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सोले जिन कंचन समा ए, एहवा जिन चोवीश. धीर विमल पण्डित तणो, ज्ञान विमल कहे शिष्य. ........३
तीर्थंकर भव चैत्यवंदन प्रथम तीर्थंकर तणा हुवा, भव तेर कहीजे; शांति तणा भव बार सार, नव भव नेम लहीजे. ........... दश भव पास जिणंदना, सत्तावीश श्री वीर; शेष तीर्थंकर त्रिहुं भवे, पाम्या भव जल तीर. ...... ........२ जिहांथी समकित फरसियुं ए, तिहांथी गणीए तेह; धीर विमल पंडित तणो, ज्ञान विमल गुणगेह.
एकसौ सित्तेर जिनवर्ण चैत्यवंदन सोले जिनवर शामला, राता त्रीश वखाणुं; लीला मरकत मणि समा, आडत्रीशे गुण खाणुं............ पीला कंचन वर्ण समा, छत्रीशे जिनचंद; शंख वरण सोहामणुं, पचाशे सुखकंद.
....... सीत्तेर सो जिन वंदीये ए, उत्कृष्टा समकाल; अजितनाथ वारे हुवा, वंदुं थइ उजमाल. नाम जपंतां जिन तणुं, दुर्गति दूरे जाय; ध्यान ध्यातां परमात्मानु, परम महोदय थाय.
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