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सवि देव मली उद्योत करे, प्रभाते गौतम ज्ञान वरे; ज्ञान विमल सदा गुण विस्तरे,
जिन शासनमां जयकार करे. ........४
पर्युषण पर्व स्तुति पुण्य, पोषण पापनुं शोषण, पर्व पजुसण पामीजी; कल्प घरे पधरावो स्वामी, नारी कहे शिर नामीजी. कुंवर गयवर खन्ध चढावी, ढोल निशान वगडावोजी; सद्गुरु संगे चढते रंगे, वीर-चरित्र सुणावोजी. .............. प्रथम वखाण धर्म सारथि पद, बीजे सुपनां चारजी; त्रीजे सुपन पाठक वली चोथे, वीर जनम अधिकारजी. पांचमे दीक्षा छठे शिवपद, सातमे जिन त्रेवीशजी; आठमे थिरावली संभलावे, पिउडा पूरो जगीशजी.
.........२ छट्ठ अट्ठम अट्ठाई कीजे, जिनवर चैत्य नमीजेजी; वरसी पडिक्कमणुं मुनि वन्दन, संघ सकल खामीजेजी. आठ दिवस लगे अमर पलावी, दान सुपात्रे दीजेजी; भद्रबाहु गुरु वचन सुणीने, ज्ञान सुधारस पीजेजी. .....३ तीरथमां विमलाचल, गिरिमां मेरु महीधर जेमजी; मुनिवर मांही जिनवर मोटा, परव पजुसण तेमजी.
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