशे रमशे ने वली दूंसा देशे गाल. .हालो.६ नंदन नवला चेडा राजाना भाणेज छो, नंदन नवली पांचसें मामीना भाणेज छो; नंदन मामलियाना भाणेजा सुकुमाल, १५७ For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हससे हाथे उछाली कहीने नाना भाणेजा रे . आंखो आंजीने वली टपकुं करशे गाल . . हालो.७ नंदन मामा मामी लावशे टोपी आंगला रे, रतने जडियां झालर कसबी कोर; नीलां पीलां ने वली रातां सरवे जातिनां रे, पहेरावशे मामी मारा नंदकिशोर. हालो. ८ नंदन मामा मामी सुखलडी बहु लावशे रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदन गजवे भरवा लाडू मोतीचूर; नंदन मुखडा जोइने लेशे मामी भामणां रे, नंदन मामी कहेशे जीवो सुख भरपूर. हालो. ९ नंदन नवला चेडा मामानी साते सती रे, मारी भत्रीजी ने बहेन तमारी नंद; ते पण गजवे भरवा लाखणसाई लावशे रे, तुमने जोई जोई होशे अधिको परमानन्द.. हालो. १० रमवा काजे लावशे लाख टकानो घूघरो रे, वली सूडा मेना पोपट ने गजराज; सारस हंस कोयल तीतर नें वली मोरली रे, मामा लावशे रमवा नंद तमारे काज. हालो. ११ १५८ For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छप्पन कुमरी अमरी जल कलशे नवराविया रे, ___ नंदन तमने अमने केली घरनी मांहि; फूलनी वृष्टि कीधी योजन एकने अंतरे, बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांहि..हालो.१२ तमने मेरुगिरि पर सुरपतिए नवराविया, निरखी निरखी हरखी सुकृत लाभ कमाय; मुखडा उपर वारु कोटि कोटि चंद्रमा, वली तन पर वारु ग्रह-गणनो समुदाय...हालो.१३ नंदन नवला भणवा निशाले पण मूकशुं रे, गज पर अंबाडी बेसाडी मोटे साज; पसली भरशुं श्रीफल फोफल नागर वेलशुं रे, सुखलडी ले| निशालियाने काज. हालो.१४ नंदन नवला मोटा थाशो ने परणावशुं रे, वहुवर सरखी जोडी लावशुं राजकुमार; सरखा वेवाई वेवाणोने पधरावशुं रे, ___ वर वहु पोखी ले| जोई जोईने देदार. हालो.१५ पीयर सासरूं मारा बेहुं पख नंदन ऊजला रे, मारी कूखे आव्या तात पनोता नंद; १५९ For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माहरे आंगण वूठ्या अमृत दूधे मेहुला, महारे आंगणे फलीया सुरतरु सुखना कंद. हालो.१६ एणी परे गायुं माता त्रिशला सुतनुं पारणुं रे, __ जे कोई गाशे लेशे पुत्र तणा साम्राज्य; बिलीमोरा नगरे वरणव्युं वीरनुं हालरुं रे, जय जय मंगल होजो दीप विजय कविराज. हालो.१७ सामान्य जिन स्तवन क्युं कर भक्ति करुं प्रभु तेरी... क्युं क्रोध लोभ मद मान विषयरस, छांडत गेल न मेरी.... क्युं १ कर्म नचावे तिमहि नाचत, मायावश नट चेरी... ....... क्युं २ दृष्टि राग दृढ बंधन बांध्यो, नीकसन न लही सेरी... क्युं ३ करत प्रशंसा सब मिल आपनी, परनिंदा अधि केरी... क्युं ४ कहत मान जिन भाव भगति बिन, शिवगति होत न मेरी........क्युं ५ सामान्य जिन स्तवन प्रभुजी तुम दर्शन सुखकारी, तुम दर्शनथी आनन्द प्रगटे, जगजनमंगलकारी. ........... प्रभुजी० १ तप जप किरिया संयम सर्वे, तव दर्शनने माटे; दान क्रिया पण तुज अर्थे छे,मळतो निज घर वाटे. प्रभुजी०२ १६० For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुभव विण कथनी सहु फीकी, दर्शन अनुभव योगे; क्षायिकभावे शुद्ध स्वभावे, वर्ते निजगुण भोगे........ प्रभुजी० ३ देश विदेशे घरमां वनमां, दर्शन नहि पामीजे; दर्शन दीठे दूर न मुक्ति, निश्चयथी समजीजे...... प्रभुजी० ४ चेतन दर्शन स्पर्शन योगे, आनन्द अमृतमेवा; बुद्धिसागर साचो साहिब, कीजे भावे सेवा........... प्रभुजी० ५ सामान्य जिन स्तवन अबोलडा शाना लीधा छे राज? जीवजीवन प्रभु माहरा तमे अमारा अमे तमारा, वास निगोदमां रहेता काल अनंतना स्नेही प्यारा, कदीए न अंतर करता .....अबोलडा १ बादर स्थावरमां बेउ आपण, काल असंख्य निगमता विकलेन्द्रियमां काल संख्याता, विसर्यां नवी विसरता .अबोलडा २ नरक स्थाने रह्या बेउ साथे, तिहां पण बेउ दुःख सहेता परमाधामी सन्मुख आपण, टगटग नजरे जोता, ...............अबोलडा ३ ......... १६१ For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ............ देवना भवमां एक विमाने, देवना सुख अनुभवता एकण पासे देव शैयामां थेई थेई नाटक सुणता, ..अबोलडा ४ तिहां पण तमे अने अमे बेउ साथे, जिन जन्म महोत्सव करता. तिर्यंचगतिमां सुख दुःख अनुभवता, तिहां पण संग चलंता ............ ..अबोलडा... ५ एक दिन समवसरणमां आपण, जिन गुण अमृत पीता. एक दिन संजम घर थई आपण बेउ साथे विचरंता ............ .. अबोलडा...६ एक दिन तमे अने अमे बेउ साथे, वेलडीए वळगीने फरता एक दिन बाळपणमां आपण, गेडी दडे नित्य रमता. ... अबोलडा...७ तमे अने अमे बेउ सिद्ध स्वरूपी, एवी कथा नित्य करता, एक कुल, एक गोत्र, एक ठेकाणे, एक ज थाळीमां जमता. .....अबोलडा...८ एक दिन हुं ठाकोर तमे चाकर, सेवा माहरी करता, आज तो आप थया जग ठाकुर, सिद्धि वधूना पनोता. ..... अबोलडा...९ १६२ For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल अनंतनो स्नेह विसारी, काम कीधा मनगमता, हवे अंतर केम की, प्रभुजी...! चौद राज जई पहोतां. .......................... अबोलडा...१० 'दीप विजय' कविराज प्रभुजी...! जगतारण जगनेता, निज सेवकने यश पद दीजे, अनंत गुणी गुणवंता ..... अबोलडा...११ सामान्य जिन स्तवन जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं, हृदय कमलमें ध्यान धरत हुँ, शिर तुज आण वहुं....जिन १ तुम सम खोळ्यो देव खलक में, पेख्यो नहि कबहुं... जिन २ तेरे गुण की जपुं जप माला, अहोनिश पाप दहुं... ... जिन ३ मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं....जिन ४ कहे 'जस विजय' करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुःख न लहुं... जिन ५ श्री सीमंधरस्वामी स्तवन तुमे महा विदेहे जईने कहेजो चांदलिया ...(२) सीमंधर तेडां मोकले तुमे भरतक्षेत्रना दुःख कहेजो चांदलिया .....(२) सीमंधर तेडां मोकले. १६३ For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्ञानता अहीं छवाई गई छे, तत्त्वोनी वातो भुलाई गई छे. हारे एवा कर्मोना दुःख मारा, कहेजो चांदलिया ..............(२) सीमंधर० १ पुद्गलना मोहमा फसाई गयो छु, कर्मोनी झाळमां जकडाई गयो छु हारे एवा आत्माना दुःख मारा, कहेजो चांदलिया .............(२) सीमंधर० २ मारुं नहतुं तेने मारुं करी जाण्यु, मारुं हतुं तेने ना रे पिछाण्यु हारे एवा मूर्खताना दुःख मारा, कहेजो चांदलिया ........(२) सीमंधर० ३ सीमंधर सीमंधर हृदयमां धारतो, प्रत्यक्ष दरिशननी आश हुं करतो हारे एवा वियोगना दु:ख मारा, कहेजो चांदलिया ........(२) सीमंधर० ४ संसारी सुख मने कारमुं लागे, प्रभु तुम विण जई कहुं कोनी पासे, हारे एवा वीरविजयना दुःख, कहेजो चांदलिया ....(२) सीमंधर० ५ १६४ ..... ................ For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री सीमंधरस्वामी स्तवन सुणो चंदाजी!, सीमंधर परमातम पासे जाजो; मुज विनतडी प्रेम धरीने, एणी पेरे तुम संभलावजो. जे त्रण भुवननो नायक छे, जस चोसठ इन्द्र पायक छे; नाण-दरिसण जेहने खायक छे, . . सुणो. १. जेनी कंचन वरणी काया छे, जस धोरी लंछन पाया छे; पुंडरीगिणी नगरीनो राया छे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . सुणो. २. बार पर्षदा मांही विराजे छे, जस चोत्रीस अतिशय छाजे छे; पत्री वाणी गाजे छे, . सुणो. ३. भवि-जनने जे पडिबोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे; रूप देखी भविजन मोहे छे, . सुणो. ४. तुम सेवा करवा रसियो छं, पण भरतमां दूरे वसियो छु; महा मोह-राय कर फसियो छु, . सुणो. ५. पण साहिब चित्तमां धरियो छे, तुम आणा खडग कर ग्रहीयो छे; तो कांइक मुजी डरियो छे, . सुणो. ६. जिन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्म-विजय थाउं शूरो; तो वाधे मुज मन अति नूरो,.. १६५ For Private And Personal Use Only सुणो .७. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सीमंधरस्वामी स्तवन तारी मूरतिए मन मोह्यु रे, मनना मोहनीया; तारी सूरतिए जग सोडुं रे, जगना जीवनीया. तुम जोतां सवि दुरमति विसरी, दिन रातडी नवि जाणी; प्रभु गुण गण सांकलशुं बांध्यु, चंचल चित्तडु ताणी रे.मनना.१ पहेलां तो एक केवल हरखे, हेजालु थइ हलियो; गुण जाणीने रूपे मिलियो, अभ्यंतर जइ भलियो रे..मनना.२ वीतराग इम जस निसुणीने, रागी राग धरेह; आप अरूपी राग निमित्ते, दास अरूप करेह........... मनना.३ श्री सीमंधर तुं जगबन्धु, सुंदर ताहरी वाणी; मंदर भूधर अधिक धीरज धर, वन्दे ते धन्य प्राणी रे. मनना.४ श्री श्रेयांस नरेसर नंदन, चंदन शीतल वाणी; सत्यकी माता वृषभ लंछन प्रभु, ज्ञान विमल गुणखाणी रे. .मनना.५ ___ श्री सीमंधरस्वामी स्तवन श्री सीमंधर जगधणी, राय श्रेयांसकुमार रे, माता सत्यकी नंदनो रे, रुक्ष्मणीनो भरथार रे......... श्री० १ सुखकारक स्वामी सुणो रे, मुज मननी आ वातरे, जगते जोतां कोई नवि जडे, स्वामी तुम्हारी जोडरे. . श्री० २ १६६ For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्वजन कुटुंब कारमो रे, कारमो सौ संसार रे, भवोदधि पडतां माहरे रे, तुं तारक निरधार रे. धन्य तिहांना लोकने रे जे सेवे तुम पायरे, प्रह ऊठीने वांदवाने, मुज मनडुं नित्य ध्यायरे. कागळ पण पहोंचे नहि रे, किम कहुं मुज मन अवदातरे, एकवार आवो अहींजी, करुं दिलनी सवि वातरे........ श्री० ५ श्री०४ मनडामां क्षण क्षण रमे रे, तुज दरिशनना कोडरे, वाचक जश कहे विनती रे, अहनिश बे कर जोडरे.. श्री० ६ श्री सीमंधरस्वामी स्तवन सीमंधर जिनराज कृपाळु तारजो, जन्मजराना दुःखथी प्रभुजी उगारजो; विद्यमान प्रभु वात हृदयनी जाणता, साचा स्वामी सुखकर विनति मानता. काल अनादि मोहवशे बहु दुःख लह्यां, चार गतिनां दुःख विचित्र सहु सह्यां; मोहवशे धामधूममां धर्मपणुं ग्रह्यं, शुद्धस्वरूप स्याद्वाद तत्त्वथी सह्यं. गाडरिया प्रवाहमां दृष्टिरागे रह्यो, बाह्यक्रिया रुचि धामधूममां हुं पड्यो, १६७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only श्री० ३ १ २ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोकोत्तर जिनधर्म परखीने नवि लह्यो; गुरुगम ज्ञान विना हुं भवोभव लडथड्यो. प्रभु तुज शासन, पुण्यथी पामी में जाणियुं, मिथ्यादर्शन जोर कुमतिनुं व्यापियुं; परख्युं सत्य स्वरूप जिनेश्वर धर्मर्नु, रहेशे जोर हवे केम आठे कर्मनुं. तुज करुणा एक शरण सेवकने जाणशो, जाणी बाळक त्हारो करुणा आणशो, म्हारो शरणुं एक जिनेश्वर जगधणी, तारो करुणावंत महेश्वर दिनमणि. बुद्धिसागर बाळ तमारो करगरे, साचा स्वामी पसाये सेवक सुखवरे; उपादाननी शुद्धि प्रभुता जागशे, जित नगारूं अनुभवज्ञाने वागशे. श्री सीमंधरस्वामी स्तवन सीमंधर जिन रूपमां, हुतो रहीयो राची; भाव कर्मने टाळवा, शुद्ध परिणति साची. भावकर्मना नाशथी, द्रव्य कर्म टळे छे. नायक मरवाथी यथा, सैन्य पार्छ वळे छे. .. १६८ For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राग द्वेष भाव कर्म छे, द्रव्यकर्म ग्रहावे; राग द्वेष टळवाथकी, द्रव्य कर्म न आवे. निश्चय शुद्ध चारित्र्थी रागद्वेष टळे छे राजद्वेष टळवा थकी निजलक्ष्मी मळे छे चेतन शुद्ध स्वभावमां, लीनता क्षण थावे; त्यारे सहजानंदनो, अनुभव मन आवे. क्षयोपशमज्ञाने करी, प्रभु श्रेणि चडियो; शुक्ल ध्यान महाशस्त्रथी, मोहसाथे लढियो. जयलक्ष्मी अंगीकरी, नव ऋद्धि पायो; बुद्धिसागर ध्यानथी, प्रभु अंतर आयो. सिद्धाचल तीर्थ स्तवन मनना मनोरथ सवी फळ्या, श्री सिद्धाचल देखी; अनुभव आनंद उछळ्यो, अन्ध श्रद्धा उवेखी. सहजानन्द श्रीनाथजी, विश्वानन्द वखाणो; शत्रुंजय शाश्वतगिर्, त्रण्य भुवननो राणो. मुक्तिराज विजयी सदा, अजरा सुखवासी; विमलाचलने वन्दतां, मटे सकल उदासी. पापी दुरभवी प्राणिया, देखे नहि शुद्धि स्थान; गुरु भक्तिमंत प्राणिया पामे अमृतपान.. १६९ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ ४ ५ ६ 19 मन० १ . मन० २ . मन० ३ . मन० ४ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रष्टा दृश्यपणुं वरे, थाय पूजक पोते; रत्नचिन्तामणि हस्तमां, क्यां तुं परमां गोते.............मन० ५ दर्शन दुर्लभ ताहरां; विरला कोई पामे; बुद्धिसागर ध्यावतां, मळिया निश्चय ठामे. ..मन०६ सिद्धाचल तीर्थ स्तवन विमलाचल नितु वंदीए, कीजे एहनी सेवा. मानुं हाथ ए धर्मनो, शिव-तरु-फल लेवा. ...........विमला.१. उज्ज्वल जिन-गृह-मंडली, तिहां दीपे उत्तंगा. मानुं हिमगिर-विभ्रमे, आई अंबर-गंगा. ................विमला.२. कोइ अनेरुं जग नहीं, ए तीरथ तोले. एम श्रीमुख हरि आगले, श्री सीमन्धर बोले.........विमला.३. जे सघलां तीरथ कर्या, जात्रा-फल कहीए. तेहथी ए गिरि भेटतां, शत-गणुं फल लहीए.........विमला.४. जनम सफल होय तेहनो, जे ए गिरि वन्दे. सुजस विजय संपद लहे, ते नर चिर नन्दे.........विमला.५. सिद्धाचल तीर्थ स्तवन सिद्धाचल गिरि भेट्या रे, धन भाग्य हमारां. ए गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा; रायण-रूख समोसर्या स्वामी, पूरव नवाणुं वारा रे......धन.१ १७० For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मूल नायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा; अष्ट द्रव्यशुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे.. भाव भक्तिशुं प्रभु गुण गावे, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भवि जन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे. धन. ३ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तारा; पतित उद्धारण बिरुद तमारुं, ए तीरथ जग सारा रे..धन.४ संवत अढार त्यासी मास अषाढा, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघमें, खिमा रतन प्रभु प्यारा रे....... धन. ५ सिद्धाचल तीर्थ स्तवन जात्रा नवाणुं करीए विमलगिरि, जात्रा नवाणुं करीए; पूरव नवाणुं वार शत्रुंजय गिरि, ऋषभ जिणंद समोसरीए. कोडि सहस भव पातक तूटे, शत्रुंजा सामो डग भरीये. सात छट्ठ दोय अट्ठम तपस्या, करी चढीये गिरिवरीये. पुण्डरीक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ धरीये. १७१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . धन. २ .विमल. १ . विमल . २ . विमल . ३ . विमल . ४ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापी अभवि नजरे न देखे, हिंसक पण उद्धरीये.....विमल.५ भूमि संथारो ने नारीतणो संग, दूर थकी परिहरीये..विमल.६ सचित परिहारी ने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीये. ७ पडिक्कमणा दोय विधिशुं करीये, पाप-पडल विखरीये. .... विमल.८ कलिकाले ए तीरथ मोहटुं, प्रवहण जिम भरदरीये. .विमल.९ उत्तम ए गिरिवर सेवंतां, पद्म कहे भव तरीये.....विमल.१० सिद्धाचल तीर्थ स्तवन एक दिन पुंडरीक गणधरू रे लाल, पूछे श्री आदि जिणंद सुखकारी रे; कइये ते भवजल ऊतरी रे लाल, पामीश परमानंद भववारी रे. एक.१ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, नाण अने निरवाण जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण निरधारी रे.. एक.२ इम निसुणी इहां आवीया रे लाल, घाती करम कर्यां दूर तम वारी रे; पंच कोडी मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्धि हजूर भववारी रे.. एक.३ १७२ .......... For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्री पूनम दिन कीजिए रे लाल, पूजा विविध प्रकार दिलधारी रे; फल प्रदक्षिणा काउस्सग्गा रे लाल, लोगस्स थुई नमुक्कार नरनारी रे. . एक.४ दश वीश त्रीश चालीस भलां रे लाल, पचास पुष्पनी माल अति सारी रे; नरभव लाहो लीजिए रे लाल, जेम होय ज्ञान विशाल मनोहारी रे................... .एक.५ सिद्धाचल तीर्थ स्तवन शत्रुजय गढनो वासी, प्यारो लागे मोरा राजिंदा; इण रे डुंगरीयामां झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर विराजे... मोरा.१ काने कुंडल माथे मुगट बिराजे, बाहे बाजुबंध छाजे.. मोरा.२ चोमुख बिंब अनुपम विराजे, अद्भुत दीठे दुःख भांजे. मोरा.३ चुआ चुआ चंदन और अगरजा, केशर तिलक बिराजे. ..... मोरा.४ इण गिरि साधु अनंता सिद्ध्या, कहेतां पार न आवे. मोरा.५ ज्ञान विमल प्रभु इणि परे बोले, आ भव पार उतारो. मोरा.६ १७३ For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सिद्धाचल तीर्थ स्तवन सिद्धाचल यात्रा करो, भवी साचा भावे; शत्रुंजयने सेवतां, रोग शोक न आवे. द्रव्यथी शत्रुंजयगिरि, भावे आतम पोते; ध्यानसमाधियोगथी, मळो ज्योतिज्योते. शत्रुंजयगिरि नाम सहु, आतमनां प्रमाणो; द्रव्य ते भावनो हेतु छे, एवो निश्चय आणो..... आत्मा असंख्यप्रदेश छे, तेम गिरि प्रदेशो; समकित प्रगटे आदिमां, आदिनाथ महेशो. द्रव्य ने भाव सापेक्षथी, जेवा भावे भक्ति; तेवा फलने पामशो, तेवी थाशे व्यक्ति.. औदयिकभावथी सेवता, कोई उपशम भावे; क्षयोपशम क्षायिकथी, भाव समफल पावे. द्रव्य तीर्थ जेथी थयां, भाव तीर्थाधार; विमलाचल वेगे वसो, ज्ञानी थै नरनार. आत्मिक शुद्धोपयोगथी, पोते तीर्थ छे देहे; बुद्धिसागर तीर्थ छे, शुद्ध आतमस्नेहे. १७४ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . सिद्धाचल० १ . सिद्धाचल० २ . सिद्धाचल० ३ सिद्धाचल० ४ . सिद्धाचल० ५ . सिद्धाचल० ६ . सिद्धाचल० ७ . सिद्धाचल० ८ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण०१ गुण०२ रायण पगलांनुं स्तवन नीलुडी रायण तरुतळे-सुण सुंदरी, पीलुडा प्रभुना पाय रे-गुण मंजरी; उज्जवल ध्याने ध्याईए, सुण एही ज मुक्ति उपाय रे. शीतळ छायाए बेसीए, सुण० रातडो करी मनरंग रे, गुण० पूजीए सोवन फूलडे, सुण० जेम होय पावन अंग रे... खीर झरे जेह उपरे, सुण० नेह धरीने एह रे, गुण० त्रीजे भवे ते शिव लहे, सुण० थाये निर्मळ देह रे, . प्रीत धरी प्रदक्षिणा, सुण० दीए एहने जे सार रे, गुण० अभंग प्रीति होय तेहने, सुण० भवोभव तुम आधार रे, कुसुम पत्र फळ मंजरी, सुण० शाखा थड ने मूळ रे, गुण १७५ ............. गुण०३ गुण० ४ For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देव तणा वासाय छे, सुण० तीरथने अनुकूळ रे, तीरथ ध्यान धरो मुदा, सुण० सेवो एहनी छांय रे, गुण० 'ज्ञानविमल' गुण भाखीयो, शत्रुंजय महात्म्य मांय रे. सुण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only गुण०५ गुण०६ नवपद स्तवन भवि. १ नवपद धरजो ध्यान, भवि तुमे नवपद धरजो ध्यान; ए नवपदनुं ध्यान करतां, पामे जीव विश्राम. अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक, साधु सकल गुण खाण; भवि. दर्शन ज्ञान चारित्र ए उत्तम, तप तपो करी बहुमान.. भवि. २ आसो चैत्रनी सुदि सातमथी, पूनम लगी प्रमाण; भवि. एम एकाशी आंबिल कीजे, वरस साडा चारनुं मान...' . भवि. ३ पडिक्कमणां दोय टंकनां कीजे, पडिलेहण बे वार; भवि. देव वंदन त्रण टंकनां कीजे, देव पूजो त्रिकाल .......... भवि . ४ बार आठ छत्रीश पचवीशनो, सत्तावीश अडसठ सार; भवि. एकावन सित्तेर पचासनो, काउसग्ग करो सावधान.... भवि.५ एक एक पदनुं गणणुं, गणीए दोय हजार; भवि. एणी विधे जे ए तप आराधे, ते पामे भव पार.. १७६ . भवि.६ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..सिद्ध.२ कर जोडी सेवक गुणगावे, मोहन गुण मणि माल; भवि. तास शिष्य मुनि हेम कहे छे, जन्म मरण दुःख वार. . भवि.७ नवपद स्तवन सिद्धचक्रने भजीये रे, के भवियण भाव धरी; मद मानने तजीए रे, के कुमति दूर करी. पहेले पदे राजे रे, के अरिहंत श्वेत तनु; बीजे पदे छाजे रे, के सिद्ध प्रगट भj. ............ सिद्ध.१ त्रीजे पदे पीला रे, के आचार्य कहीए; चोथे पदे पाठक रे, के नील वर्ण लहीए................. पांचमे पदे साधु रे, के तप संयम शूरा; श्याम वर्णे सोहे रे, के दर्शन गुणे पुरा................... सिद्ध.३ दर्शन ज्ञान चारित्र रे, के तप संयम शुद्ध वरो; भवियण चित्त आणी रे, के हृदयमां ध्यान धरो. .......सिद्ध.४ सिद्धचक्रने ध्याने रे, के संकट सर्व टले; कहे गौतम वाणी रे, के अमृत पद मले................. सिद्ध.५ नवपद स्तवन चौद पूरवनो सार, मंत्र मांहे नवकार; जपतां जय जय कार, ओ सयरो हृदय धरो नवकार........१ १७७ For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..........ओ.२ بة بين ة من अडसठ अक्षर घडीओ, चौद रतनसुं जडीओ; __ श्रावकने चित्त चडीओ,............. अक्षर पंच रतन्न, जीवदया सुजतन्न; जे पाले तेने धन्य, .................... नवपद नवसरो हार, नवपद जगमां सार; नवपद दोहीलो आधार, ................ जे नर नारी जाणशे, ते सुख संपद लहेशे; सेवकने सुख थाशे, ........................ओ.५ हीर विजयनी वाणी, सुणतां अमिय समाणी; मोक्ष तणी निरसणी, .................ओ.६ नवपद स्तवन अहो भवि प्राणी रे सेवो, सिद्धचक्र ध्यान समो नहि मेवो; जे सिद्धचक्र आराधे, तेहनी कीरति जगमां वाधे........अहो.१ पहेले पदे रे अरिहंत, बीजे सिद्ध बुद्ध ध्यान महंत; त्रीजे पदे रे सूरीश्वर, चोथे उवज्झाय ने पांचमे मुनीश्वर.अहो.२ छठे दरिसण कीजे, सातमे ज्ञानथी शिवसुख लीजे; आठमे चारित्र पालो, नवमे तपथी मुक्ति भालो..........अहो.३ १७८ For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ओली आयंबिलनी कीजे, नोकारवाली वीश गणीजे; त्रणे टंकना रे देव, पडिलेहण पडिक्कमणुं कीजे........अहो . ४ गुरुमुख किरिया रे कीजे, देवगुरु भक्ति चित्त धरीजे; एम कहे रामनो शिष्य, ओली ऊजवीए जगीश. .. अहो . ५ नवपद स्तवन अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक, साधु देखा गुण रूप उदारी; नवपद ध्यान सदा जयकारी. १ दर्शन ज्ञान चारित्र हे उत्तम, तप दोय भेदे हृदय विचारी. मंत्र जडी और तंत्र घणेरा, उन सबकुं हम दूर विसारा. बहोत जीव भव जलसे तारे, गुण गावत हे श्री जिन भक्त मोहन मुनि वंदन, बहुत नरनारी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिन दिन चडते हरख अपारी. नवपद ओळी स्तवन नवपद ओळी तप आराधन - करतां शिवसुख थावे रे; रोग शोक दुर्बुद्धि विघटे, अष्टसिद्धि घर आवे रे .. १७९ For Private And Personal Use Only नव. २ नव . ३ नव . ४ नव . ५ . नव० १ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्य ने भावथी नवनिधि प्रगटे, नवपद ध्यानने धरतारे; ब्रह्मचर्य नव वाडो धारी, नरनारी सुख वरतारे. ....... नव० २ नवपदरूपी आतम पोते, उपादानथी जाणीरे; निमित्तथी पर जाणी भावे, आराधंतो ज्ञानीरे.......... नव० ३ षट्चक्रोमां नवपदध्याने, आत्मसमाधि प्रगटेरे; एकता स्थिरता लीनता योगे, घाती कर्मो विघटेरे.....नव० ४ जिनवर महावीर देवे भाखी, नवपद गुण गुणी भावेरे; बुद्धिसागर आत्मस्वरूपी, नवपद सत्य सुहावेर रे..... नव० ५ वर्धमान आंबिलतप स्तवन वर्धमान जिन वंदु हो भावे वर्धमान जिन वंदूं; आतम भावे आणंद हो भावे वर्धमान जिन वंदुं. वर्धमान आंबिल तप भाख्युं, परमातम पद वरवा; एकादिक आंबिल एम चढतां, शत आंबिल एम करवां, ....हो भावे० १ एक आंबिल करी उपवास पश्चात, बे आंबिल उपवासे; चढते आंबिल उपवास अंतर, विशे विश्राम वासे. हो भावे०२ नवपदमांथी गमे ते पदनो, जाप ते वीस हजार; बार खमासमण लोगस्स बारनो, कायोत्सर्ग विचार.हो भावे०३ १८० For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमुखथी विधिपूर्वक उच्चरी, पूर्ण थतां उझवीए; तद्भव त्रीजा भवमा मुक्ति, जूलु कांई न लवीए. हो भावे० ४ चौद वर्ष त्रण मास ने उपरे, वीसे दिवसे पूरो; विश्रामवण तप आराधंतां, तप न रहे अधूरो...... हो भावे० ५ पांच हजार पच्चास छे आंबिल, उपवास शत निर्धार; पूर्ण करे वडभागी तपिया, लब्धि शक्ति भंडार. .. हो भावे० ६ आहारादि विषयोमां रसवण, आतम आनंद रसिया; क्षणमां मुक्ति पामे निश्चय, भाव तपे उल्लसिया. हो भावे० ७ अंतगड सूत्र ने आचारदिनकरे, श्रीचंद केवली साध्यु; बुद्धिसागर आत्मोल्लासे; महासेनजीए आराध्यु. . हो भावे० ८ बीजनुं स्तवन बीज तिथिए जैनधर्मनुं रे लाल, बीज ग्रहो समकित रे हुं वारीलाल; देव गुरु ने जैनधर्मनीरे लाल, श्रद्धा समकितरीतरे हुंवारीलाल.. ..बीज०१ अनंतचार कषायनोरेलाल, त्रण मोहनी तेमरे, हुंवारीलाल; सात प्रकृति उपशमे यदारेलाल, त्रण मोहनी तेमरे, हुंवारीलाल... ..बीज० २ १८१ For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सातनो क्षयोपशम क्षयेरेलाल, क्षयोपशम क्षायिकरे हुंवारीलाल; व्यवहार समकित साधतांरे लाल, निश्चय समकित एकरे हुंवारीलाल . निश्चय समकित मुनिपणेरेलाल, चारित्र भेगुं सुहाय रे हुंवारीलाल; चार निक्षेपे सातनये करीरेलाल, समकितगुण प्रगटायरे हुंवारीलाल . चारित्रमोह निवारतोरेलाल, चूके न उद्यम तेहरे हुंवारीलाल; समकित ते दर्शन भलुंरेलाल, चरणे लहे शिवगेहरे हुंवारीलाल . समकित उत्कृष्ट भावथीरेलाल, क्षणमांही मुक्ति थायरे हुंवारीलाल; समकित सडसठ बोलछे रेलाल, ज्ञाने निश्चय पायरे हुंवारीलाल .. निश्चयना षड्भेद छेरेलाल, पामे रहे नहीं खेदरे हुंवारीलाल; समकितरूचि दश जातनीरेलाल, जाणी टाळो भेदरे हुंवारीलाल .... १८२ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . बीज० ३ . बीज० ४ . बीज० ५ . बीज० ६ . बीज० ७ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जलपंकजवत् समकितरेलाल, निर्लेपी कर्तव्यरे हुंवारीलाल; गुरूश्रद्धा-भक्तिवडेरेलाल, श्रवणादिकथी भव्यरे हुंवारीलाल. शुद्धातम निश्चय थतांरेलाल, अनुभव आनंद थायरे हुंवारीलाल बुद्धिसागर समकितरेलाल, सम्यग् ज्ञाने सुहायरे हुंवारीलाल . पंचमी तिथि स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . बीज०८ . बीज० ९ पांचमे ज्ञान आराधना करतां, ज्ञानावरण पलायरे; मति श्रुत अवधि ने मनपर्यव, केवल प्रगट सुहायरे. पांचमे० १ चक्षु अचक्षु अवधि ने केवल - दर्शन प्रगटी सुहायरे; मति श्रुतनुं अज्ञान टळे ने, विभंग झट विणसायरे. पांचमे० २ मति अठ्ठावीश त्रणसें चालीस - भेदे घट प्रगटाय रे; चौद वीस भेदे श्रुतज्ञानी, केवली सरखो थायरे.... पांचमे० ३ अवधिज्ञान असंख्य प्रकारे, मनपर्यव बे भेदरे; केवलज्ञानमां भेद नबीजो, प्रगटे फळती उमेदरे.....पांचमे० ४ गुरुगमथी मति-श्रुत बे प्रगटे, आत्मानुभव थायरे; बुद्धिसागर गुरुनी सेवा, करतां ज्ञान सुहायरे.. १८३ पांचमे० ५ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमी तिथि स्तवन पंचमी तप तमे करो रे, प्राणी, जेम पामो निर्मल ज्ञान रे; पहेलुं ज्ञान ने पछी क्रिया, नहीं कोइ ज्ञान समान रे.पंचमी.१ नंदी सूत्रमा ज्ञान वखाण्यु, ज्ञानना पांच प्रकार रे; मति श्रुत अवधि ने मनःपर्यव, केवल एक ज्ञान रे....पंचमी.२ मति अट्ठावीश श्रुत चउदह वीश, अवधि छ असंख्य प्रकार रे; दोय भेदे मनःपर्यव दाख्युं, केवल एक उदार रे......पंचमी.३ चंद्र सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा, एकथी एक अपार रे; केवलज्ञान समुं नहीं कोइ, लोकलोक प्रकाश रे.......पंचमी.४ पारसनाथ प्रसादे करीने, म्हारी पूरो उमेद रे; समय सुंदर कहे हुं पण पामुं, ज्ञाननो पांचमो भेद रे. पंचमी.५ पंचमी तिथि स्तवन प्रणमो पंचमी दिवसे ज्ञानने, गाजे जगमां जेह सुज्ञानी; शुभ उपयोगे क्षणमां निर्जरे, मिथ्या संचित खेह सुज्ञानी.........प्रणमो.१ संत पदादिक नव द्वारे करी, मति अनुयोग प्रकाश सुज्ञानी; नव व्यवहारे आवरण क्षय करी, अज्ञानी ज्ञान उल्लास सुज्ञानी...प्रणमो.२ १८४ For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ज्ञानी ज्ञान लहे निश्चय कहे, दो नय प्रभुजीने सत्य सुज्ञानी; अंतर मूहूर्त रहे उपयोगथी, ए सर्व प्राणीने नित्य सुज्ञानी....३ लब्धि अंतर मुहूर्त लघु पणे, छासठ सागर जिट्ठ सुज्ञानी; अधिको नरभव बहुविध जीवने, अंतर कदीए न दीठ सुज्ञानी..... प्रणमो . ४ संप्रति समये एक बे पामता, होय अथवा नवि होय सुज्ञानी; क्षेत्र पल्योपम भाग असंख्यमां, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेश माने बहु जोय सुज्ञानी..... प्रणमो. ५ मतिज्ञान पाम्या जीव असंख्य छे, कह्या पडिवाइ अनंत सुज्ञानी सर्व आशातना वारजो ज्ञाननी, विजय लक्ष्मी लहो संत सुज्ञानी....प्रणमो.६ २. अष्टमी तिथि स्तवन ढाल- १ श्री राजगृही शुभ ठाम, अधिक दिवाजे रे; विचरंता वीर जिणंद, अतिशय छाजे रे. चोत्रीश अने पांत्रीश, वाणी गुण लावे रे, पाउं धार्या वधामणी जाय, श्रेणिक आवे रे. तिहां चोसठ सुरपति आवी, त्रिगडुं बनावे रे; तेमां बेसीने उपदेश, प्रभुजी सुणावे रे. १८५ For Private And Personal Use Only १ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुर नर ने तिर्यंच, निज निज भाषा रे; तिहां समजीने भवतीर, पामे सुख खासा रे. तिहां इन्द्रभूति गणधार, श्रीगुरु वीरने रे; पूछे अष्टमीनो महिमाय, कहो प्रभु अमने रे. तव भाखे वीर जिणंद, सुणो सहु प्राणी रे; आठम दिन जिननां कल्याण, धरो चित्त आणी रे............३ ढाल-२ श्री ऋषभनुं जन्म-कल्याण रे, वली चारित्र लद्यु भले वाण रे त्रीजा सम्भवनुं च्यवन कल्याण. भवि तुमे अष्टमी तिथि सेवो रे, ए छे शिव-वधू वरवानो मेवो. .................. भवि१ श्री अजित-सुमति नमि जन्म्या रे, अभिनंदन शिवपद पाम्या रे; ___ जिन सातमा च्यवन दीपाव्या................. भवि.२ वीशमा मुनिसुव्रत स्वामी रे, जेहनो जनम होय गुण धामी रे; बावीसमा शिव विसरामी...................... भवि.३ पारसनाथजी मोक्ष महंता रे, इत्यादिक जिन गुणवन्ता रे; कल्याणक मुख्य कहन्ता...................... भवि.४ श्री वीर जिणंदनी वाणी रे, निसुणी समज्या भवि प्राणी रे; आठम दिन अति गुण खाणी.................. भवि.५ १८६ For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्ट कर्म ते दूर पलाय रे, एथी अङ-सिद्धि अङ-बुद्धि थाय रे; ते कारण सेवो चित्त लाय..................... भवि.६ श्री उदय सागर सूरिराया रे, गुरु शिष्य विवेके ध्याया रे; तस न्याय सागर गुण गाया.................. भवि.७ एकादशी तिथि स्तवन. ढाल-१ जगपति! नायक नेमि जिणंद, द्वारिका नगरी समोसर्या; जगपति! वंदवा कृष्ण नरिंद, जादव कोडशुं परिवर्या.. ....