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घाति-डुंगर आडा अति घणा, तुज दरिसण जगनाथ. धीठाई करी मारग संचरूं, सेंगुं कोई न साथ.......... अभि.४ दरिसण दरिसण रटतो जो फिरुं, तो रण-रोझ समान. जेहने पिपासा हो अमृत-पाननी, किम भांजे विषपान. अभि.५ तरस न आवे हो मरण-जीवन तणो,सीझे जो दरिसण काज. दरिसण दुर्लभ सुलभ कृपा थकी,आनन्दघन महाराज.अभि.६
श्री अभिनंदनस्वामी हमारा अभिनंदन स्वामि हमारा, प्रभु भव दुःख भंजनहारा; ये दुनिया दु:ख की धारा, प्रभु इनसे करो निस्तारा, .अभि.१ हुं कुमति कुटिल भरमायो, दुरनीति करी दुःख पायो; अब शरण लीयो है तारो, मुजे भवजल पार उतारो, अभि.२ प्रभु शीख हैये नवि धारी, दुर्गतिमां दुःख लीयो भारी; इन कर्मो की गति न्यारी, करे बेर बेर खुवारी... ..... अभि.३ तुमे करुणावंत कहावो, जगतारक बिरुद धरावो, मेरी अरजीनो एक दावो, इन दुःख से क्युं न छुडावो..अभि.४ मे विरथा जनम गुमायो, नही तन धन स्नेह निवार्यो; अब पारस प्रसंग पामी, नही वीरविजय कुं खामी..... अभि.५
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