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श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे, ओर न चाहुं रे कन्त. रीझीयो साहेब संग न परिहरे रे, भांगे सादि-अनन्त.ऋषभ.१ प्रीत-सगाई रे जगमा सहु करे रे, प्रीत-सगाई न कोय. प्रीत-सगाई रे निरुपाधिक कही रे,सोपाधिक धन खोय.ऋषभ.२ कोई कंत कारण काष्ठ भक्षण करे रे, मिल| कन्तने धाय. ए मेलो नवि कहीए संभवे रे, मेलो ठाम न ठाय.....ऋषभ.३ कोई पति-रंजन अति घणुं तप करे रे, पति-रंजन तनु ताप. ए पति-रंजन में नवि चित धर्यु रे, रंजन धातु मिलाप. .... ऋषभ.४ कोई कहे लीला रे अलख-अलख तणी रे, लख पूरे मन आश. दोष-रहितने लीला नवि घटे रे, लीला दोष विलास. ......ऋषभ.५. चित्त प्रसन्ने रे पूजन फल कह्यु रे, पूजा अखण्डित एह. कपट रहित थई आतम अरपणा रे,आनन्दघन पद रेह.ऋषभ.६
श्री ऋषभदेव स्तवन ऋषभ जिनराज मुज आज दिन अति भलो, गुण नीलो जेणे तुज नयण दीठो; दुःख टल्यां सुख मल्यां स्वामी तुज निरखतां, सुकृत संचय हुओ पाप नीठो..... .......... ऋषभ.१.
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