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पुंडरीक गणधार, कनक विजय बुध शिष्य; बुध दर्शन विजय कहे, पहोंचे सकल जगीश.
नवपद स्तुति अरिहंत नमो वली सिद्ध नमो, आचारज वाचक साहु नमो; दर्शन ज्ञान चारित्र नमो, तप ए सिद्धचक्र सदा प्रणमो. ....१ अरिहंत अनंत थया थाशे, वली भाव निक्षेपे गुण गाशे; पडिक्कमणां देववंदन विधिY, आंबिल तप गणणुं गणवू विधिशुं .. २ छहरी पाली जे तप करशे, श्रीपाल तणी परे भव तरशे; सिद्धचक्रने कुण आवे तोले, एहवा जिन आगम गुण बोले..३ साडाचार वरसे तप पूरो, ए कर्म विदारण तप शूरो; सिद्धचक्रने मनमंदिर थापो, नय विमलेसर वर आपो........४
नवपद स्तुति जिन शासन वंछित पूरण देव रसाल,
भावे भवि भणीये सिद्धचक्र गुणमाल; तिहुं-काले एहनी पूजा करे उजमाल,
ते अजर अमर पद सुख पामे सुविशाल..१ अरिहंत सिद्ध वंदो आचारज उवज्झाय,
मुनि दरिसण नाण चरण तप ए समुदाय;
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