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काल अनंतनो स्नेह विसारी, काम कीधा मनगमता, हवे अंतर केम की, प्रभुजी...! चौद राज जई पहोतां.
.......................... अबोलडा...१० 'दीप विजय' कविराज प्रभुजी...! जगतारण जगनेता, निज सेवकने यश पद दीजे, अनंत गुणी गुणवंता
..... अबोलडा...११ सामान्य जिन स्तवन जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं, हृदय कमलमें ध्यान धरत हुँ, शिर तुज आण वहुं....जिन १ तुम सम खोळ्यो देव खलक में, पेख्यो नहि कबहुं... जिन २ तेरे गुण की जपुं जप माला, अहोनिश पाप दहुं... ... जिन ३ मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं....जिन ४ कहे 'जस विजय' करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुःख न लहुं... जिन ५
श्री सीमंधरस्वामी स्तवन तुमे महा विदेहे जईने कहेजो चांदलिया
...(२) सीमंधर तेडां मोकले तुमे भरतक्षेत्रना दुःख कहेजो चांदलिया
.....(२) सीमंधर तेडां मोकले.
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