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श्री मल्लिनाथ भगवान चैत्यवंदन मल्ल बनी भवरणविषे, जीत्या राग ने द्वेष; मल्लि प्रभु तेथी थया, टाळ्या सर्वे क्लेश. रागद्वेष न जेहने, परमातम ते जाण; देह छतां वैदेही ते, केवली छे भगवान्..... मल्लिनाथ प्रभु ध्याईने ए, भावमल्लता पामी; कर्म करो प्रारब्धथी, बनी अंतर निष्कामी.
श्री मुनिसुव्रतस्वामीनुं चैत्यवंदन मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छप, लंछन, पद्मा माता जेहनी सुमित्र नृप नंदन. राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर, कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर... त्रीस हजार वरसतणुं ए, पाली आयु उदार, पद्मविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार. .........३
श्री मुनिसुव्रतस्वामी, चैत्यवंदन भाव मुनिसुव्रतपणुं, प्रगटावीने जेह; मुनिसुव्रत प्रभु जिन थया, वंदुं ते गुणगेह...
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