१ जगपति! धी गुण फूल अमूल, भक्ति गुणे माला रची; जगपति! पूजी पूछे कृष्ण, क्षायिक समकित शिवरुचि.......२ जगपति! चारित्र धर्म अशक्त, रक्त आरंभ परिग्रहे; जगपति! मुज आतम उद्धार, कारण तुम विण कोण कहे..३ जगपति! तुम सरिखो मुज नाथ, माथे गाजे गुणनीलो; जगपति! कोइ उपाय बताव, जेम वरे शिववधू कंतलो......४ नरपति! उज्ज्वल मागशिर मास, आराधो एकादशी; नरपति! एकसो ने पचास, कल्याणक तिथि उल्लसी.......५ नरपति! दश क्षेत्रे त्रण काल, चोवीशी त्रीशे मली; नरपति! नेQ जिननां कल्याण, विवरी कहुं आगल वली.....६ १८७ For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नरपति! अर दीक्षा नमि नाण, मल्ली जन्म व्रत केवली; नरपति! वर्तमान चोवीशी मांहे, कल्याणक कह्यां वली.......७ नरपति! मौन पणे उपवास, दोढसो जपमाला गणो; नरपति! मन वच काय पवित्र, चरित्र सुणो सुव्रत तणो.....८ नरपति! दाहिण धातकी खंड, पश्चिम दिशि इक्षुकारथी; नरपति! विजय पाटण अभिधान, साचो नृप प्रजापालथी....९ नरपति! नारी चन्द्रावती तास, चन्द्रमुखी गज गामिनी; नरपति! श्रेष्ठी शूर विख्यात, शियल सलीला कामिनी....१० नरपति! पुत्रादिक परिवार, सार भूषण चीवर धरी; नरपति! जाये नित्य जिनगेह, नमन स्तवन पूजा करी....११ नरपति! पोषे पात्र सुपात्र, सामायिक पौषध करे; नरपति! देववंदन आवश्यक, काल वेलाए अनुसरे. ........ १२ एकादशी तिथि स्तवन पंचम सुर लोकना वासी रे, नव लोकांतिक सुविलासी रे; करे विनति गुणनी राशि. मल्लि जिन नाथजी व्रत लीजे रे, भवि जीवने शिवसुख दीजे.१ तमे करुणा रस भंडार रे, पाम्या छो भवजल पार रे; सेवकनो करो उद्धार...मल्लि.२ १८८ For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु दान संवत्सरी आपे रे, जगनां दारिद्र दुःख कापे रे; भव्यत्व पणे तस स्थापे.....मल्लि.३ सुरपति सघला मली आवे रे, मणि रयण सोवन वरसावे रे; प्रभु चरणे शीश नमावे....मल्लि.४ तीर्थोदक कुंभा लावे रे, प्रभुने सिंहासन ठावे रे; सुरपति भगते नवरावे. .मल्लि.५ वस्त्राभरणे शणगारे रे, फूलमाला हृदय पर धारे रे; ___ दुःखडां इंद्राणी उवारे. .मल्लि.६ मल्या सुर नर कोडा कोडी रे, प्रभु आगे रह्या कर जोडी रे; __ करे भक्ति युक्ति मद मोडी..मल्लि.७ मृगशिर शुदिनी अजुआली रे, एकादशी गुणनी आली रे; ___ वर्या संयम वधु लटकाली रे. मल्लि.८ दीक्षा कल्याणक एह रे, गातां दुःख न रहे रेह रे; लहे रूप विजय जस नेह...मल्लि.९ एकादशी- स्तवन महावीर जिनवरे उपदिश्युं, एकादशी तप बेशरे; कृष्णे आराधन आदर्यु, टाळवा राग ने द्वेष रे.... महावीर० १ १८९ For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहु जिनवर कल्याणको, एकादशी दिन जाणरे; निष्कामभावथी सेवतां, प्रगट थतुं शुद्ध ज्ञानरे.... महावीर० २ ज्ञान प्रथम दया छे पछी, ज्ञान पछी क्रिया जोयरे; ज्ञान पछी तप प्रगटतुं, ज्ञानथी चारित्र होयरे.... महावीर० ३ शुद्धोपयोगी ज्ञानीने, कर्मनो होय न बंधरे; सर्व करे छतां संवरी, कर्म क्रियामां अबंधरे. . महावीर० ४ एकादशी तप सेवतां, अष्टसिद्धि नवनिधिरे; बुद्धिसागर गुरु सेवतां, क्षायिकलब्धि समृद्धिरे... महावीर० ५ For Private And Personal Use Only पर्युषण पर्व स्तवन सुणजो साजन संत, पजुसण आव्यां रे; तमे पुण्य करो पुण्यवंत, भविक मन भाव्यां रे. वीर जिणेसर अति अलवेसर, वाला मारा परमेसर एम बोले रे; पर्व मांहे पजुसण मोटां, अवर न आवे तस तोले रे. पजुसण. १ चौपद मांहे जेम केशरी मोटो वाला.., खगमां गरुड ते कहीए रे. नदी मांहे जेम गंगा मोटी, नगमां मेरु लहिये रे... पजुसण. २ भूपतिमां भरतेसर भाख्यो वाला.., देव मांहे सुर इंद्र रे. सकल तीरथ मांहे शेत्रुंजो दाख्यो, ग्रह-गणमां जेम चंद्र रे... १९० पजुसण. ३ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशेरा दीवाली ने वली होली वाला.., अखातीज दिवासो रे. बलेव प्रमुख बहुला छे बीजां, ए नहि मुक्तिनो वासो रे....... पजुसण.४ ते माटे तमे अमारी पलावो वाला.., अट्ठाइ महोत्सव कीजे रे. अट्ठम तप अधिकाइए करीने, नर भव लाहो लीजे रे. .... पजुसण.५ ढोल ददामा भेरी नफेरी वाला.., कल्पसूत्र ने जगावो रे. झांझरनो झमकार करीने,गोरीनी टोली मली आवो रे.पजुसण.६ सोना रूपाने फूलडे वधावो वाला.., कल्पसूत्र ने पूजो रे. नव वखाण विधिए सांभलतां, पाप मेवासी ध्रुज्यो रे. पजुसण.७ एम अट्ठाई महोत्सव करतां वाला.., बहु जगजन उद्धरिया रे. विबुध विमल वर सेवक नय कहे, नवनिधि ऋद्धि सिद्धि वर्या रे पर्युषण पर्व स्तवन रीझो रीझो श्री वीर देखी, शासनना शिरताज; हरखो हरखो आ मोसम आवी, पर्व पर्युषणा आज....रीझो.१ प्रभुजी देवे पर्षदामांहे, उत्तम शिक्षा एम; आलसमां बहु काल गुमाव्यो, पर्व न साधो केम?.....रीझो.२ सोनानो रजकण संभाले, जेम सोनी एक चित्त; तेथी पण आ अवसर अधिको, करो आतम पवित्र. ... रीझो.३ १९१ For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेने माटे निशदिन रखडो, तजी धरमना नेम; पाप करो तो शिर पर बोजो, तो व्याजबी केम........रीझो.४ कोइ न लेशे भाग पापनो, धननो लेशे सर्व; परभव जातां साथ धर्मनो, साधो आ शुभ पर्व..........रीझो.५ संपीने समताए सुणजो, अट्ठाइ व्याख्यान; छट्ठ करजो श्री कल्पसूत्रनो, वार्षिक अट्ठम जाण. रीझो.६ निशीथ सूत्रनी चूर्णिमांहे, आलोचना वखणाय; खमीए होंशे सर्व जीवने, जीवन निर्मल थाय...........रीझो.७ उपकारी श्री प्रभुनी कीजे, पूजा अष्ट प्रकार; चैत्य जुहारो गुरु वंदीजे, आवश्यक बे काल...........रीझो.८ पौषध चोसठ प्रहरी करतां, जाये कर्म जंजाल; पद्म विजय समता रस झीले, धर्मे मंगलमाल. ....... रीझो.९ अष्टापद स्तवन अष्टापद गिरि सेवना, भवी भावथी पामे; अष्टकर्मने जीतीने, ठरे मुक्ति ठामे... अष्टापद० १ द्रव्यथी अष्टापद गिरि, भावे आतम पोते; आठ पगथियां योगनां, आरोहवां ज्योते. ......... अष्टापद० २ १९२ For Private And Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यम नियम आसन अने, प्राणायाम ए चार; हठनां पगथियां चार छे, चार सहजनां धार..... अष्टापद० ३ प्रत्याहार ने धारणा, ध्यान सत्य समाधि; शुद्धात्मदर्शने प्राप्ति छे, नासे आधि उपाधि...... अष्टापद० ४ चौवीस तीर्थंकरतणी, मूर्तिओ देखे; दर्शन वंदन ध्यानथी, मोहभाव उवेखे............. अष्टापद० ५ आठ पगथियां पर चढी, परमातम जोवे; बुद्धिसागर आतमा, सिद्ध महावीर होवे........... अष्टापद० ६ आबु जिनचैत्य स्तवन आबु पर्वत रळियामणो रे लोल, जिनमंदिर जयकाररे; विमळाशाहे करावियांरे लोल, जिन प्रतिमा सुखकाररे....... आबु० १ वस्तुपाल ने तेजपालनारे लोल, मंदिरदेव विमान रे; जिनप्रतिमाने वंदतारे लोल, प्रगटे हर्ष अमानरे. ..... आबु० २ अवचलगढ जिनमंदिरोरे लोल, वंदो पूजो भव्य रे; आतम गुण प्रगटाववारे लोल, मानवभव कर्तव्यरे.... आबु० ३ जिनमंदिर बीजां भलारे लोल, दर्शनथी दुःख जायरे; ध्यान समाधि स्थिरता वेधेरे लोल, आरोग्य आनंद थायरे. ....आबु० ४ १९३ For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्य ने भाव बे भेदथीरे लोल, यात्रा करंतां बेशरे; बुद्धिसागर आत्ममां रे लोल, सहजानंद हमेशरे. .... आबु० ५ सम्मेतशिखर स्तवन सम्मेतगिरि अति शोभतारे लोल, सिद्धो तीर्थंकर वीसरे; द्रव्यभाव यात्रा करेरे लोल, विघटे राग ने रीसरे. सम्मेत० १ जिनमंदिर प्रभु वंदतारे लोल, आनंद प्रगटे अपाररे; यात्रा करे अनुभव थतोरे लोल, नासे कर्म विकाररे. ..... सम्मेत० २ भाव सम्मेत शुद्धातमारे लोल, दर्शन स्पर्शन थायरे; अनुभवज्ञाने ध्यावतारे लोल, पोते प्रभुपद पाय रे. . सम्मेत० ३ साधनयोगे साध्य सिद्धि छे रे लोल, मनशुद्धिना उपाय रे; जे जे द्रव्यथी करवा घटेरे लोल, करवा ते हित लायरे............. सम्मेत० ४ द्रव्य ने भावथी जिनप्रतिमा भलीरे लोल, द्रव्य ने भावथी सेवरे; बुद्धिसागर निज आतमा रे लोल, आविर्भाव देवरे. सम्मेत० ५ गिरनार नेमिजिन स्तवन गिरनार पर्वत नेमि वंदतारे, ध्यावतां शिवसुख थायरे; दीक्षा केवल ने मुक्ति नेमिनीजी, कल्याण भूमि सुहायरे....... ..गिरनार०१ १९४ For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिनाथ गुण गावतांजी गुण प्रकटे निर्धाररे; कारण पामी कारज संपजेजी; यात्रा करो सुखकाररे. ...... ............ गिरनार० २ नेमिजिनेश्वर मंदिर शोभतुंजी, स्वर्गविमान समानरे; नेमि प्रतिमा दर्शन करेजी, नासे दोषनी खाण रे. ..................... गिरनार० ३ नेमिजिनेस्वर सरखो आतमाजी, नेमिना ध्यानथी थायरे; टळे उपाधि आधि यात्राथीजी, निवृत्ति सत्य प्रकटायरे. ..................... गिरनार० ४ निवृत्ति माटे तीर्थनी सेवनाजी, आतम निःसंग थायरे; बुद्धिसागर निज आत्मनीजी, शुद्धदशा प्रगटायरे. गिरनार० ५ दीपावली पर्व स्तवन मारे दीवाली थई आज, प्रभु-मुख जोवाने; सर्यां सर्यां रे सेवकनां काज, भव दुःख खोवाने. महावीर स्वामी मुगते पहोंता, गौतम केवल ज्ञान रे; धन्य अमावस्या धन्य दीवाली, महावीर प्रभु निरवाण. जिन.१. चारित्र पाली निरमलुं रे, टाल्यां विषय-कषाय रे. एवा मुनिने वन्दीए, जे उतारे भवपार.. जिन.२. १९५ For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाकुल वहोर्या वीरजिने, तारी चन्दनबाला रे. केवल लई प्रभु मुगते पहोंच्या, पाम्या भवनो पार. ... जिन.३. एवा मुनिने वन्दीए, जे पंचज्ञान ने धरता रे. समवसरण दई देशना, प्रभु तार्या नर ने नार. ....... जिन.४. चोवीसमा जिनेसरू रे, मुक्तितणा दातार रे. कर जोडी कवि एम भणे, प्रभु भवनो फेरो टाल..... जिन.५. १९६ For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... स्तुति विभाग श्री ऋषभदेव स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया; मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया. जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया; केवल सिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया. सवि जिन सुखकारी, मोह मिथ्या निवारी; दुरगति दुःख भारी, शोक संताप वारी. श्रेणी क्षपक सुधारी, केवलानंत धारी; नमीए नरनारी, जेह विश्वोपकारी...... समवसरण बेठा, लागे जे जिनजी मिट्ठा; करे गणप पइट्ठा, इन्द्र चन्द्रादि दिट्ठा. द्वादशांगी वरिट्ठा, गुंथतां टाले रिट्ठा; भविजन होय हिट्ठा, देखी पुण्ये गरिट्ठा. सुर समकितवंता, जेह रिद्धे महंता; जेह सज्जन संता, टालीए मुज चिंता. जिनवर सेवंता, विघ्न वारे दुरंता; जिन उत्तम थुणंता, पद्मने सुख दिता. १९७ For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ऋषभदेव स्तुति प्रह ऊठी वंदूं, ऋषभ देव गुणवंत; प्रभु बेठा सोहे, समवसरण भगवंत. त्रण छत्र विराजे, चामर ढाले इंद्र; जिनना गुण गावे, सुर नर नारीना वृंद.... बार परषदा बेसे, इंद्र इंद्राणी राय; नव कमल रचे सुर, जिहां ठवता प्रभु पाय. देव दुंदुभि वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुंत; एवा जिन चोवीस, पूजो एकण चित्त... जिन जोजन भूमि, वाणीनो विस्तार; प्रभु अरथ प्रकाशे, रचना गणधर सार. सो आगम सुणतां, छेदीजे गति चार; जिन वचन वखाणी, लहीये भवनो पार. यक्ष गोमुख गिरुओ, जिननी भक्ति करेव; तिहां देवी चक्केसरी, विघन कोडी हरेव. श्री तपगच्छ नायक, विजयसेन सूरिराय; तस केरो श्रावक, ऋषभदास गुण गाय भक्तामर पादपूर्ति ऋषभदेव स्तुति भक्तामर-प्रणत-मौलिमणि-प्रभाणा-, मुद्दीपकं जिन! पदाम्बुज-यामलं ते; १९८ .. ......... .......४ For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तोष्ये मुदाह-मनिशं किल मारुदेव, ___ दुष्टाष्ट-कर्मरिपु-मण्डलभित्! सुधीर!...१ श्रीमज्जिनेश्वर-कलापमहं त्रिलोक्या-, मुद्द्योतकं दलित-पापतमो-वितानम्; भव्याम्बु-जात-दिननाथ-निभं स्तवीमि, भक्त्या नमस्कृत-मर्मत्य-नराधि-राजैः.२ वर्यां जिन-क्षितिपते-स्त्रिपदी-मवाप्य, गच्छेश्वरैः प्रकटिता किल वाङ्मदा या; सम्यक् प्रणम्य जिन-पादयुगं युगादा-, वाढ्या शुभार्थ-निकरै-(वि सास्तु लक्ष्म्यै. ..३ यक्षेश्वर-स्तव जिनेश्वर! गोमुखाबः, सेवां व्यधत्त कुशल-क्षिति-भृत्पयोदः; त्वत्पाद-पंकज-मधुव्रततां दधानो-, वालबनं भवजले पततां जनानाम्.४ कल्लाण-कंदं पादपूर्ति ऋषभदेव स्तुति भावानया-नेग-नरिंद-विंदं, सव्विंद-संपुज्ज-पयारविंदं; वंदे जसो-निज्जिय-चारुचंदं, कल्लाण-कंदं पढमं जिणिंदं..१ चित्तेगहारं रिउदप्प-वारं, दुक्खग्गि-वारं सम-सुक्खकारं; तित्थेसरा दिंतु सया निवारं, अपार-संसार-समुद्द-पारं.......२ १९९ For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नाण-सत्तु-क्खलणे सुवप्पं, सन्नाय-संहीलिय-कोहदप्पं; संसेमि सिद्धंतमहो अणप्पं, निव्वाण-मग्गे वरजाण-कप्पं.....३ हंसाधिरूढा वरदाण-धन्ना, वाएसिरी दाण-गुणोव-वण्णा; निच्चंपि अम्हं हवउ प्पसन्ना, कुंदिंदु-गोक्खीर-तुसार-वन्ना..४ श्री ऋषभदेव स्तुति युगादि-पुरुषेन्द्राय, युगादि-स्थिति-हेतवे! युगादि-शुद्धधर्माय, युगादि-मुनये नमः .... ........१ ऋषभाद्या वर्द्धमानान्ता, जिनेन्द्रा दश पञ्च च; त्रिकवर्ग-समायुक्ता दिशन्तु परमां गतिम् जयति जिनोक्तो धर्मः, षड्-जीव-निकाय-वत्सलो नित्यम्; चूडामणिरिव लोके, विभाति यः सर्व-धर्माणाम् ........३ सा नो भवतु सुप्रीता, निद्भुत-कनक-प्रभा; मृगेन्द्र-वाहना नित्यं, कूष्माण्डी कमलेक्षणा श्री ऋषभदेव स्तुति ऋषभजिनेश्वर सम निज आतम, सत्ताए छे ध्याववो, तिरोभावने दूर करीने, व्यक्तिभावे लाववो; आतमने परमातम करवा, असंख्ययोगो भिन्न छे, सम उपयोगे सर्वे मळतां, सापेक्षाथी अभिन्न छे. ........ .........४ २०० For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिन्न भिन्न मत दर्शन पंथो, निरपेक्षे मिथ्या सदा, सातनयोनी सापेक्षाए, जाणे सम्यक्त्व ज तदा; जैनधर्ममां सर्वे धर्मो, सापेक्षे समाय छे, जैन धर्म सेवे सहु धर्मो, सेव्या देवो गाय छे. .........२ जिनवाणी जाणंतां जाण्युं, सर्वे ए निश्चयने खरो; जग जाण्युं सहु आतम जाणे, एवा निश्चयने धरो; आतमशुद्धि माटे सर्वे, बाह्यांतर उपाय छे, जेने जेथी शुद्धि थाती, तेने ते ज सुहाय छे.... बहिरातमने अंतरआतम, करवो आतमज्ञानथी, अंतरआतमने परमातम, करवो ध्यानना तानथी; अंतरआतम ते परमातम, जाणी प्रभुने सेवता, तेथी जैनो जिनता पामे, स्हाय करंता देवता...... .........४ श्री अजितनाथ स्तुति अजितजिनेन्द्रे अजित थवाने, सम्यग्ज्ञान प्रकाश्युंजी, सापेक्षाए भव्य लोकना, मनमां प्रेमे वास्युंजी; आतमज्ञान सम ज्ञान नहीं को, क्षणमां थावे मुक्तिजी, आतमज्ञानी निर्लेपी थै, कर्म करे सहुयुक्तिथी. ........