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कर-युगमपि यत्ते, शस्त्र-संबंध-वंध्यम्; तदसि जगति देवो, वीतराग-स्त्वमेव. अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया; अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेंद्र! तव दर्शनात्................. कल्याण-पाद-पाराम, श्रुत-गंगा-हिमाचलम्; विश्वांभोज-रविं देवं, वंदे श्री-ज्ञात-नन्दनम्. . .............. दर्शनाद् दुरित-ध्वंसी, वंदनाद् वांछित-प्रदः; पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः. देखी मूर्ति श्री पार्श्वजिननी नेत्र मारा ठरे छे, ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु, ध्यान तारुं धरे छे, आत्मा मारो प्रभु तुज कने, आववा उल्लसे छे, आपो एवं बळ हृदयमां, माहरी आश ए छे. .................३१ भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मांगु छु देवाधिदेवा, सामुं जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. .......३२ अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिता, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलं. ...........३
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