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विमलनाथ स्तुति
आर्तरौद्रने वारीने मन निर्मल कर, एवी प्रभुनी पूजना एह ध्यान छे धर; विमल प्रभु जग उपदिशे सहु निर्मल थावो, विमल थवुं निज हाथमां शाने वार लगावो. अनंतनाथ स्तुति,
अनंत आतम द्रव्यथी क्षेत्र काल ने भावे, जाणे अंत न थाय छे आठ कर्म अभावे; द्रव्य क्षेत्र काल भावथी अनंत कर्मनो आवे, अनंतनाथ जणावता ब्रह्म अंत न थावे.
अनंतनाथ भगवाननी थोय
अनंत अनंत नाणी, जास महिमा गवाणी, सुर नर तिरि प्राणी, सांभळे जास वाणी; एक वचन समजाणी, जेह स्याद्वाद जाणी, तर्या ते गुण खाणी, पामीआ सिद्धि राणी.
श्री धर्मनाथ भगवाननी थोय
धरम धमर धोरी, कर्मना पास तोरी, केवल श्री जोरी, जेह चोरे न चोरी;
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