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श्री सीमंधरस्वामी स्तवन
सुणो चंदाजी!, सीमंधर परमातम पासे जाजो;
मुज विनतडी प्रेम धरीने, एणी पेरे तुम संभलावजो. जे त्रण भुवननो नायक छे, जस चोसठ इन्द्र पायक छे; नाण-दरिसण जेहने खायक छे, . . सुणो. १. जेनी कंचन वरणी काया छे, जस धोरी लंछन पाया छे; पुंडरीगिणी नगरीनो राया छे,
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. सुणो. २.
बार पर्षदा मांही विराजे छे, जस चोत्रीस अतिशय छाजे छे; पत्री वाणी गाजे छे, . सुणो. ३. भवि-जनने जे पडिबोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे; रूप देखी भविजन मोहे छे, . सुणो. ४. तुम सेवा करवा रसियो छं, पण भरतमां दूरे वसियो छु; महा मोह-राय कर फसियो छु,
. सुणो. ५.
पण साहिब चित्तमां धरियो छे, तुम आणा खडग कर ग्रहीयो छे; तो कांइक मुजी डरियो छे, . सुणो. ६.
जिन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्म-विजय थाउं शूरो; तो वाधे मुज मन अति नूरो,..
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सुणो .७.