१ २०१ For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अजितनाथ थोय विजया सुत वंदो, तेजथी ज्युं दिणंदो, शीतलताए चंदो, धीरताए गिरीदो; मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरिंदो, लहो परमाणंदो, सेवतां सुख कंदो. श्री संभवनाथ थोय संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता, षट जीवना त्राता, आपता सुखशाता; माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग वाता, जास नामे पलाता. श्री संभवनाथ स्तुति आत्म स्वभावे संभवतुं ते, संभव जिननी सेवाजी, गुणपर्यायो आविर्भावे थातां पोते देवाजी; अभेदभावे संभव करता ज्ञानानंद स्वभावेजी, निजआतम संभवरूपी छे व्यक्त करे भवी भावेजी. श्री अभिनंदन स्तुति आत्मानंद प्रगट करी अभिनंदे जेह, अभिनंदन छे आतमा गुणपर्याय गेह; २०२ .........१ For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम अभिनंदन थतो अभिनंदन ध्याई, ध्यान समाधि एकता लीनता पद पाई. श्री अभिनंदन थोय संवर सुत साचो, जास स्याद्वाद वाचो, थयो हीरो जाचो, मोहने देई तमाचो; प्रभु गुणगण माचो, एहना ध्याने राचो, जिनपद सुख साचो, भव्य प्राणि निकाचो. सुमतिनाथ भगवाननी थोय सुमति सुमतिदायी, मंगला जास माई, मेरुने वली राई, ओर एहने तुलाई; क्षय कीधां घाई, केवलज्ञान पाई, नहि उणिम कांई, सेविये ते सदाई. सुमतिनाथ स्तुति सन्मति धारे दुर्मति, त्यागी जे नरनारी, सुमति प्रभु भक्तो खरा, नीतिरीति धारी; सुमति ग्रही शुद्ध भावथी, आत्मभावे रमंता, निश्चयनय सुमति प्रभु, आपोआप नमंता.. २०३ For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मप्रभु स्तुति पद्मप्रभुने देखतां देखवानुं न बाकी, पद्मप्रभुने ध्यावतां बने आतम साखी; पद्मप्रभुमय थई जातां, कोई कर्म न लागे. देह छतां मुक्ति मळे, जीत डंको वागे. पद्मप्रभुनी थोय अढीशें धनुष काया, त्यक्त मद मोह माया, सुसीमा जस माया, शुक्ल जे ध्यान ध्याया; केवल वर पाया, चामरादि धराया, सेवे सुर राया, मोक्ष नगरे सिधाया. सुपार्श्वनाथ भगवाननी थोय सुपास जिन वाणी, सांभळे जेह प्राणी, हृदये पहेंचाणी, ते तर्या भव्य प्राणी; पांत्रीश गुण खाणी, सूत्रमा जे गुंथाणी, षट् द्रव्यशुं जाणी, कर्म पीले ज्युं घाणी. चंद्रप्रभु स्तुति चंद्रप्रभु विभु उपदेशे, जैनधर्म ते साचो, नय सापेक्षाए खरो, तेमां भव्यो राचो; २०४ For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मज्ञान ने ध्यानथी, करो आत्मनी शुद्धि, शुद्धातम चंद्रप्रभु, थातां आनंद ऋद्धि. चंद्रप्रभ भगवाननी थोय सेवे सुर वृंदा, जास चरणारविंदा, अट्ठम जिन चंदा, चंदवणे सोहंदा; महसेन नृप नंदा, कापता दुःख दंदा, लंछन मिष चंदा, पाय मानुं सेविंदा. सुविधिनाथ भगवाननी थोय नरदेव भाव देवो, जेहनी सारे सेवो, जेह देवाधिदेवो, सार जगमां ज्युं मेवो; जोतां जग एहवो, देव दीठो न तेहवो, 'सुविधि' जिन जेहवो, मोक्ष दे ततखेवो. सुविधिनाथ स्तुति आत्मिक शुद्धिनी सुविधि, द्रव्यभावथी साची, बाह्यांतर किरिया भली, स्वाधिकारे राची; करतां चिदानंद परिणति, एक सुविधि सोहे, त्रण जगतना लोकाने, मन सुविधि मोहे. २०५ For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीतलनाथ स्तुति शीतल प्रभु शीतल करे भजे शीतलभावे, शम शीतलता धारतां सहुं संताप जावे; रागद्वेष निवारीने आप शीतल थावो, आतमने शीतल करो सत्य निश्चय लावो. शीतलनाथ भगवाननी थोय शीतल जिन स्वामी, पुण्यथी सेव पामी, प्रभु आतमरामी, सर्व परभाव वामी; जे शिवगति गामी, शाश्वतानंद धामी, सवि शिवसुख कामी, प्रणमीए शीश नामी. श्री श्रेयांसनाथ भगवाननी थोय विष्णु जस मात, जेहना विष्णु तात, प्रभुना अवदात, तीन भुवने विख्यात; सुरपति संघात, जास निकटे आयात, करी कर्मनो घात, पामीया मोक्ष शात. श्रेयांसनाथ स्तुति द्रव्य-भावथी श्रेयने, निज आत्मनुं जाणो, जाणी आचरे मूकशो, पूरुषार्थने आणो; २०६ For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मज्ञान ने सत्क्रिया, वडे श्रेयने साधो, श्रेयांस प्रभुनी पेठ सहु, पूर्ण श्रेयेज वाधो. वासुपूज्य स्तुति आतम वासुपूज्य छे करो आविर्भावे, निश्चय नयदृष्टिबळे, ब्रह्मभावना दावे; वासुपूज्यना ध्यानथी, वासुपूज्यजी थावो, ध्यान समाधि एकता लीनताथी सुहावो. श्री वासुपूज्य भगवाननी थोय विश्वना उपकारी, धर्मना आदिकारी, धर्मना दातारी, कामक्रोधादि वारी; तार्या नरनारी, दुःख दोहग हारी, वासुपूज्य निहारी, जाउं हुं नित्य वारी. विमलनाथ भगवाननी थोय विमल जिन जुहारो, पाप संताप वारो, श्यामांब मल्हारो, विश्व कीर्ति विफारो, योजन विस्तारो, जास वाणी प्रसारो, गुणगण आधारो, पुण्यना ए प्रकारो. २०७ For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विमलनाथ स्तुति आर्तरौद्रने वारीने मन निर्मल कर, एवी प्रभुनी पूजना एह ध्यान छे धर; विमल प्रभु जग उपदिशे सहु निर्मल थावो, विमल थवुं निज हाथमां शाने वार लगावो. अनंतनाथ स्तुति, अनंत आतम द्रव्यथी क्षेत्र काल ने भावे, जाणे अंत न थाय छे आठ कर्म अभावे; द्रव्य क्षेत्र काल भावथी अनंत कर्मनो आवे, अनंतनाथ जणावता ब्रह्म अंत न थावे. अनंतनाथ भगवाननी थोय अनंत अनंत नाणी, जास महिमा गवाणी, सुर नर तिरि प्राणी, सांभळे जास वाणी; एक वचन समजाणी, जेह स्याद्वाद जाणी, तर्या ते गुण खाणी, पामीआ सिद्धि राणी. श्री धर्मनाथ भगवाननी थोय धरम धमर धोरी, कर्मना पास तोरी, केवल श्री जोरी, जेह चोरे न चोरी; २०८ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ १ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दर्शन मद छोरी, जाय भाग्या सटोरी, नमे सुरनर कोरी, ते वरे सिद्धि गोरी. धर्मनाथ स्तुति धर्म प्रभु कहे आत्मनो धर्म गुण पर्यायो समजे वर्ते सहजथी तेह धर्मी सुहायो; धर्मनाथ निज आतमा करे आविर्भावे, अज्ञानी धर्म पन्थ सहु टळे आत्मस्वभावे. __ शांतिनाथ स्तुति शांति मळे नहीं लक्ष्मीथी नहीं राज्यना भोगे, शांति मळे नहीं कामथी बाह्यसत्ताप्रयोगे; शांति न राग-द्वेषथी सहु विषयने वामे, शांति जिनेश्वर भाखता शांति आतमठामे. शांति न क्रोध ने मानथी तेम माया ने लोभे, शांति न शास्त्राभ्यासथी जडमां मन थोभे; शांति न बाह्य पदार्थथी हुं ने मारुं माने, सर्व जिनेश्वर भाखता शांति आतम स्थाने. संकल्पो ने विकल्पथी मन शांत न थावे, अज्ञान ने मोहभावथी कोई शांति न पावे; २०९ For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नामरूपनिर्मोहथी जिनवाणी जणावे, शांति आतममां खरी अनुभवथी आवे. मनने मारतां आत्ममां सत्य शांति स्वभावे, मन संसार ने मुक्ति छे समजे शिव थावे; आतममां मन ठारतां निज पास छे शांति, शासनदेवी सहायथी रहे नहि कोई भ्रान्ति. __ शांतिनाथ स्तुति शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे; सुमित्रने घेर पारj, भव पार उतारे. विचरंता अवनीतले, तप उग्र विहारे; ज्ञान ध्यान एक तानथी, तिर्यंचने तारे. पास वीर वासुपूज्य ने, नेम मल्लिकुमारी; राज्य विहुणा ए थया, आपे व्रतधारी. शांतिनाथ प्रमुखा सवि, लही राज्य निवारी; मल्लि नेम परण्या नहि, बीजा घरबारी. कनक कमल पगलां ठवे, जग शांति करीजे; रयण सिंहासन बेसीने, भली देशना दीजे. योगावंचक प्राणीया, फल लेतां रीजे; पुष्करावर्तना मेघमां, मगसेल न भींजे. २१० For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org क्रोड वदन शुकरारूढो, श्याम रूपे चार; हाथ बीजोरू कमल छे, दक्षिण कर सार. जक्ष गरुड वाम पाणिए, निकुलाक्ष वखाणे; निर्वाणीनी वात तो, कवि वीर ते जाणे. शांतिनाथ स्तुति वंदो जिन शांति, जास सोवन कांति; टाले भव भ्रान्ति, मोह मिथ्यात्व शांति. द्रव्यभाव अरि पांति, तास करता निकांति; धरता मन खांति, शोक संताप वांति.. दोय जिनवर नीला, दोय धोला सुशीला; दोय रक्त रंगीला, काढता कर्म कीला. न करे कोई हीला, दोय श्याम सलीला; सोल स्वामीजी पीला, आपजो मोक्षलीला. जिनवरनी वाणी, मोहवल्ली कृपाणी; सूत्रे देवाणी, साधुने योग्य जाणी. अरथे गूंथाणी, देव मनुष्य प्राणी; प्रणमोहित आणी, मोक्षनी ए निसाणी. वाघेसरी देवी, हर्ष हियडे धरेवी; जिनवर पाय सेवी, सार श्रद्धा वरेवी. २११ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ १ २ ३ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे नित्य समरेवी, दुःख तेहना हरेवी; पद्म विजय कहेवी, भव्य संताप खेवी. ३. सकल कुशल वल्ली पादपूर्ति शांति जिन स्तुति सकल-कुशल-वल्ली-पुष्करावर्त-मेघो. ___ मदन-सदृशरूपः पूर्ण-राकेन्दु-वक्त्रः; प्रथयतु मृग-लक्ष्मा शान्तिनाथो जनानां, प्रसृत भुवन-कीर्तिः कामितं कम्रकान्तिः. १ जिनपति-समुदायो दायको-भीप्सिताना, दुरित-तिमिर-भानुः कल्प-वृक्षोपमानः; रचयतु शिवशान्तिं प्रातिहार्य-श्रियं यो, विकट-विषय-भूमी-जातहेतिं बिभर्ति.२ प्रथयतु भविकनां ज्ञान-सम्पत्-समूह, समय इह जगत्यामाप्त-वक्त्र-प्रसूतः; भवजल-निधिपोतः सर्व सम्पत्ति-हेतुः, प्रथित-घन-घटायां सूर्यकान्त-प्रकाशः.३ जयविजय-मनीषा-मन्दिरं ब्रह्म-शान्तिः, सुरगिरि-समधीरः पूजितो न्यक्षयक्षैः; हरति सकल-विघ्नं यो जनै-श्चिन्त्य-मानः, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः. .४ २१२ For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शांतिनाथ स्तुति सुकृत-कमल-नीरं, कर्म्म- गोसार -सीरं, मृग- रुचिर शरीरं, लब्ध-संसार-तीरम्; मदन-दहन-वीरं, विश्व-कोटीरहीरं, श्रयतु गिरिप-धीरं, शान्तिदेवं गभीरम्.. जलधि-मधुर-नादा, निस्सदा निर्विषादाः, परम-पदर-मादा-स्त्यक्त-सर्व-प्रमादाः; दलित-पर-विवादा, भुक्त-दत्त- प्रसादा, मद-कज-शशि-पादाः, पान्तु जैनेन्द्र-पादाः. दुरित तिमिर-सूरं, दुर्म्मता-स्कन्द-शूरं, कुहठ- फणि-मयूरं, स्वादुजिद् हारहूकम्; अशिव-गमन-तूरं, तत्त्व - भाजा-मदूरं, शृणुत वचन-पूरं, चार्हतां कर्ण-पूरम्. जिन-पनवन-सारा, नश्चमत्कार-काराः, श्रुत-मित-सुर-वाराः, कर्म-पाथोधि-तारा; शुभ-तरु-जल-धाराः, सारा-सादृश्य-धारा, ददतु सपरिवारा, मङ्गलं सूपकाराः.. २१३ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ २ ३ ४ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जी ..........१ कुंथुनाथ स्तुति कुथुनाथमय थै ने भव्यो, कुंथुनाथ आराधोजी, आतमरूपे थै ने आतम, सिद्धिपदने साधोजी; आसकितवण कर्मो करतां, आतम नहीं बंधायजी, करे क्रिया पण अक्रिय पोते, उपयोगे प्रभु थायजी. श्री कुंथुनाथ भगवाननी थोय कुंथु जिननाथ, जे करे छे सनाथ, तारे भव पाथ, जे ग्रही भव्य हाथ, एहनो तजे साथ, बावळ दीए बाथ, तरे सुरनर साथ, जे सुणे एक गाथ. श्री अरनाथ भगवाननी थोय अर जिनवर राया, जेहनी देवी माया, सुदर्शन नृप ताया, जास सुवर्ण काया; नंदावर्त पाया, देशना शुद्ध दाया, समवसरण विरचाया, इंद्र-इंद्राणी गाया. अरनाथ स्तुति कर्म करो पण कर्मथी, रहो निर्लेप भव्यो, जिन थातां परमार्थनां, थातां कर्तव्यो; २१४ For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन दशामां कर्मने, करो स्वाधिकारे, अर जिनवर एम भाखता, शक्ति प्रगटे छे त्यारे. मल्लिनाथ स्तुति मल्लिनाथ घट जेहना, सर्व मल्लने जीते, आतममल्ल जे जाणतो, शुद्धधर्म प्रतीते; हारे न जगमां कोईथी, कोई तेने न मारे मोहशत्रुने मारतो, तेने देव छे व्हारे. श्री मल्लिनाथ भगवाननी थोय मल्लिजिन नमीये, पूरवलां पाप गमीये, इंद्रिय गण दमीये, आण जिननी न क्रमीये; भवमा नवि भमीये, सर्व परभाव वमीये, निज गुणमां रमीये, कर्म मल सर्व धमीये श्री मुनिसुव्रत भगवाननी थोय मुनिसुव्रत नामे, जे भवि चित्त कामे, सवि संपत्ति पामे, स्वर्गनां सुख जामे; दुर्गति दुःख वामे, नवि पडे मोह भामे, सवि कर्म विरामे, जई वसे सिद्धि धामे. २१५ For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिसुव्रत स्तुति समकित ने चारित्रथी, मुनिसुव्रत थावे, धातीकर्म विनाशतां, प्रभुता घट पावे; राजयोग चारित्रमां, शुद्ध उपयोग समता, मन वच कायनी गुप्तिथी, परमात्म रमणता. नमिनाथ स्तुति नमि जिनेश्वर सेवा भक्ति, जगनी सेवा भक्तिजी, निज आतमनी सेवा भक्ति, एक स्वरूपे शक्तिजी; नाम रूपथी भिन्न निजातम, धारी प्रभु जे ध्यावेजी, प्रारब्धे कर्मनो भोगी, तो पण भोगी न थावेजी. नेमिनाथ स्तुति द्रव्य भावथी नेमि सरखा, बळिया जैनो थावेजी, जैनधर्म प्रसरावे जगमां, शुभपरिणामना दावेजी; शुभ ते धर्म प्रशस्य कषायो, करतां पुण्यने बांधेजी, शुद्ध परिणामे वर्ततां, मुक्ति क्षणमां साधेजी... ........१ शुभ परिणामी सम्यग्दृष्टि, शुद्ध भावेने पामेजी, अशुभ कषाया प्रगट्या वारे, देहाध्यासने वामेजी; २१६ For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्भय निःसंगी बळियो थै, कार्य करे नहि हारेजी, तीर्थंकर सर्वे उपदेशे, प्रभुपणुं घट धारेजी. नाम रूपमां निर्मोही थै, प्रभुभुक्तो शिव वरताजी, सर्व कार्य करता अधिकारे, भयथी न पाछा पडताजी; मर्द बनीने दर्द सहे सहु, धर्म कर्म नहीं मूकेजी, ज्ञान कर्म ने भक्तिउपासन, योगने अंतर धारेजी. मुक्ति भवमां समभावी थै, धर्म कर्म नहीं मूकेजी, जीवनमुक्त बने त्होये, पण, कर्तव्यो नहीं चूकेजी; देवगुरूने करीने स्वार्पण, जैनो जिन थै जाताजी, शासनदेवी सेवा सारे, धर्मनी सेवा च्हाताजी. For Private And Personal Use Only २ ३ ४ नेमिनाथ स्तुति कमल-वल्लपनं तव राजते, जिनपते ! भुवनेश! शिवात्मज !; मुकुरवद् विमलं क्षणदा-वशाद् हृदय-नायकवत् सुमनोहरम्. १ सकल-पारगताः प्रभवन्तु मे, शिव-सुखाय कुकर्म-विदारकाः; रुचिर-मंगल-वल्लिवने घना, दश-तुरंगम - गौर- यशोधराः . ... २ मदन-मान-जरा-1 - निधनोज्झिता, जिनपते! तव वाग - मृतोपमा; भवभृतां भवताच्छिव-शर्मणे, भव-पयोधि पतज्जन- तारका... ३ जिनपपाद-पयोरुह-हंसिका, दिशतु शासन - निर्जर-कामिनी; सकलदेह भृताममलं सुखं, मुख - विभाभर - निर्जित-भाधिपा... ४ २१७ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नेमिनाथ स्तुति प्रचण्ड-मार-वारकं, कुदर्प-वार-दारकम् सुरेन्द्र-सेवितं सदा, शिवासुतं भजे मुदा. अनन्त-शर्म-दायकाः प्रशस्त - धर्म - नायकाः, अवद्य -भेदका इना, जयन्ति ते समे जिनाः. अनेक-ताप-नाशनं, कुवासना-विनाशनम् । सुपर्व-राज-संश्रुतं, स्तुवे जिनोदितं श्रुतम्. विशाल-लोचनाम्बिका, कजानना वराङ्गना । नताप्त-पत्कजा-चलां, श्रियं दधातु वोमलाम्. नेमिनाथ स्तुति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुर असुर वंदित पाय-पंकज, मयण - मल्ल-मक्षोभितं; घन सुघन श्याम शरीर सुंदर, शंख लंछन शोभितम्. शिवादेवि नंदन त्रिजग - वंदन, भविक कमल दिनेश्वरं ; गिरनार गिरिवर शिखर वंदु, श्री नेमिनाथ जिनेश्वरम्. अष्टापदे श्री आदि जिनवर, वीर पावापुरि वरु; वासुपुज्य चंपा नयर सिद्ध्या, नेमि रैवत गिरिवरु. सम्मेत शिखरे वीस जिनवर, मुक्ति पहोता मुनिवरु; चोवीस जिनवर नित्य वंदुं, सयल संघ सुहंकरु..... २१८ For Private And Personal Use Only १ २ ४ १ २ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगियार अंग उपांग बार, दश पयन्ना जाणीये; छ छेद ग्रंथ पसत्थ-सत्था, चार मूल वखाणीये. अनुयोग द्वार उदार, नंदीसूत्र जिनमत गाईये; वृत्ति चूर्णि भाष्य, पिस्तालीश आगम ध्याईये. .........३ दोय दिशि बालक दोय जेहने, सदा भवियण सुखकरु; दुख हरि अंबालुंब सुंदर, दुरित दोहग अपहरूं. गिरनार मंडण नेमि जिनवर, चरण-पंकज सेविये; श्री संघ सुप्रसन्न मंगल, करो ते अंबा देवीए. ... ........