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श्री शीतलनाथ स्तवन
शीतलजिन ! मोहे प्यारा साहिब ! शीतलजिन! मोहे प्यारा. भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिउ के जिउ हमारा............ ज्योति शुं ज्योत मिलत जब ध्यावे, होवत नहि तब न्यारा, बांध मुठी खुले भव माया, मीठे महाभ्रम भारा...
तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा, तुमही नजीक नजीक है सबहि, ऋद्धि अनंत अपारा. विषय लगन की अगन बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा, भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा......४ शीतलता गुण होड करत तुम, चंदन कांही बिचारा? नामहि तुमचा ताप हरत है, वाकुं घसत घसारा.... करहु कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जस कहे जनम-मरण भय भांगो, तुम नामे भवपारा.... श्री शीतलनाथ स्तवन
प्रीतलडी बंधाणीरे, शीतल जिणंद, प्रभुविना क्षणमात्र नहि सोहायजो; प्रेमीविना नहि बीजो ते जाणी शके,
रूप प्रभुनुं देखी मन हरखायजो.
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प्रीतलडी० १