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दर्शन मद छोरी, जाय भाग्या सटोरी, नमे सुरनर कोरी, ते वरे सिद्धि गोरी.
धर्मनाथ स्तुति धर्म प्रभु कहे आत्मनो धर्म गुण पर्यायो समजे वर्ते सहजथी तेह धर्मी सुहायो; धर्मनाथ निज आतमा करे आविर्भावे, अज्ञानी धर्म पन्थ सहु टळे आत्मस्वभावे.
__ शांतिनाथ स्तुति शांति मळे नहीं लक्ष्मीथी नहीं राज्यना भोगे, शांति मळे नहीं कामथी बाह्यसत्ताप्रयोगे; शांति न राग-द्वेषथी सहु विषयने वामे, शांति जिनेश्वर भाखता शांति आतमठामे. शांति न क्रोध ने मानथी तेम माया ने लोभे, शांति न शास्त्राभ्यासथी जडमां मन थोभे; शांति न बाह्य पदार्थथी हुं ने मारुं माने, सर्व जिनेश्वर भाखता शांति आतम स्थाने. संकल्पो ने विकल्पथी मन शांत न थावे, अज्ञान ने मोहभावथी कोई शांति न पावे;
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