४ नेमिनाथ भगवाननी थोय राजुल वर नारी, रूपथी रति हारी, तेहना परिहारी, बालथी ब्रह्मचारी; पशुआं उगारी, हुआ चारित्रधारी, केवलश्री सारी, पामीआ घाति वारी. पार्श्वनाथ भगवाननी थोय पासजिणंदा वामानंदा, जब गरभे फळी, सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवा मळी; जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणी प्रिये, नेमि राजी चित्त विराजी, विलोकित व्रत लीए. २१९ For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्व जिन स्तुति शंखेश्वर पासजी पूजीए, नर भवनो लाहो लीजिए. मन वांछित पूरण सुर-तरु, जय वामासुत अलवेसरु. दोय राता जिनवर अति भला, दोय धोला जिनवर गुण - नीला. दोय नीला दोय श्यामल कह्या, सोले जिन कंचन-वर्ण लह्या..... २ आगम ते जिनवर भाखीयो, गणधर ते हइडे राखीयो. तेहनो रस जेणे चाखीयो, ते हुवो शिव-सुख साखीयो. धरणेंद्र राय पद्मावती, प्रभु पार्श्व-तणा गुण गावती. सहु संघना संकट चूरती, नय - विमलनां वांछित पूरती. पार्श्व जिन स्तुति पार्श्व जिन स्तुति श्री चिंतामणि कीजे सेव, वली वंदु चोवीशे देव; विनय कहे आगमथी सुणो, पद्मावतीनो महिमा घणो. (इस गाथा को चार बार बोल सकते है.) २२० For Private And Personal Use Only ..... १ ३ भीड भंजन पास प्रभु समरो, अरिहंत अनंतनुं ध्यान धरो; जिनागम अमृत पान करो, शासन देवी सवि विघ्न हरो.. (इस गाथा को चार बार बोल सकते हैं.) १ ४ १ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेय: श्रियां मंगल पादपूर्ति पार्श्व जिन स्तुति श्रेयः श्रियां मंगल-केलिसद्म!, श्रीयुक्त-चिन्तामणि-पार्श्वनाथ!; दुर्वार-संसार-भयाच्च रक्ष, मोक्षस्य मार्गे वर-सार्थवाह! .....१ जिनेश्वराणां निकर! क्षमायां, नरेन्द्र-देवेन्द्र-नतांघ्रि-पद्म!; कुरुष्व निर्वाण-सुखं क्षमाभृत्!, सत्केवल-ज्ञानरमां दधान!...२ कैवल्य-वामा-हृदयैकहार!, क्षमा-सरस्व-द्रजनीश-तुल्य!; सर्वज्ञ! सर्वातिशय-प्रधान!, तनोतु ते वाग जिनराज! सौख्यम..३ श्री-पार्श्वनाथ-क्रमणाम्बु-जात-, सारंग-तुल्यः कलधौत-कान्तिः; श्री-यक्षराजो गरुडाभिधानः, चिरं जय ज्ञान-कलानिधान! ..४ महावीर स्वामी स्तुति वीर प्रभुमय जीवन धारो, सर्व जाति शक्तिथी, दोषो टाळी सद्गुण लेशो, बनशो महावीर व्यक्तिथी; स्वप्ने पण हिम्मत नहि हारो, कार्योनी सिद्धि करो, वीर प्रभु उपदेशे कांई, अशक्य नहि निश्चय धरो. .......१ महावीर स्वामी स्तुति जय! जय! भवि हितकर, वीर जिनेश्वर देव; सुर-नरना नायक, जेहनी सारे सेव; करुणा रस कंदो, वंदो आणंद आणी, त्रिशला सुत सुंदर, गुण-मणि केरो खाणी.. २२१ For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जस पंच कल्याणक, दिवस विशेष सुहावे; पण थावर नारक, तेहने पण सुख थावे. ते च्यवन जन्म व्रत, नाण अने निर्वाण; सवि जिनवर केरां, ए पांचे अहिठाण. जिहां पंच समिति युत, पंच महाव्रत सार; जेहमां परकाश्या, वली पांचे व्यवहार. परमेष्ठि अरिहंत, नाथ सर्वज्ञ ने पार; एह पंच पदे लह्यो, आगम अर्थ उदार. मातंग सिद्धाइ, देवी जिन-पद सेवी; दुःख दुरित उपद्रव, जे टाले नितमेवी. शासन सुखदायी, आइ सुणो अरदाश; श्री ज्ञान विमल गुण, पूरो वांछित आश.. यत्पाद-पद्म-युगलं प्रणमन्ति शक्रा, दुष्कर्म-वारण-विदारण-पंच-वक्त्रम्; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याण मंदिर पादपूर्ति महावीर स्वामी स्तुति कल्याण-मन्दिर-मुदार-मवद्य-भेदि, क्षीणाष्ट-कर्म-निकरस्य नमोस्तु नित्यं, २ २२२ ३ ४ स्तोष्ये मुदा जिनवरं जिन-त्रैशलेयम्. . १ For Private And Personal Use Only भीताभय-प्रद-मनिन्दित-मंघ्रिपद्मम्; Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इष्टार्थ-मण्डल-सुसर्जन-देववृक्षं, ___ नित्योदयं दलित-तीव्र-कषाय-मुच्चैः (मुक्तं)...२ जैनागमं दिशतु सर्व सुखैक-द्वारं, श्रीनन्दन-क्षितिज-हव्यहति प्रकारम्; संसार-सागर-निमज्जद-शेषजन्तु-, ___ बोहित्थ-सन्निभ-मभीष्टद-माशु मुग्धम्.३ मातंग-यक्ष-रमलां प्रकरोति सेवां, पूर्वान्त-मारसम-भीप्सित-दं विशालम्; उत्पत्ति-विस्तर-नदीश-पतज्जनानां, पोतायमान-मभिनम्य जिनेश्वरस्य. .४ संसारदावा पादपूर्ति महावीर स्वामी स्तुति नमेन्द्र-मौलि-प्रपतत्-पराग-, पुंज-स्फुरत्कर्बुरित-क्रमाब्जम्; वीरं भजे निर्जित-मोहवीरं, संसार-दावानल-दाहनीरम्. .....१ पुष्पौघ-पद्मदल-सौरभ-गुण्ठितानि, स्वर्णाम्बुजैः सुरकृतैः परि-मण्डितानि; वन्देहतां-वरपदानि नता-न्यजेन, ___ भावावनाम-सुर-दानव-मानवेन. ...२ नानारत्नैः सुभग-मतुल-प्रौढ-सादृश्य-पाठेर्-, विज्ञज्ञातै-बहुनय-भरैः सत्तरंगै-रुपेतम्; २२३ For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org युक्त्या जैनं समय- मुदधिं कीर्तयाम्यस्मि कामं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोधागाधं सुपद-पदवी-नीर-पूराभिरामम् ३ श्रीमद्वीर-क्रमाम्भोरुह - रसिक - मना राजहंसीव रम्या, सिद्धा सिद्धा विरुद्धा विशदगुण - लसद्-भक्त हृत्पद्म-रुद्धा; या धत्ते स्वीयकण्ठे घन- सुरभिरसां पुष्पमालां विशाला-, मामूलालोल-धूली-बहुल-परिमला-लीढ-लोलालिमाला. ४ स्नातस्या पादपूर्ति महावीर स्वामी स्तुति:. स्फूर्जद्भक्ति-नतेन्द्र-शीर्ष विलसत्-कोटीर-रत्नावली, रंगत्कान्ति-करम्बिताद्-भुत-नख-श्रेणी - समुज्जृम्भितम्; सिद्धार्थांग-रुहस्य कीर्तित-गुणस्यांघ्रि-द्वयं पातु वः, स्नातस्या-प्रतिमस्य मेरु-शिखरे शच्या विभोः शैशवे. १ श्रेयः शर्मकृते भवन्तु भवतां सर्वेपि तीर्थाधिपा, येषां जन्ममहः कृतः सुरगिरौ वृन्दारकैः सादरै; पौलोमी-स्तन-गर्व-खण्डन- परैः कुम्भैः सुवर्णोद्भवै-, र्हंसां-साहत-पद्मरेणु-कपिश-क्षीरार्ण-वाम्भो-भृतैः .. २ सेवे सिद्धान्त-मुद्यत्-सकल-मुनिजन-प्रार्थिता-र्मत्य-रत्नं, For Private And Personal Use Only गर्जद्वा-चाटवादि-द्विरद-घनघटा-दर्प-कण्ठी-रवाभम्; मिथ्या-धर्मान्धकारे स्फुट - विकट-करादित्य-मल्पप्रभं नो, अर्हद्वक्त्र-प्रसूतं गणधर - रचितं द्वादशांगं विशालम् . ३ २२४ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....................१ दक्षो यक्षाधिराजो महिम-गुणनिधि-श्चण्ड-दोर्दण्डधारी, सर्वं सर्वानुभूति-र्विदलयतु मुदा संघ-विघ्नं महौजाः; अध्यारूढो द्विपेन्द्रं वरभवन-गतस्तम्भ-हस्तोत्कटास्यं, निष्पंक-व्योम-नील-द्युतिमल-सदृशं बालचन्द्रा-भदंष्ट्रम्. .....४ ___ महावीर स्वामी स्तुति नमत त्रिभुवन-सारं जितमारं हारतार-गुणवारम्. वीरं कान्त-शरीरं गीरिधीरं पाप-मल-नीरम्. नम-दम-रवि-सर-मणि-मुकुट-कोटि-तट-घटित-मसृण-नख-मुकुरान्. जिनराजः शिवभाजः स्मरत त्रैलोक्य-सम्राजः. ........२ विलसत्-कुबोध-सन्तमस-सञ्चया-पचय-करण-खर-किरण. ध्यायत जैन-कृतान्तं नितान्तं ततभव-कृतान्तम्... ........३ विदलन्-नवीन-सरसीरुह-कृतनिवासा विकास-कमलकरा. विमलयतु मम मनीषां, हर-हसित-सित-प्रभादेवी. महावीर स्वामी स्तुति वीरं देवं नित्यं वंदे. जैनाः पादा युष्मान् पान्तु. ................ जैनं वाक्यं भूयाद् भूत्यै........... सिद्धा देवी दद्यात् सौख्यम्. २२५ ........ .............. For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......१ शाश्वता अशाश्वता जिननी स्तुति शाश्वत प्रतिमाओ सहु वंदो, स्वर्ग मृत्यु पातालेजी, आतमना उपयोगे रहेवा, निजगुण जे अजवाळेजी; नामादिनिक्षेपा चारे, अवलंबन हितकारीजी, निश्चय ने व्यवहारे वंदी, पामो सुख नरनारीजी... शाश्वती ने अशाश्वती प्रतिमा, नयनिक्षेपे जाणोजी, अर्हत् प्रतिनिधि क्षयोपशमना, भावे मनमां आणोजी; एकमां सर्वे सर्वमा एकज, एकानेक विचारोजी, चढता भावे सापेक्षाए, वंदीने घट धारोजी. प्रभु महावीर जिनवरवाणी, आगम शास्त्र प्रमाणीजी, कलियुगमां आधार खरो ए, जाणी मनमां आणीजी; सूत्रोमां जिनप्रतिमा भाखी, आराधो भवी प्राणीजी, प्रभुनी वाणी मुक्तिनिशानी, अनंत गुणनी खाणीजी. सम्यग्दृष्टि देवो सघळा, देवीओ प्रभु गावेजी, प्रभुप्रतिमाओने ते वंदे, पूजे घटमां ध्यावेजी; द्रव्य ने भावथी व्यवहार निश्चय, उपादान निमित्तेजी. बुद्धिसागर तीर्थ प्रतिमा, पूजो निर्मल चित्तेजी. ........४ २२६ For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच जिन स्तुति श्री आदि शान्ति नेमि पास वीर शासनपति वली, नमो वर्तमान अतीत अनागत चोवीशे जिन मन रली; जिनवरनी वाणी गुणनी खाणी प्रेमे प्राणी सांभली, थया समकितधारी भव निट्ठारी सेवे सुरवर लली लली...१ (इस गाथा को चार बार बोल सकते है.) स्तुति कल्लाणकंदं पढम जिणिंदं संतिंतओ नेमिजिणं मुणिंदं पासं पयासं सुगुणिक्कठाणं भत्तीई वंते सिरिवद्धमाणं........१ चार स्तुति की एक स्तुति प्रभुमहावीरदेवजिनेश्वरम्, सकलतीर्थपतिमचलेश्वरम्; प्रतिदिनं प्रणमामि जिनागमम्, कुरु हि यक्षिणी संघसहायताम्.१ सीमंधर जिन स्तुति श्री सीमन्धर जिनवर!, सुखकर साहिब देव! अरिहंत सकलनी, भाव धरी करूं सेव! सकलागम-पारग, गणधर-भाषित वाणी; जयवंती आणा, ज्ञान-विमल गुण खाणी. २२७ For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधर जिन स्तुति महाविदेह क्षेत्रमा सीमंधर स्वामी, सोनानु सिंहासन जी; रूपानुं त्यां छत्र विराजे, रत्न मणिना दीवा दीपे जी. कुमकुम वरणी त्यां गहुंली विराजे, मोतीना अक्षत सार जी; त्यां बेठा सीमंधर स्वामी, बोले मधुरी वाणी जी. केसर चन्दन भर्या कचोलां, कस्तूरी बरासो जी; पहेली पूजा अमारी होजो, ऊगमते प्रभाते जी. ........१ सीमंधर जिन स्तुति महाविदेहे सीमंधरजिन, वैदेही देहे छता, केवलज्ञानी आतमरामी, उपकारी जगमां छता; द्रव्यभावथी अंतर बाहिर, उपशम आदि भावथी, सीमंधरजिन वंदुं ध्या, आत्मिक सीमादावथी. ....... सिद्धाचलनी स्तुति द्रव्यभावथी सिद्धाचलगिरि, बाहिर अंतर जाणोजी, सात नयोनी सापेक्षाए, समजी मनमां आणोजी; निमित्त कारण उपादानथी, सिद्धाचलने सेवोजी, बुद्धिसागर वीरप्रभुजी, भाखे त्रिभुवनदेवोजी. २२८ For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सिद्धाचल तीर्थ स्तुति श्री शत्रुंजय आदि जिन आव्या, पूरव नवाणुं वारजी; अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी. विमल गिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी; कांकरे कांकरे अनंता सिद्ध्या, एकसो आठ गिरि नामजी. १ सिद्धाचल तीर्थ स्तुति पुंडरीक गिरि महिमा, आगममां प्रसिद्ध; विमलाचल भेटी, लहीए अविचल ऋद्ध. पंचमी गति पहोंता, मुनिवर कोडाकोड; इणे तीरथे आवी, कर्म विपाक विछोड. सिद्धाचल तीर्थ स्तुति सिद्धाचल-मंडन, ऋषभ जिणंद दयाल; मरुदेवा-नन्दन, वन्दन करूं त्रण काल. ए तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार; आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धाचल तीर्थ स्तुति श्री शत्रुंजय तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरु उदार, ठाकुर राम अपार; २२९ For Private And Personal Use Only १ १ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मंत्रमांही नवकार ज जाणुं, तारामां जेम चन्द्र वखाणुं, जलधर जलमां जाणुं. पंखीमांहे जिम उत्तम हंस, कुलमांहे जिम ऋषभनो वंश, नाभि तणो ए अंश; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमावन्तमां श्री अरिहन्त, तपशूरा मुनिवर महन्त, शत्रुंजय गिरि गुणवन्त.. श्री शत्रुंजय मंडण, ऋषभ जिणंद दयाल; मरुदेवा नंदन, वंदन करूं त्रण काल. ए तीरथ जाणी, पूरव नवाणुं वार; आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार. वीश तीर्थंकर, चडिया इण गिरिराय; ए तीरथनां गुण, सुर असुरादिक गाय. २३० For Private And Personal Use Only ..... सिद्धाचल तीर्थ स्तुति पुंडरीक गणधर पाय प्रणमीजे, आदीश्वर जिनचंदाजी; नेम विना त्रेवीश तीर्थंकर, गिरि चढिआ आनंदाजी. आगम मांहि पुंडरीक महिमा, भाख्यो ज्ञान दिनंदाजी; चैत्री पूनम दिन देवी चक्केसरी, सौभाग्य द्यो सुखकंदाजी. १ सिद्धाचल तीर्थ स्तुति १ १ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए पावन तीरथ, त्रिभुवन नहीं तस तोले; ए तीरथना गुण, सीमंधर मुख बोले. .... पुंडरीक गिरि महिमा, आगममां परसिद्ध; विमलाचल भेटी, लहीए अविचल रिद्ध. पंचम गति पहोंता, मुनिवर कोडा कोड; इणे तीरथे आवी, कर्म विपाक विछोड. श्री शत्रुजय केरी, अहोनिश रक्षाकारी; श्री आदि जिनेश्वर, आण हृदयमां धारी. श्री संघ विघनहर, कवड यक्ष गणभूर; श्री रवि बुध सागर, संघना संकट चूर.. चैत्री पूनम की चार स्तुति की एक स्तुति चैत्री पूनम विमलाचरे, तप वीरे भाख्युं, तीर्थंकर सर्वे भलुं, मुक्तिफल दाख्युं; सिद्धाचलना ध्यानथी शुद्धज्ञान ने मुक्ति, शासनदेवो सारता, यात्रीओनी भक्ति. श्री रायण पगलांनी थोय श्री शेजय आदिजिन आव्या, पूर्व नवाणुं वारजी, अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारजी; २३१ For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी; कांकरे कांकरे अनंता सीध्या, एकसो ने आठ गिरिनामजी. नवपद स्तुति वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, गौतम गुणना दरीयाजी; एक दिन आणा वीरनी लइने, राजगृही संचरीआजी. श्रेणिक राजा वंदन आव्या, उलट मनमां आणीजी; पर्षदा आगल चार विराजे, हवे सुणो भवि प्राणीजी. ........१ मानव भव तुमे पुण्ये पाम्या, श्री सिद्धचक्र आराधोजी; अरिहंत सिद्ध सूरि उवज्झाया, साधु देखी गुण वाधोजी. दरशन नाण चारित्र तप कीजे, नवपद ध्यान धरीजेजी; धुर आसोथी करवां आयंबिल, सुख संपदा पामीजेजी.......२ श्रेणिक राय गौतम ने पूछे, स्वामी ए तप केणे कीधोजी?; नव आयंबिल तप विधिशुं करतां, वांछित सुख केणे लीधोजी?. मधुर ध्वनि बोल्या श्री गौतम, सांभलो श्रेणिक राय वयणाजी; रोग गयो ने संपदा पाम्या, श्री श्रीपाल ने मयणाजी.........३ रुमझुम करती पाये नेउर, दीसे देवी रूपालीजी; नाम चक्केसरीने सिद्धाई, आदि वीर जिन वर रखवालीजी. २३२ For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विघ्न कोड हरे सहु संघना, जे सेवे एना पायजी; भाण विजय कवि सेवक नय कहे, सान्निध्य करजो मायजी. ४ नवपद स्तुति प्रह उठी वन्दुं, सिद्धचक्र सदाय; जपीए नवपदनो, जाप सदा सुखदाय. विधि पूर्वक ए तप, जे करे थइ उजमाल; ते सवि सुख पामे, जिम मयणा श्रीपाल . मालवपति पुत्री, मयणा अति गुणवंत; तस कर्म संयोगे, कोढी मिलियो कंत. गुरु वय तेणे, आराध्यं तप एह; सुख सम्पद वरीयां, तरीयां भव जल तेह. आंबिल ने उपवास, छट्ठ वली अट्ठम; दश अट्ठाइ पंदर, मास छ मास विशेष. इत्यादिक तप बहु, सहुमांहि शिरदार; जे भवियण करशे, ते तरशे संसार. तप सान्निध्य करशे, श्री विमलेश्वर यक्ष; सहु संघनां संकट, चूरे थई प्रत्यक्ष. २३३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ २ ३ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुंडरीक गणधार, कनक विजय बुध शिष्य; बुध दर्शन विजय कहे, पहोंचे सकल जगीश. नवपद स्तुति अरिहंत नमो वली सिद्ध नमो, आचारज वाचक साहु नमो; दर्शन ज्ञान चारित्र नमो, तप ए सिद्धचक्र सदा प्रणमो. ....