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गुरुमुखथी विधिपूर्वक उच्चरी, पूर्ण थतां उझवीए; तद्भव त्रीजा भवमा मुक्ति, जूलु कांई न लवीए. हो भावे० ४ चौद वर्ष त्रण मास ने उपरे, वीसे दिवसे पूरो; विश्रामवण तप आराधंतां, तप न रहे अधूरो...... हो भावे० ५ पांच हजार पच्चास छे आंबिल, उपवास शत निर्धार; पूर्ण करे वडभागी तपिया, लब्धि शक्ति भंडार. .. हो भावे० ६ आहारादि विषयोमां रसवण, आतम आनंद रसिया; क्षणमां मुक्ति पामे निश्चय, भाव तपे उल्लसिया. हो भावे० ७ अंतगड सूत्र ने आचारदिनकरे, श्रीचंद केवली साध्यु; बुद्धिसागर आत्मोल्लासे; महासेनजीए आराध्यु. . हो भावे० ८
बीजनुं स्तवन बीज तिथिए जैनधर्मनुं रे लाल, बीज ग्रहो समकित रे हुं वारीलाल; देव गुरु ने जैनधर्मनीरे लाल, श्रद्धा समकितरीतरे हुंवारीलाल..
..बीज०१ अनंतचार कषायनोरेलाल, त्रण मोहनी तेमरे, हुंवारीलाल; सात प्रकृति उपशमे यदारेलाल, त्रण मोहनी तेमरे, हुंवारीलाल...
..बीज० २ १८१
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