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गुरु गुण स्तुति आत्मज्ञानी महानयोगी ज्ञानी ध्यानी अध्यात्मी अष्टोत्तरशत ग्रंथ प्रणेता ज्ञाननिधि ने गुणोदधि बुद्धिसागरसूरीश्वरजी गुरू भव्यजीवोना अंतरयामी श्री गुरू चरणे भावे वंदन करूं छु कोटी कोटी. ........१ कैलास जेवी धीरताने सागर जेवी गंभीरता गुणोथी हती महानताने रहेती सदाये प्रसन्नता जेना नयन नीचा, भाव ऊंचा हृदये हती कारूण्यता कैलाससागरसूरी गुरूने चरणे सौ कोई प्रणमता गुणवंत गच्छाधिपतीने चरणे कोटी वंदना. ........ सिंह सम जेनी गर्जनाने वचनमांहि नीडरता हृदयमांही कोमलताने अद्भूत जेनी वात्सल्यता शासन प्रभावक जे कहाया गच्छाधिपतीपदे शोभता सागरसम सुबोधसागरसूरी गुरूने वंदना. पद्म जेवी सुवास जेहनी पद्म जेवी नीर्लेपता वाणी अमृतधार वहेती लागे सौने मधुरता राष्ट्रसंतनुं बीरूद जेहने शासनध्वज ल्हेरावता पद्मसागरसूरीश्वरचरणे भावे करूं हुं वंदना
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