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अनुभव विण कथनी सहु फीकी, दर्शन अनुभव योगे; क्षायिकभावे शुद्ध स्वभावे, वर्ते निजगुण भोगे........ प्रभुजी० ३ देश विदेशे घरमां वनमां, दर्शन नहि पामीजे; दर्शन दीठे दूर न मुक्ति, निश्चयथी समजीजे...... प्रभुजी० ४ चेतन दर्शन स्पर्शन योगे, आनन्द अमृतमेवा; बुद्धिसागर साचो साहिब, कीजे भावे सेवा........... प्रभुजी० ५
सामान्य जिन स्तवन अबोलडा शाना लीधा छे राज? जीवजीवन प्रभु माहरा तमे अमारा अमे तमारा, वास निगोदमां रहेता काल अनंतना स्नेही प्यारा, कदीए न अंतर करता
.....अबोलडा १ बादर स्थावरमां बेउ आपण, काल असंख्य निगमता विकलेन्द्रियमां काल संख्याता, विसर्यां नवी विसरता
.अबोलडा २ नरक स्थाने रह्या बेउ साथे, तिहां पण बेउ दुःख सहेता परमाधामी सन्मुख आपण, टगटग नजरे जोता,
...............अबोलडा ३
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