१ अरिहंत अनंत थया थाशे, वली भाव निक्षेपे गुण गाशे; पडिक्कमणां देववंदन विधिY, आंबिल तप गणणुं गणवू विधिशुं .. २ छहरी पाली जे तप करशे, श्रीपाल तणी परे भव तरशे; सिद्धचक्रने कुण आवे तोले, एहवा जिन आगम गुण बोले..३ साडाचार वरसे तप पूरो, ए कर्म विदारण तप शूरो; सिद्धचक्रने मनमंदिर थापो, नय विमलेसर वर आपो........४ नवपद स्तुति जिन शासन वंछित पूरण देव रसाल, भावे भवि भणीये सिद्धचक्र गुणमाल; तिहुं-काले एहनी पूजा करे उजमाल, ते अजर अमर पद सुख पामे सुविशाल..१ अरिहंत सिद्ध वंदो आचारज उवज्झाय, मुनि दरिसण नाण चरण तप ए समुदाय; २३४ For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ए नवपद समुदित सिद्धचक्र सुखदाय, ए ध्याने भविनां भवकोटि दुःख जाय. आसो चैतरमां शुदि सातमथी सार, दोय सहस गणणु पद सम साडा चार, पूनम लगे कीजे नव आंबिल निरधार; सिद्धचक्रनो सेवक श्री विमलेसर देव, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकाशी आंबिल तप आगम अनुसार....३ दुःख दोहग नावे जे करे एहनी सेव, .२ श्रीपाल तणी परे सुख पूरे स्वयमेव ; विपुल कुशल-माला, केलिगेहं विशाला; सम-विभव-निधानं, शुद्धमन्त्र-प्रधानम्. सुर नरपति सेव्यं, दिव्य-माहात्म्य-भव्यं; निहत- दुरित-चक्रं, संस्तुवे सिद्धचक्रम्. दमित-करणवाहं, भावतो यः कृताहं; कृति - निकृति-विनाशं, पूरिताङ्गि-व्रजाशम्. नमित-जिन-समाजं, सिद्धचक्रादि-बीजं; भजति सगुण- राजिः, सोनिशं सौख्यराजी. २३५ ४ श्री सुमति सुगुरुनो राम कहे नित्यमेव ..... नवपद स्तुति. For Private And Personal Use Only १ २ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध-सुकृत-शाखो, भंग-पत्रोघ-शाली; नय-कुसुम-मनोज्ञः, प्रौढ-संपत्फलाढ्यः. हरतु विनुवतां श्री, सिद्धचक्रं जनानां; तरुरिव भवतापा-, नागमः श्री जिनानाम्. जिनपति-, पदसेवा-सावधाना धुनाना; दुरित-रिपु-कदम्बं, कान्त-कान्तिं दधानाः. ददतु तपसि पुंसां, सिद्धचक्रस्य नव्यं; प्रमदमि-हरताना, रोहिणी-मुख्य-देव्यः. दीपावली पर्व स्तुति मनोहर मूर्ति महावीर तणी, जेणे सोल पहोर देशना पभणी; नव मल्ली नव लच्छवी नृपति सुणी, कहे शिव पाम्या त्रिभुवन धणी............१ शिव पहोत्या ऋषभ चउदश भत्ते, ___ बावीश लह्या शिव मास तिथे; छठे शिव पाम्या वीर वली, ___ कार्तिक वदी अमावास्या निरमली.....२ आगामी भावी भाव कह्यां, दीवाली कल्पे जे लह्यां; पुण्य पाप फल अज्झयणे कह्यां, सवि तहत्ति करीने सद्दह्या.३ २३६ For Private And Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवि देव मली उद्योत करे, प्रभाते गौतम ज्ञान वरे; ज्ञान विमल सदा गुण विस्तरे, जिन शासनमां जयकार करे. ........४ पर्युषण पर्व स्तुति पुण्य, पोषण पापनुं शोषण, पर्व पजुसण पामीजी; कल्प घरे पधरावो स्वामी, नारी कहे शिर नामीजी. कुंवर गयवर खन्ध चढावी, ढोल निशान वगडावोजी; सद्गुरु संगे चढते रंगे, वीर-चरित्र सुणावोजी. .............. प्रथम वखाण धर्म सारथि पद, बीजे सुपनां चारजी; त्रीजे सुपन पाठक वली चोथे, वीर जनम अधिकारजी. पांचमे दीक्षा छठे शिवपद, सातमे जिन त्रेवीशजी; आठमे थिरावली संभलावे, पिउडा पूरो जगीशजी. .........२ छट्ठ अट्ठम अट्ठाई कीजे, जिनवर चैत्य नमीजेजी; वरसी पडिक्कमणुं मुनि वन्दन, संघ सकल खामीजेजी. आठ दिवस लगे अमर पलावी, दान सुपात्रे दीजेजी; भद्रबाहु गुरु वचन सुणीने, ज्ञान सुधारस पीजेजी. .....३ तीरथमां विमलाचल, गिरिमां मेरु महीधर जेमजी; मुनिवर मांही जिनवर मोटा, परव पजुसण तेमजी. २३७ For Private And Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवसर पामी साहम्मि-वच्छल, बहु पकवान वडाईजी; खीमा विजय जिनदेवी सिद्धाई, दिन-दिन अधिक वधाईजी.४ बीज तिथि स्तुति अजुवाली ते बीज सोहावे रे, चंदा रूप अनुपम भावे रे; चंदा विनतडी चित्त धरजो रे, सीमंधरने वंदणा कहेजो रे..१ वीश विहरमाण जिनने वंदो रे, जिन शासन पूजी आणंदो रे; चंदा एटलुं काम मुज करजो रे,श्री सीमंधरने वंदणा कहेजो रे....... २ श्री सीमंधर जिननी वाणी रे, ते तो पीतां अमीय समाणी रे; चंदा तुमे सुणी अमने सुणावो रे, भव संचित पाप गमावो रे. ......३ श्री सीमंधर जिननी सेवा रे, जिन शासन भासन मेवा रे; तुमे होजो संघना त्राता रे, मृग लंछन चंद्र विख्यातां रे.....४ बीज तिथि स्तुति दिन सकल मनोहर, बीज दिवस सुविशेष; राय राणा प्रणमे, चन्द्र तणी जिहां रेख. तिहां चन्द्र विमाने, शाश्वता जिनवर जेह; हुं बीज तणे दिन, प्रणमुं आणी नेह. अभिनन्दन चन्दन, शीतल शीतलनाथ; अरनाथ सुमति जिन, वासुपूज्य शिवसाथ. २३८ For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इत्यादिक जिनवर, जन्म ज्ञान निरवाण; हुं बीज तणे दिन, प्रणमुं ते सुविहाण. परकाश्यो बीजे, दुविध धर्म भगवंत; जेम विमल कमल दोय, विपुल नयन विकसंत. आगम अति अनुपम, जहां निश्चय व्यवहार; बीजे सवि कीजे, पातकनो परिहार .. गज-गामिनी कामिनी, कमल सुकोमल चीर; चक्केसरी केसरी, सरस सुगंध शरीर. कर जोडी बीजे, हुं प्रणमुं तस पाय; एम लब्धि विजय कहे, पूरो मनोरथ माय.. बीज की चार स्तुति की एक स्तुति महावीर समकित बीजने, कहे केवलज्ञाने, तीर्थंकर सर्वे कहे, चंद्र सरखी प्रमाणे; सर्व धर्मनुं बीज छे, जैनधर्म अनादि, सिद्धायिका टाळती, सर्व संघ उपाधि. पंचमी की चार स्तुति की एक स्तुति समवसरणमां बेसीने, प्रभु वीरे प्रकाशी, पंचमी सहु तीर्थंकरे, कथी ज्ञानविलासी; २३९ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ ३ ४ १ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिनवाणी सहु वेदना, सत्य वेद समानी, शासनदेवीओ संघनी, करे भक्ति वखाणी. पंचमी तिथि स्तुति २४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावण सुदि दिन पंचमी ए, जनमीया नेमि जिणंद तो; श्याम वरण तनु शोभतुं ए, मुख शारदको चन्द तो. सहस वरस प्रभु आउखुं ए, ब्रह्मचारी भगवंत तो; अष्ट करम हेले हणी ए, पहोंता मुक्ति महंत तो. अष्टापद पर आदि जिन ए, पहोंता मुक्ति मोझार तो; वासुपूज्य चम्पापुरी ए, नेम मुक्ति गिरनार तो. पावापुरी नगरीमां वली ए, श्री वीरतणुं निर्वाण तो; समेत-शिखर वीश सिद्ध हुआ ए, शिर वहुं तेहनी आण तो . २ नेमिनाथ ज्ञानी हुआ ए, भाखे सार वचन तो; जीवदया गुण वेलडी ए, कीजे तास जतन तो. मृषा न बोलो मानवी ए, चोरी चित्त निवार तो; अनन्त तीर्थंकर एम भणे ए, परिहरीए परनार तो. गोमेध नामे जक्ष भलो ए, देवी श्री अम्बिका नाम तो ; शासन सान्निध्य जे करे ए, करे वली धर्मनां काम तो. For Private And Personal Use Only १ १ ३ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........१ तपगच्छ नायक गुणनीलो ए, श्री विजय सेन सूरिराय तो; ऋषभदास पाय सेवतां ए, सफल करो अवतार तो..........४ पंचमी तिथि स्तुति पंचानन्तक-सुप्रपंच-परमानन्द-प्रदान-क्षमं, पंचानुत्तर-सीम-दिव्य-पदवी-वश्याय मन्त्रोपमम्; येन प्रोज्ज्वल-पंचमी-वरतपो व्याहारि तत्कारणं, श्री-पंचानन-लांछनः स तनुतां श्री वर्द्धमानः श्रियम्. ये पंचाश्रव-रोध-साधन-पराः पंच-प्रमादा-हराः, पंचाणु-व्रत पंच-सुव्रत-धराः प्रज्ञापना-सादराः; कृत्वा पंच-हृषीक-निर्जय-मथो प्राप्ता गतिं पंचमी, तेमी-संयम पंचमी-व्रतभृतां तीर्थंकराः शंकराः...... पंचाचार-धुरीण-पंचम-गणाधीशेन संसूत्रितं, पंचज्ञान-विचार-सार-कलितं पंचेषु-पंचत्वदम्; दीपाभं गुरु-पंचमार-तिमिरे-ष्वेकादशी-रोहिणी-, पंचम्यादि-फल-प्रकाशन पटुं ध्यायामि जैनागमम्. पंचानां परमेष्ठिनां, स्थिरतया श्री पंचमेरु-श्रियं, भक्तानां भविनां गृहेषु बहुशो या पंचदिव्यं व्यधात्; ........ २४१ For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवे पंच-जगन्-मनोमति-कृतौ स्वारत्न-पांचालिका, पंचम्यादि-तपोवतां भवतु सा सिद्धायिका त्रायिका............४ आठम की चार स्तुति की एक स्तुति अष्टमी अष्टमी गति दिये, महावीर प्रकाशे, सर्वे तीर्थंकर कथे, आठ कर्म विनाशे; केवलज्ञान प्रकाशती, श्रुतज्ञाने आराधे, शासनदेवनी सहायथी, संत मुक्तिने साधे. ............. अगिआरश की चार स्तुति की एक स्तुति एकादशी अति उजळी, वीरदेवे प्रकाशी, कृष्ण पाळी नेमना, उपदेशथी खासी; ज्ञानवरणने टाळीने, शुद्धज्ञान प्रकाशे, देव-देवीओ संघनी, भक्ति उजासे. एकादशी तिथि स्तुति अरस्य प्रव्रज्या नमि-जिनपते-नि-मतुलं, तथा मल्ले-जन्म-व्रत-मपमलं केवलमलम्; वल-कादश्यां सहसिल-सदुद्दाम-महसि, क्षितौ कल्याणानां क्षपति विपदः पंचक-मदः. २४२ For Private And Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपर्वेन्द्र श्रेण्याग-मनगमनै-भूमि-वलयं, सदा-स्वर्गत्या-वाहमह-मिकया-यत्र-सलयम्; जिनाना-मप्यापुः क्षणमति-सुखं नारक-सदः, क्षितौ कल्याणानां क्षपति विपदः पंचकमदः. जिना-एवं यानि-प्रणिजग-दुरात्मीय समये, फलं-यत्कर्तृणा-मिति च विदितं शुद्ध-समये; अनिष्टा-रिष्टानां-क्षिति-रनुभवेयु-बहुमुदः, क्षितौ कल्याणानां क्षपति विपदः पंचकमदः सुराः सेन्द्राः सर्वे सकल-जिनचन्द्र-प्रमुदिता-, स्तथा च ज्योतिष्का-खिल भवननाथा-समुदिताः; तपो यत्कर्तृणां-विदधति सुखं विस्मित-हृदं, क्षितौ कल्याणानां क्षपति विपदः पंचकमदः. ___ एकादशी तिथि स्तुति निरुपम नेमि जिनेश्वर भाखे, एकादशी अभिरामजी; एक मने जेह आराधे, ते पामे शिव ठामजी. ते निसुणी माधव पूछे, मन धरी अति आनंदजी; एकादशीनो एहवो महिमा, सांभली कहे जिणंदजी............१ एकशत अधिक पचास प्रमाण, कल्याणक सवि जिननाजी; तेह भणी ते दिन आराधो, छंडी पाप सवि मननाजी. २४३ For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोसह करीए मन आदरीए, परिहरीए अभिमानजी; ते दिन माया ममता तजीए, भजीए श्री भगवानजी. .......२ प्रभाते पडिक्कमणुं करीने, पोसह पण तिहां पारीजी; देव जुहारी गुरुने वांदी, देशना नीसुणो वाणीजी. साहमी जमाडी कर्म खपावी, ऊजमणुं घर मांडुजी; अशनादिक गुरुने वहोरावी, पारणुं करो पछी वारुजी.......३ बावीसमा जिन एणी परे बोले, सुण तुं कृष्ण नरिंदाजी; एम एकादशी जेह आराधे, ते पामे सुख वृंदाजी. देवी अंबाई पुण्य पसाये, नेमीसर हितकारीजी; पंडित हरख विजय तस शिष्य, मान विजय जयकारीजी..४ सर हरर... (कल्याणकनी थोय) सर हरर खल खल, ध्रसंग छब छब, न्हवण जल क्रोडो मणो, खण खणण त्रोट त्रोट, टनाक टन् टन्, घोष कळशाओ तणो, सुर संघ नाचे छनन छुम् छुम्, रणण झूम झूम् जयकरो, श्री वीर प्रभुनो जन्म महोत्सव, जगतनुं मंगल करो..........१ २४४ For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पींपीव पूं पूं त्रणण त्रुम् त्रुम्, भणण भुं भुं वागतां, धप खणण खल बल तडाक त्रुं त्रुं, धडाक धुं धुं गाजतां, जय जयउ नंदा जयउ भद्दा, जयउ खत्तिय बल धरो, चोवीस जिननो दीक्षा उत्सव, शांति सद्गुण पाथरो.... .२ गमसारी धपणी, तुं तीणी तुं, वीणा वागे सुस्वरे, धा धा ततक धीं, धपं द्रों द्रों, देववाजा अनुसरे, स्याद्वादनय निक्षेप भंगी, द्रव्य गुणनो सागरो, श्री वीरवाणी धोध सहुनो, कर्म मल दूरे करो.. कड कडड भुस् कडडाट करी, भडभीर भैरव चूरतो, धम् धम् अवाजे चालतो, जिनभक्त परचा पुरतो, चारित्र - दर्शन विघ्नभंजन, धर्मरक्षा तत्परो, माणिभद्रजी कल्याणमाळा, संघने कंठे ठवो.... २४५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ३ ४ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आराधना विभाग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगल-पाठ चत्तारिमंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलम्, साहु मंगलं, केवल पन्नतो धम्मो मंगलम्. चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवल पन्नतो धम्मो लोगुत्तमो. चत्तारि शरणं पवज्जामि, अरिहंते शरणं पवज्जामि, सिद्धे शरणं पवज्जामि, साहु शरणं पवज्जामि, केवलि पन्नतं धम्मं शरणं पवज्जामि, शिवमस्तु सर्वजगत; परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः दोषा प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः. सर्वथा सहु सुखी थाओ, पाप कोई न आचरो; रागद्वेषथी मुक्त थईने, मोक्ष सुख सहु जग वरो. पांच तीरथ वंदना आबु अष्टापद गिरनार, समेतशिखर शत्रुंजय सार, पांचे तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि वर्या तेने करूं प्रणाम. प्रभाते ऊठीने करुं प्रणाम, शियळवंतना लीजे नाम, पहेला नेमि जिनेश्वरराय, बाळ ब्रह्मचारी लागुं पाय. २४६ For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजी जंबु होय वैराग, अष्ट रमणीनो कीधो त्याग, त्रीजा स्थूलिभद्र साधु सुजाण, कोश्या प्रतिबोधि गुणखाण. चोथा सुदर्शन शेठ गुणवंत, जेणे कीधो भवनो अंत, पांचमा विजय शेठ नरनार, व्रत पाळी उतर्या भवपार. एहनी जे जन स्तुति करे, शिवरमणीने वहेला वरे, प्रभाते ऊठीने जे गुण गाय, तस घर लक्ष्मी ल्हेरे थाय. चार शरणां अरिहा शरणं सिद्धां शरणं साहु शरणं वरीए धम्मो शरणं पामी विनये, जिन आणा शिर धरीए. धम्मो शरणं मुजने होजो, आतम शुद्धि करवा. सिद्धा शरणं मुजने होजो, रागद्वेषने हणवा, साहु शरणं मुजने होजो, संयमशूरा बनवा. धम्मो शरणं मुजने होजो, भवोदधिथी तरवा, मंगलमय चारेनु शरणुं, सघळी आपदा टाळे. चिद्घन केरी डूबती नैया, शाश्वत नगरे वाळे, भवोभवना पापोने मारा, अंतरथी हुं निंदुं छु. सर्व जीवोना सुकृतोने, अंतरथी अनुमोदूं छु. २४७ For Private And Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैत्री भावना मैत्रीभावनुं पवित्र झरj, मुज हैयामां वह्या करे, शुभ थाओ आ सकल विश्वनु, एवी भावना नित्य रहे. गुणथी भरेला गुणीजन देखी, हैयुं मारुं नृत्य करे, ए संतोना चरण कमलमां, मुज जीवननु अर्ध्य रहे. दीन क्रूर ने धर्मविहोणा, देखी दिलमां दर्द रहे, करुणाभीनी आंखोमांथी, अश्रुनो शुभ स्रोत वहे. मार्ग भूलेला जीवन पथिकने, मार्ग चींधवा ऊभो रहुं, करे उपेक्षा ए मारगनी, तोये समता चित्त धरुं. चंद्र प्रभुनी धर्मभावना, हैये सौ मानव लावे, वेरझेरना पाप त्यजीने, मंगल गीतो सौ गावे. रात्रे सूता पूर्वे सौ प्रथम रात्रे सूता पूर्वे परमात्मानी स्तुतिओ बोली प्रार्थना करवी, प्रार्थना पूर्ण थतां बधांए नीचे मुजबनो पाठ बोलवो. हे परमात्मा! 'निंदामि' दिवस दरम्यान करेला पापोनी साचा दिलथी निंदा करुं छु. हे भगवान! ‘गरिहामि' दिवस दरम्यान करेला पापोनी खरा हृदयथी गर्दा करुं छु. २४८ For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे देवाधिदेव! 'मिच्छामि दुक्कडम्' दिवस दरम्यान करेला पापोनो-भूलोनो भावपूर्वक मिच्छामि दुक्कडम मागुं छु. हे जिनेश्वर! 'अणुमोएमि' दिवस दरम्यान विश्वमां जे कोई पण सत्कार्यो थया होय ते बधानी साचा दिलथी अनुमोदना करुं छं. हे परमेश्वर! 