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ए नवपद समुदित सिद्धचक्र सुखदाय,
ए ध्याने भविनां भवकोटि दुःख जाय.
आसो चैतरमां शुदि सातमथी सार,
दोय सहस गणणु पद सम साडा चार,
पूनम लगे कीजे नव आंबिल निरधार;
सिद्धचक्रनो सेवक श्री विमलेसर देव,
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एकाशी आंबिल तप आगम अनुसार....३
दुःख दोहग नावे जे करे एहनी सेव,
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श्रीपाल तणी परे सुख पूरे स्वयमेव ;
विपुल कुशल-माला, केलिगेहं विशाला; सम-विभव-निधानं, शुद्धमन्त्र-प्रधानम्. सुर नरपति सेव्यं, दिव्य-माहात्म्य-भव्यं; निहत- दुरित-चक्रं, संस्तुवे सिद्धचक्रम्. दमित-करणवाहं, भावतो यः कृताहं; कृति - निकृति-विनाशं, पूरिताङ्गि-व्रजाशम्. नमित-जिन-समाजं, सिद्धचक्रादि-बीजं; भजति सगुण- राजिः, सोनिशं सौख्यराजी. २३५
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श्री सुमति सुगुरुनो राम कहे नित्यमेव ..... नवपद स्तुति.
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