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श्री संभवनाथ स्तवन
संभव जिनवर विनति, अवधारो गुणज्ञाता रे;
खामी नहीं मुज खिजमते, कदीय होशो फळदाता रे. संभव०१ कर जोडी ऊभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे; ज मनमां आणो नहि, तो शुं कहीए छानो रे.. खोट खजाने को नहीं, दीजीए वांछित दानो रे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे..... संभव० ३ काळ लब्धि मुज मति गणो, भाव लब्धि तुम हाथे रे; लडथडतुं पण गजबच्चुं, गाजे गयवर साथे रे.
संभव० ४
देशो तो तुम ही भलुं, बीजा तो नवि जाचुं रे; वाचक यश कहे सांईशुं, फळशे ए मुज साचुं रे.... संभव० ५ श्री अभिनंदन स्तवन
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संभव० २
अभिनंदन जिन दरिसण तरसिए, दरिसण दुर्लभ देव. मत मत भेदे रे जो जई पूछिए, सहु थापे अहमेव ... अभि.१. सामान्ये करी दरिसण दोहिलुं, निर्णय सकल विशेष. मदमें घेर्यो रे अन्धो किम करे, रवि-शशि-रूप विलेख...... अभि. २. हेतु विवादे हो चित्त धरी जोइए, अति दुरगम नयवाद. आगम वादे हो गुरुगम को नहीं, ए सबलो विखवाद. अभि.३.
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