'वंदामि' परम वंदनीय एवा पंच परमेष्ठी भगवंतोना पावन चरणारविंदमां मस्तक नमावीने भूत, भावि, वर्तमानना त्रण काळना अनंतानंत परमेष्ठी भगवंतोने वंदन करुं छु साचा दिलथी तेमनुं शरण स्वीकारुं छं. चत्तारि मंगल आदि गाथाओ बोलवी पछी बार नवकार गणवा माथे मल्लिनाथ, काने कुंथुनाथ, हैये पार्श्वनाथ, सहाय करे शांतिनाथ. ए चारेने हाथ जोडवा कर्या कर्म तोडवा. आदीश्वर भगवानने देहरे, सोना, कोडीयुं रूपानी वाट. आदीश्वर भगवाननुं ध्यान धरूं तो सुखे जाय रात. शियळ मारे संथारे, ज्ञान मारे ओशीके, भर निद्रामां काळ करुं तो आहार उपधि ने देह सर्वे मारे वोसिरे वोरिसे वोसिरे. नवकार मारो भाई, आपणा बेउनी साची सगाई; अंतकाळे आवी जा, मोक्षमार्ग बतावी जा. आहार शरीर ने उपधि, पच्चक्टुं पाप अढार; मरण थाय तो वोसिरे, जीवं तो आगार. २४९ For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाववाही नूतन गीतो तमे मन मूकीने वरस्या तमे मन मूकीने वरस्या, अमे जनम जनमना तरस्या, तमे मूशळ धारे वरस्या, अमे जनम जनमना तरस्या. हजारे हाथे तमे दीधुं पण, झोळी अमारी खाली, ज्ञान खजानो तमे लूटाव्यो, अमे रह्या अज्ञानी तमे अमृत रूपे वरस्या, अमे जनम जनमनां तरस्या. ........१ स्नेहनी गंगा तमे वहावी, जीवन पावन करवा प्रेमनी ज्योति तमे जलावी, आतम उज्जवळ करवा तमे सूरज थईने चमक्या अमे अंधारामां भटक्या. .........२ शब्दे शब्दे शाता पामे, एवी आगम वाणी ए वाणीनी पावनता ने, अमे शक्या ना पिछाणी तमे महेरामण थईने मळीया, अमे कांठे आवी अटक्या......३ __ हे शंखेश्वर स्वामी हे शंखेश्वर स्वामी, प्रभु जग अंतरयामी तमने वंदन करीये (२) शिव सुखना स्वामी................ हे०१ मारो निश्चय एक ज स्वामी, बर्नु तमारो दास(२) तारा नामे चाले (२) मारा श्वासो श्वास. .................हे०२ २५० For Private And Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुःख संकटने कापो स्वामी, वांछितने आपो (२) पाप हमारा हरजो (२) शिवसुखने देजो..................हे० ३ निशदिन हुं मांगु छु स्वामी, तुम शरणे रहेवा (२) ध्यान तमारुं ध्या, (२) स्वीकारजो सेवा. .......... रात दिवस झंखु छु स्वामी, तमने मळवाने (२) । आतम अनुभव मागु (२) भवदुःख टळवाने................हे० ५ करुणाना छो सागर स्वामी, कृपातणा भंडार (२) त्रिभुवनना छो नायक (२) जगतना तारणहार...........हे० ६ अमी भरेली नजर अमी भरेली नजरु राखो, महावीर श्री भगवान रे, दर्शन आपो दुःखडा कापो, महावीर श्री भगवान है. अमी० १ चरण कमलमां शीश नमावू, वंदन करुं महावीरने, दया करीने भक्ति लेजो, महावीर श्री भगवान रे. ... अमी० २ हुं दुःखियारो तारे द्वारे, आवी ऊभो महावीर रे, आशिष देजो उरमां लेजो, महावीर श्री भगवान रे.. अमी० ३ तारा भरोसे जीवन नैया, हांकी रह्यो महावीर रे, बनी सुकानी पार उतारो, महावीर श्री भगवान रे... अमी० ४ २५१ For Private And Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तो तमारा करे विनंती, सांभळजो महावीर रे, मुज आंगणमां वास तमारो, महावीर श्री भगवान रे. अमी० ५ हे त्रिशलाना जाया हे त्रिशलाना जाया, मांगुं तारी माया, घेरी वळ्या छे मुजने मारा, पापोना पडछाया. ....हे० १ बाकुळानी भिक्षा वहोरी, चंदनबाळा तारी (२) चंडकोशीना झेर उतारी, एने लीधो उगारी (२) रोहिणी जेवा चोर लूटारा, तुज पंथे पलटाया. ..........हे० २ जुदा थईने पुत्री जमाई, केवो विरोध करतां (२) गाळो दे गोशाळो तोये, दिलमां समता धरतां (२) झेरना चूंटडा गळी जईने, प्रेमना अमृत पाया............हे० ३ सुलसा जेवी श्राविकाने, करुणा आणी संभारी (२) विनवू छु हे महावीर स्वामी, लेशो नहि विसारी (२) सळगता संसारे देजो, सुखनी शीतळ छाया. ............हे० ४ नाम है तेरा नाम है तेरा तारणहारा, कब तेरा दरशन होगा। जिनकी प्रतिमा इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा..... वो० २५२ For Private And Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरनर मुनिवर जिनके चरणे, निशदिन शीश झुकाते है जो गाते हैं, प्रभुकी महिमा, वो सब कुछ पा जाते है अपने कष्ट मिटानेको, तेरे चरणोमें वंदन होगा ............ जिनकी प्रतिमा० १ तुमने तारे लाखो प्राणी, ये संतोकी वाणी है तेरी छबी पर मेरे भगवन्, ये दुनिया दिवानी है रूमझूम तेरी पूजा रचाये, मंदिरमें मंगल होगा .जिनकी प्रतिमा० २ तीन लोकका स्वामी तू है, तू जगत का दाता है जन जनमसे ये मेरे भगवंत, तेरा मेरा नाता है भवसे पार उतरने को मेरे, गीतों का सरगम होगा ................... जिनकी प्रतिमा० ३ भगवान एक वरदान आपी दे तुं मने भगवान एक, वरदान आपी दे ज्यां वसे छे तुं मने, त्यां स्थान आपी दे हुं जीq छु ए जगतमां, ज्यां नथी जीवन जिंदगी, नाम छे बस, बोज ने बंधन आखरी अवतार, मंडाण बांधी दे............ ज्यां वसे छे० १ २५३ For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ भूमिमां खूब गाजे, पापना परघम बेसुरी थई जाय मारी, पुण्यनी सरगम दिलरूबाना तारनु, भंगाण सांधी दे........... ज्यां वसे छे० २ जोम तनमां ज्यां लगी छे, सौ करे शोषण जोम जाता कोई अहींया, ना करे पोषण मतलबी संसारनुं जोडाण कापी दै............. ज्यां वसे छे० ३ रंगाई जाने रंगमां रंगाई जाने रंगमां, तुं रंगाई जाने रंगमां, महावीर तणा सत्संगमां, आदिनाथ तणा रंगमां,रंगाई जाने... आज भजशुं, काले भजशुं, भजशुं आदिनाथ क्यारे भजशुं पारसनाथ, श्वास खूटशे, नाडी तूटशे (२) प्राण नहीं रे तारा अंगमां. .. रंगाई जाने... सौ जीव कहेता पछी जपीशुं, पहेला मेळवी लोने दाम, रहेवाना करी लो ठाम, प्रभु पड्यो छे एम क्यां रस्तामां (२) सौ जन कहेता रंगमां... .......... रंगाई जाने... घडपण आवशे त्यारे भजशुं, पहेला घरना काम तमाम पछी फरशुं तीरथधाम, आतम एक दी उडी जाशे(२) तारी काया रहेशे पलंगमां. ............. रंगाई जाने... २५४ For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ................ बत्रीस जातना भोजन जमता, वेळा करीने भाई, एमां क्यांथी सांभळे नाथ, दानपुन्यथी दूर रह्यो तुं, फोगट फरे छे घमंडमां............................. रंगाई जाने... मारी आंखोमां शंखेश्वर मारी आंखोमां शंखेश्वर आवजो रे, हुं तो पांपणना पुष्पे वधावू .... मारा हैयाना हार बनी आवजो... तमे वामादेवीना जाया, त्रण लोकमां आप छवाया ......... मारा मननां मंदिरमां पधारजो... भवसागर छे बहु भारी, झोला खाती रे नावडी मारी ......... याना सुकानी बनी आवजो... मने मोहराजाए हराव्यो, मने मारग तारो भुलाव्यो ..... जीवनना सारथि बनी आवजो... मारा दिलमा रह्या छो आप, मारा मनमां चाले तारो जाप .... मारा मनमां मयूर बनी आवजो... यह है पावन भूमि यह है पावन भूमि, यहां बार बार आना, प्रभु वीरके चरणोंमें, आकर के झूक जाना.................यह० २५५ For Private And Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेरे मस्तक पें मुगट है... तेरे कानोमें कुंडल है, तुं तो करुणा सागर है, मुज पर करुणा करना..........यह० तुं जीवन स्वामी है, तुं अंतर्यामी है, मेरी बिनती सुन लेना, भव पार कर देना................. यह० तेरी सावली सूरत है, मेरे मनको लुभाती है, मेरे प्यारे प्यारे जिनराज, युग-युग में अमर रहेना....... यह० तेरा शासन सुंदर है, सभी जीवो का तारक है, मेरी डूब रही नैया, नैया पार लगा देना. ...............यह तारा शरणे आव्यो छु... तारा शरणे आव्यो छु स्वीकारी ले मने लई जा प्रभु तारा धाममां; तारुं शरणुं प्रभुजी, स्वीकारुं छु मने लई जा प्रभु तारा धाममां. लावी द्यो नैया प्रभुजी किनारे फसायो हुं प्रभुजी आ चकरावे मारा तारणहार मने तारी ल्यो मने लई जा प्रभु तारा धाममां. तारे मंदिरीए देवताओ आवे २५६ For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवताओ आवे तारी धून मचावे मारे प्रभु तारुं गीतहुं गावं छे मने लई जा प्रभु तारा धाममां. तारे मंदिरीए नोबत वागे नोबत वागे सौनो आतम जागे मारे प्रभु तारी भक्तिमां भींजावु छे मने लई जा प्रभु तारा धाममां. अजवाळां देखाडो अजवाळां देखाडो... अंतर द्वार उघाडो प्रभुजी... अजवाळां देखाडो... प्रभुजी... अंतरद्वार उघाडो. काम क्रोध मने भान भुलावे माया ममता नाच नचावे सत्य मार्ग भूली भटकुं छु रात सूझे ना दहाडो... विपदाना वादळ घेराता मने अशुभ भणकारा थाता चारेकोर संभळाती मुजने आज भयंकर राडो....... २५७ . प्रभुजी. . प्रभुजी. For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .. प्रभुजी. प्रभुजी. नरक निगोदथी तें प्रभु तार्यो अनंत दुःखोथी मुजने उगार्यो एक उपकार करो हजी मुज पर जनम मरण भय टाळो. जन्म जीवनना तमे छो त्राता तमे प्रभु मारा भाग्य विधाता एक उपकार करो हजी मुज पर नहि भूलुं उपकारो... .... आशा भरीने... आश भरीने आव्यो स्वामी भक्तिमां नवि राखुं खामी पूरजो मारी आश... ओ शंखेश्वरा राखजो मारी लाज.. ओ शंखेश्वरा तार हो तार हो प्रभुजी हुं तो जेवो छु तेवो तमारो कोई नथी अहीं माझं प्रभु आपी दे मुजने सहारो पार करो... उद्धार करो... मुज जीवन नैयाने... ओ शंखेश्वरा २५८ For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आशरा. भान भूलीने गयो छु सन्मति तुं मुजने देजे राह भूली गयो छु मने राह बतावी देजे माया केरी आ दुनियामां रझळी पड्यो छु आज... ओ शंखेश्वरा आशरा इस जहां का... आशरा ईस जहां का मिले ना मिले । मुज को तेरा सहारा सदा चाहिये. यहां खुशीयाँ है कम और ज्यादा है गम जहां देखो वहां है भरम ही भरम मेरी महेफील में (२) शमां जले ना जले मुजको तेरा उजाला सदा चाहिये मेरी धीमी है चाल और पथ है विशाल हर कदम पर मुसीबत है... अब तो संभाल पैर मेरे थके है... (२) चले ना चले... मुजको तेरा इशारा सदा चाहिये कभी वैराग है कभी अनुराग है जहां बदलते है माली वो ही बाग है २५९ For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे मेरे दिलमें बसेरा तेरा चाहिये... आशरा इस जहाँ का ओ वीर तारुं शासन... (रागः आवो बच्चों तुमे दीखाए ...) ओ वीर! तारुं शासन मुजने ... प्राण थकी पण प्यारुं तारा शासन काजे मरी फीटवानी हिंमत धारु जैनं जयति शासनम्...(२) वैशाख सुद अगियारस दिवसे शासन स्थपायुं तें तो भव तरवा काजे ए नावडुं... तरतुं मूक्युं तें तो जन्म्या अमे जिनशासन मांही... गौरव एनुं धारुं . ओ वीर ! तारुं शासन. चोर लूंटारुं डाकु तर्या... तारा आ शासनथी आशा छे निश्चय अमे तरीशुं भीम भयंकर भवथी लोही तणां आ बुंदे बुंदे... शासन प्रेम वधारुं. तुज शासननी रक्षा काजे... कुरबानी छे मारी अंगे अंगे व्यापी गई छे... जिनशासन खुमारी प्राण अमारो ऋण अमारुं ... हे वीर ! शासन तारुं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० For Private And Personal Use Only ओ वीर ! ओ वीर! Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विषयो केरी आगने ठारे... शासनरूपी पाणी पापीने पण पुनित करती... वीरनी मधुरी वाणी १रगरगमांही नसनस मांही... वसजो शासन तारुं जुग जुग सुधी जगहित काजे जीवो आ जिनशासन एना चरणे धरशुं अमे आ तनमन ने नरजीवन शासन केरी ज्योति कापे... पापतणुं अंधारुं.... शासनकेरी भक्ति करतां ... देह भले छूटी जातो मोत मळे शासन खातर तो ... अंगे हरख न मातो जयवंतु जिनशासन पामी... लागे जग आ खारुं आत्यो दादाने दरबार आव्यो दादाने दरबार करो भवोदधि पार खरो तुं छे आधार... मोहे तार तार तार .. आत्म गुणोनो भंडार तारा महिमानो नहिपार देख्यो सुंदर देदार... करो पार पार पार. तारी मूर्ति मनोहर हरे मननां विकार २६१ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओ वीर ! ओ वीर ! ओ वीर! Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org खरो हैयानो हार... वंदु वार वार वार. आव्यो देरासर मोजार कर्या जिनवर जुहार प्रभुचरण आधार... खरो सार सार सार. तुज बाळने सुधार तारी लब्धि छे अपार एनी खूबीनो नहि पार... विनती धार धार धार इतनी शक्ति हमें देना ... इतनी शक्ति हमें दे ना दाता मन का विश्वास कमजोर हो... ना हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूलकर भी कोई भूल हो ना..... दूर अज्ञान के हो अंधेरे तूं हमें ज्ञान की रोशनी दे हर बुराई से बचके रहे हम जितनी भी दे भली जिंदगी दे ..... वैर हो ना किसी का किसीसे भावना मन में बदले की हो ना.... हम न सोचें हमें क्या मिला है हम ये सोचे किया क्या है अर्पण... २६२ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फूल खुशीयों के बाटे सदा हम सबका जीवन बन जाये मधुवन अपनी करुणा का जल तूं बहा के कर दे पावन हर इक मन का कोना... __ महामंत्र छे मोटो जगमां महामंत्र छे मोटो जगमां, एक ज श्री नवकार रे धून लगावो साथे मळी सहुं, ए छे तारणहार रे... नमो अरिहंताणं कहेता, तरिये सागर पार रे (२) नमस्कार होजो सिद्धोने, कोटि कोटि वार रे (२) आचार्य भगवंतो ने हुं, वंदु वारंवार रे... धून. उपाध्याय स्वाध्याय दईने, करे सदा उपकार रे...(२) साधुनी सेवा करवाने, थाजो सौ तैयार रे...(२) ए पांचेनी भक्ति करीने, सफळ करो अवतार रे... धून नवकारना अनेक गुणो, गणता नावे पार रे...(२) एमां पूर्णपणे समायो चौद पूर्वनो सार रे...(२) धन्य धन्य अवतार जेनो, समरे श्री नवकार रे... धून २६३ For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारा हैया विराजता आदिनाथ मारा हैये विराजता आदिनाथजी, जिनवरजी, महावीरजी जेना दर्शन करीने थयुं पावन आ मन जेना मुखडां ने जोई बन्यु जीवन आ धन्य मारा वीर रे प्रभु... हुं तो वीर प्रभुजीनी भक्ति रे करूं माझं जीवन आर्खा एना चरणे धरूं तारा मुखडांने जोई दादा नमन करुं, मारुं मोही लीधुं मन... हुं तो नाम रटण करुं घडी रे घडी हवे सांभळजो दादा मारे भीड रे पडी तारी आंखोमां जोई छे में प्रेमनी जडी, मारा तारणतरण... मारो आतम बन्यो छे आज बडभागी में तो हैया मेल्यां छे आज शणगारी तमे वहेला पधारो उरना आंगणीये... मारा वीर रे प्रभु. शंखेश्वर का नाथ है हमारा... शंखेश्वर का नाथ है हमारा तुम्हारा...(२) इस तीरथ में जो भी आये मिले न जनम दुबारा... .......... शंखेश्वर का. २६४ For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कान में कुंडल डोले... मस्तक मुगट सुहाये कैसी सुंदर काया... भक्तो के मन भाये मन की इच्छा पूरी होवे... आये द्वार तिहारा... शंखेश्वर का. मुक्ति से भक्ति प्यारी... कहते ज्ञानी ध्यानी इसके चरणकमल में... बीते सारी जिंदगानी सच्चे दिलसे ध्यान लगा दो...होवे वारा न्यारा...शंखेश्वर का. इस तीरथ के कंकर... पथ्थर हम बन जाये भक्तो हम पे चलकर... दर्शन तेरा पाये अंतिम इच्छा पूरी होवे... जीवन हो सुखकारा... शंखेश्वर का. शंखेश्वर का पारस लीला अजब दीखाता इसके चरण में जो भी आये, बेडा पार लगाता राय और रंक को भी तारे जग के तारण हारा ..................................शंखेश्वर का. ___ आज वगडावो... आज वगडावो वगडावो रूडां शरणायुंनो ढोल, हे... शरणायुंनां ढोल रूडां नगरानां ढोल................आज. आज नाचे रे उमंग रंग अंगमां रे लोल हुं तो एवो रे रंगाणो प्रभु रंगमां रे लोल हे... हुं तो गावू ने गवडा, रूडां गीतडां ना बोल... ..