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एकादशी तिथिनुं चैत्यवंदन.
आज ओच्छव थयो मुज घरे, एकादशी मंडाण; श्री जिननां त्रणसे भलां, कल्याणक वर जाण. सुरतरु सुरमणि सुरघट, कल्पवेली फली म्हारे; एकादशी आराधतां, बोधि बीज चित्त ठारे. नेमि जिनेश्वर पूजतां ए, पहोंचे मनना कोड; ज्ञान विमल गुणथी लहो, प्रणमो बे करजोड. पर्युषणनुं चैत्यवंदन
पर्व पर्युषण गुण नीलो, नव कल्प विहार; चार मासान्तर थिर रहे, एहीज अर्थ उदार. अषाढ शुदी चउदस थकी, संवत्सरी पचास; मुनिवर दिन सित्तेरमें, पडिक्कमतां चौमास. श्रावक पण समता धरे, करे गुरुना बहुमान; कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभले थई एक तान. जिनवर चैत्य जुहारीये, गुरु भक्ति विशाल; प्राये अष्ट भवांतरे, वरीये शिव वरमाल. दर्पणथी निज रूपनो, जुए सुदृष्टि रूप; दर्पण अनुभव अर्पणो, ज्ञान रमण मुनि भूप..
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