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सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन सिद्धाचल गिरि वंदीए, द्रव्य भावथी बेश; द्रव्य भाव गिरि जाणतां, रहे न मनमां क्लेश. सात नयोथी जाणीने, विमलाचल ध्यानार; अवश्य मुक्तिपद लहे, शुद्धातम पद सार.... निर्विकल्प स्वभावथी ए, तीर्थज आपोआप; बुद्धिसागर संपजे, रहे न दुविधा ताप.
सिद्धाचल तीर्थ चैत्यवंदन जय! जय! नाभि नरिंद नंद, सिद्धाचल मंडण; जय! जय! प्रथम जिणंद चंद, भव-दुःख विहंडण. ........१ जय! जय! साधु सूरिंद वृंद, वंदिअ परमेसर; जय! जय! जगदानंद कंद, श्री ऋषभ जिनेसर. ... अमृत सम जिन धर्मनो ए, दायक जगमां जाण; तुज पद पंकज प्रीतधर, निश-दिन नमत कल्याण... .........३
श्री रायण पगलांनुं चैत्यवंदन एह गिरि उपर आदि देव, प्रभुप्रतिमा वंदो; रायण हेठे पादुका, पूजीने आणंदो..
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