आज. २६५ For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतो आव्यो अवसर आज आंगणे रे लोल बांधो आसोपालवनां तोरणियां रे लोल हे... आज हैये आनंद छे तन मनमां रे लोल............आज. आवो आवो स्नेहीओ अम आंगणे रे लोल अमे वाटलडी जोतां बेठां बारणे रे लोल प्रेमे पधारी बोलो प्रभुजीनां बोल... ... .आज. २६६ For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीक्षा प्रसंगनां गीतो ओघो छे अणमूलो ओघो छे अणमूलो... एनुं खूब जतन करजो मोंघी छे मुहपत्ति... एनुं रोज रटण करजो... आ वेश आप्यो तमने... अमे एवी श्रद्धाथी उपयोग सदा करजो... तमे पूरी निष्ठाथी आधार लई एनो... धर्माराधन करजो... ओघो छे आ वेश विरागीनो... एनुं मान घणुं जगमां मा-बाप नमे, तमने पडे राजा पण पगमां आ मान नथी मुजने... एवं अर्थघटन करजो......... ओघो छे आ टुकडा कापडना कदी ढाल बनी रहेशे दावानळ लागे तो दीवाल बनी रहेशे एना ताणावाणामां... तप, सिंचन करजो............. ओघो छे आ पावन वस्त्रो छे तारी कायानुं ढांकण बनी जाये ना जो जो ए मायानुं ढांकण चोख्युं ने झगमगतुं दिलनुं दर्पण करजो... .......... ओघो छे मेलां के धोयेलां लीसां के खरबचडां २६७ For Private And Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फाटेलां के आखां सौ सरखां छे कपडां ज्यारे मोहदशा जागे त्यारे आ चिंतन करजो........ ओघो छे आ वेश उगारे छे, एने जे अजवाळे छे गाफेल रहे एने आ वेश डुबाडे छे डूबवू छे के तरवू मनमां मंथन करजो................. ओघो छे जेना रोमरोमथी... जेना रोमरोमथी त्याग अने संयमनी विलसे धारा आ छे अणगार अमारा दुनियामां जेनी जोड जडे ना एवं जीवन जीवनारा... आ छे. सामग्री सुखनी लाख हती... स्वेच्छाए एणे त्यागी संगाथ स्वजननो छोडीने... संयमनी भिक्षा मांगी, दीक्षानी साथे पंचमहाव्रत... अंतरमा धरनारा... ........ आ छे अणगार अमारा ना पांखो वींझे गरमीमां... ना ठंडीमां कदी तापे ना काचा जळनो स्पर्श करे... ना लीलोतरीने चापे, नानामां नाना जीवोनुं पण... संरक्षण करनारा... ......... आ छे अणगार अमारा For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .......... जूठ बोलीने प्रिय थवानो... विचार पण ना लावे या मौन रहे या सत्य कहे... परिणाम गमे ते आवे, जाते न ले कोई चीज कदी... जो आपो तो लेनारा!... ...............आ छे अणगार अमारा ना संग करे कदी नारीनो... ना अंगोपांग निहाळे जो जरूर पडे तो वात करे... पण नयणां नीचां ढाळे, मनथी वाणीथी कायाथी... व्रत- पालन करनारा... ................... आ छे अणगार अमारा ना संग्रह एने कपडांनो... ना बीजा दिवसनुं खाणुं ना पैसा एनी झोळीमां... ना एना नामे थाणु, ओछामां ओछा साधनमां... संतोष धरी रहेनारा... ....आ छे अणगार अमारा मने व्हालुं लागे मने व्हालु लागे, मने व्हालु लागे मने व्हालुं लागे दादा तारु नाम तन, मन, धन प्रभुना चरणोमां नाम तमारु लेतां दादा भवसागर तरी जईए. स्मरण तमारु करतां दादा मुक्तिना डग भरीए तने जोया करु (३) दिवस ने रात ............ तन, मन, धन... For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरवर मुनिवर सौ कोई समरे नाम तमारु हैये तारा नामे पापी जीवो पण पावन थई जाये मारा हैये वसे (३) दादा तारु नाम ...........तन, मन, धन... आंख मारी उघडे त्यां आंख मारी उघडे त्यां शंखेश्वर देखु मंदिरमां बेठा मारा पारसनाथ देखु आदिनाथ देखु तो मन हरखातु। धन्य धन्य जीवन मारु कृपा एनी लेखु अंतरनी आंखोथी दरिशन करतां नयणा अमारा निशदिन ठरतां तारी रे मूरतीये मारु मन ललचाणुं ..............धन्य धन्य... नवण करावीने अंतर पखाळू केशर चढावी मारा कर्मोने बाळु चंदन चढावी मनने शीतल बनावु . ..धन्य धन्य... सोना रूपाना फूलडे वधावू अंतरथी हुं तारी आरती उतारु भवोभव मारे शरणु तमारु ...धन्य धन्य... २७० For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निशदिन तारा गुणला हुं गावू शिव मस्तु सर्वनी भावना हुं भावु ज्यारे ज्यारे याद करूं तुजने हुं देखुं ..............धन्य धन्य... धून अंतरनी श्रद्धा पुकारे महावीर शरणं मम. देवो बोले देवीओ बोले महावीर शरणं मम. साधु बोले साध्वी बोले महावीर शरणं मम. श्रावक बोले श्राविका बोले महावीर शरणं मम. योगी बोले भोगी बोले महावीर शरणं मम. मारा मनमा एक ज भाव महावीर शरणं मम. मारा हैये एक ज वात महावीर शरणं मम. मारा माथे एक ज नाथ महावीर शरणं मम. मारा अंतरनो एक ज नाद महावीर शरणं मम. प्यारूं-प्यारूं एक ज नाम महावीर शरणं मम. हृदयनी एक ज श्रद्धा महावीर शरणं मम. मन- एक ज समर्पण महावीर शरणं मम. वीरप्रभुनां भक्तो बोले महावीर शरणं मम. कैलास जेहवी धीरता महावीर शरणं मम. २७१ For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणनी छे भावना महावीर शरणं मम. पदम जेवी निर्लेपता महावीर शरणं मम. प्रशांत जेहनी मुखमुद्रा महावीर शरणं मम. पद्म-रत्न बिराजता महावीर शरणं मम. पुनीत पावन चरणोमां महावीर शरणं मम. पूर्ण हता वीतरागी महावीर शरणं मम. सागर जेहवी गंभीरता महावीर शरणं मम. जब कोई नही आता... जब कोई नहीं आता, मेरे दादा आते है, मेरे दुःख के, दिनो में वो बडे याद आते है........ जब कोई. मेरी नैया चलती है, पतवार नहीं चलती, किसी और की अब मुजको, दरकार नहीं चलती, मैं डरता नहीं जगसे, प्रभु साथ होते हैं.... मेरे दुःख के०...१ कोई याद करे इनको, दुःख हलका हो जाये, कोई भक्ति करे इनकी, वो इनके हो जाये, ये बिन सोचे कुछ भी, पहचान जाते हैं..... मेरे दुःखके०...२ ये इतने बड़े होकर, भक्तो से प्यार करे, अपने भक्तो के दुःख को, ये पल में दूर करे, अपने भक्तो का कहना, प्रभु मान जाते हैं. . मेरे दुःखके०...३ २७२ For Private And Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मेरे मनके मंदिर में, दादा का वास रहे, कोई पास रहे ना रहे, मेरे दादा पास रहे, मेरे व्याकुल मनको, प्रभु जान जाते हैं. मेरे दुःखके०...४ हे शारदे मा... (सरस्वती देवीनी प्रार्थना) हे शारदे मा... हे शारदे मा अज्ञानतासे हमे तार दे मा तुं स्वर की देवी... ये संगीत तुजसे हर शब्द तेरे... हर गीत तुजसे हम है अकेले.... हम है अधूरे तेरी शरण में हमे प्यार दे मा.. मुनिओने समजी, गुणीओने जाणी, संतो की भाषा... आगमो की वाणी हम भी तो समजे हम भी तो जाने विद्या का हमको अधिकार दे मा... तुं श्वेतवर्णी कमल पे बिराजे हाथ में वीणा मुगट सर पे छाजे मन से हमारे मिटादे अंधेरे हम को उजाले का परिवार दे मा... २७३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . हे शारदे मा. १ . हे शारदे मा. २ ... हे शारदे मा. ३ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु गुण स्तुति आत्मज्ञानी महानयोगी ज्ञानी ध्यानी अध्यात्मी अष्टोत्तरशत ग्रंथ प्रणेता ज्ञाननिधि ने गुणोदधि बुद्धिसागरसूरीश्वरजी गुरू भव्यजीवोना अंतरयामी श्री गुरू चरणे भावे वंदन करूं छु कोटी कोटी. ........१ कैलास जेवी धीरताने सागर जेवी गंभीरता गुणोथी हती महानताने रहेती सदाये प्रसन्नता जेना नयन नीचा, भाव ऊंचा हृदये हती कारूण्यता कैलाससागरसूरी गुरूने चरणे सौ कोई प्रणमता गुणवंत गच्छाधिपतीने चरणे कोटी वंदना. ........ सिंह सम जेनी गर्जनाने वचनमांहि नीडरता हृदयमांही कोमलताने अद्भूत जेनी वात्सल्यता शासन प्रभावक जे कहाया गच्छाधिपतीपदे शोभता सागरसम सुबोधसागरसूरी गुरूने वंदना. पद्म जेवी सुवास जेहनी पद्म जेवी नीर्लेपता वाणी अमृतधार वहेती लागे सौने मधुरता राष्ट्रसंतनुं बीरूद जेहने शासनध्वज ल्हेरावता पद्मसागरसूरीश्वरचरणे भावे करूं हुं वंदना ......3 ...... २७४ For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर पच्चीसी मंदिर छो मुक्ति तणा मांगल्य क्रीडाना प्रभु, ने इन्द्र न ने देवता सेवा करे तारी विभु! सर्वज्ञ छो स्वामी वी सिरदार अतिशय सर्वना, घj जीव तुं! घणुं जीव तुं! भंडार ज्ञानकातणा ........१ त्रण जगतना आधार ने अवतार हे करूणातणा, वी वैद्य! हे! दुर्वार आ संसारना दुःखो तणा, वीतराग! वल्लभ विश्वना! तुज पास अरजी उच्चरूं, जाणो छतां! पण कही अने आ हृदय हुं खाली करूं ........२ शुं बाको माबाप पासे बाळक्रीडा नव करे? ने मुखमांथी जेम आवे तेम शुं नव उच्चरे? तेमज तमारी पास तारक आज भोळा-भावथी, जेवू बन्युं तेवू कहुं! तेमां कशुं खोटुं नथी. में दान तो दीधुं नहिं ने शीयळ पण पाळ्युं नहि, तपथी दमी काया नहिं शुभ भाव पण भाव्यो नहिं, ए चार भेदे धर्ममांथी कांई पण प्रभु! नव कर्यु, म्हारूं भ्रमण भव सागरे निष्फळ गयुं! निष्फळ गयु ........४ २७५ For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुं क्रोध अग्निथी बळ्यो, वळी लोभ सर्प डस्यो मने, गळ्यो मानरूपी अजगरे हुं केम करी ध्यावें तने? मन मारूं माया जाळमां मोहन! महा मुंझाय छे, चडी चार चोरो हाथमां चेतन! घणो चगदाय छे. में परभवे के आ भवे पण हित कांई कर्यु नहिं, तेथी करी संसारमा सुख अल्प पण पाम्यो नहिं, जन्मो अमारा जिनजी! भव पूर्ण करवाने थया, आवेल बाजी हाथमां अज्ञानथी हारी गया. ........ अमृत झरे तुज मुखरूपी चंद्रथी तो पण प्रभु!, भीजाय नहीं मुज मन अरेरे! शुं करूं हुं तो विभु!, पत्थर थकी पण कठण मारूं मन खरे! क्यांथी द्रवे?, मरकट समा आ मन थकी हुं तो प्रभु! हार्यो हवे. ........७ भमतां महाभव सागरो पाम्यो पसाये आपना, जे ज्ञान दर्शन चरण रूपी रत्नत्रय दुष्कर घणा, ते पण गया परमादना वशथी प्रभु! कहुं छु खरूं, कोनी कने किरतार! आ पोकार हुं जईने करूं. ठगवा विभु! आ विश्वने वैराग्यना रंगो धर्या, ने धर्मना उपदेश रंजन लोकने करवा कर्या, २७६ For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्या भण्यो हुं वाद माटे केटली कथनी कहुं? साधु थईने ब्हारथी, दांभिक अंदरथी रहुं. में मुखने मेलुं कर्यु दोषो पराया गाईने, ने नेत्रने निंदित कर्या, परनारीमां लपटाईने, वळी चित्तने दोषित कर्यु चिंती नठारूं परतणुं, हे नाथ! मारूं शुं थशे! चालाक थई चूक्यो घj. ....... १० करे काळ जाणे कतल पीडा कामनी बीहामणी, ने विषयमां बनी अंध हुं विडंबना पाम्यो घणी, तो पण प्रकाश्युं आज लावी लाज आप तणी कने, जाणो सहु तेथी कहुं कर माफ! मारा वांकने. ..........११ नवकार मंत्र विनाश कीधो अन्य मंत्रो जाणीने, कुशास्त्रना वाक्यो वडे हणी आगमोनी वाणीने, कुदेवनी संगत थकी कर्मो नकामा आचर्या, मतिभ्रम थकी रत्न गुमावी काच कटका में ग्रह्या. ......... १२ आवेल दृष्टि मार्गमां मुकी महावीर! आपने, में मूढधीए हृदयमां ध्याया मदनना चापने, नेत्रबाणोने पयोधर नाभिने सुंदर कटी, शणगार सुंदरीओ तणा छटकेल थई जोया अति. ......... १३ २७७ For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगनयनी सम नारी तणा मुखचंद्र निरखवा वती, मुज मन विषे जे रंग लाग्यो अल्प पण-गाढो अति, ते श्रुतरूप समुद्रमां धोया छतां जातो नथी, तेनुं कहो! कारण तमे बचु केम हुं आ पापथी? ............ १४ सुंदर नथी आ शरीर के समुदाय गुणतणो नथी, प्रभुता नथी तो पण प्रभु! अभिमानथी अक्कड फरूं, चोपाट चार गति तणी संसारमा खेल्या करूं. ............१५ आयुष्य घटतुं जाय तो पण पाप बुद्धि नव घटे, आशा जीवननी जाय तो पण विष्याभिलाषा नव मटे, औषध विषे करूं यत्न पण हुं धर्मने तो नवि गणुं, बनी मोहमां मस्तान हुं पाया विनाना घर चj. .............१६ आत्मा नथी! परभव नथी! वळी पुम्य पाप कशुं नथी!, मिथ्यात्वीनी कटुवाणी में धरी कान पीधी स्वादथी, रवि सम हता ज्ञाने करी प्रभु! आपश्री तो पण अरे! दीवो लई कूवे पड्यो धिक्कार छे मुजने खरे. ..........१७ में चित्तथी नहीं देवनी के पात्रनी पूजा चही, ने श्रावकोके साधुओनो धर्म पण पाळ्यो नहीं, २७८ For Private And Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाम्यो प्रभु नरभव छतां रणमां रड्या जेवुं थयुं, धोबी तणा कुत्ता समुं मम जीवन सहु एळे गयुं. हुं कामधेनु कल्पतरू चिंतामणिना प्यारमां, खोटा छतां झंख्यो घणुं बनी लुब्ध आ संसारमा, जे प्रगट सुख देनार त्हारो धर्म ते सेव्यो नहीं, मुज मूर्ख भावोने निहाळी नाथ! कर करूणा कंई. में भोग सारा चिंतव्या ते रोग सम चिंत्या नहिं, आगमन इच्छ्युं धनतणुं पण मृत्युने प्रीछ्युं नहिं, नहीं चिंतव्युं मे नर्क - कारागृह समी छे नारीओ, मधुबिंदुनी आशामहीं भय मात्र हुं भूली गयो. हुं शुद्ध आचारो वडे साधु हृदयमां नव रह्यो, करी काम पर उपकारना यश पण उपार्जन नव कर्यो, वळी तीर्थना उद्धार आदि कोई कार्यो नव कर्या, फोगट अरे! आ लक्ष चोराशी तणा फेरा फर्या. गुरूवाणीमां वैराग्य केरो रंग लाग्यो नहीं अने, दुर्जन तणां वाक्यो महीं शांति मळे क्यांथी मने, तरूं केम! हुं संसार आ अध्यात्म तो छे नहीं जरी, तूटेल तळीयानो घडो जळथी भराये केम करी? २७९ For Private And Personal Use Only १८ १९ २० २१ .२२ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org में परभवे नथी पुण्य कीधुं ने नथी करतो हजी, तो आवता भवमां कहो ! क्यांथी थशे हे नाथजी, भूत भाविने सांप्रत त्रणे भव नाथ ! हुं हारी गयो, स्वामी! त्रिशंकु जेम हुं आकाशमां लटकी रह्यो . अथवा नकामुं आप पासे नाथ! शुं! बकवुं घणुं, हे देवताना पूज्य! आ चरित्र मुज पोतातणुं, जाणो स्वरूप ण लोकनुं तो माहरूं शुं मात्र आ ज्यां क्रोडनो हिसाब नहीं त्यां पाइनी तो वात क्यां? त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो उद्धारनारो प्रभु ! म्हाराथी नही अन्य पात्र जगमां जोतां जडे हे विभु ! मुक्ति मंगळ स्थान! तोय मुजने इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यग् रत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये गणी. २८० For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..... २३ २४ २५ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra સ્વરોની સંગા पू. मुनि श्री पद्मरत्नसागरजी द्वारा संपादित पुस्तकें नित-नित P थाना नो रात्रमार्ग ज्या... लाथ-पत्र साधुभाई ! देवास पत्र www.kobatirth.org कैलास पत्र M CB जीवन यात्रा समय सुधारस पीजे...... Gue का राजमार्ग Bater-451 सर्व मंगल मांगल्यं उवास-पत्र दुवास-पत्र For Private And Personal Use Only जीवन यात्रा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की राजमार्ग सास-पत्र Amw सर्वगंग मांग बाथ-पत्र सास-पत्र सा Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत समुद्धारक आचार्य श्री पद्मसागरसरीश्वरजी की - सत् प्रेरणा से शा ओटमलजी जेठाजी रेवतडा -हस्तेम मदनलाल, सुपुत्र दिनेशकुमार, मुकेशकुमार, सुरेशकुमार, प्रफुल, तान्या, खुशी, आदि समस्त वेदमुथा परिवार (बेंगलोर) की ओर से आराधकों को सादर सप्रेम समर्पित... नाकार Sklep Concept: BIJAL CREATION: 079-22112392 For Private And Personal Use Only