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अगियार अंग उपांग बार, दश पयन्ना जाणीये; छ छेद ग्रंथ पसत्थ-सत्था, चार मूल वखाणीये. अनुयोग द्वार उदार, नंदीसूत्र जिनमत गाईये; वृत्ति चूर्णि भाष्य, पिस्तालीश आगम ध्याईये. .........३ दोय दिशि बालक दोय जेहने, सदा भवियण सुखकरु; दुख हरि अंबालुंब सुंदर, दुरित दोहग अपहरूं. गिरनार मंडण नेमि जिनवर, चरण-पंकज सेविये; श्री संघ सुप्रसन्न मंगल, करो ते अंबा देवीए. ... ........४
नेमिनाथ भगवाननी थोय राजुल वर नारी, रूपथी रति हारी, तेहना परिहारी, बालथी ब्रह्मचारी; पशुआं उगारी, हुआ चारित्रधारी, केवलश्री सारी, पामीआ घाति वारी.
पार्श्वनाथ भगवाननी थोय पासजिणंदा वामानंदा, जब गरभे फळी, सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवा मळी; जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणी प्रिये, नेमि राजी चित्त विराजी, विलोकित व्रत लीए.
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