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ऋषभ.२.
ऋषभ.३.
कल्पशाखी फल्यो कामघट मुज मल्यो, आंगणे अमीयनो मेह वूठो मुज महीराण महीभाण तुज दर्शने, क्षय गयो कुमति अंधार जूठो.. कवण नर कनक मणि छोडी तृण संग्रहे, कवण कुंजर तजी करह लेवे; कवण बेसे तजी कल्पतरु बाउले, तुज तजी अवर सुर कोण सेवे?. एक मुज टेक सुविवेक साहिब सदा, तुज विना देव दूजो न ईहुं; तुज वचन राग सुख सागरे झीलतो, कर्मभर भ्रम थकी हुं न बीहुं........ कोडी छे दास विभु! ताहरे भलभला, माहरे देव तुं एक प्यारो; पतित पावन समो जगत उद्धारकर, महेर करी मोहे भवजलधि तारो... मुक्तिथी अधिक तुज भक्ति मुज मन वसी, जेहशुं सबल प्रतिबंध लागो;
ऋषभ.४.
ऋषभ.५.
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