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परमब्रह्म! जगदीश्वर! जय जिनराजजी! शरणे आव्यो सेवक राखो लाजजी.. वार वार शी? विनति जाणो सहु कह्यु, वार लगाडो न लेश दुःख में बहु सर्वा; बुद्धिसागर सत्य भक्तिथी उद्धारजो, वन्दन वार हजार विनती ए स्वीकारजो..
श्री सुविधिनाथ स्तवन में कीनो नहीं, तुम बिन ओरशुं राग. दिन दिन वान चढत गुन तेरो, ज्युं कंचन परभाग.
ओरन में हैं कषाय की कलिमा, सो क्युं सेवा लाग......मैं.१ राजहंस तुं मान सरोवर, और अशुचि रुचि काग. विषय भुजंगम गरुड तु कहिये, और विषय विषनाग..... मैं.२ और देव जल छिल्लर सरिखे, तुं तो समुद्र अथाग. तुं सुरतरु जग वंछित पूरण, और तो सूके साग.......... मैं.३ तुं पुरुषोत्तम तुं ही निरंजन, तुं शंकर वडभाग. तुं ब्रह्मा तुं बुद्ध महाबल, तुं ही ज देव वीतराग............ मैं.४ सुविधिनाथ तुम गुन फुलनको, मेरो दिल है बाग. जस कहे भ्रमर रसिक होइ तामें, लीजे भक्ति पराग.....मैं.५
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