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पुद्गलभावना खेलथी, चित्तवृत्ति हठावू; परमानन्दनी मोजमां, निर्मल पद पावं. .............. विमल० २ अन्तर रमणता आदरी, ध्रुवता निज वरशुं; मनमोहन जगनाथना, उपयोगथी तरशुं. ............ विमल० ३ असंख्यप्रदेशी आतमा, नित्यानित्य विलासी; स्याद्वादसत्तामयी सदा, जोतां टळती उदासी...... विमल० ४ पुद्गल-ममता त्यागीने, अन्तरमा रहीशुं; अनुभवअमृतस्वादथी, अक्षयसुख लहीशुं............. विमल० ५ काया-वाणी-मनथकी, विमलेश्वर न्यारो; शुद्ध परिणतिभक्तिथई, भेटीशुं प्रभु प्यारो. .......... विमल० ६ स्थिरउपयोगप्रभावथी, एक घातथी मळशं; बुद्धिसागर भक्तिथी, ज्योति ज्योतिमां भळशुं. ...... विमल० ७
श्री विमलनाथ स्तवन मुज अवगुण मत देखो.
............. प्रभुजी. राग दशाथी तुं रहे न्यारो, हुं मन रागे वालुं. द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालुं. ........ प्रभु.१. मोह लेश फरस्यो नहि तुंही, मोह लगन मुज प्यारी. तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहेणी न्यारी...... प्रभु.२.
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