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श्री अभिनंदन स्तवन अभिनंदनजिनरूपने, ध्यानमां स्मरणथी लावू रे; ध्यानमां लीनतायोगथी, सुख अनन्त घट पावं रे.... अभि० १ मन-वचन-कायाना योगनी, स्थिरता जेह प्रमाण रे; तद्नुगत वीर्यता उल्लसे, भाव क्षयोपशम सुखखाणरे.अभि० २ असंख्यप्रदेशमयी व्यक्तिमां, ध्यानथी एकता थायरे; पंडित-वीर्य त्यां संपजे, उज्जवल अध्यवसायरे. ..... अभि० ३ क्षणक्षण उज्जवल ध्यानमां, प्रगटतो सहज आनन्दरे; बाह्य जड विषयना सुखनो, वेगथी नाशतो फन्दरे. . अभि० ४ अन्तरशुद्ध परिणतिथकी, भावथी होय निज मुक्ति रे; शुद्धनयस्थापना सहजथी, प्रगटतो ए तत्त्वनी युक्ति रे.अभि०५ क्षयोपशम ज्ञान-वीर्यथी, क्षायिक धर्म ग्रहायरे; निर्विकल्प उपयोगमां, श्रुतज्ञान एक स्थिर थायरे... अभि० ६ भावश्रुतज्ञान आलंबने, जीव ते जिनरूप थायरे; बुद्धिसागर शिवसंपदा, मंगलश्रेणि पमायरे............ अभि० ७
श्री सुमतिनाथ स्तवन सुमतिजिनेश्वर शुद्धता, बुद्धता परम स्वभावरे; अस्तिता नास्तिता एकता, ज्ञातृता नहि परभावरे. . सुमति० १
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