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श्री महावीरस्वामी चैत्यवंदन प्रभु महावीर जगधणी, परमेश्वर जिनराज; श्रद्धा भक्ति ज्ञानथी, सार्या सेवक काज. काल स्वभाव ते नियति, कर्म ने उद्यम जाण; पंच कारणे कार्यनी, सिद्धि कथी प्रमाण.. पुरुषार्थ तेमां कह्यो, कार्य सिद्धि करनार; शुद्धात्मा महावीर जिन, वंदु वार हजार. महावीरने ध्यावतां ए, महावीर आपोआप; बुद्धि सागर वीरनी, साची अंतर छाप.
श्री महावीरस्वामी, चैत्यवंदन वर्द्धमान जिनवर धणी, प्रणमुं नित्यमेव; सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव.. त्रिशला उदर सर हंस सम, प्रगट्यो सुख कंद; केशरी लंछन विमल तनु, कंचन मय वृंद. महावीर जगमां वडो ए, पावापुरी निर्वाण; सुर नर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण....
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