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अन्तरना उपयोगे प्रभुजी दिल वस्या, भक्ति आधीन प्रभुजी प्राण सनाथजो; अनुभवयोगे रंग मजीठनो लागियो, त्रणभुवनना स्वामी आव्या हाथजो. ............. प्रीतलडी० २ जेम प्रभुनां दर्शनमां स्थिरता थती, तेम प्रभुजी आनन्द आपे बेशजो; आनन्ददाता-भोक्तानी थई एकता, चढी खुमारी यादी आपे हमेशजो..
प्रीतलडी03 आत्मासंख्य प्रदेशे शीतलता खरी, अवधूत योगी प्रगटावे सुखकंदजो; औदयिकभाव निवारी उपशम आदिथी, टाळे सघळा मोहतणा महाफंदजो. ... प्रीतलडी०४ गुणस्थानक-निःसरणी चढतो आतमा, उज्ज्वलयोगे पामे शिवपुर म्हेलजो; क्षायिकभावे सुख अनंतुं भोगवे, निजपदध्रुवता धारी करतो सहेलजो.............. प्रीतलडी० ५ बाह्य-भावनी सर्व पाधि नासतां, प्रभुविरहनो नाश थशे निर्धारजो;
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