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जिनवर नामे जश भलो, सफल मनोरथ सार; शुद्ध प्रतीति जिन तणी, शिव सुख अनुभव धार.... .........५
सिद्ध परमात्माना चैत्यवंदन सिद्ध सकल समरूं सदा, अविचल अविनाशी; थाशे ने वली थाय छे, थया अड कर्म विनाशी. ......... लोकालोक प्रकाश भास, कहेवा कोण शूरो; सिद्ध बुद्ध पारंगत, गुणथी नहिं अधूरो. अनंत सिद्ध एणी परे नमुं ए, वली अनंत अरिहंत, ज्ञान विमल गुण संपदा, पाम्या ते भगवंत...... ........३
श्री सीमंधर जिन चैत्यवंदन श्री सीमंधर जगधणी, आ भरते आवो; करुणावंत करुणा करी, अमने वंदावो. सकल भक्त तुमे धणी, जो होवे अम नाथ; भवोभव हुं छु ताहरो, नहीं मेलुं हवे साथ. सयल संग छंडी करी, चारित्र लेईशुं, पाय तुमारा सेवीने, शिवरमणी वरीशुं..... ए अलजो मुजने घणो ए, पूरो सीमंधर देव; इहां थकी हुं विनवू, अवधारो मुज सेव..
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