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पंच जिन स्तुति श्री आदि शान्ति नेमि पास वीर शासनपति वली, नमो वर्तमान अतीत अनागत चोवीशे जिन मन रली; जिनवरनी वाणी गुणनी खाणी प्रेमे प्राणी सांभली, थया समकितधारी भव निट्ठारी सेवे सुरवर लली लली...१ (इस गाथा को चार बार बोल सकते है.)
स्तुति कल्लाणकंदं पढम जिणिंदं संतिंतओ नेमिजिणं मुणिंदं पासं पयासं सुगुणिक्कठाणं भत्तीई वंते सिरिवद्धमाणं........१
चार स्तुति की एक स्तुति प्रभुमहावीरदेवजिनेश्वरम्, सकलतीर्थपतिमचलेश्वरम्; प्रतिदिनं प्रणमामि जिनागमम्, कुरु हि यक्षिणी संघसहायताम्.१
सीमंधर जिन स्तुति श्री सीमन्धर जिनवर!, सुखकर साहिब देव! अरिहंत सकलनी, भाव धरी करूं सेव! सकलागम-पारग, गणधर-भाषित वाणी; जयवंती आणा, ज्ञान-विमल गुण खाणी.
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